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अमृतपाल सिंह विवाद : कुछ ख़ास हलचल नहीं 

‘वारिस पंजाब दे’ के प्रमुख भिंडरावाले 2.0 नहीं है। उन्हे राष्ट्रीय चिंता का विषय बनाने के बजाय, मीडिया को पंजाब में घट रही घटनाओं की पूरी तस्वीर पेश करनी चाहिए।
Amritpal Singh
फ़ोटो साभार: ट्विटर

राष्ट्रीय समाचार चैनलों का एक तबका (अंग्रेजी और हिंदी दोनों) पंजाब में घट रहे घटनाओं को 'पंजाब उबल रहा है', 'खालिस्तानी अशांति पैदा कर रहे हैं' आदि सुर्खियों के साथ कवर कर रहा है। वैसे तो पंजाब में ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। वारिस पंजाब दे, या पंजाब के वारिस, और इसके प्रमुख अमृतपाल सिंह के सभी कार्यकर्ताओं को पकड़ने के लिए पंजाब पुलिस की कार्रवाई पर राज्य में शायद ही कोई प्रतिक्रिया हुई हो, सिवाय दो जगहों के जहां कुछ लोगों ने विरोध प्रदर्शन करने की कोशिश की, जिन्हे पुलिस ने तुरंत ही अपने कब्जे में ले लिया।

 सभी पंजाबी टीवी चैनल भी 18 मार्च से शुरू हुई पुलिस कार्रवाई को ऐसे कवर कर रहे हैं जैसे इसके अलावा कुछ और मायने नहीं रखता है। बेशक अमृतपाल सिंह ने, कम समय में मीडिया और आम लोगों का इतना ध्यान खींचा कि एक पंजाबी चैनल ने उनका इंटरव्यू तक ले लिया। लेकिन तमाम शोर-शराबे के बीच, प्रेस को दर्शकों और पाठकों को यह याद दिलाना चाहिए कि अमृतपाल सिंह संत जरनैल सिंह भिंडरावाले जैसे कार्यों को क्यों नहीं दोहरा सकते हैं। वक़्त  की मांग तो यही है कि अमृतपाल सिंह और उनके संगठन को राष्ट्रीय चिंता का विषय बनाने के बजाय, 2022 के मध्य से घटी सभी घटनाओं को मीडिया में उपयुक्त स्थान दिया जाना चाहिए।

‘वारिस पंजाब दे’ की स्थापना दिवंगत अभिनेता दीप सिद्धू ने की थी, जो 26 जनवरी 2021 को दिल्ली में किसान आंदोलन के दौरान सुर्खियों में आए थे, जब उन्होंने लाल किले में अपने सहयोगियों के साथ मिलकर खालसा का झंडा फहरा दिया था। फिर उसके बाद उन्होंने सितंबर 2021 में एक अन्य अभिनेता दलजीत कलसी के साथ मिलकर संगठन की स्थापना की थी। गणतंत्र दिवस प्रकरण से पहले, वे कभी भी किसान आंदोलन में शामिल नहीं हुए थे। लेकिन इस घटना के तुरंत बाद, लोगों को पता चला कि उसके संबंध फिल्म स्टार और भारतीय जनता पार्टी के सांसद सनी देओल के साथ हैं। इसके बाद, यह अफवाह उड़ी कि सिद्धू भाजपा से जुड़े हैं और वे किसान आंदोलन को विफल करने की कोशिश कर रहे हैं। फरवरी 2022 में, दिल्ली से पंजाब जाते समय एक सड़क दुर्घटना में सिद्धू की मृत्यु हो गई और दुर्घटना के पीछे इसे बड़ी साजिश बता कर अफवाहें उड़ाई गईं।

ज़ाहिर है अमृतपाल सिंह, सिद्धू के गुजर जाने के बाद ‘वारिस पंजाब दे’ के उत्तराधिकारी बने, लेकिन पंजाब में तब शायद ही उन्हें कोई जानता था। राज्य में इस संगठन का कोई महत्वपूर्ण स्थान नहीं था। इसलिए सिद्धू के उत्तराधिकारी के सवाल को पंजाब में नजरअंदाज कर दिया गया। दिलचस्प बात यह है कि कार्यभार संभालने के बाद, अमृतपाल का नाम सोशल मीडिया पर सिद्धू के "अधूरे काम" को पूरे करने के संदर्भ में प्रसारित होने लगा, जो काम कभी भी स्पष्ट रूप से व्यक्त नहीं किया गया, सिवाय इसके कि मरने से पहले, उन्होंने अकाली दल (अमृतसर) के प्रमुख सिमरनजीत सिंह मान का समर्थन किया था।

