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अफ़ग़ानिस्तान से बाइडेन की नाकाम वापसी अमेरिका के दो दशकों के ग़लत क़दमों का सिला है

बाइडेन के अफ़ग़ानिस्तान से हटने की चौतरफ़ा आलोचना हो रही है। लेकिन, इन ज़्यदातर आलोचनाओं से असली बात ग़ायब हैं।
अफ़ग़ानिस्तान से बाइडेन की नाकाम वापसी अमेरिका के दो दशकों के ग़लत क़दमों का सिला है
फ़ोटो: साभार: एपी

राष्ट्रपति जो बाइडेन पर अपनी ही डेमोक्रेटिक पार्टी और उदार मीडिया प्रतिष्ठान की ओर से अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने  की गुस्ताख़ी और देश को कट्टरपंथी तालिबान शासन के हाथों में फिर अफ़ग़ानों को छोड़ दिये जाने को लेकर भारी दबाव है। 14 अगस्त को एक बयान में बाइडेन ने कहा, "अगर अफ़ग़ान सेना अपने देश पर पकड़ नहीं बना सकती है या ऐसा नहीं कर पाती, तो एक साल और या पांच साल और अमेरिकी सैन्य उपस्थिति से क्या फर्क पड़ जाता।" अफ़ग़ान राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी के भाग जाने और तालिबान का राजधानी काबुल पर धावा बोल देने के ठीक दो दिन बाद राष्ट्रपति बाइडेन ने व्हाइट हाउस के एक भाषण में साफ़ तौर पर कहा कि "अमेरिकी सेना की वापसी के लिहाज़ से कभी कोई समय अच्छा नहीं था," ,बल्कि वह यह स्वीकार करने को लेकर मजबूर हुए कि तालिबान ने "हमारी अपेक्षा से कहीं ज़्यादा तेज़ी से" अफ़ग़ानिस्तान पर फिर से नियंत्रण करना शुरू कर दिया।

जैसा कि अनुमान था, रिपब्लिकन इस विदेश नीति की स्पष्ट नाकामी पर इस बात की अनदेखी करते हुए कूद गए कि यह बाइडेन के पूर्ववर्ती डोनाल्ड ट्रम्प ही थे, जिन्होंने अमेरिकी सैनिकों की वापसी का आधार तैयार किया था और ऐसा करने के लिए तालिबान के साथ काम किया था। सीनेट के अल्पसंख्यक नेता मिच मैककोनेल (R-KY) ने ज़बरदस्त असहमति जताते हुए कहा, “यह शिकस्त न सिर्फ़ आशांक के मुताबिक़ थी, बल्कि इसका पूर्वाभास भी था।” ऐसा लगता है कि मानों ट्रम्प अगर दूसरे कार्यकाल के लिए चुन गये होते, तो बतौर राष्ट्रपति वह बेहतर प्रदर्शन कर रहे होते। फ़ॉक्स न्यूज़ के क्रिस वालेस के साथ एक साक्षात्कार में ट्रम्प के पूर्व विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने कहा, “ऐसा लगता है कि बाइडेन प्रशासन अपनी ख़ुद की योजना को लागू कर पाने में इस समय विफल रहे हैं और डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति दरअस्ल ट्रम्प की  ही योजना को ही अंजाम दे रहे हों। रिपब्लिकन नेशनल कमेटी ने अब अपनी वेबसाइट से उस पेज को हटा दिया है जिसमें तालिबान के साथ ट्रम्प के समझौते का जश्न मनाया जा रहा था। उन्हें उम्मीद रही होगी कि शायद इस बात पर किसी का ध्यान नहीं जायेगा।

कॉरपोरेट मीडिया भी बाइडेन को इसी तरह नहीं बख़्श रहा है। वाशिंगटन पोस्ट के संपादकीय बोर्ड ने भविष्य में किसी भी मौत के लिए बाइडेन को दोषी ठहराते हुए एक सख़्त राय जताकर कहा कि यू.एस. ने "सभी अफ़ग़ानों के लिए कम से कम आंशिक ज़िम्मेदारी ली थी। अब उन्हें छोड़ देने का मतलब उस ज़िम्मेदारी से दूर हटना है।” पोस्ट ने अमेरिका की वैश्विक प्रतिष्ठा को लेकर चिंता जतात होते हुए कहा, " एक भागीदार के तौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रतिष्ठा रही है,लेकिन इस समय वह ख़तरे में है,क्योंकि दुनिया भर के सहयोगी इस घटना को देख रहे होंगे और अमेरिकी प्रतिबद्धता का आकलन कर रहे होंगे।"

इसी तरह, न्यूयॉर्क टाइम्स के ब्रेट स्टीफ़ंस ने यह जानने की मांग की, “धरातल पर जो बाइडेन क्या सोच रहे थे – अव्वल,वह सोच भी रहे थे कि नहीं ?" पोस्ट की तरह स्टीफंस भी देश की प्रतिष्ठा को लेकर गहरे तौर पर चिंतित थे, उन्होंने पूछा, "संयुक्त राज्य अमेरिका आख़िर किस तरह का सहयोगी है?”

