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डीटीसी में हड़ताल के पक्ष में मतदान, दिल्ली सरकार के लिए चेतावनी

डीटीसी कर्मचारी अब सरकार और निगम से आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार हैं। 98.2% कर्मचारियों ने हड़ताल के पक्ष में मतदान किया है और कर्मचारी अक्टूबर के अंत में हड़ताल पर जा सकते हैं।
डीटीसी वर्कर्स यूनिटी सेंटर

दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) के कर्मचारी 1989 के बाद पहली बार आम हड़ताल पर जाने वाले हैं। और ये सिर्फ किसी संगठन के आह्वान पर नहीं, बल्कि कर्मचारियों ने मतदान के द्वारा यह तय किया है।

हड़ताल पर जाना है या नहीं इसको लेकर वर्कर्स यूनिटी सेंटर ने डीटीसी के सभी ड्राइवर और कंडक्टरों के बीच स्ट्राइक बैलट कराया था जिसमें 10 हज़ार से अधिक कर्मचारियों ने हिस्सा लिया। चार दिन तक अलग-अलग डिपो में चले मतदान के बाद शनिवार को हुई गिनती के बाद शाम को इसका परिणाम सामने आया है और इसमें 98% से अधिक कर्मचारियों ने हड़ताल के पक्ष में अपना मत दिया है। जिसके बाद डीटीसी कर्मचारियों के हड़ताल पर जाने की संभावना है और जानकारी के मुताबिक कर्मचारी अक्टूबर के अंत तक हड़ताल पर जा सकते हैं।

स्ट्राइक बैलेट क्या होता है?

कई लोगों को लग रहा होगा कि सर्जिकल स्ट्राइक, हंगर स्ट्राइक, मास स्ट्राइक आदि तो सुना है लेकिन ये स्ट्राइक बैलट क्या है और ये क्यों होता है? मूलतः स्ट्राइक बैलट को हिंदी में हड़ताल मत कहेंगे। इसका मतलब है किसी भी निगम में जब कर्मचारियों को हड़ताल पर जाना होता है तो वहाँ वे आपस में गुप्त मतदान के मध्यम से अपना मत देते हैं कि वो हड़ताल का समर्थन करते हैं या नहीं? भारत में ये परंपरा रेलवे और बैंक कर्मचारियों की हड़ताल में रही लेकिन डीटीसी के इतिहास में पहली बार हड़ताल पर जाना है या नहीं इसको लेकर स्ट्राइक बैलट करवाया गया है|

न्यायालय के निर्णय को आधार बनाकर दिल्ली सरकार व निगम द्वारा घटाए गए वेतन के विरोध में और लगतार डीटीसी मैनेजमेंट और सरकार की नीति और रवैये को देखते हुए दिल्ली के सभी डिपो में स्ट्राइक बैलेट वोट करवाया गया, जिसके माध्यम से ये जानने की कोशिश की गई कि कितने कर्मचारी हड़ताल के पक्ष में हैं। इसके लिए चार दिनों तक दिल्ली के हर डिपो में 25, 26, 27 और 28 सितंबर को क्रमशः पूर्वी, उत्तरी, पश्चिमी और दक्षिण दिल्ली के डिपो में स्ट्राइक बैलेट वोट हुआ, जिसमें डीटीसी के कर्मचारियों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और 29 सितंबर को डीटीसी के हेडक्वार्टर के सामने वोटों की गिनती की गई|

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स्ट्राइक बैलेट का परिणाम इस प्रकार रहा है:-

कुल मत - 10,254

हड़ताल के पक्ष में (हाँ ) - 10,069 (98.2%)

हड़ताल के विपक्ष में (नहीं) – 84 (0.8%)

अवैध - 83

रिक्त - 18

यह परिणाम देखकर साफ है कि डीटीसी कर्मचारी सरकार और निगम के वादाखिलाफी की वजह से हड़ताल पर जाने को तैयार हैं। ये दिल्ली की सरकार के लिए बड़ी चेतावनी है|

