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दिल्ली में कचरे पर गुल खिलाती राजनीति


दिल्ली में हर दिन 3,600 टन कचरा इकट्ठा नहीं हो पाता 4,600 टन पहले से ही भरी हुई डंपिंग साइटों पर फैंक दिया जाता है और कहा जाता है कि करीब 6,100 टन कचरे को संसाधित किया जाता है।

दिल्ली में कचरे पर गुल खिलाती राजनीति

गुरुवार, 12 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने राजधानी के बढ़ते ठोस कचरे के संकट को न संभाल पाने के लिए दिल्ली लेफ्टिनेंट गवर्नर को फटकार लगायी। अदालत ने उन्हें यह कहते हुए कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया कि "आप कहते हैं कि मेरे पास सारी शक्ति है, मैं सुपरमैन हूँ, लेकिन आप कचरे की समस्या को हल करने के लिए कुछ भी नहीं करते हैं।" यह टिप्पणी लेफ्टिनेंट गवर्नर के उस बयान के संदर्भ में थी कि निर्वाचित दिल्ली राज्य सरकार से श्रेष्ठ उनकी शक्तियाँ हैंI सर्वोच्च न्यायालय के हाल ही में आये फैसले केबावजूद उपराज्यपाल यह ने कहा था।

ज़ाहिर है कि एलजी और राज्य सरकार के बीच एक बेमानी युद्ध चल रहा है जो वास्तव में केंद्र की बीजेपी सरकार और आम आदमी पार्टी (एएपी) की निर्वाचित दिल्ली सरकार के बीच है। कचरा संग्रह और निपटान उन समस्याओं में से एक रहा है जो इस राजनीतिक लड़ाई में खींचा गया है।

ऐसा इसलिए है क्योंकि ठोस कचरे का निवारण मुख्य रूप से स्थानीय नगर पालिकाओं की ज़िम्मेदारी है जो दिल्ली में बीजेपी के नियंत्रण में है। संशोधित दिल्ली नगर निगम अधिनियम के अनुसार इन निकायों के कार्यों का निर्वहन केंद्र सरकार के तहत निर्देशित होत है। अधिनियम के अध्याय 17 में 43 वर्ग (350 से 393) शामिल हैं जो'स्वच्छता और सार्वजनिक स्वास्थ्य' के अंतर्गत आते हैं। विशेष रूप से, धारा 350 नगरपालिका आयुक्त को "सभी सड़कों और परिसरों के कुशल मैला साफ करने और आम सफाई" की व्यवस्था करने का निर्देश देता है।

एलजी केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में और केंद्र के साथ जुड़े होने की वजह से कचरा निपटान की इनकी खास जिम्मेदारी है। फिर, डीएमसी अधिनियम स्पष्ट रूप से विभिन्न वर्गों में एलजी को इन शक्तियों को प्रदान करता है, खासकर धारा 485 से 490 ए में।

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इस साल की शुरुआत में, एलजी ने एक ठोस कचरा प्रबंधन रणनीति तैयार की थी जिसे गुस्से में  न्यायालय ने "यूटोपियन" (न हासिल होने वाला मक्सद) कहा था। राज्य सरकार की बुलाइ गयी लगातार तीन बैठकों में एलजी अनुपस्थित थे। इस मुद्दे पर चर्चा करने पर अदालत काफी गुस्से में थी और उपराज्यपाल की निंदा की।

लेकिन दिल्ली में कचरा इतना बड़ा मुद्दा क्यों है?

इसका जवाब न केवल राजनीतिक लड़ाई में बल्कि इस समस्याकी उपेक्षा के लंबे इतिहास में छिपा हैI इसके साथ ही इसकी वजह विशेष रूप से कुलीन वर्ग की अत्याधिक फ़िज़ूलऔर उपभोक्तावादी जीवनशैली भी है।

