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बजट से 1.7 लाख करोड़ की राशि गायब!

बजट और आर्थिक सर्वे के अध्ययन से यह निकलकर आया है कि साल 2018-19 लिए रेवेन्यू एस्टीमेट और वास्तविक स्थिति में 1.7 लाख करोड़ रुपये का अंतर है।
budget and economic survey
image courtesy- daily express

बजट जारी होने से एक दिन पहले 4 जुलाई को न्यूज़क्लिक वेबसाइट के अंग्रेजी संस्करण पर वरिष्ठ पत्रकार सुबोध वर्मा का एक लेख छपा था। लेख का शीर्षक था- 'Budget 2019: As Tax Revenues Fall, Govt. Squeezes Expenditure 'इस लेख का हिंदी अनुवाद भी न्यूज़क्लिक हिंदी वेबसाइट पर 'बजट 2019: टैक्स रेवेन्यू में गिरावटसरकार ने ख़र्च से हाथ खींचा' पर छपा है। इस लेख में सुबोध वर्मा ने कंट्रोलर जनरल ऑफ़ एकाउंट्स से जारी आंकड़ों से बताया था कि भारत के कर राजस्व में कमी हो रही है और बजट में इसका पर्दाफाश हो जाएगा। और यही हुआ है। इस साल के बजट से 1.7 लाख करोड़ रुपये की राशि गायब हो चुकी है। बजट से जुड़े डॉक्यूमेंट का ध्यान से अध्ययन करने के बाद यह तस्वीर निकलकर सामने आयी है।

बजट और इकोनॉमिक सर्वे का अध्ययन करने के बाद प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद से जुड़े सदस्य रतिन रॉय ने बिजनेस स्टैण्डर्ड में एक लेख लिखा है। लेख में कहा गया है कि बजट और इकोनॉमिक सर्वे का अध्ययन करने के बाद उन्होंने पाया कि साल 2018-19 लिए रेवेन्यू एस्टीमेट और वास्तविक स्थिति में 1.7 लाख करोड़ रुपये का अंतर है। दूसरे शब्दों में कहें तो साल 2018-19 में सरकार की जितनी एक्चुअल या वास्तविक कमाई हुई सरकार ने उससे 1.7 लाख करोड़ रुपये अधिक दिखाया। 


बजट में पिछले साल हुई कमाई और खर्चे के लिए रिवाइज्ड एस्टिमेट यानी संशोधित अनुमान दिखाए जाते हैं और इकोनॉमिक सर्वे में भी पिछले साल की कमाई और खर्चे के लिए प्रोविजनल एकाउंट में कमाई और खर्चे दिखाए जाते हैं। इकोनॉमिक सर्वे के प्रोविजनल एकाउंट में पिछले साल यानी 2018-19 के लिए 15 .6 लाख करोड़ रुपये की कमाई दिखाई गयी है और बजट में पिछले साल के लिए 17.3 लाख करोड़ रुपये की कमाई है। यानी बजट में पिछले साल के लिए भारत का जो राजस्व दिखाया जा रहा है वह वास्तव में हुई कमाई से 1.7 लाख करोड़  अधिक है। 


कंट्रोलर जनरल ऑफ़ एकाउंट्स सरकार की कमाई और खर्चे का ब्योरा रखता है। इससे ही आर्थिक सर्वे और बजट में कमाई और खर्चा प्रस्तुत किया जाता है। और कंट्रोलर जनरल ऑफ़ एकाउंट्स ने अपनी वेबसाइट पर सबकुछ पहले ही जारी कर दिया है। इसलिए सरकार भी इससे मुकर नहीं सकती और यह साफ़ है कि सरकार ने पिछले साल की कमाई के लिए 1.7 लाख करोड़ रुपये की राशि अधिक दिखाई है या सरकार के पास इतनी बड़ी राशि का कोई हिसाब-किताब नहीं है या बजट से इतनी राशि गायब हो चुकी है!  
यही हाल पिछले साल के खर्चों का भी है। साल 2018 -19 में इकोनॉमिक सर्वे के प्रोविजनल एकाउंट में खर्चा 23.1  लाख करोड़ दिखाया गया और बजट के रिवाइज्ड एस्टीमेट में इसे बढ़ाकर 24 .6 लाख करोड़ रुपए दिखाया गया। यानी खर्चे में 1 .5 लाख करोड़ रुपये का अंतर है। 