अमृतपाल सिंह को सितंबर 2021 से पहले कोई नहीं जानता था, और उस दिन वे संत जरनैल सिंह भिंडरावाले के पैतृक गांव रोड गए थे। यहां, पगड़ी बांधने की रस्म अदा की गई, और नतीजा वे भिंडरावाले जैसे दिखने वाले बने। सांकेतिक स्तर पर संदेश स्पष्ट था, लेकिन समस्या यह थी कि अब समय बदल गया है। हालांकि, यह एक संयोग था जिसने भिंडरावाले के समय और वर्तमान के बीच एक समानांतर रेखा खींचने का मौका दिया। 1977 में जब राज्य में कांग्रेस पार्टी की बड़ी हार हुई थी, तब भिंडरावाले का उदय हुआ था, और उसके बाद  पंजाब में शिरोमणि अकाली दल (SAD) सत्ता में आ गई थी, जबकि केंद्र में जनता पार्टी का शासन क़ायम हुआ था। और 2022 में आम आदमी पार्टी (आप) पंजाब में अकाली दल और कांग्रेस पार्टी को बुरी तरह से हराकर सत्ता में आ गई।

दो और घटनाएं घटी, एक के बाद एक घटी ये घटनाएं दर्शाती हैं कि पंजाब में आम आदमी पार्टी के लिए चीजें बदल रही थीं। पहली घटना में 29 मई 2022 को हुई जिसमें पंजाब के सबसे लोकप्रिय गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या कर दी गई थी। दूसरी घटना जून 2022 के आखिरी सप्ताह में घटी, जब सिमरनजीत सिंह मान ने संगरूर लोकसभा क्षेत्र के संसदीय उपचुनाव में जीत हासिल की थी। मान की जीत कई कारकों से हुई, लेकिन इसके लिए मुख्य रूप से दो कारक जिम्मेदार थे: सिद्धू की मृत्यु से पहले मान को दिया गया उनका समर्थन और मूसेवाला की हत्या, जिसे पंजाब की नव-निर्वाचित आप सरकार द्वारा उनकी सुरक्षा वापस लेने का नतीजा माना गया। हालांकि मान की जीत कोई खास बड़ी जीत नहीं थी क्योंकि वे मात्र 6,000 से कम मतों के अंतर से जीते थे, आम धारणा यह थी इसके लिए आप दोषी थी। इसके अलावा, चुनाव अभियान के दौरान, अकाली दल ने बंदी सिख कैदियों का मुद्दा उठाया था।

ये वे हालात हैं जिनके बाद अमृतपाल सिंह को सिख जनता ने अधिक गंभीरता से लेना शुरू किया। घटनाओं का एक ऐसा ही दौर पिछले वर्ष की दूसरी छमाही में सामने आया था, जिसने सांप्रदायिक मसलों पर टकराव बढ़ने संकेत दिया था। 31 अगस्त 2022 को खालिस्तान समर्थक नारे लगाने वाले नकाबपोश लोगों ने तरनतारन जिले में एक चर्च में तोड़फोड़ की और पादरी की कार को जला दिया था। पंजाब सरकार ने तुरंत इस पर कार्यवाही की और स्थिति को अपने नियंत्रण में ले लिया। ईसाई धर्म में धर्मांतरण का मुद्दा जल्दी ही समाप्त हो गया, मुख्यतः क्योंकि जो लोग परिवर्तित हुए थे वे सबसे निचली जातियों में से थे। हालांकि, अमृतपाल सिंह ने ईसाई धर्म के खिलाफ एक प्रवचन शुरू किया, और प्रतिक्रिया में, अक्टूबर 2022 में, ईसाइयों ने उनकी टिप्पणी का विरोध किया। ईसाई धर्म के खिलाफ उनके भाषण से कुछ वर्गों को विश्वास होने लगा कि अमृतपाल सिंह भाजपा की ही एक प्यादा गई। यह व्यापक संदर्भ इस समझ से लिया गया कि भाजपा पंजाब में 2024 का लोकसभा चुनाव बिना किसी गठबंधन सहयोगी के लड़ने की योजना बना रही है।

