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असम: एनआरसी का अंतिम ड्राफ्ट प्रकाशित होते ही तनाव की स्थिति

सरकार ने दावे और आपत्तियाँ जमा करने के लिए 52 दिन का समय दिया है; दिसंबर 2018 तक एनआरसी की अंतिम सूचि आने की उम्मीद है।
National Register of Citizens

कल नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) प्रकाशित होने से पहले असम के तेंतीस में से दस जिलों में धारा 144  लागू कर दी गयी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी को प्रकाशित करने की तारीख 30 जून निर्धारित की थी लेकिन असम में वार्षिक बाढ़ से पैदा होने वाली परेशानियों की वजह से तारीख़ 30 जुलाई तक बढ़ा दी। सरकार को शायद इस प्रक्रिया की गंभीरता का एहसास है इसलिए अगर मौजूदा एनआरसी में किसी का नाम नहीं है तो उन्हें दावे और आपत्तियाँ दायर करने के लिए 52 दिन का समय दिया हैI अंतिम एनआरसी इस साल दिसंबर में प्रकाशित होने वाला है।

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स्थानीय असमिया समाचार चैनल, डीवाई 365 के मुताबिक, राज्य एनआरसी समन्वयक ने कहा कि "3,29,91,385 कुल आवेदकों में से 2,89,83,668 लोग नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर में शामिल होने के योग्य पाए गए हैं"। इसका मतलब यह होगा कि एनआरसी के मौजूदा मसौदे में 40 लाख से ज़्यादा नाम शामिल नहीं हैं। भले ही 40 लाख का आँकड़ा पहले अनुमान लगाए गए लोगों की तुलना में काफी कम संख्या है, फिर भी यह त्रिपुरा के अलावा किसी भी उत्तर-पूर्वी राज्य की आबादी से ज़्यादा है। हालांकि सरकार ने सुधार के लिए 52 दिनों के समय  की घोषणा की है, विपक्षी दलों ने माँग की है कि समय 90 दिनों तक बढ़ाया जाए। भले ही यह समयावधि बढ़े या नहीं लेकिन एक बात तय है कि किसी को भी इस बिनाह पर विदेशी नहीं घोषित किया जा सकता क्योंकि उसका नाम एनआरसी में नहीं हैI

इस कदम का स्वागत करते हुए, ऑल असम  स्टूडेंट्स यूनियन (एएएसयू) ने कहा है कि बांग्लादेशियों से मुक्त एनआरसी असम आंदोलन में शहीदों के बलिदान  के साथ न्याय होगा। अंग्रेजी भाषा दैनिक, द सेंटिनल ने इस कदम के लिए समर्थन व्यक्त करने वाले संपादकीयों को प्रकाशित किया । शनिवार को, एक संपादकीय ने लोगों की नागरिकता निर्धारित करने में  होने वाली कठिनाइयों को उजागर किया कि असम और बांग्लादेश के लोग बहुत समान हैं। कल के संपादकीय ने एनआरसी के कदम की सराहना करते हुए कहा, "जैसा कि एनआरसी का ये कार्य सत्यापन चरण से आगे बढ़ गया है, समर्थक विदेशी लॉबी की हताशा इस जानकारी से बढ़ गयी है कि जांच के दौरान इस तरह के फर्ज़ी कागजात का पता लगाया जा सकता है। कोई आश्चर्य नहीं कि 'असली भारतीयों' के पीड़ित होने की बात फीकी हो गई है!इस्लामवादियों, हिन्दुत्त्व ब्रिगेड और अन्य असामाजिक तत्त्वों को उकसा कर स्थिति खराब करने की कोशिश की जा रही हैI विदेशी ज़मीन से एक खुराफ़ाती ऑनलाइन अभियान के बाद, राष्ट्रीय मीडिया के एक वर्ग ने एनआरसी प्रकाशन के मसौदे आने के बाद 'रोहिंग्या जैसी स्थिति'की तरह पेश कर रहा है।"

                                    

असम ट्रिब्यून ने आज एक संपादकीय दिया, जिससे लोगों ने एनआरसी प्रकाशन के बाद शांत रहने का आग्रह किया। संपादकीय ने उल्लेख किया कि स्थिति इतनी तनाव पूर्ण  है कि एक छोटी सी चिंगारी ही जो पूरे राज्य को जलाने के लिए पर्याप्त होगा। उन्होंने कहा कि "एनआरसी अद्यतन वैध नागरिकता दस्तावेज़ों की सहायता से भारतीय नागरिकों की पहचान करने और पूर्वजों के साथ अपने परिवार के संबंध स्थापित करने का प्रयास है। यह देश के सुप्रीम कोर्ट की सख्त निगरानी के तहत किया जा रहा है, न कि एक सांप्रदायिक कार्य है, जैसा कि कथित रूप से या निहित स्वार्थ के  कुछ लोगों द्वारा आरोप लगाया जा रहा है।"

असम में एनआरसी पर सभी रिपोर्टों में दिखायी गयी एक आम बात यह है कि माहौल में तनाव हैI यद्यपि कहीं भी हिंसा हुई नहीं है यह ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं आई है लेकिन स्थानीय प्रेस और मुख्यधारा के दैनिक समाचार पत्रों ने उल्लेख किया है कि माहौल शंकाभरा और अजीब-सा है। इसका कारण चाहे भारी सैनिक तैनाती हो, धारा 144 हो, या इन दोनों से पहले ही मौजूद थीI यहाँ स्थिति एक मुर्गी पहले आई या अंडा वाली समस्या हो गयी है।  हालांकि, यह स्पष्ट है कि स्थानीय प्रेस द्वारा इस प्रक्रिया पर उठे किसी भी सवाल को  को बाहरी ताकतों (हिंदुत्त्वादी या अन्य) के हस्तक्षेप के रूप में देखा जा रहा हैI

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