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दिल्ली हिंसा: संसद में चर्चा को लेकर गतिरोध तीसरे दिन भी जारी

दिल्ली हिंसा पर जल्द चर्चा की मांग को लेकर लोकसभा को दो बार स्थगन और राज्यसभा को कुछ ही मिनट की बैठक के बाद पूरे दिन के लिए स्थगित कर दिया गया। सरकार दिल्ली हिंसा पर होली के बाद चर्चा कराना चाह रही है।
DELHI

 दिल्ली: दिल्ली हिंसा पर जल्द चर्चा कराने की मांग को लेकर विपक्षी सदस्यों के हंगामे के कारण गतिरोध बना रहा और लोकसभा को दो बार के स्थगन के बाद तथा राज्यसभा को बैठक शुरू होने के कुछ ही मिनट बाद पूरे दिन के लिए स्थगित कर दिया गया। लोकसभा में हंगामे के बीच ही सदन ने ‘प्रत्यक्ष कर विवाद से विश्वास विधेयक’ को मंजूरी दी।

संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण की शुरुआत से ही कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल दोनों सदन में दिल्ली हिंसा के मुद्दे पर तत्काल चर्चा शुरू कराने की मांग को लेकर हंगामा कर रहे हैं। विपक्ष के हंगामे के कारण बुधवार को लोकसभा में शून्यकाल और प्रश्नकाल नहीं चल सके जबकि राज्यसभा शून्यकाल में ही पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी गयी।

संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने बुधवार को लोकसभा में कहा कि सरकार सामान्य स्थिति बहाल होने पर होली के बाद दिल्ली की दुर्भाग्यपूर्ण घटना पर चर्चा कराने को तैयार है और अभी (विपक्ष को) सदन की कार्यवाही चलने देनी चाहिए।

जोशी ने कहा, ‘सरकार 11 मार्च को लोकसभा में और 12 मार्च को राज्यसभा में दिल्ली हिंसा के मुद्दे पर चर्चा के लिए तैयार है।’ उन्होंने कहा कि संवैधानिक दायित्व हैं और विधेयक पारित करना है। जोशी ने कहा कि हम चर्चा को तैयार हैं लेकिन विपक्ष सदन नहीं चलने देना चाहता।
 
इससे पहले, बुधवार सुबह लोकसभा की कार्यवाही शुरू होने पर कांग्रेस सहित विपक्षी दलों के सदस्य दिल्ली हिंसा के मुद्दे पर चर्चा कराने की मांग करने लगे। कांग्रेस सदस्य अध्यक्ष के आसन के पास आकर नारेबाजी करने लगे।

इस बीच, पीठासीन सभापति किरीट सोलंकी ने शोर-शराबा करने वाले सदस्यों से अपने स्थान पर जाने तथा कार्यवाही चलने देने का आग्रह किया। उन्होंने इस दौरान दो प्रश्न भी लिये। शोर-शराबा थमता नहीं देख पीठासीन सभापति ने कार्यवाही शुरू होने के कुछ ही मिनट बाद दोपहर 12 बजे तक के लिए स्थगित कर दी।

दोपहर 12 बजे कार्यवाही पुन: शुरू होने पर सदन में वैसा ही नजारा देखने को मिला और पीठासीन सभापति सोलंकी ने सदन की कार्यवाही दोपहर दो बजे तक के लिए स्थगित कर दी। दो बार के स्थगन के बाद दोपहर दो बजे सदन की बैठक शुरू हुई तो कांग्रेस, द्रमुक, वाम दलों समेत विपक्षी दलों की आसन के समीप नारेबाजी के बीच ही पीठासीन सभापति मीनाक्षी लेखी ने आवश्यक कागजात सदन के पटल पर पेश कराने के बाद ‘प्रत्यक्ष कर विवाद से विश्वास विधेयक, 2020’ को लिया।

सदन ने कुछ विपक्षी सदस्यों के संशोधनों को अस्वीकृत करने के साथ उक्त विधेयक को शोर-शराबे के बीच ही ध्वनिमत से मंजूरी प्रदान कर दी। मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री संजय धोत्रे ने ‘भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान विधियां (संशोधन) विधेयक, 2020’ को हंगामे के बीच ही सदन में पेश किया।

हालांकि विपक्षी सदस्यों की नारेबाजी जारी रही और हंगामे के कारण पीठासीन सभापति लेखी ने सदन की बैठक दिनभर के लिए स्थगित कर दी। राज्यसभा में सभापति एम वेंकैया नायडू ने जरूरी दस्तावेज सदन के पटल पर रखवाने के बाद घोषणा की कि उन्हें नियम 267 के तहत कुछ नोटिस मिले हैं जिन्हें उन्होंने स्वीकार नहीं किया है। लेकिन मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए दिल्ली में हिंसा विषय पर सदन में चर्चा होगी।

उन्होंने कहा कि वह इस संबंध में विभिन्न दलों के नेताओं के साथ मिलेंगे और तय करेंगे कि किस नियम के तहत इस मुद्दे पर चर्चा हो। उन्होंने होली के बाद इस पर चर्चा कराने की बात की। इसके बाद कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस सहित विभिन्न विपक्षी दलों के सदस्यों ने हंगामा शुरू कर दिया। तृणमूल के कुछ सदस्य आसन के पास भी आ गए।

नायडू ने हंगामा कर रहे सदस्यों से शांत रहने और सदन चलने देने की अपील की। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर चर्चा होगी लेकिन उसके लिए यह तय करना होगा कि किस नियम और प्रक्रिया के तहत यह चर्चा हो। लेकिन सदस्यों का हंगामा जारी रहा। नायडू ने कहा कि शून्यकाल के तहत कुल 16 मुद्दे स्वीकार किए गए हैं जिनमें कोरोना वायरस जैसे अहम मुद्दे भी हैं।

उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि कुछ सदस्य नहीं चाहते कि सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चले। वे यह तय कर के आए हैं कि चर्चा नहीं होने देनी है। उन्होंने कहा कि परीक्षाएं चल रही हैं और छात्रों के मन में तनाव है। लेकिन यहां सदस्यों का हंगामा जारी है।  इसके बाद उन्होंने 11 बजकर करीब 10 मिनट पर बैठक पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी।

 संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण सोमवार को शुरू हुआ और तभी से विपक्ष दिल्ली हिंसा के मुद्दे पर तत्काल चर्चा कराने की मांग कर रहा है। हंगामे की वजह से दोनों सदनों में शून्यकाल और प्रश्नकाल भी बाधित हैं।

दंगा पीड़ितों को मुआवजा देने में कुछ गलत नहीं, याचिका खारिज: हाई कोर्ट

दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को कहा कि उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगा पीड़ितों के लिए मु‍‍आवजे की घोषणा करने के आप सरकार के निर्णय में कुछ भी गलत नहीं है।  मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ ने उस जनहित याचिका को स्वीकार करने से इनकार कर दिया जिसमें दिल्ली सरकार की तरफ से घोषित मुआवजे को चुनौती दी गई थी।

पीठ ने कहा, “यह नीतिगत मामला है और हम इसमें दखल नहीं देंगे।” अदालत ने कहा कि मुआवजा गलत आधार पर नहीं दिया जा रहा है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। याचिकाकर्ता भाजपा नेता और पूर्व विधायक नंद किशोर गर्ग ने दलील दी थी कि मुआवजे का भुगतान करने से पहले दंगा पीड़ितों की पहचान की जाए और सुनिश्चित किया जाए कि हिंसा के ‘अपराधियों’ को राहत नहीं मिले।

पीठ ने दलील से असहमति जताते हुए कहा कि अगर याचिकाकर्ता के सुझाव को मान लिया जाता है तो योजना पूरी तरह से अव्यवहार्य हो जाएगी। अदालत ने कहा, “ इसे लागू करना पूरी तरह से असंभव हो जाएगा।” उसने कहा कि यह दिल्ली सरकार का नीतिगत मामला है।

अदालत ने कहा, “ हम उम्मीद करते हैं कि दंगा पीड़ितों की मदद के लिए दिल्ली सरकार की सहायता योजना सिर्फ दंगा पीड़ितों की मदद के लिए ही होगी।” पीठ ने कहा, “ हमें रिट याचिका को स्वीकार करने का कोई कारण नहीं दिखता है।” इसके साथ ही पीठ ने वकील शशांक देव सुधी के जरिए दायर याचिका खारिज कर दी।

कड़ी सुरक्षा के बीच पटरी पर लौट रही लोगों की जिंदगी

उत्तर पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा के बाद लोगों का जीवन आहिस्ता-आहिस्ता पटरी पर लौट रहा है। वहीं कड़ी सुरक्षा के बीच सरकार की ओर से राहत और पुनर्वास का काम भी शुरू हो गया है। इसके अलावा हिंसा प्रभावित इलाकों में सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में बुधवार को अभिभावक शिक्षक (पीटीएम) बैठक का आयोजन कराया जा रहा है।

पुलिस जाफराबाद, मौजपुर बाबरपुर, चांद बाग, शिव विहार, भजनपुरा, यमुना विहार और मुस्तफाबाद में फ्लैग मार्च कर रही हैं और स्थानीय लोगों के साथ बैठकें कर रही हैं। इन इलाकों में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) से संबंधित प्रदर्शनों को लेकर हिंसा भड़की।

मुस्तफाबाद में एक ईदगाह को राहत शिविर में तब्दील किया गया है। वहीं स्थानीय लोगों ने भी हिंसा प्रभावित लोगों के लिए अपने घरों के दरवाजे खोल दिए हैं। कई परिवारों ने मुस्तफाबाद और श्रीराम कॉलोनी के राहत शिविरों में शरण ली है। वहीं कुछ लोग अपने रिश्तेदारों के घरों में हैं।

विद्यार्थी बोर्ड की उन परीक्षाओं की तैयारियां कर रहे हैं, जिन्हें दंगा प्रभावित इलाकों में टाल दिया गया था। पुलिस और अर्द्धसैनिक बल परीक्षा केंद्रों के बाहर कड़ी निगरानी रख रहे हैं। बहरहाल, सरकारी स्कूल सात मार्च तक बंद हैं। शिक्षा निदेशालय के एक अधिकारी ने बताया, “इलाके में हिंसा के मद्देनजर शिक्षक अभिभावकों और विद्यार्थियों की काउंसलिंग करेंगे।”

कुछ लोग नुकसान का जायजा लेने के लिए अपने जले हुए घरों में जा रहे हैं। इनमें से कई लोग हिंसा की वजह से भाग गए थे और अपने घर वापस जाने में डर रहे थे। दिल्ली पुलिस ने सांप्रदायिक हिंसा के संबंध में 436 प्राथमिकियां दर्ज की हैं और 1427 लोगों को गिरफ्तार किया है या हिरासत में लिया है। हिंसा में 42 लोगों की मौत हो गई और 200 से ज्यादा घायल हैं।
 
एक अधिकारी ने बताया कि शस्त्र कानून के तहत 45 मामले दर्ज किए गए हैं। बल ने कहा कि दंगा प्रभावित इलाकों में स्थिति नियंत्रण में है और पुलिस नियंत्रण कक्ष को पिछले छह दिनों में दंगों से संबंधित कोई कॉल नहीं आई है।

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ) 

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