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दिल्ली में निर्माण कामगारों के पंजीकरण अभियान में कई झोल

ट्रेड यूनियन के नेता कहते हैं कि वे आम आदमी पार्टी की सरकार की इस पहल का स्वागत करते हैं, लेकिन केवल पहल ही काफी नहीं है क्योंकि पंजीकरण प्रक्रिया में  ‘संजीदा कोशिश’ की कमी दिखती है।
निर्माण श्रमिकों के पंजीकरण (रजिस्ट्रीकरण) के लिए दिल्ली सरकार का एक अस्थायी कैंप/शिविर। चित्र स्पेशल मैनेजमेंट के सौजन्य से
निर्माण श्रमिकों के पंजीकरण (रजिस्ट्रीकरण) के लिए दिल्ली सरकार का एक अस्थायी कैंप/शिविर। चित्र स्पेशल मैनेजमेंट के सौजन्य से

नई दिल्ली : गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ने ट्रेड यूनियन के नेताओं के साथ मिलकर एक रिपोर्ट तैयार की है। इस रिपोर्ट में निर्माण कार्यों में लगे कामगारों के दिल्ली सरकार कल्याण बोर्ड द्वारा नाम दर्ज करने के अभियान की वास्तविकता का आकलन किया गया है। सोमवार को लिए गए इस जायजे में यह तथ्य उभर कर सामने आया कि दिल्ली सरकार की इस महत्वाकांक्षी पहल में संजीदगी की कमी है।

आम आदमी पार्टी (आप) की दिल्ली सरकार के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने सोमवार को श्रमिकों के पंजीकरण अभियान की शुरुआत की, जो एक महीने तक चलेगा। सिसोदिया के जिम्मे श्रम विभाग का भी कार्यभार है। आप सरकार के इस अभियान का मकसद राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की इमारतों या अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स वेलफेयर बोर्ड (डीबीओसीडब्ल्यू) की इमारतों के निर्माण कार्य में लगे कामगारों के नाम और उनके विवरण एक पंजिका में दर्ज किया जाना है।

 विगत 6 महीने के बाद इस तरह का यह दूसरा अभियान है। इसके पहले, पिछले साल अगस्त में निर्माण कार्य में लगे कामगारों के नाम और विवरण दर्ज करने की कवायद हुई थी, जिसका मकसद इन श्रमिकों को सरकारी सहायता देना था, लेकिन वैश्विक महामारी कोरोना की पृष्ठभूमि में लगाए गए लॉकडाउन की वजह से निर्माण कार्य रोक दिये गये थे। नतीजतन, दिहाड़ी श्रमिक काम छोड़ कर चले गए थे।

आप सरकार ने सोमवार को यह ताजा अभियान दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा कान खींचने के बाद ही शुरू किया है। कहा जा रहा है कि सॉफ्टवेयर में कथित गड़बड़ियों से और अन्य दिक्कतों की वजहों से पंजीकरण की सारी कवायद अस्त-व्यस्त हो गई है। निर्माणाधीन स्थल पर सक्रिय श्रमिक यूनियन के नेताओं ने रंज जताया कि दिल्ली सरकार ने पिछली गड़बड़ियों से कोई सबक ही नहीं लिया है। इन नेताओं ने कहा कि वह दिल्ली सरकार के श्रमिक पंजीकरण अभियान की घोषणा का स्वागत तो करते हैं, लेकिन केवल पहल ही काफी नहीं है, क्योंकि निर्माण के काम में लगे कामगारों के पंजीकरण-प्रक्रिया में  “संजीदा कोशिश” की अभी भी कमी दिखाई देती है।

निर्माण कामगार अधिकार अभियान (एनएमएए) विनीता थानेश्वर दयाल आदिगौड़  ने शिकायत की कि निर्माणाधीन स्थलों पर पंजीकरण के शिविर लगा दिए गए हैं,लेकिन इस काम में  कामगारों की मदद करने के लिए ‘प्रशिक्षित’ लोगों को नहीं लगाया गया है। आदिगौड़ निर्माण कामगार अधिकार अभियान के तीन सदस्यीय शिष्टमंडल का हिस्सा हैं।  उन्होंने सोमवार को पश्चिमी दिल्ली के दो पंजीकरण शिविरों  में जाकर वस्तुस्थिति का जायजा लिया था। इसके बाद उन्होंने न्यूज़क्लिक को फोन पर बताया, “शिविरों पर रखे गए स्टाफ ट्रेंड नहीं हैं। वे निर्माण श्रमिकों के तकनीकी और कानूनी पहलुओं से वाकिफ नहीं हैं। इनमें से बहुत लोग निर्माण कल्याण बोर्ड से भी जुड़े नहीं हैं और इसी वजह से भी वे इस क्षेत्र के बारे में कम जानते हैं।”

