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डीबीसी को भुलाकर कैसे होगी डेंगू से लड़ाई? स्थायी नौकरी की मांग को लेकर हड़ताल

लगभग 3500 से अधिक कर्मचारी पिछले लगभग 2 दशकों में दिल्ली के तीनों नगर निगम में अनुबंध के आधार पर काम कर रहे हैं। राजधानी में डेंगू और अन्य ऐसी महामारी की जांच में महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद इनकी मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है।
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दिल्ली में नगर निगम मुख्यालय सिविक सेंटर के सामने , एंटी-मलेरिया एकता कर्मचारी यूनियन के बैनर के तहत घरेलू मच्छर प्रजनन जाँचकर्ताओं (डोमेस्टिक ब्रीडिंग चेकर : डीबीसी) अपनी नौकरी के नियमतिकरण की मांग को लेकर आज, सोमवार से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए है।

लगभग 3500 से अधिक कर्मचारी पिछले लगभग 2 दशकों में दिल्ली के तीनों नगर निगम में अनुबंध के आधार पर काम कर रहे हैं। राजधानी में डेंगू और अन्य ऐसी महामारी की जांच में महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद इनकी मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। इससे पहले भी ये कर्मचारी हड़ताल और प्रदर्शन कर चुके हैं, उस दौरान सरकार ने लिखित में वादा किया था,लेकिन बाद में वो उससे मुकर गई।

आजकल आप सब टीवी पर दिल्ली सरकार का डेंगू के ख़िलाफ़ लड़ाई के लिए एक विज्ञापन रोज देख रहे होंगे। इसमें मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल दिल्ली में डेंगू 80% कम होने का दाव कर रहे है। और अंत में कहते हैं हर रविवार, 10 हफ्ते,10 बजे,10 मिनट समय दीजिये, डेंगू की रोकथाम कीजिये। लेकिन वो इस पूरे विज्ञापन में यह कहीं नहीं बताते कि डेंगू जैसी बीमारी के रोकथाम के लिए असल में कौन काम करता है।

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मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया के खिलाफ ज़मीन पर काम करने वाले घरेलू मच्छर प्रजनन जांचकर्ताओं (डीबीसी) यानी वो लोग जो घर-घर जाकर जाँच करते हैं और पता लगाते हैं कि डेंगू और मलेरिया के मच्छर कहां पनप रहे हैं। अगर कहीं पैदा हो रहे हैं तो वे, उसकी रोकथाम के लिए भी कार्य करते हैं। इन कर्मचारियों की संख्या अभी 3500 है जो कि जरूरत से कम है। जो कर्मचारी काम भी कर रहे हैं, उन्हें कई महीनों तक वेतन नहीं मिलता है। इसके आलावा भी उनको कई तरह की समस्या है। लेकिन वो कर्मचारी किस हालत में काम कर रहे है इसकी सुध कोई नहीं ले रहा है। ये कर्मचारी 23 वर्षों से काम कर रहे लेकिन एमसीडी इन कर्मचारियों न तो कोई पहचान दे पाई है न ही समय से वेतन।
अपनी इन्हीं मांगो को लेकर ये कर्मचारी अनिश्चितकालीन हड़ताल और क्रमिक भूख हड़ताल पर चले गए है।

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पिछले साल भी डीबीसी के 3500 कर्मचारियों ने 17 दिनों तक नई दिल्ली स्थित एमसीडी मुख्यालय के बाहर भूख हड़ताल पर बैठे थे। वे सभी अपना वेतन मांग रहे थे, जिसका कई महीनों से भुगतान नहीं किया गया था और मांग कर रहे थे कि उन्हें स्थायी किया जाए। लेकिन उस समय कर्मचारियों को आश्वासन दिया गया था कि उनकी सभी समस्याओं का हल कर दिया जाएगा लेकिन आज यह कर्मचारी उसी हालात में काम करने को मज़बूर हैं।

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कर्मचारी यूनियन ने कहा कि 2 साल पूर्व हुए समझौते में पद बनाने संबंधी सहमति के बावजूद निगम ने इस संबंध में कोई पहल नहीं की। इसी कर्मचारी विरोधी रुख के चलते एंटी मलेरिया एकता कर्मचारी यूनियन ने डीबीसी कर्मचारियों की भावनाओं को देखते हुए आज, 16 सितंबर से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने का निर्णय लिया।

उन्होंने कहा अब निर्णायक घड़ी आ गई है और हम अब अपनी एकता व ताकत का परिचय देंगे और जब तक निगम हमारी मांग को नहीं मानता तब तक यह संघर्ष चलेगा।

उनकी मांगों और इस हड़ताल को सीआईटीयू दिल्ली राज्य कमेटी ने समर्थन दिया है।

एंटी मलेरिया एकता कर्मचारी यूनियन के महासचिव मदन पाल ने कहा कि कर्मचारियों को पिछले तीन महीने से सैलरी नहीं मिली थी। ये कोई एकबार की नहीं हर बार की कहानी है तीन महीने बाद जब कर्मचारी आंदोलन की धमकी देते हैं तब जाकर एक महीने की सैलरी दे दी जाती है। जबकि स्थायी कर्मचारियों को हर महीने 31 को ही सैलरी दे दी जाती है लेकिन हमें नहीं क्योंकि हमारा निगम ने कोई पद नहीं दिया है।
इसके साथ ही उन्होंने कहा की डीबीसी कर्मचारियों की सबसे बड़ी समस्या यह है की वो लोग लगभग20-20 साल से काम कर रहे हैं, लेकिन उनकी कोई पोस्ट(पद) नहीं है।

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यानी जैसे आप किसी भी विभाग में कार्य करते हैं तो आपकी एक पोस्ट होती है, आप फील्ड वर्कर हैं या क्लर्क हैं या और कुछ लेकिन हमारे साथ ऐसा नहीं है। इसके अलावा एमसीडी कहती है कि हम उसके कर्मचारी नहीं है, जबकि हम सारे काम करते हैं, अपने काम के अलावा भी हमसे अन्य काम लिया जाता है जैसे अवैध होर्डिंग हटाना, हाउस टैक्स वसूलना आदि। इसके बाबजूद हमें कोई पद नहीं दिया गया है, इसके साथ ही हमें हमारे कर्मचारी होने के मौलिक अधिकार भी नहीं है।

मदन पाल कहते है कि हमें मात्र 13 हज़ार रुपये सैलरी मिलती वो भी समय पर नहीं मिलती है। ऐसे में हमारे लिए अपना परिवार चलाना बहुत मुश्किल हो गया है। अब हमारी मज़बूरी है की हम कोई और काम कर नहीं सकते हमारी उम्र 40-50  साल हो गई। हमने पूरी जिंदगी दे दी निगम को लेकिन अब भी हमें यह अपना कर्मचारी नहीं मानते। हमारी सीधी मांग है कि हमारा पद बनाया जाए और हमें पक्का किया जाए।
इसके अलावा इन कर्मचारियों की दूसरी मांग है कि काम के दौरान कर्मचारियों के मौत के बाद उनके परिवार में किसी को उनके स्थान पर नौकरी दी जाए। क्योंकि कई बार जब कर्मचारी मच्छर की जाँच के लिए घरों में जाते हैं तो उन्हें भी वो काट लेता है, जिससे उनकी मौत हो जाती है, ऐसे में उनके परिवार को नौकरी दी जाए।

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