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‘एक देश, एक राशन कार्ड’ में क्या अड़चने हैं?

‘अभी तक जो खबरें आई हैं उसके हिसाब से आधार कार्ड को ही इस योजना का बेस बताया जा रहा है। लेकिन पीडीएस में आधार को लेकर कई सवाल पहले से ही हैं।'
प्रतीकात्मक तस्वीर
(फोटो साभार: muthaloosai.com)

केंद्र की सत्तारूढ़ नरेंद्र मोदी सरकार ने अब उपभोक्ताओं की सहूलियत के लिए ‘एक देश, एक राशन कार्ड’ योजना शुरू करने का फैसला लिया है। दावा किया जा रहा है कि इस योजना के लागू होने के बाद उपभोक्ता किसी दूसरे राज्य के किसी भी राशन दुकान से रियायती दरों पर अनाज उठा सकते हैं। 

खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने इस संबंध में गुरुवार को एक बैठक की। इस बैठक में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई), केंद्रीय भंडारण निगम (सीडब्ल्यूसी) और राज्य भंडारण निगम (एसडब्ल्यूसी) के अधिकारीगण भी उपस्थित थे।

बैठक के बाद राम विलास पासवान ने कहा कि सरकार उपभोक्ताओं के हितों के लिए हर संभव कार्य करेगी। उन्होंने कहा कि इस योजना से उपभोक्ताओं को किसी एक दुकान से बांध कर नहीं रखा जा सकता है। राशन दुकानदारों की मनमानी और चोरी को बंद करने में मदद मिलेगी।

यानी योजना के लागू होने के बाद लाभार्थी देश भर में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) का उपयोग कर सकेंगे और अपनी पसंद की किसी भी राशन की दुकान से अनाज ले पाएंगे।

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में रामविलास पासवान ने कहा, ‘एक देश, एक राशन कार्ड योजना से जुड़ी औपचारिकताओं को एक साल में पूरा करने का लक्ष्य है। इसे लागू करने के लिए सभी पीडीएस दुकानों पर पीओएस (पॉइंट ऑफ सेल) मशीनें लगाने की जरूरत है। आंध्र प्रदेश, हरियाणा और कुछ अन्य राज्यों की पीडीएस दुकानों पर पीओएस मशीनें लगी हैं। लेकिन पूरे देश में सौ प्रतिशत उपलब्धता सुनिश्चित करने की जरूरत है।’

वहीं, समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक पासवान ने कहा कि 'इसका सबसे बड़ा लाभार्थी वे प्रवासी मजदूर होंगे जो बेहतर रोजगार के अवसर तलाशने के लिए दूसरे राज्यों में जाते हैं और वे अपनी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित पाएंगे।'

दैनिक जागरण के मुताबिक, पासवान ने बताया, 'देश के आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, राजस्थान, तेलंगाना और त्रिपुरा में यह कार्यक्रम इंटीग्रेटड मैनेजमेंट ऑफ पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (आईएमपीडीएस) के नाम से जाना जाता है। सफलता पूर्वक चल रही इस व्यवस्था में राज्य के भीतर किसी भी जिले से उपभोक्ता अपने हिस्से का राशन किसी भी दुकान से प्राप्त कर सकता है। बैठक में आए सभी खाद्य सचिवों को यह व्यवस्था बहुत अच्छी लगी और उन्होंने अपने राज्य में लागू करने की हामी भरी है।'

सरकार द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि गुरुवार को पासवान ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के कुशल क्रियान्वयन, पूर्ण कम्प्यूटरीकरण, खाद्यान्नों के भंडारण और वितरण में पारदर्शिता और एफसीआई, सीडब्ल्यूसी और एसडब्ल्यूसी डिपो के डिपो ऑनलाइन सिस्टम (डॉस) के साथ समन्वय सहित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की।

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इस बयान में कहा गया है, 'खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग वन नेशन वन राशन कार्ड के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए युद्ध स्तर पर काम कर रहा है और अगले दो महीनों में तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के लाभार्थी पीडीएस की दुकानों का उपयोग कर पाएंगे।' विभाग का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि इसे समयबद्ध तरीके से राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जाए।

आपको बता दें कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) का अर्थ सस्ती कीमतों पर खाद्य और खाद्यान्न वितरण के प्रबंधन की व्यवस्था करना है। गेहूं, चावल, चीनी और मिट्टी के तेल जैसी प्रमुख चीज़ों को इस योजना के माध्यम से सार्वजनिक वितरण की दुकानों द्वारा पूरे देश में पहुंचाया जाता है।