दिल्ली स्थित संगठन, सेंटर ऑफ साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) के एक अनुमान के अनुसार, दिल्ली प्रति दिन 14,000 टन प्रति दिन ठोस कचरा (टीपीडी) पैदा करती है। लेकिन सीएसई मानता है कि नगरपालिका या अन्य एजेंसियों द्वारा सटीक अनुमानों की अनुपस्थिति में यह आँकड़ा अनिश्चित है। यह गणना प्रति दिन प्रति व्यक्ति लगभग 550-600 ग्राम ठोस कचरे को पैदा करने के अनुमान पर आधारित है।

दिल्ली के नगर निगमों का कहना है कि 10,500 से ज़्यादा टीपीडी कचरा इकट्ठा किया जाता है। इसका मतलब है कि हर दिन, लगभग 3,500 टन कचरा बना रहता है। यह सड़कों, कचरा डंप, खुली जगहों आदि में स्थित है। यह हर साल शहर भर में जमा होने वाले 12.77 लाख टन अनचाहे कचरे के ढेर है।

शहर में तीन कूड़ा जलाने के संयंत्र हैं और दो केंद्रीकृत कंपोस्टिंग इकाइयां हैं जिनमें 6,100 टीपीडी को खपाने की क्षमता है। यद्यपि कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन सबसे अच्छा परिदृश्य लेते हुए, कि इस ठोस कचरे की मात्रा है जिसे ये प्लांट हर दिन इसका प्रसाधन करते हैं।

इससे लगभग 4,600 टीपीडी कचरा निकलता है जिसे इकट्ठा किया जाता है और तीन डंपिंग साइटों पर इकट्ठा किया जाता है - जिसे ओखला, भालसवा और गाज़ीपुर में लैंडफिल भूमि कहा जाता है। जहन हर साल करीब 16.8 लाख टन  कचरा डाला जाता है।

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इन साइटों को 2008 में घोषित किया गया था यहाँ अब ओर कचरा नहीं डाला जा सकता है। लेकिन चूंकि कोई वैकल्पिक साइट नहीं चुनी गई थी, इसलिए इन तीनों में कचरा अभी भी गिराया जा रहा था। कोई भी सरकार  राज्य या केंद्र ने इस बारे मैं सोचने की जुर्रत मह्सूस नहीं की कि यह कचरा कहाँ जाना चाहिए। इस सब के बावजूद सब  सामान्य रूप से चलता रहा। यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट ने नोट किया कि गाजीपुर भूमि भर अब 65 मीटर ऊंची परत बन गयी है, जो प्रतिष्ठित कुतुब मीनार से कुछ ही कम है जो खुद 73 मीटर लंबा है।

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि संकट और भी बड़ा होता अगर दिल्ली में लगभग 1.5 लाख 'रैग-पिकर्स' कूड़ा बीनने वाले या कचरा इकट्ठा करने उपस्थिति नहीं होते। सबसे गरीब और उत्पीड़ित वर्गों से आयें लोग, वे कचरा डंप, प्लास्टिक, धातु, और अन्य पुनर्नवीनीकरण सामग्री को अलग करते हैं, और कूड़े को एकत्रित करने के लिए इस नेटवर्क के माध्यम से काम करते हैं। बड़े ठेकेदारों द्वारा नियोजित इन अनौपचारिक श्रमिकों द्वारा ठोस कूड़ा  का एक महत्वपूर्ण अंश इस प्रकार 'संसाधित' होता है।

बड़े पैमाने पर संकट को देखते हुए, इसकी बुरी तरह की उपेक्षा में वर्षों में बढ़ोतरी हुई, सुप्रीम कोर्ट को सलाह दी गयी कि मौजूदा नौकरशाही या राजनीतिक नेतृत्व पर दीर्घकालिक समाधान के लिए किसी व्यवहार्य योजना के साथ आने का भरोसा न करें। इसके अलावा, केवल सरकार को लोगों को कचरे को अलग करने के अपने कर्तव्यों के बारे में जागरूक करने या सड़कों पर (जैसे स्वच्छ भारत) पर डंप नहीं करने के लिए जागरूक करने के लिए कहा जाना चाहिये। सरकार को  इस भारी मात्रा में कचरे के निर्माण को रोकने के इंतजाम करने चाहिए। और यह केवल जीवन शैली में एक बड़े बदलाव से किया जा सकता है।

 

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