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दिल्ली पुलिस की कार्यशैली सवालों के घेरे में

आम लोगों में पुलिस की अच्छी छवि नहीं है, भले ही उसका सूत्र वाक्य, उसकी टैग लाइन “शांति, सेवा और न्याय” हो।
Delhi Police

राजधानी दिल्ली के मुखर्जी नगर क्षेत्र में टेम्पो चालक के साथ सड़क पर हुई मारपीट के मामले ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सबसे बड़ा सवाल पुलिस की कार्यशैली का है। जो एक मददगार, कानून के रक्षक की बजाय एक उत्पीड़क के तौर पर ज़्यादा दिखाई देती है। जो एफआईआर दर्ज करने की बजाय उससे इंकार करने में ज़्यादा दिलचस्पी रखती है। जो वसूली से लेकर आरोपियों के बचाव की भूमिका में खड़ी दिखती है। जिसका सिलसिला सड़क पर मारपीट से लेकर हिरासत में मौत तक जाता है।

आम लोगों में पुलिस की यही छवि है, भले ही उसका सूत्र वाक्य, उसकी टैग लाइन शांति, सेवा और न्याय” हो।

मुखर्जी नगर मामला

राजधानी दिल्ली के मुखर्जी नगर क्षेत्र मामले के तूल पकड़ने पर पुलिस ने दोनों पक्षों के मामलों को दर्ज कर लिया है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यह घटना पार्किंग को लेकर शुरू हुई अथवा टेम्पो चालक ने पहले पुलिस की गाड़ी को टक्कर मारी। यह जांच का विषय है। उन्होंने कहा कि हमले के बाद पुलिस कर्मियों को टेम्पो चालक पर काबू पाकर उसे थाने लाना चाहिये था।

इस मामले में तीन पुलिसकर्मियों को गैर पेशेवर आचरण’ अपनाने के आरोप में निलंबित किया गया है।

इस पूरी घटना को लेकर अब दो पक्ष सामने आ रहे है एक जिसमें टेम्पो चालाक हिंसक होता दिख रहा है पुलिसकर्मी उससे डर कर भाग रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ एक अन्य वीडियो आया है जिसमें पुलिस उस टेम्पो चालक को बेरहमी से पीटती नज़र आ रही है। कोई भी टेम्पो चालक के आक्रमक होने को सही नहीं कह रहा है लेकिन पुलिस के रवैये पर भी सवाल हैं कि वो इस पूरे मामले को और अच्छे तरीके से हैंडल कर सकती थी। क्योंकि पुलिस को इसी तरह की घटनाओं से निपटने के लिए ट्रेंड किया जाता है। लेकिन हमारी पुलिस अधिकतर मौक पर हिंसक और आक्रमक नज़र आती है। जिस पुलिस को समाज के बेहतरी और सुधारक की भूमिका में होना था वो आज भय का पर्यायवाची बना हुई है।

दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मारपीट

ऐसा ही एक और मामला है धर्मवीर सिंह गौतम का जो  दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र हैं। वे HNP News नाम से यूट्यूब चैनल चलते है। धर्मवीर के मुताबिक 16-17 जून की मध्यरात्रि को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से अपने घर जाने के लिए स्टेशन पहुंचे तो वहां उन्होंने देखा कि एक लड़के को कुछ पुलिस वाले बुरी तरह से पीट रहे थे। यह देखकर वो रुके और उन्होंने पुलिस से उस नौजवान को बुरी तरह से पीटने का कारण जान चाहा। 

धर्मवीर के मुताबिक- लेकिन पुलिस तो पुलिस है उससे आप सवाल कैसे कर सकते है सो पुलिस ने उन्हें भी उस लड़के का साथी बता कर पकड़ लिया। धर्मवीर ने आरोप लगाया कि पुलिस वाले उन्हें अपने साथ ले गए और काफी मारपीट की और अभद्र भाषा का भी प्रयोग किया। लेकिन हद तो तब हो गई जब पुलिस ने उनके मुँह में पेशाब करने की कोशिश भी की। ये बिल्कुल उसी तरह था जैसे यूपी के शामली में जीआरपी द्वारा एक चैनल के संवाददाता के साथ किया गया।

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इसके बाद अगली सुबह यानी 17 जून को उच्च पुलिस अधिकारीयों व मीडिया से इस मामलें में शिकायत की गई। जब नई दिल्ली रेलवे पुलिस स्टेशन के डीसीपी से लिखित शिकायत की गई तो उन पर तुरंत कार्रवाई करते हुए तीनों पुलिसकर्मियों को निलंबित करने का आश्वासन दिया।

धर्मवीर ने पुलिस के ऐसे व्यवहार को लेकर कहा कि इस देश में एक आम आदमी स्वतंत्र घूम भी नहीं सकतान्याय किसके लिए है?  आज आम आदमी का पुलिस और प्रशासन से विश्वास उठता जा रहा है और लोगों की नजरों में दिल्ली पुलिस की छवी काफ़ी धूमिल होती जा रही है। देश की राजधानी में लोग पुलिस के नाम से डरते हैं। पुलिस प्रशासन जनता की रक्षा के लिए है न कि उनको परेशान करने के लिए। जब जनता का रक्षक ही भक्षक बन जाए तो फिर क्या होगा इस देश का?