इस तरह की आलोचनाओं में कई अहम बिंदु छूट जाते हैं। सबसे पहले तो अगर किसी विदेशी सैन्य दखल ने 20 सालों में लोकतंत्र और मानवाधिकारों की दिशा में कोई प्रगति नहीं की, तो अगले 20 और सालों में ऐसा कर पाने की संभावना भी नहीं है। दूसरा, वे मनुष्य की ज़िंदगी के मुक़ाबले एक वैश्विक महाशक्ति (जिसका वास्तविक मतलब "सहयोगी" शब्द से है) के रूप में यू.एस. की प्रतिष्ठा को लेकर ज़्यादा चिंतित हैं। और तीसरा, हालांकि ज़्यादतर अमेरिकियों ने कभी अफ़ग़ानिस्तान युद्ध और दखल का समर्थन किया था, आज ज़्यादतर अमेरिकी चाहते हैं कि यह दखल ख़त्म हो।

इसके अलावा, अफ़ग़ानिस्तान से बाइडेन की नाकाम निकासी के ज़्यादतर आलोचकों ने इस सचाई को याद किया है कि यह दखल अपनी संपूर्णता में ही दोषपूर्ण रही है और यही वजह कि तालिबान का पुनरुत्थान हुआ और अमेरिकी शिकस्त हुई। बाइडेन के ग़लत क़दम उस पूरे दोषपूर्ण दखल का ही सिला थे। भले ही रिपब्लिकन या डेमोक्रेट राष्ट्रपति सत्ता में रहे हों, जॉर्ज डब्लू बुश के भ्रष्ट और हिंसक सरदारों के साथ काम करने के फ़ैसले से लेकर बराक ओबामा के तालिबान को मान्य ठहराते हुए सबसे पहले दुश्मन ताक़तों के साथ शांति वार्ता में शामिल होने के फ़ैसलों तक संयुक्त राज्य अमेरिका ने हर क़दम पर ग़लत रास्ते ही अख़्तियार किये।

बाइडेन के साथी डेमोक्रेट भी उनके ख़िलाफ़ होने वाली आलोचना में शामिल हो गये हैं, लेकिन वे उन सवालों के बेहद क़रीब पहुंच गये हैं, जिन्हें वास्तव में अफ़ग़ानिस्तान में चल रहे घटनाक्रमों के विनाशकारी मोड़ के सिलसिले में पूछे जाने की ज़रूरत है। सीनेट की विदेश संबंध समिति के अध्यक्ष सीनेटर बॉब मेनेंडेज़ (डी-एनजे) ने कहा, “मुझे इस बात को लेकर हताशा है कि बाइडेन प्रशासन ने साफ़ तौर पर अमेरिका की तेज़ी से हुई इस वापसी के निहितार्थों का सटीक आकलन नहीं किया।” इससे भी अहम बात यह है कि उन्होंने चतुराई के साथ यह बात कह दी कि "अब हम कई सालों की नीति और ख़ुफ़िया नाकामियों के भयावह नतीजे देख रहे हैं।"

भले ही अमेरिका समर्थित अफ़ग़ान सरकार सालों से लगातार प्रशासन के चुने गये विकल्पों के नतीजे के तौर पर निष्प्रभावी और भ्रष्ट रही हो, लेकिन बाइडेन प्रशासन महज़ इस बात को सुनिश्चि करने के लिए अफ़ग़ान प्रशासन के साथ ज़्यादा निकटता के साथ तालमेल का विकल्प चुन सकता था कि अरबों डॉलर से ख़रीदे गये अमेरिकी हथियार तालिबान के हाथों में नहीं पड़ेंगे। इसके बजाय, एसोसिएटेड प्रेस के मुताबिक़, "अमेरिकी निवेश [अफग़ानिस्तान की सेना में] का लाभ पाने वाला आख़िरकार वह तालिबान ही निकला, "जिसने न सिर्फ़ राजनीतिक शक्ति, बल्कि अमेरिका की ओर से गोलाबारी के लिए दिये गये  बंदूकें, गोला-बारूद, हेलीकॉप्टर और बहुत कुछ हथिया लिये।"