इसी साल 24 फरवरी को अमृतपाल सिंह और उनके समर्थकों ने अपने साथियों को पुलिस हवालात से छुड़ाने के लिए अजनाला थाने पर हमला बोल दिया था। चूंकि भीड़ में सिखों के पवित्र ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब को एक पालकी में लाया गया था, इसलिए पुलिस ने जवाबी कार्रवाई नहीं की थी। नतीजतन, कुछ पुलिस कर्मियों को चोटें आईं। अमृतपाल सिंह या उनके सहयोगियों के खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई थी, जिससे यह धारणा बनी कि पंजाब सरकार उनके और ‘वारिस पंजाब दे’ के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई नहीं कर रही है। कुछ दिन बाद अमृतपाल ने कहा कि अगर केंद्र की सत्ता में बैठी पार्टी भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहती है तो उनकी खालिस्तान की मांग भी जायज है। उन्होंने सरकार को कार्रवाई के खिलाफ चेतावनी दी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की याद दिलाई।

किसी भी राजनीतिक व्यवस्था के लिए कार्रवाई करने का इतना भर बहाना काफी होता है, लेकिन पंजाब सरकार ने रणनीति बनाने में कुछ समय लिया। इसने केंद्र सरकार से भी संपर्क किया और आखिरकार 18 मार्च को कार्रवाई की, जो आज भी जारी है। हालांकि अमृतपाल सिंह अभी भी फरार है, उसके अधिकांश सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया गया है, और कुछ पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है।

पहली बात, अमृतपाल सिंह का कोई धार्मिक अनुयायी नहीं है। जबकि, भिंडरावाले को दमदमी टकसाल, चौक मेहता में सिख धार्मिक शिक्षाओं और गुरबानी में प्रशिक्षित किया गया था। जब उन्होंने टकसाल के प्रमुख के रूप में पदभार संभाला, तो उनके पूर्ववर्ती के पास पहले से ही बड़ी संख्या में अनुयायी थे। दूसरे, भिंडरावाले सिख धार्मिक मुद्दों को समझा सकते थे और अपने अनुयायियों को धर्मोपदेश दे सकते थे। उन्होंने केंद्र सरकार के खिलाफ सिखों की शिकायतों के एक शक्तिशाली पैकेज के साथ राजनीतिक परिदृश्य में प्रवेश किया था। तीसरा, उन्होंने अपने संघर्ष के अंतिम चरण में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में प्रवेश किया, जिसे वे सिखों के लिए सही मानते थे। इसके ठीक विपरीत, अमृतपाल सिंह सिख आस्था से गौण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, जालंधर में, उसने और उसके साथियों ने एक छोटी सिगरेट की दुकान में तोड़फोड़ की और एक गुरुद्वारे में बुजुर्गों और गठिया से पीड़ित लोगों के लिए लगाई गई बेंचों को हटा दिया और जला दिया, जो हरकत किसी को पसंद नहीं आई। हालांकि उन्होंने भिंडरावाले की तरह दिखने की कोशिश की है, लेकिन लोगों को साथ लेकर चलना उनके लिए नामुमकिन है।

हालांकि, यह सच है कि अमृतपाल सिंह अलगाववादी रुझान वाले मुद्दों के साथ सिख धर्म के अपने ब्रांड को फैलाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। वे अपने साथियों के साथ पंजाब के गांवों में घूम रहे थे। वे कुछ दिन गांव में रहते और फिर चले जाते। (किसी समय, उन्होंने इंग्लैंड की एक महिला से शादी भी की थी।) सोशल मीडिया पर उनकी पहले की लोकप्रियता और सिख डायस्पोरा में कुछ लोगों ने जिस तरह से उनका समर्थन किया, उससे सरकार के इस दावे को बहुत बल मिला कि उन्हें विदेशों से पैसा मिल रहा था। देर-सबेर उन्हे गिरफ्तार कर लिया जाएगा, और फिर जेल में लंबे समय तक रहना पड़ेगा।

 (लेखक, गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर में समाजशास्त्र के प्रोफेसर रहे हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :

Amritpal Singh Controversy: Much Ado About Very Little

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