पुलिस हिरासत में मौत

यही नहीं दिल्ली पुलिस की छवि और भी भयावह लगाती है जब हम पुलिस हिरासत में मौतों को देखें

दिल्ली पुलिस की हिरासत में मौत की सूची काफी लंबी है। इस साल मार्च में पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) ने कंटिन्युइंग इंप्यूनिटी: डेथ्स इन पुलिस कस्टडीदिल्ली 2016-2018’ नाम से एक रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट के अनुसार साल 2016-2018 के बीच दिल्ली की पुलिस हिरासत में 10 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। पीयूडीआर के मुताबिक इन 10 मौतों में से 6 मौतों का कारण या तो आत्महत्या’ है या फिर पुलिस हिरासत से भागने की कोशिश के दौरान हुआ हादसा’ बताया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि हिरासत में हुई मौतों के मामलों में पुलिस के अलावा किसी और चश्मदीद के नहीं होने के कारण न्यायिक तौर पर पुलिस के खिलाफ कोई भी आपराधिक मामला दर्ज करने में एक बड़ी समस्या उत्पन्न होती है। इन मामलों में पुलिस के अतिरिक्त किसी स्वतंत्र गैर-पुलिस गवाह को दर्ज नहीं किया गया हैजिसके चलते न्यायालय में पुलिस पर कोई भी अपराध साबित करना बेहद मुश्किल साबित होता है।

पीयूडीआर का यह भी कहना है कि पुलिस हिरासत में मौतों के शिकार ज़्यादातर लोग सामाजिक व आर्थिक रूप से सबसे शोषित वर्ग से आते हैं। रिपोर्ट में शामिल मामलों में10 में से 8 व्यक्ति जिनकी मौत पुलिस हिरासत में हुईकमजोर सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि से थे।

पुलिस शिकायत प्राधिकरण क्या कर रहा है ?

पुलिस शिकायत प्राधिकरण जिसका गठन 27 फरवरी, 2012 में हुआ था, इसके तहत लोक शिकायत आयोग को पुलिस शिकायत प्राधिकरण (पीसीए) घोषित किया गया है। दिल्ली पुलिस के पुलिसकर्मियों/अधिकारियों जैसे पुलिस हिरासत में मौतपुलिस द्वारा की गई दर्दनाक चोटबलात्कार या बलात्कारअवैध हिरासत में लेने की कोशिश के कारण पुलिस की शिकायतों को दायर  करने के आलावा जबरन वसूलीजमीन/मकान हड़पना या अधिकार का कोई गंभीर दुरुपयोग के लिए पुलिस शिकायत प्राधिकरण का गठन किया गया है। ऊपर बताए गए किसी भी गलत काम के संबंध में पुलिस कर्मियों के खिलाफ कोई भी निर्धारित प्रारूप में पुलिस शिकायत प्राधिकरण (पीसीए) में शिकायत दर्ज करा सकता है। पीसीए में अध्यक्ष और तीन सदस्य शामिल होते हैंजिनमें से एक सदस्य महिला होनी चाहिए।

लेकिन इसकी हकीकत कुछ अलग है। पुलिस शिकायत प्राधिकरण के आधिकारिक वेसाइट के अनुसार अभी इसका कोई भी अध्यक्ष नहीं है, इसके अलावा जब आप इस पर ऑनलाइन शिकायत करते हैं तो वो भी नहीं हो पाती और लिखा आता है कि वेबसाइट अभी अंडर कंस्ट्रक्शन है। तो सवाल उठता है पीड़ित व्यक्ति शिकायत कहाँ और कैसे करे?

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इसके बारे में और जानने के लिए हमने वेबसाइट पर दिए हुए नंबर पर संपर्क किया तो किसी बलवंत नाम के अधिकारी ने फोन उठाया। जब हमने उनसे जानने की कोशिश कि इस विभाग के तहत कितनी शिकायत आईं हैं और उनकी स्थिति क्या हैतो उनका जवाब था कि शिकायत तो बहुत आईं हैं। जब हमने शिकायतों की संख्या और कार्रवाई के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा “वो इस विभाग का नहीं है। वो पड़ोस में था फोन बजता सुना तो उठा लिया। उसे इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है।” इसके बाद हमने उनसे पूछा कि वो कोई नंबर जानते हैं जो पीसीए के बारे में बता सकें तो उन्होंने इससे भी इंकार किया। लेकिन उन्होंने एक बात यह बताई कि इस विभाग का भवन बदल दिया गया है। पहले यह विकास भवन में था लेकिन अब यह नयी दिल्ली नगर निगम के जंतर मंतर स्थित भवन में चला गया है। चौंकाने वाली बात यह है की आधिकारिक वेबसाइट पर अभी भी पता विकास भवन ही है। यह दिखाता है कि पुलिस विभाग अपने खिलाफ शिकायत सुनने को कितनी तैयार है।

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