आदिगौड़ ने यह भी कहा कि निर्माण स्थल पर कैंप/शिविर ठीक से दिखता भी नहीं है। इसलिए कि वहां इसके बैनर नहीं लगाए गए हैं, जिससे पता चल सके कि यहां कोई कैंप भी लगा है। विगत 22 मार्च से राष्ट्रीय राजधानी में शुरू किए गए शिविरों की तादाद इस समय 45 है,जहां श्रमिकों के पंजीकरण,  उनकी सदस्यता का नवीकरण और उनका सत्यापन किया जाएगा।आदिगौड़ ने आरोप लगाया कि जिन शिविरों का दौरा करने गए थे, वहां वेब कैमरा जैसे बुनियादी इंतजाम भी नहीं किए गए थे। वेब कैमरा निहायत जरूरी है क्योंकि यह पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन डेटा की रिकॉर्डिंग के साथ पंजीकरण कराने वाले कामगारों की तस्वीर के तस्दीक से भी जुड़ी है।

प्रतिनिधिमंडल द्वारा निर्माणाधीन स्थलों की जांच की बाद तैयार की गई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मोती नगर के शिवाजी मार्ग पर स्थित डीएलएफ ग्रीन कैपिटल सिटी के निर्माण स्थल पर लगे कैंप में सोमवार की शाम 4:00 बजे तक मात्र 42 श्रमिकों के पंजीकरण हो सके थे, जबकि शादीपुर के  राजेहा बिल्डर्स(डीडीए) के एक निर्माणाधीन स्थल पर 4:30 बजे शाम तक मात्र चार कामगारों के नाम रजिस्टर में दर्ज हुए थे।

 इस रिपोर्ट को बनाने वाले सेंटर फॉर हॉलिस्टिक डेवलपमेंट (सीएचडी) के अविनाश कुमार  ने न्यूज़क्लिक को बताया कि  सोमवार इस प्रक्रिया को शुरू करने का पहला दिन था,फिर भी सरजमीनी हालात का जायजा लेने का एकमात्र मकसद आप सरकार को इसके आधार पर सलाह भी देना था कि वह किस तरह इस प्रक्रिया को “सरल” तरीके से कर सकती है।कुमार ने कहा,“हमें अभी भी विभिन्न कैंपों से शिकायतें मिल रही हैं कि सरकार की वेबसाइट के सर्वर डाउन हैं और इस प्रक्रिया में ढेर सारा वक्त लग रहा है। अगर सर्वर की स्पीड तथा उसके काम करने की क्षमता नहीं बढ़ाई गई तो काफी तादाद में कामगार अपना पंजीकरण कराने से वंचित रह जाएंगे।”

सोमवार को सिसोदिया ने कहा कि दिल्ली में निर्माण कार्यों में लगे श्रमिकों की संख्या 10 लाख है, जिनमें 2.12 लाख सरकार के पंजीकरण नेटवर्क से जुड़े हैं। उन्होंने कहा, “ इन पंजीकृत 2.12 लाख श्रमिकों में से  29,000 श्रमिक को अपनी वार्षिक सदस्यता का नवीकरण निर्माण कल्याण बोर्ड से कराना है।” इंडियन एक्सप्रेस ने उनके हवाले से यह खबर दी है।

सीएचडी के संस्थापक सुनील कुमार अलेडिया ने कहा कि दिल्ली सरकार ने पिछली बार की परेशानियों का कोई हल नहीं निकाला है। पिछले साल मई में अलेडिया ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर यह मांग की थी कि निर्माण कार्यों में लगे सभी श्रमिकों को कल्याण बोर्ड के तहत लाया जाए। इस मामले में अगली सुनवाई 22 मार्च को है। उन्होंने कहा,“हम इस तारीख को अदालत के सामने उन चुनौतियों को रखेंगे जिन्हें आप सरकार द्वारा पंजीकरण अभियान को शुरू करने या इसे जारी रहने के दौरान हल किए जाने चाहिए।”

 सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन्स सह राजधानी भवन निर्माण कामगार यूनियन के सिद्धेश्वर शुक्ला जो (डीबीओसीडब्ल्यू) के सदस्य भी हैं, ने न्यूज़क्लिक को बताया कि बोर्ड की पिछली मीटिंग में निर्माणाधीन क्षेत्र के यूनियनों द्वारा एक सिफारिश प्रस्ताव लाया गया था, लेकिन इस पर आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई। उन्होंने कहा, “दिल्ली में निर्माण क्षेत्र में 138 यूनियनें हैं और बिना उनको शामिल किए निर्माण कार्य में लगे सभी कामगारों का पंजीकरण करना असंभव है।”

डीबीओसीडब्ल्यू एक संस्थानिक इकाई है, जिसका बजट 32 सौ करोड़ रुपये का है। इसके तहत सरकार से किसी भी तरह की मदद का फायदा उठाने के लिए निर्माण काम में लगे श्रमिकों का इसका सक्रिय सदस्य होना एक पूर्व शर्त है। बोर्ड के साथ पंजीकृत होने पर श्रमिकों को उनकी चिकित्सा में मदद दी जाती है और महिला श्रमिकों को उनके मातृका अवकाश (मैटरनिटी लीव) के दौरान का पूरा पैसा मिल जाता है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें ।

Delhi Govt’s Drive to Register Construction Workers Has Many Glitches

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