चुनाव 2019 : छठा चरण : गठबंधन के बीजेपी से काफी आगे निकलने की संभावना
पूर्वी यूपी की 14 सीटों पर मतदान आज यानी 12 मई को है। इनमें से एक सीट आजमगढ़ को छोड़कर वर्ष 2014 में भारतीय जनता पार्टी और इसकी सहयोगी पार्टी अपना दल ने सभी सीटों पर जीत हासिल की थी। आजमगढ़ सीट समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह ने जीती थी। लेकिन बीजेपी से खिसकते मतदाताओं के साथ 2017 के विधानसभा चुनावों के आंकड़े ये संकेत देते हैं कि गठबंधन लहर के चलते ये आंकड़े इनके पक्ष में हो जाएंगे।
अलग-अलग चुनाव लड़ते हुए इन गठबंधन पार्टियों (समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय लोक दल) को 2017 के विधानसभा चुनावों में लगभग 51% वोट मिले। इन गठबंधन पार्टियों ने बीजेपी और इसकी सहयोगियों को 37% मतों के साथ काफी पीछे छोड़ दिया था। इसके अनुसार 12 मई को 14 सीटों पर होने वाले मतदान में से 12 सीट गठबंधन के खाते में जा सकती है। केंद्र और राज्य में सरकार चला रही बीजेपी से खिसकते 2.5% मतों को जोड़ दिया जाए तो रास्ता पूरी तरह बंद हो जाता है क्योंकि बीजेपी के आंकड़े शून्य पर पहुंच जाते हैं।
12 मई को संपन्न होने वाले मतदान के छठे चरण में यूपी की 80 सीटों में से 67 सीटों पर मतदान पूरा हो जाएगा। 2014 में बीजेपी ने इनमें से 60 सीटें जीती थीं। लेकिन न्यूज़क्लिक के अनुमानों से संकेत मिलता है कि इस बार इसे केवल 16 सीटों पर ही संतोष करना होगा जबकि गठबंधन को 49 सीटों पर जीत हासिल होने की संभावना है। कांग्रेस अपनी पिछली दो सीटों पर ही काबिज रहेगी।
न्यूज़क्लिक की डेटा एनालिटिक्स टीम द्वारा ये आंकड़े इकट्ठे किए गये हैं। ये आंकड़े 2017 के विधानसभा चुनावों में सभी दलों को सीट के अनुसार मिले मतों पर आधारित हैं। बीजेपी (2.5%) के पक्ष से वोट खिसकने के कई कारण हैं। इन कारणों में उपज की कम कीमतों को लेकर किसानों का संकट, आवारा पशु की समस्या, बड़ी संख्या में बेरोज़गारी, अल्पसंख्यकों तथा दलितों पर बढ़ते हमले और बढ़ती दूरियां और कुल मिलाकर योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में बीजेपी की राज्य सरकार से भारी असंतोष शामिल हैं।
इसे याद किया जा सकता है कि दो प्रतिद्वंदी विपक्षी दल सपा और बसपा सामाजिक वर्गों और जातियों के शक्तिशाली समूह का निर्माण करते हुए एक साथ आए जिन्हें चुनौती देना बीजेपी के लिए मुश्किल हो रहा है। गठबंधन में आरएलडी भी शामिल है जिसकी मौजूदगी मुख्य रूप से पश्चिमी यूपी में ही है।
बीजेपी का भी छोटे दलों के साथ गठबंधन है जो मुख्य रूप से विशिष्ट जाति समुदायों पर आधारित हैं। इस गठबंधन में अपना दल, निषाद पार्टी, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी आदि शामिल हैं। हालांकि यह गठबंधन टूट रहा है फिर भी इसका नाम बाकी है। बीजेपी सरकार के ख़िलाफ़ व्यापक असंतोष के चलते इन छोटे सहयोगी दलों को बार-बार हटने के लिए मजबूर होने पड़ा लेकिन बीजेपी के आकर्षक प्रस्तावों से फिर वापस हो गए। इस प्रक्रिया में उनका अपना सामाजिक आधार समाप्त हो गया है और ऐसे में फिर से दूरियां बन सकती हैं।
यूपी में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की लगातार हार का मतलब है कि छठे चरण तक इस पार्टी ने 44 सीटें खो दी हैं जो इसने पिछली बार जीती थीं। यह नरेंद्र मोदी के फिर से प्रधानमंत्री बनने की संभावनाओं पर एक तगड़ा झटका हो सकता है क्योंकि देश के बाकी हिस्सों में भी उनकी पार्टी को नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।
(इन आंकड़ों का विश्लेषण पीयूष शर्मा ने किया।)
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