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यूपी चुनाव : पीएम मोदी की 1 लाख करोड़ की घोषणा कितनी प्रभावी?

इसमें से क़रीब 70,000 करोड़ रुपये एक्सप्रेसवे और हवाई अड्डों के लिए हैं।
Modi in Varanasi

23 दिसंबर को वाराणसी में 2,095 करोड़ रुपये की परियोजनाओं के उद्घाटन के साथ, अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यक्तिगत रूप से उत्तर प्रदेश चुनावी राज्य में करीब 1,01,695 करोड़ रुपये की परियोजनाओं की घोषणा की है जिसके लिए परियोजनाओं के उद्घाटन किए, आधारशिला रखी, धन को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से स्थानांतरित किया या अन्यथा घोषणा की है। [नीचे दी गई तालिका देखें, जिसे मीडिया रिपोर्ट्स से हासिल किया गया है]

मोदी के सत्ता में आने के सात वर्षों में, हमने ऐसा कई बार देखा है, हालांकि 1 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाओं की घोषणा को पार करना एक तरह का रिकॉर्ड हो सकता है। यह भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार की एक स्टैंडर्ड संचालन प्रक्रिया (एसओपी) की तरह है, जिसे धाराप्रवाह इस्तेमाल किया जाता है और कोई भी इसे संदिग्धता साथ देखता है। आखिर इस शहर से उस शहर के भीतरी इलाकों में की जा रही उड़ानों से ज्यादा नशा और क्या हो सकता है, जिसके लिए चापलूस अधिकारी, फूल, मादक नारे, स्थानीय नेताओं का आशीर्वाद और फिर – बड़ी बड़ी घोषणाएँ। शायद, केवल एक चीज जो इस किस्म की ऊंची कवायदों से मेल खाती है, वह इसे फिर से टीवी पर देखना, और फिर भी सुबह के अखबारों में पढ़ना होगा।

यह फिर से हो रहा है, इस बार यह उत्तर प्रदेश में हो रहा है, 24 करोड़ लोगों की विशाल भूमि, जिसे भाजपा ने 2017 में शानदार ढंग से जीता था और जिसे मोदी के चुने हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चलाया है। विधानसभा के चुनाव लगभग फरवरी के अंत में होने हैं। चुनाव आयोग द्वारा अधिसूचना संभवत: जनवरी के पहले सप्ताह में जारी की जाएगी। यानी आदर्श आचार संहिता लागू हो जाएगी। तब सरकार को कल्याणकारी योजनाओं आदि पर किसी भी बड़े व्यय की घोषणा करने से रोक दिया जाएगा।

इसलिए, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी भाजपा के शीर्ष नेताओं के एक समूह का नेतृत्व कर रहे हैं, जो पूरे राज्य में बैठकें कर रहे हैं, मंदिरों का दौरा कर रहे हैं, जनता के चुनिन्दा सदस्यों के साथ बातचीत कर रहे हैं – यह सब हर कदम पर कैमरों के एक दल के साथ हो रहा है (यह सब 12 दिसंबर को काशी कॉरिडोर कार्यक्रम के लिए 55 एचडी केमेरे कैमरे, सात अपलिंक सैटेलाइट वैन, एक ड्रोन, एक रेडियो फ्रीक्वेंसी कैमरा और इसके साथ बहुत कुछ के साथ किया गया)। और, जैसा कि पूरी तरह से उम्मीद की गई थी, घोषणाओं की जैसी बारिश भी हो रही थी। सरकार के जरूरी कर्तव्य क्या होने चाहिए उसे अब चुनावी रणनीति के रूप में हथियार बनाया जा रहा है।

पैसा खर्च करने में क्या गलत है?