अगर बहुत कम शब्दों में कहा जाये,तो 11 सितंबर को हुए आतंकवादी हमलों को लेकर तालिबान और अल क़ायदा को दंडित करने के लिए अमेरिका ने अक्टूबर 2001 में अफ़ग़ानिस्तान के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ दिया,इस "आतंक के ख़िलाफ़ युद्ध" लड़ने में तक़रीबन दो दशक बिता दिये, और उस युद्ध का अंत अपने प्रत्यक्ष शत्रु को राजनीतिक और सैन्य दोनों ही रूप से सशक्त बनाकर हुआ ।भोलेपन में उस हमले और दखल दिये जाने का समर्थन करने वाले अमेरिकी करदाताओं ने बेकार में दशकों तक लम्बे चले एक ऐसी बर्रबर क़वायद में ख़रबों डॉलर ख़र्च कर डाले, जिसमें लोगों की जानें गयीं, अफ़ग़ान लोगों की बड़ी आबादी को दर्द का दंश मिला और उन्हें आतंकित करने वाली ताक़तों का नवीनीकरण हुआ।

तालिबान इससे बेहतर युद्ध की मांग नहीं कर सकता था।

यह विश्वास कर पाना मुश्किल हो सकता है कि ट्रम्प प्रशासन के तहत ये चीज़ें और भी ख़राब हो सकती थीं। लेकिन, अगर पूर्व रिपब्लिकन राष्ट्रपति अब सत्ता में होते, तो संभावना इस बात की होती कि हम कमोवेश एक ऐसी ही, मगर और भी ज़्यादा हिंसा वाली स्थिति देख रहे होते। पूर्व विदेश मंत्री पोम्पिओ ने अपने फ़ॉक्स को दिये उस साक्षात्कार में बाइडेन प्रशासन को "काबुल के आसपास के इन तालिबानों को कुचलने" की सलाह दी। हमें ऐसा अमेरिकी वायुसेना की सहायता से यह करना चाहिए, उन पर दबाव बनाना चाहिए, हमें उन्हें औक़ात बतानी चाहिए और यंत्रणा देनी चाहिए।" पिछले युद्ध हैरतअंगेज़ विश्वसनीयता के साथ इस तरह लड़े गये हैं कि यंत्रणा का दायरा कभी भी सटीक नहीं होता और हमेशा उस कथित "अतिरिक्त नुकसान" का नतीजा होता है, जिसमें नागरिकों के हताहतों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है। ट्रम्प में नागरिकों की परवाह किए बिना बड़े पैमाने पर गोलाबारी का इस्तेमाल करने की एक सिद्ध प्रवृत्ति थी, और पोम्पिओ की सलाह भी कुछ इसी तरह की है, ऐसे में हम शायद उसी स्थिति को देख सकते थे,जैसा कि हम आज देख रहे हैं, लेकिन इसके साथ वह आतंक भी देख रहे होते,जिसमें तालिबान से भागने की कोशिश कर रहे लोगों पर बम गिराये जा रहे होते।

काबुल पर तालिबान के कब्ज़े की तुलना कई लोग साइगॉन के पतन से कर रहे हैं। इस अफ़ग़ानिस्तान युद्ध के होने से पहले वियतनाम युद्ध हुआ था। और इन वियतनाम और अफ़ग़ानिस्तान युद्ध के दौरान और उससे पहले भी कई और युद्ध हुए, जिन पर लोगों का कम ही ध्यान गया। अगर इन युद्धों से कोई सबक़ मिलता है,तो यही कि एक राष्ट्र के रूप में अमेरिकियों को इन विनाशकारी सैन्य क़वायदों से दूर रहना चाहिए और जो लगातार फ़ायदा पहुंचाने के बनिस्पत कहीं ज़्यादा नुक़सान पहुंचाते रहे हैं। अब यह सुनिश्चित करना है कि हम फिर से दूसरे देश पर बमबारी, छापे, कब्ज़े और सैन्य हमले की इच्छा के पीछे फिर से लामबंद न हों। इसका सीधा मतलब उन उदार और रूढ़िवादी प्रतिष्ठानों के पक्ष में खड़े होना है, जो जीवन, सुरक्षा या लोकतंत्र की परवाह किए बिना युद्ध के बेतरतीब आकलन में एक निर्लिप्त सुख पाते हैं।

सोनाली कोल्हाटकर फ्री स्पीच टीवी और पैसिफिक स्टेशनों पर प्रसारित होने वाले टेलीविजन और रेडियो शो "राइजिंग अप विद सोनाली" की संस्थापक, होस्ट और कार्यकारी निर्माता हैं। वह इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टीट्यूट में इकोनॉमी फ़ॉर ऑल प्रोजेक्ट में राइटिंग फ़ेलो हैं।

यह लेख इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टीट्यूट की प्रोजेक्ट, इकॉनोमी फ़ॉर ऑल की पेशकश है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

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