इस योजना का संचालन उपभोक्ता मामलों, खाद्य और सार्वजनिक वितरण के मंत्रालय द्वारा किया जाता है। इस योजना का मुख्य मकसद सस्ती दरों पर देश के कमजोर वर्ग को खाद्यान्न उपलब्ध कराना है। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक भारत के पास 5 लाख दुकानों का दुनिया का सबसे बड़ा वितरण नेटवर्क है।

अब पीडीएस को लेकर सरकार द्वारा किया जा रहा दावा तो बहुत बढ़िया दिख रहा है लेकिन क्या ऐसी प्रणाली को लागू कर पाना आसान है? क्या सरकार इसे लेकर वाकई में गंभीर है? और क्या यह व्यवहारिक है? ऐसे तमाम सवाल उठना शुरू हो गए हैं। क्योंकि इस सरकार द्वारा दावे तो बहुत बड़े-बड़े किए जाते हैं लेकिन वास्तविकता उससे बिल्कुल अलग होती है। फिलहाल पीडीएस को लेकर सरकार के इस नए दावे को विशेषज्ञ आशंका भरी नजरों से देख रहे हैं। 

झारखंड में मनरेगा और पीडीएस पर कई सालों से काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता सिराज दत्ता कहते हैं, 'अभी तक इस योजना को लेकर सिर्फ हेडलाइन ही सामने आई हैं। अभी इसकी बहुत डिटेल सामने नहीं आई है। सरकार जो दावा कर रही है वैसा हो जाए तो बेहतर है। इस पर सबसे पहली बात जो गड़बड़ है और खबरों में आया भी है कि झारखंड में इंटीग्रेटड मैनेजमेंट ऑफ पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम लागू है, यह गलत है। यहां अब भी राशन की दुकान फिक्स है। लाभार्थी को उसी दुकान से राशन उठाना पड़ता है।'

उन्होंने आगे कहा, 'पीडीएस के अभी के स्वरूप के हिसाब से इस योजना को लागू करने में व्यवहारिक रूप से कई दिक्कते हैं। अभी राशन की दुकानों को उसी हिसाब से आवंटन मिलता है कि उसके कितने लाभार्थी हैं। ऐसा नहीं होने पर दुकानों का कोटा घट जाता है। अब अगर कोई भी लाभार्थी दो बार किसी दुकान पर नहीं गया और तीसरी बार उस दुकान पर गया तो शायद उनके पास राशन ही नहीं बचा रहे। तीसरी बात आधार कार्ड को लेकर है। अभी तक जो खबरें आई हैं उसके हिसाब से आधार कार्ड को ही इस योजना का बेस बताया जा रहा है। लेकिन पीडीएस में आधार को लेकर कई सवाल पहले से ही हैं। सरकार ने उन सवालों को हल किए बगैर एक नई योजना की शुरुआत आधार के बेस पर कर ली है।'

कुछ ऐसा ही मानना अर्थशास्त्री रितिका खेड़ा का है। उन्होंने बताया, 'इस योजना को लागू करने के लिए सरकार को पूरे सप्लाई चेन को चेंज करना पड़ेगा। अभी के हिसाब से किसी सस्ते राशन की दुकान पर कितने राशन कार्ड हैं और कितना राशन आएगा यह तय होता है। अगर पड़ोस के गांव के लोग भी उसी दुकान पर आ जाएंगे तो वहां राशन को लेकर दिक्कत हो जाएगी। दूसरी बात सरकार ने बताया है कि इस योजना का लाभ प्रवासी मजदूरों को मिलेगा तो इसमें भी व्यवहारिक दिक्कत यह है कि अगर पलायन पूरे परिवार का होता है तो वह दूसरे राज्य में इसका लाभ मिल सकता है लेकिन अगर परिवार के एक या दो सदस्य पलायन करेंगे तो उनको इसका लाभ नहीं मिल पाएगा।'

रितिका आगे कहती हैं, 'अगर परिवार के एक या दो सदस्य पलायन करते हैं तो पीछे गांव में उनका परिवार राशन कार्ड से सस्ता अनाज ले आता है, उससे उनका परिवार चलता है। सरकार को पीडीएस में सुधार के साथ तमिलनाडु में चल रही अम्मा कैंटीन योजना जैसे विकल्पों के बारे में भी सोचना चाहिए। ताकि प्रवासी मजदूरों को सस्ते दर पर पका पकाया भोजन मिल सके।'

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