यह एक सवाल है जो अक्सर भाजपा समर्थकों द्वारा पूछा जाता है। दान के वर्तमान मामले में कई आपत्तिजनक पहलू हैं। मुद्दा अपने आप में खर्च करने का नहीं, बल्कि समय का है।

1. इस सब के लिए चुनाव से दो महीने पहले तक इंतजार क्यों करना पड़ा? क्या महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को पहले गतिविधियों को करने के लिए पैसे नहीं दिए जा सकते थे? क्या सरयू नहर को पहले नहीं बनाया जा सकता था? पीएम मोदी ने खुद वादा किया था कि बुंदेलखंड को पानी मिलेगा, तो योगी के कार्यकाल के अंत में अब सिंचाई के लिए विभिन्न योजनाओं का उद्घाटन क्यों किया जा रहा है? गोरखपुर वर्षों से जापानी इंसेफेलाइटिस का केंद्र रहा है, और वैसे भी इस पूरे इलाके में लोग विविध संक्रामक रोगों से ग्रस्त हैं। क्या पहले अस्पताल और रिसर्च सेंटर नहीं बन सकते थे?

इस देरी का असर यह हुआ है कि सालों तक लोग स्वास्थ्य देखभाल या सिंचाई के पानी या ऐसी ही अन्य महत्वपूर्ण चीजों से वंचित रहे हैं।

2. सरकारी खर्च की इन घोषणाओं के साथ राजनीतिक बयानबाजी, विपक्षी दलों का मजाक बनाना और उनका उपहास करना, अल्पसंख्यक समुदाय पर परोक्ष कटाक्ष करना और एक ही पार्टी, यानि भाजपा के लोगों का गुणगान क्यों किया जा रहा है? यदि प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री सिंचाई प्रणाली या सौर पार्क या अस्पतालों का उद्घाटन करना चाहते हैं, तो ठीक है। वे एक सार्वजनिक समारोह चाहते हैं, वह भी ठीक है। सरकारी धन का उपयोग वह सब कुछ व्यवस्थित करने के लिए किया जा सकता है, वह भी कुछ उचित सीमाओं के भीतर। लेकिन साफ है कि जिन जनसभाओं में इस तरह की घोषणाएं की जाती हैं, उनका इस्तेमाल चुनाव प्रचार के लिए किया जा रहा है। क्या यह सरकारी धन का दुरुपयोग नहीं है - जो वास्तव में लोगों का धन है? यह चुनाव कानूनों की भावना का भी उल्लंघन है क्योंकि आप आदर्श आचार संहिता के प्रभाव में आने से ठीक पहले उदारता और रियायतें वितरित करके आदर्श आचार संहिता को नष्ट करने की प्रणाली को संस्थागत रूप देते हैं।

3. एक्सप्रेसवे और हवाई अड्डों पर इतना जोर क्यों? मेरठ को प्रयागराज (इलाहाबाद) से जोड़ने वाले गंगा एक्सप्रेसवे पर 36,230 करोड़ रुपये खर्च होंगे, जबकि पूर्वांचल एक्सप्रेसवे पर लखनऊ को गाजीपुर से जोड़ने के लिए 22,496 करोड़ रुपये खर्च होंगे। इन दो उच्च लागत वाली परियोजनाओं को मिलाकर लगभग 60,000 करोड़ रुपये (58,726 करोड़ रुपये) की लागत आएगी। दो हवाई अड्डों (जेवर और कुशीनगर) पर 10,760 करोड़ रुपये खर्च होंगे। कुल मिलाकर, यह 69,486 करोड़ रुपये तक जुड़ जाता है। यह यूपी में मोदी द्वारा की गई घोषणाओं का 70 प्रतिशत है।

निस्संदेह, हवाई अड्डे और एक्सप्रेसवे उपयोगी होंगे। लेकिन क्या यह बेहतर नहीं होगा कि राज्य और ग्रामीण सड़कों के नेटवर्क को मजबूत किया जाए, सभी बस्तियों को हर मौसम में सड़कों से जोड़ा जाए, सभी स्वास्थ्य केंद्रों को पक्की सड़कों से जोड़ा जाए, इत्यादि? यदि आप उपरोक्त को एक-दूसरे के विपरीत नहीं मानते हैं, तो दोनों काम करें। लेकिन एक्सप्रेसवे और हवाई अड्डों पर सिर्फ 70,000 करोड़ रुपये खर्च करना देश में सबसे अधिक गरीबी दर वाले राज्य के लिए एक उपहास है, और जिसने हाल ही में बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण महामारी की तबाही देखी है।

