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यूपी में सीएए विरोधियों के ख़िलाफ़ एक बार फिर प्रशासन ने जारी किए पोस्टर

उत्तर प्रदेश पुलिस ने आठ प्रदर्शनकारियों को भगोड़ा घोषित कर दिया है। और इन प्रदर्शनकारियों की जानकारी देने वाले को पाँच हज़ार का इनाम देने का ऐलान करते हुए एक बार फिर एक पोस्टर जारी कर दिया है। इसके अलावा कुछ अन्य लोगों के ख़िलाफ़ भी एक और पोस्टर जारी किया गया है।
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नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) के विरुद्ध हुए प्रदर्शन को एक वर्ष पूरा होने वाला हैलेकिन प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध कार्रवाई अब भी जारी है। उत्तर प्रदेश पुलिस ने आठ प्रदर्शनकारियों को भगोड़ा घोषित कर दिया है। और इन प्रदर्शनकारियों की जानकारी देने वाले को पाँच हज़ार रुपये का इनाम देने का ऐलान करते हुए एक बार फिर एक पोस्टर जारी कर दिया है।

राजधानी लखनऊ की पुलिस द्वारा एक पोस्टर जारी किया गया हैजिसमें आठ सीएए विरोधी प्रदर्शनकरियों की तस्वीरें हैं। इन सभी के विरुद्ध गैंगस्टर में मुक़दमा दर्ज है। पुलिस द्वारा पोस्टर में सभी प्रदर्शनकारियों के नामों के साथ उनकी तस्वीरें को भी दर्शाया गया है।

पोस्टर पर प्रदर्शनकारियों की तस्वीरों के साथ लिखा है, “उपरोक्त अभियुक्तगण जो मु०अ०स 133/20 धारा 2/3 उ०प्र गैंगस्टर ऐक्ट थाना ठाकुरगंज में वांछित हैं कि जानकारी देने पर प्रत्येक अभियुक्त पर रुपये 5000 का पुरस्कार दिया जायेगा।

इसके अलावा पोस्टर पर प्रभारी निरीक्षक चौकप्रभारी निरीक्षक ठाकुरगंज और सहायक पुलिस आयुक्त का टेलीफोन नंबर भी है जिस पर इसके बारे में जानकारी दी जा सकती है।

पुलिस द्वारा इन प्रदर्शनकारियों के इलाक़ों में जाकर इसके वांछित होने का ऐलान भी लाउडस्पीकर पर किया गया। प्रदर्शनकारियों के घरों के बाहर स्थानीय प्रशासन द्वारा नोटिस भी चस्पा किये गए हैं।

पुलिस के अनुसार यह प्रदर्शनकारी बीते वर्ष सीएए के विरुद्ध हुए प्रदर्शन के दौरान हिंसा में शामिल थे। सहायक पुलिस आयुक्त आईपी सिंह ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा की जिनका पोस्टर जारी किया गया है वह हिंसा में शामिल थे, और 19 दिसंबर 2019 के बाद से फ़रार हैं।

उन्होंने कहा की कुल 8 लोगों की तस्वीर पोस्टर पर है और इनमें किसी एक की जानकारी देने वाले को नगद पुरस्कार दिया जायेगा। सहायक पुलिस आयुक्त के अनुसार अभियुक्त प्रदर्शनकारियों की तस्वीर हर उस जगह लगाई गई है जहाँ उनके मिलने की संभावना है। इसके अलवा अभियुक्त के घरों के आस-पास भी पोस्टर और नोटिस लगाए गए हैं।

जबकि पुलिस सूत्रों के मुताबिक़ से अधिक प्रदर्शनकारियों की तस्वीरों को सार्वजनिक स्थानों पर लगाया गया है। सूत्रों ने बताया की दो तरह की होर्डिंग बनवाई गई हैं। एक होर्डिंग में वह प्रदर्शनकारी हैं जिन पर गैंगस्टर के तहत करवाई की गई है। दूसरी एक अन्य होर्डिंग में कुछ प्रदर्शनकारियों की तस्वीरें हैं,जिनके ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज हैलेकिन उन पर गैंगस्टर जैसी कोई कार्रवाई अभी तक नहीं हुई है। सूत्रों के अनुसार जिन पर गैंगस्टर नहीं लगा हैउनके ख़िलाफ़ भी शिकंजा कसने की प्रक्रिया चल रही है और उन पर भी इनाम घोषित हो सकता है।

जिन आठ प्रदर्शनकारियों की तस्वीर पुलिस द्वारा सार्वजनिक की गई है उन पर गैंगस्टर का मामला दर्ज है उनमें मोहम्मद आलममोहम्मद तहिररिज़वाननायब उर्फ़ रफ़त अली,अहसनइरशादहसन और इरशाद हैं।