डीटीसी वर्कर्स यूनिटी सेंटर के नेता और एक्टू (AICCTU) के दिल्ली राज्य सचिव अभिषेक ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि सरकार और डीटीसी प्रबन्धन ने इस स्ट्राइक बैलट को असफल करने के कई प्रयास किये। हमारे पोस्टर फाड़ दिए गए, जिससे हम कर्मचारियों से संवाद न कर सकेंI यही नहीं कर्मचारियों को धमकी दी गई कि वो इस तरह के किसी कार्यक्रम में भाग न लें वरना उनकी नौकरी के लिए खतरा हो सकता है, लेकिन इन सब बाधाओं के बाद भी कर्मचारी अपनी माँग को लेकर सरकार और प्रशासन से आर-पार की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हैं, ये उन्होंने स्ट्राइक बैलेट के जरिये बता दिया है।

डीटीसी वर्कर्स यूनिटी सेंटर का कहना है कि उनकी मुख्य माँगों पर सरकार कार्रवाई करे नहीं तो कर्मचारी अपनी लड़ाई को सड़क पर उतरकर लड़ने को मज़बूर होंगे|

डीटीसी कर्मचारियों की मुख्य माँगें

• वर्तमान में जो वेतन मार्च की अधिसूचना के बाद से मिल रहा है वो मिलना चाहिए।

• इस नये सर्कुलर को तुरंत वापस लिया जाए।

• दिल्ली सरकार और निगम के सभी सविंदा कर्मचारियों के लिए समान काम के लिए समान वेतन को लागू किया जाए।

• प्राइवेट बसों को लाकर डीटीसी का निजीकरण नहीं चलेगा। डीटीसी के लिए नई बसों की खरीद की जाए।

अभिषेक यह भी कहते हैं कि पिछले माह न्यायालय ने तकनीकी कारणों का हवाला देते हुए इस न्यूनतम वेतन की अधिसूचना जो दिल्ली सरकार द्वारा जारी की गई थी उसे खारिज़ कर दिया| यहाँ ध्यान देने वाली यह बात है कि सुनवाई के दौरान न्यायालय ने भी यह माना था कि वृद्धि के बावजूद न्यूनतम वेतन बहुत ही कम है, इसमें दिल्ली जैसे शहर में गुज़ारा कर पाना बहुत ही मुश्किल है। परन्तु फिर भी न्यायालय ने मज़दूरों के खिलाफ अपना निर्णय सुनायाI परन्तु इस आदेश में कहीं भी यह नहीं लिखा है कि सरकार या निगम को बढ़ा हुए वेतन को वापस लेना ही होगा|

कर्मचारियों का कहना है कि मुख्यमंत्री केजरीवाल, मंत्री गोपाल राय और कैलाश गहलोत, चुनाव के बाद डीटीसी कर्मचारी को भूल गए हैं। उन्होंने अपने चुनाव में कर्मचारियों से उन्हें पक्का करने का वादा किया था परन्तु वो इसे भूल गए हैं, पर कर्मचारी नहीं भूला है, वो अपने हक के लिए केजरीवाल सरकार के धोखे और वादाखिलाफी के विरूद्ध अब आर-पार की लड़ाई लड़ने को तैयार है। जो सरकार वेतन काटने का सर्कुलर तुरंत ला सकती है, वो पक्का करने या 'समान काम-समान वेतन' का सर्कुलर भी तो ला ही सकती है। अगर मज़दूर के हक़ में ये सरकार बोलने को तैयार नहीं, तो गद्दी छोड़ने के लिए तैयार हो जाये, क्योंकि कर्मचारी ने अपना मत दे दिया है और अगर अब सरकार नहीं मानी तो हड़ताल होगी और इसकी लिए सरकार ही जिम्मेदार होगी।

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