इतनी बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाएं - जो वर्तमान सरकार की पसंदीदा लगती हैं - लोगों की बड़ी संख्या, भव्य समारोह, वायु सेना के विमानों का सड़क पर उतरना, आदि प्रचार के लिए अच्छे हैं। साथ ही, दुनिया भर में ऐसी सभी बड़ी परियोजनाओं की तरह, यह उन ठेकेदारों के लिए भी एक बड़ा अवसर है जो वास्तविक निर्माण कार्य करेंगे। शायद, कुछ हजार स्थानीय मजदूरों को काम करने का अवसर मिलेगा, लेकिन असली वरदान तो बड़ी निर्माण कंपनियों और उनके उप-ठेकेदारों के लिए साबित होगा।

क्या यह काम करेगा?

वोट जीतने के लिए सरकारी परियोजनाओं की घोषणा बीजेपी की चुनावी रणनीति का सिर्फ एक हिस्सा है। ऐसे में यह सवाल करना उचित नहीं है। केवल परियोजनाओं और रियायतों की घोषणा से चुनाव जीतने में मदद नहीं मिल सकती है। लेकिन चुनाव जीतने के लिए भाजपा के दृष्टिकोण का यह एक बड़ा हिस्सा है। लोगों पर पैसे और उपहार फेंको, इसे "विकास" कहो और वे आपको वोट देंगे - यही भाजपा ने हमेशा सोचा है। यह लोगों के प्रति उनके दृष्टिकोण को दर्शाता है।

भाजपा की अन्य रणनीतियां भी इसी श्रेणी में आती हैं। बहुसंख्यक समुदाय के लोगों को एकजुट करने के लिए ध्रुवीकरण के मुद्दों को उठाना, जातिगत गठबंधन बनाना और प्रत्येक को विभिन्न लाभों का वादा करना, मीडिया और बाहरी विज्ञापनों और अन्य चुनावी सामग्री पर भारी मात्रा में पैसा लगाना, प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग जैसी सरकारी एजेंसियों, केंद्रीय जांच ब्यूरो आदि का, विपक्षी दलों को परेशान करने के लिए का इस्तेमाल करना (यह पहले से ही यूपी में शुरू हो चुका है), ये भाजपा के चुनावी एसओपी के कुछ अन्य मुद्दे हैं। यह संयोजन धीरे-धीरे यूपी में भी सामने आ रहा है।

हालाँकि, 2014 में भाजपा की चुनावी जीत के बाद से, कई भाजपा राज्य सरकारों को लोगों ने सत्ता से बाहर कर दिया है, और कई अन्य राज्यों में, यह चुनाव जीतने में विफल रही है - बावजूद इसके पीएम मोदी उसी रास्ते पर चल रहे हैं जैसा वह यूपी में कर रहे हैं। भाजपा ने चुनाव में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक को खो दिए थे, वह केरल, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, दिल्ली, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, ओडिशा को भी जीतने में विफल रही है। पीएम मोदी के गृह राज्य गुजरात में सबसे खराब प्रदर्शन रहा है। उत्तर-पूर्व के कई छोटे राज्यों में, इसने चुनावों में खराब प्रदर्शन किया, लेकिन सत्ता हथियाने के लिए क्षेत्रीय दलों का इस्तेमाल किया है।

इसलिए, यूपी में पीएम मोदी और उनके सहयोगियों जिस उन्मत्त गति से काम कर रहे हैं उसकी कोई गारंटी नहीं है कि वे विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करेंगे। विजेता का फैसला होने से पहले गंगा में अभी काफी पानी बहना बाकी है। 

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

As Assembly Elections Approach, PM Modi Goes on Rs.1 lakh Crore Spending Spree in UP

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