दूसरे पोस्टर में मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना सैफ़ अब्बासऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वरिष्ठ उपाध्यक्ष मौलना क़ल्बे सादिक़ के पुत्र डॉ. कल्बे सिब्तैन नूरी”, इस्लामजमालतौक़ीर उर्फ़ तौहीद, सलीम चौधरीमानूशकीलनीलूहलीमकाशिफ़ और आसिफ़ के नाम शामिल हैं।

उल्लेखनीय है कि पिछले साल 19 दिसंबर को सारे देश के साथ लखनऊ में भी सीएए के विरुद्ध भारी प्रदर्शन हुआ था। जिसमें पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच कई इलाक़ों में झड़प हो गई। प्रदर्शन हिंसक होने के बाद एक प्रदर्शनकारी की जान चली गई और निजी-सार्वजनिक संपत्ति का नुक़सान भी हुआ था।

प्रदर्शन के बाद बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारियों को जेल भेजा गया जो बाद में ज़मानत पर रिहा हो गए। लेकिन सरकार ने पुलिस-प्रदर्शनकारियों के बीच हुई झड़प के दौरान हुए नुक़सान के मुआवज़े के लिए प्रदर्शनकारियों की तस्वीरों की होर्डिंग प्रदेश भर के अनेको चौराहों पर लगवा दीं थीं। जिसके बाद प्रदर्शनकारियों जिनमें पूर्व आईपीएस एसआर दारापुरीकांग्रेसी नेता सदफ़ जाफ़ररंगकर्मी दीपक कबीरप्रोफ़ेसर रोबिन वर्माअम्बेडकरवादी लेखक पीआर अम्बेडकर और रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शोएब आदी ने इसे नागरिक अधिकार का उल्लंघन बताते हुए अपनी जान को ख़तरा बताया था। इसके अलावा हाईकोर्ट ने भी प्रदर्शनकारीयों की तस्वीरें चौराहों पर लगाने पर नाराज़गी जताई थी।

उस समय इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस गोविंद माथुर ने होर्डिंग मामले में स्वतः संज्ञान लिया था और इन्हें तुरंत हटाने के आदेश दिए थे। हाईकोर्ट का मानना है कि सार्वजनिक स्थान पर संबंधित व्यक्ति की अनुमति के बिना उसका फोटो या पोस्टर लगाना गलत है। यह राइट टू प्राइवेसी (निजता के अधिकार) का उल्लंघन है। बाद में प्रशासन इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में चला गया।

पोस्टर के अलावा प्रदर्शनकारियों के घर पर कुर्क़ी के नोटिस भेजे गए थे। बता दें की विवादास्पद होर्डिंग और कुर्क़ी का मामले अभी अलग-अलग अदालतों में विचाराधीन हैं। यहां यह भी बता दें कि प्रदेशभर में सीएए के विरुद्ध हुए प्रदर्शन में 20 से अधिक लोगों की जान गई थी, जिनमें ज़्यादातर मामलों में पुलिस पर ही निर्दोषों को निशाना बनाने के आरोप है।

दिसंबर के प्रदर्शन के एक महीने बाद जनवरी 2020 में राजधानी लखनऊ के घंटाघर (हुसैनाबाद) समेत प्रदेश के कई हिस्सों में विवादास्पद नगरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन शुरू हो गए। जो क़रीब ढाई महीने बाद मार्च कोविड-19 के लिए हुई तालाबंदी के समय ख़त्म हुए।

घंटाघर पर हुए प्रदर्शन में भी बड़ी संख्या में गिरफ़्तारियां हुई और प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध मुक़दमे लिखे गए। तालाबंदी के बाद इन मुक़दमों के चलते महिलाओं को पुलिस ने तलब किया। इस बीच सरकार द्वारा सीएए विरोधी दीपक कबीरमोहम्मद शोएब और सदफ़ जाफ़र की ज़मानत रद्द करने के लिए भी अर्ज़ी दी गई।

क़ानून के जानकर कहते हैं की किसी भी अभियुक्त की तस्वीर नहीं लगाई जा सकती है। प्रसिद्ध अधिवक्ता मोहम्मद असद ने न्यूज़क्लिक से कहा की अगर कोई अभियुक्त भगोड़ा भी है तब भी उसकी तस्वीर को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। 

मोहम्मद असद कहते हैं कि पुलिस के पास सीआरपीसी दफ़ा 82 के तहत नोटिस देने और सीआरपीसी दफ़ा 83 के अंतर्गत अदालत के आदेश से अभियुक्त के घर के कुर्क़ी का अधिकार है। लेकिन किसी की तस्वीर लगना सिर्फ़ तानाशाही है और नागरिकों को संविधान में मिले अधिकरों का हनन है।

 

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