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कर्नाटक में एससी/एसटी की भूमि के हस्तांतरण पर रोक लगाने वाले अधिनियम में बदलाव की मांग

राज्य द्वारा वंचित लोगों को दी गई भूमि का एक बड़ा हिस्सा प्रभुत्व जातियों द्वारा अधिग्रहित कर लिया गया है।
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अंबाना (संबोधित करते हुए), अनंत नाइक, सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति गोखले, एम वेंकटस्वामी, ज्ञान प्रकाश स्वामीजी, बी गोपाल, मवल्ली शंकर, हेन्नूर श्रीनिवास। (दाएं से बाएं)

बेंगलुरू में बुधवार को मौर्य होटल की पहली मंजिल के सम्मेलन कक्ष में तेलुगु में अंबेडकरवादी गीतों को गाया गया। बाबा साहब के अनुयायियों ने कर्नाटक अनुसूचित जाति एवं जनजाति (कुछ भूमि के हस्तांतरण का निषेध) अधिनियम, 1978, (पीटीसीएल अधिनियम) पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने के तरीकों पर चर्चा की।

मैसूर के उरीलिंगा पेड्डी मठ के संत संविधान स्वामीजी के नाम से प्रख्यात ज्ञान प्रकाश स्वामीजी के आगमन के साथ कार्यवाही शुरू हुई। उन्हें ब्राह्मणवाद के खिलाफ उनके उग्र भाषणों के लिए जाना जाता है और आमतौर पर उन्हें बाबा साहब आंबेडकर से जुड़ी सभाओं में बोलने के लिए बुलाया जाता है। इस बैठक में कर्नाटक के कई जिलों के करीब सौ से अधिक लोग शामिल हुए।

बता दें कि पीटीसीएल अधिनियम का उद्देश्य प्रभावी जातियों के सदस्यों द्वारा अवैध रूप से हस्तांतरित (दलितों और जनजातियों को) दी गई भूमि की बहाली सुनिश्चित करना है। सभा में मौजूद उच्च न्यायालय के वकील मंजूनाथ ने कहा कि उन्हें डर है कि 90% दलित भूमि पहले ही गंवाई जा चुकी है।

ये अधिनियम स्वीकृत भूमि के हस्तांतरण के लिए प्रक्रिया निर्धारित करता है और एसी/डीसी को उन्हें वापस दिलाने का अधिकार भी देता है। इस अधिनियम की धारा-4 इसके लागू होने से पहले भूमि हस्तांतरण के मामले को भी शामिल करता है। इस बैठक में भाग लेने वालों के समक्ष यह सवाल था कि शीर्ष अदालत द्वारा पीटीसीएल मामलों (नेक्कंती रामा लक्ष्मी बनाम कर्नाटक राज्य) पर कानून की निश्चित सीमा लागू करने के बाद इस अधिनियम को पूर्व में प्रभावी राहत कैसे प्रदान की जा सकती है।

इस अधिनियम के इतिहास का उल्लेख करते हुए दलित संघर्ष समिति के नेता हेनूर श्रीनिवास ने कहा, “पूर्ववर्ती मैसूर राज्य में दलितों और जनजातियों के बीच उनके आर्थिक उत्थान के लिए बड़ी मात्रा में भूमि बांटी गई थी। यह भी विशेष रूप से उल्लेख किया गया था कि इन जमीनों को बेचा नहीं जाना चाहिए। हालांकि, गुजरते वक्त में प्रभुत्व जातियों के लोगों द्वारा इस भूमि का अधिग्रहण कर लिया गया।”

श्रीनिवास के अनुसार, सबसे शुरुआती भूमि आंदोलनों में से एक शिमोगा जिले के भद्रावती तालुक के सिदलीपुरा गांव में उस समय हुआ था जब एक दलित-स्वामित्व वाली भूमि पर लिंगायत ने कब्जा कर लिया था। उन्होंने कहा, “जब दलित प्रोफेसर बी कृष्णप्पा को यह पता चला तो उन्होंने बड़े पैमाने पर विरोध शुरू किया जो एक साल से अधिक समय तक चला। जल्द ही इस विरोध की खबर सरकार तक पहुंच गई।”

श्रीनिवास ने कहा, इसके बाद बी बसवलिंगप्पा ने "तत्कालीन मुख्यमंत्री डी देवराज उर्स पर अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों की भूमि की रक्षा के लिए एक अधिनियम लाने का दबाव डाला। इस तरह पीटीसीएल अधिनियम पेश किया गया था।” उन्होंने आगे कहा, “लेकिन 2017 में नेक्कंती रामा लक्ष्मी मामले में राज्य के वकीलों ने उन मामले में अच्छी तरह से बहस नहीं की और सुप्रीम कोर्ट ने हमारे खिलाफ फैसला सुनाया। इस फैसले के बाद कम से कम 2,000 मामलों में फैसले हमारे खिलाफ बेंगलुरु शहर और उसके आसपास ही रहे हैं। दलित भूमि की रक्षा के लिए सरकार को तत्काल एक अध्यादेश पारित करना चाहिए।

रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (ए) और समता सैनिक दल के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. एम. वेंकटस्वामी ने कहा कि उन्होंने इस मुद्दे पर सीएम बसवराज बोम्मई के साथ बातचीत की। उन्हें सत्तारूढ़ भाजपा के करीबी के रूप में भी जाना जाता है।

वेंकटस्वामी ने आरोप लगाया, “हमारी विफलता यह है कि हमने दलित आंदोलन में इस मुद्दे को प्राथमिकता नहीं दी है। कई लोगों ने संघर्ष का हिस्सा होने का दावा किया लेकिन दलितों की जमीन बेचने के लिए दलालों के रूप में काम किया। कुछ लोगों के पास पीटीसीएल अधिनियम के विवादों से संबंधित 1,000 से अधिक मामलों की फाइलें हैं। वे दलित भूमि को खरीदारों को हस्तांतरित करने में सहायता करते हैं।”

वेंकटस्वामी ने कहा, इसके अलावा इस अधिनियम में कई खामियां हैं लेकिन कोई भी सरकार इस मुद्दे को हल करने में दिलचस्पी नहीं ले रही है। उन्होंने कहा, “अब, हम नेक्कंती रामा लक्ष्मी मामले में फंस गए हैं। हमारे खिलाफ हर एसी, डीसी, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट फैसला सुना रहा है। इस मुद्दे को संशोधनों के बिना हल नहीं किया जा सकता है। कई वकीलों के साथ विचार-विमर्श के बाद, मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि इस अधिनियम को पूरी तरह से बदलना होगा। मैंने एक समिति का गठन किया और एक मसौदा कानून तैयार किया।”

वेंकटस्वामी ने इस मुद्दे पर कानून बनाने के लिए विधानसभा के विशेष सत्र की मांग की और आरोप लगाया कि "राजस्व मंत्री आर अशोक अहम रूकावट हैं। हमारा संघर्ष हमारी मांगों को स्वीकार करने के लिए उन पर दबाव बनाने पर केंद्रित होना चाहिए। हमें कैबिनेट नोट की तैयारी सुनिश्चित करने की जरूरत है। कैबिनेट की मंजूरी के बाद एक नया विधेयक पेश किया जा सकता है।"

तुमकुर जिले के एक सेवानिवृत्त डिप्टी तहसीलदार बी दासप्पा ने 2020 में हाईकोर्ट में दी गई जमीन के रिकॉर्ड के रखरखाव के संबंध में एक जनहित याचिका दायर की थी। उन्होंने न्यूज़क्लिक को फोन पर बताया, “जब जमीन दी जाती है तो एक सूची तैयार की जानी चाहिए और राजस्व विभाग में उप-पंजीयक को भेजी जानी चाहिए। जब सब-रजिस्ट्रार के पास पंजीकरण के लिए दस्तावेज आते हैं तो उन्हें यह सत्यापित करना होगा कि क्या वह भूमि एक स्वीकृत भूमि है या नहीं और यह कि अनुदान की सभी शर्तों का पालन किया गया है या नहीं। हालांकि, तहसीलदारों या उप-पंजीयकों के पास कहीं भी कोई सूची उपलब्ध नहीं है।”

दासप्पा की जनहित याचिका (WP 14746/2020) के बाद हाईकोर्ट ने राजस्व विभाग के अधिकारियों को PTCL अधिनियम के अनुसार प्रक्रियाओं का पालन करने और दी गई भूमि का रिकॉर्ड बनाए रखने का निर्देश दिया था। राज्य सरकार ने अदालत को अपने जवाब में कहा कि अगर सब-रजिस्ट्रार/पंजीकरण प्राधिकरण कावेरी सॉफ्टवेयर में किसी संपत्ति का विवरण दर्ज करता है, तो वह यह पता लगा सकता है कि जमीन दी गई है या नहीं।

हालांकि, हाईकोर्ट राज्य सरकार के जवाब से संतुष्ट नहीं था और निर्देश दिया कि अपडेटेड सूची को सुलभ बनाया जाना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश ने 12 अगस्त 2021 को ये आदेश पारित किया कि "हम राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देते हैं कि राज्य में भारतीय पंजीकरण अधिनियम, 1908 के तहत सभी पंजीकरण अधिकारियों को आज से अधिकतम अवधि चार महीने के भीतर दी गई भूमि की अपडेटेड सूची प्रस्तुत की जाए।" हालांकि, दासप्पा का दावा है कि कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया गया।

ज्ञान प्रकाश स्वामीजी ने आंदोलन में सभी एससी/एसटी संतों के समर्थन का आश्वासन दिया और सभी नेताओं को 18 और 19 अगस्त को एक सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने आगे कहा, "वोक्कालिगा समुदाय के वकील दीवानी और आपराधिक मामलों में अपने लोगों की मदद करने में बहुत सक्रिय हैं। मैं इसकी प्रशंसा करता हूं। एससी/एसटी वकीलों को लामबंद करना आसान नहीं है। समय की मांग है कि वकीलों की एक मजबूत विशेषज्ञ टीम बनाई जाए। बाबासाहेब ने हमें आंदोलन करने के लिए कहा है और सभी एससी/एसटी स्वामीजी इस आंदोलन में आपके साथ हैं।"

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Ambedkarites Demand Overhauling of Act Prohibiting Transfer of SC/ST Land in Karnataka

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