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बिजली इंजीनियर और श्रमिक हड़ताल के लिए तैयार

वे कानून में हाल में हुए बदलावों का विरोध कर रहे हैं, जिनकी वजह से बिजली वितरण के निजीकरण को और ज्यादा बढ़ावा मिलेगा।
इलेक्ट्रिसिटी

बिजली मज़दूर और इंजिनियर पूरे भारत में संघर्ष के रास्ते के लिए तैयार हैं। बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों की राष्ट्रीय समन्वय समिति (एन.सी.सी.ओ.ई.ई.ई.)- जोकि ढाई करोड़ से अधिक सदस्यों वाली यूनियनों और राष्ट्रीय महासंघों के एक मंच ने राष्ट्रव्यापी हड़ताल का सरकार को नोटिस दिया है। पूरे दिन की हड़ताल की तारीख अभी तक तय भी नहीं हुई है लेकिन आने वाले दिनों में श्रमिकों से बिना कोई चेतावनी दिए काम के बहिष्कार करने की उम्मीद कि जा रही है।

हड़ताल से पहले, बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों ने संसद के बजट सत्र के दौरान दिल्ली में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया, जो दो हिस्सों में हुआ - पहले फरवरी में, फिर अप्रैल/मई के महीने में।

देश में बिजली क्षेत्र के कर्मचारियों ने बिजली (संशोधन) विधेयक 2014 का विरोध किया है, जिसका मकसद बिजली वितरण के निजीकरण का विस्तार करना है।

विरोध के बावजूद केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर.के. सिंह ने हाल ही में घोषणा की कि बिजली मंत्रालय संसद के आगामी बजट सत्र में इस विधेयक को आगे बढ़ाएगा। इसलिए, बिजली कर्मचारी संघों ने अपने विरोध प्रदर्शन को तेज करने का फैसला किया है।

बिजली अधिनियम 2003 में संशोधन करते हुए, विधेयक में विद्युत क्षेत्र के वितरण के बुनियादी ढांचे और वास्तविक बिक्री को विभाजित करना चाहता है।

विधेयक का प्रस्ताव है कि एक सरकारी कंपनी उपभोक्ताओं को बिजली देने के लिए तार (वितरण नेटवर्क) को बिछाती है, जबकि निजी कंपनियाँ बिजली बेचने और मुनाफे कमाने पर प्रतिस्पर्धा करती हैं।

मूल रूप से इसका मतलब है कि लाभ का निजीकरण किया जाएगा, जबकि घाटे को राष्ट्रीयकृत किया जाएगा - जबकि सरकारी स्वामित्व वाली वितरण कंपनियाँ पहले ही नुकसान का बोझ झेल रही है।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (ए.आई.पी.ई.एफ.) के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे ने कहा कि दिल्ली में प्रदर्शन की तारीख उस विधेयक पर निर्भर करती है जब विधेयक पेश किया जाएगा। उन्होंने कहा कि चूंकि फरवरी में बजट सत्र आम तौर पर वित्तीय मामलों पर केंद्रित होता है, यह संभावना है कि सरकार अप्रैल/मई में बिजली (संशोधन) बिल 2014 पास करने का प्रयास करेगी।

दुबे ने कहा कि एन.सी.सी.ओ.ई.ई. ने विद्युत ग्रिड नेटवर्क - उत्तर, उत्तर- पूर्व पूर्व, दक्षिण और पश्चिम में पांच क्षेत्रों में अपनी मांगों के समर्थन में शानदार अभियान चलाया है।

"हम विधेयक के लोक-जनों के प्रावधानों के बारे में उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता फैलाने के लिए क्षेत्रीय और राज्य स्तरीय सम्मेलनों का आयोजन कर रहे हैं। यह प्रस्तावित विधेयक गरीबों के बिजली के अधिकार का उल्लंघन करती है, "दुबे ने कहा।

28 दिसंबर को, एन.सी.सी.ओ.ई.ई. ने चंडीगढ़ में उत्तरी क्षेत्र सम्मेलन आयोजित किया, दक्षिणी क्षेत्र सम्मेलन 11 जनवरी को त्रिवेंद्रम में आयोजित किया जाएगा, और पूर्वी क्षेत्र का सम्मेलन 30 जनवरी को पटना में आयोजित किया जाएगा।

उन्होंने कहा, "मुंबई और गुवाहाटी में सम्मेलनों की तारीख अभी तय नहीं की गई है।"

बिजली कर्मचारियों की यूनियनों ने इस विधेयक का विरोध किया है, क्योंकि इस विधेयक को 2014 में पहली बार लाया गया था।