अब इन खातों में अंतर दिखने की मुख्य वजह है कि टैक्स से होने वाले राजस्व में कमी आयी है। इकोनॉमिक सर्वे कहता है कि पिछले साल सरकार को टैक्स से केवल 13.2 लाख करोड़ रुपये की कमाई हुई जबकि बजट में टैक्स से 14.8 लाख करोड़ की कमाई दिखाई गयी। अब इससे सरकार के इन दावों पर सवाल उठता है कि पिछले साल उसे कर से बहुत अधिक कमाई हुई है। इससे यह भी सवाल उठता है कि क्या इस साल भी टैक्स से होने वाली कमाई को सही तरह से दिखाया जाएगा या टैक्स से होने वाली कमाई इस साल भी कम रहेगी ?
इस मुद्दे पर पूर्व चीफ स्टटेसियन प्रोनब सेन ने कहते हैं- यह कोई हिसाब-किताब जोड़ने में हुई गलती नहीं है। न ही यह कोई ऐसी गलती है कि हम कहें कि हिसाब किताब रखने वाला तंत्र कमजोर हैं। CGA यानी कंट्रोलर जनरल ऑफ़ एकाउंट्स मौजूदा समय में बहुत एडवांस्ड हो चका है। इससे इतनी बड़ी गलती नहीं हो सकती है। यह बहुत बड़ी गलती है। कमाई कम होने की वजह से विभिन्न मंत्रालयों को किए गए आबंटनों में कमी लानी करनी पड़ेगी। विभिन्न योजनाओं में किये गए आबंटनों को कम करना पड़ेगा। राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने को लेकर जो लक्ष्य रखा जाता हैउस पर भी असर पड़ेगा। यह भी अचरज वाली बात है कि इकोनॉमिक सर्वे और बजट दोनों डिपार्टमेंट ऑफ़ इकनोमिक अफेयर्स  के अंतर्गत आते हैं तो यह गलती कैसे हो गयी। 


इस सवाल के जवाब में कि इस सरकार पर आंकड़ों के साथ छेड़छाड़ करने के आरोप लगते रहते हैं पर प्रोनब सेन ( Former Chief Statistician of India) ने कहा कि सांख्यिकी आंकड़ों में थोड़ी बहुत गलतियां हमेशा रहती हैं लेकिन अगर सारे रुझान दूसरे तरफ जा रहे हों और सांख्यिकी आंकड़ें दूसरी तरफ तो यह कहा जा सकता है कि सांख्यिकी आंकड़ों में छेड़छाड़ की जा रही है। (जैसा कि इस सरकार जीडीपी से जुड़े आकंड़ों में कोई मौकों ओर देखा गया) लेकिन यहां तो बात बजट के आय और व्यय की राशि से जुडी हुई है। इसमें इतनी बड़ी गलती कैसे हो सकती है। यदि इतना बड़ा अंतर किसी कम्पनी के खातों में आता तो कम्पनी के चीफ़ फाइनेंशियल ऑफिसर को बरखास्त कर दिया जाता। 


अर्थशास्त्री जयति घोष कहती हैं कि हमारा सारा ध्यान रिवाइज्ड एस्टीमेट की तरफ हैइसलिए इस साल के लिए जो अनुमानित किया गया हैउस पर हमारा ध्यान नहीं जा रहा है। इस साल के लिए टैक्स से कमाई में पिछले साल के मुकाबले 3.3 लाख करोड़ रुपये के इजाफे की बात की जा रही है। क्या यह संभव हैसाफ तौर कहा जाए तो यह सच से बहुत दूर की गयी बात है। जब पिछले साल के एक्चुअल एकाउंट में कर की कमाई कम हुई है तो इस साल इतना अधिक इजाफा कैसे हो सकता है। अगर इतनी बड़ी राशि गायब हो चुकी है तो इस बजट का कोई फायदा नहीं। 


वित्त मंत्री ने नॉर्थ ब्लॉक में पत्रकारों के आने पर रोक लगा दी है। बजट प्रस्तुत करते समय किसी भी मद में कितना रुपये आबंटित किया गयायह नहीं बताया गया। सब दस्तवेज में रखा गया। ये विडंबना है कि अब तक केवल भाषण झूठे साबित हुए हैं लेकिन अब दस्तावेज भी झूठे साबित हो रहे हैं। सरकार का आकलन गलत हुआ है। लेकिन जानबूझकर एकाउंटिंग में फेर-बदल करना देश की अर्थव्यस्था के लिए बहुत खतरनाक साबित हो सकता है। जब जानबूझ कर छिपाया जा रहा हो कि कमाई कितनी हो रही हो तो खर्चे में सबसे पहले उन योजनाओं से कटौती की जाएगी जो वंचितों के लिए हैजो दबाव समूह नहीं बन पाते हैं। इसलिए निर्मला सीतारमण को जवाब देना चाहिए कि 1.7 लाख करोड़ रुपये की राशि कहाँ गयी ताकि मनरेगा जैसी योजनाओं में चुपचाप की जा सकने वाली कटौती को बचाया जा सके.

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