दुबे ने कहा कि विद्युत अधिनियम 2003 - जिसने राज्य विद्युत बोर्ड (एस.ई.बी.) को ध्वस्त कर दिया था और उन्हें बिजली उत्पादन, संचरण और वितरण की पूर्ति करने वाली तीन अलग-अलग संस्थाओं में विभाजित कर दिया था – उनके मुताबिक़ यह प्रयोग पहले ही असफल रहा।

2003 के अधिनियम को विश्व बैंक के इशारे पर बिजली क्षेत्र "बिना बंधाई" मॉडल का अनुसरण कर रहा था – इसका मकसद  निजी कंपनियों को सुरक्षित और अधिक लाभ अर्जित करने की अनुमति देने के लिए किया गया, जैसे की बिजली पैदा करने के क्षेत्र में।

अधिनियम लागू होने के बाद बड़ी संख्या में निजी कंपनियों ने भारत में बिजली उत्पादन में प्रवेश किया, जबकि प्रसारण और वितरण राज्य सरकारों के हाथ में  रहा था। वितरण का निजीकरण केवल दो राज्यों, ओडिशा और दिल्ली में किया गया था, जहां यह पूरी तरह से विफल हो गया।

कुछ राज्यों, जैसे हिमाचल प्रदेश, ने इसका विरोध किया था लेकिन केरल एकमात्र ऐसा राज्य है, जिसने अपने बिजली बोर्ड को तीन हिस्सों में नहीं बाँटा।

विद्युत संघों ने सही ही कहा कि निजी कंपनियाँ केवल बड़े, उच्च-भुगतान वाले और लाभकारी उपभोक्ताओं जैसे औद्योगिक इकाइयों और वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों को बिजली की आपूर्ति के लिए प्रतिस्पर्धा करना चाहती हैं, क्योंकि छोटे उपभोक्ताओं से उनको कोई मुनाफा नहीं है, जैसे कि ग्रामीण घरों और छोटी दुकानों को  राज्य के वितरण के लिए छोड़ दिया गया।

सरकारी स्वामित्व वाली वितरण कंपनियाँ पहले से ही 3.8 लाख करोड़ रुपये से अधिक घाटे में हैं, क्योंकि उनके पास बिजली पैदा करने की कीमत पर कोई नियंत्रण नहीं है। निजी बिजली उत्पादन के लिए बहुत-सा बैंक ऋण लिया जाता है और निजी मालिक विभिन्न प्रकार की धोखाधड़ी के साथ मुनाफा इससे कमा रहे हैं। इसमें अगर कोई सबसे ज्यादा नुक्सान में है तो वह है सरकार और उपभोक्ता। विधेयक इस संकर आगे और गहरा करेगा।

"बिजली अधिनियम 2003 के प्रभाव का विस्तृत अध्ययन करने की आवश्यकता है, लेकिन सरकार निजी व्यवसायों के लाभ के लिए दूसरे प्रयोग के साथ आगे बढ़ रही है," दुबे ने कहा।

विद्युत (संशोधन) विधेयक 2014 कई आपूर्ति लाइसेंसधारियों के बारे में बताया जो बिजली की आपूर्ति करेंगे, और उपभोक्ता उनमें चुन सकते हैं कि उन्हें किससे बिजली खरीदनी है। आपूर्ति लाइसेंसधारियों में से एक सरकारी स्वामित्व वाला लाइसेंसधारी होना चाहिए।

उन्होंने कहा, "वितरण कंपनियों ने पहले ही 4.3 लाख करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान उठाया है और 5 लाख करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज चुकाया है, क्योंकि उनके पास बिजली उत्पादन की लागत पर कोई नियंत्रण नहीं है, जिसका निजीकरण कि किया गया है।"

ज्यादातर निजी उत्पादन बैंक क़र्ज़ की मदद से होता हैं और निजी मालिक सभी प्रकार के धोखाधड़ी के साथ मुनाफा कमा रहे हैं।

दुबे ने कहा कि हालांकि सरकार ने दावा किया है कि अतिरिक्त उत्पादित बिजली के दिन आ चुके हैं, उनके मुताबिक़ स्थापित क्षमता का 50% बेकार हो जाता है।

"लगभग 5 करोड़ घरों में, लगभग 30 करोड़ लोग अभी भी बिजली के बिना है, देश की कुल उत्पादन क्षमता 3,38,000 मेगावाट है जबकि माँग केवल 1,58,000 मेगावाट है।"

"लेकिन सच्चाई यह है कि 30 करोड़ लोगों को बिजली अभी तक भे पहुँच नहीं है। और नए संशोधन से केवल बिजली क्षेत्र में  संकट और तीव्रता से बढेगा। "

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