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एयर इंडिया की बिक्री: 100 फीसदी हिस्सेदारी बेचना अच्छा आइडिया नहीं

दुनिया भर में निजीकरण या विलय के ज्यादातर मामलों में सरकारों ने निजीकरण की जाने वाली एयरलाइनों में थोड़ा हिस्सा अपने पास ज़रूर रखा है।
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Image Courtesy: Live Mint

अपने पहले कार्यकाल के दौरान एयर इंडिया को बेचने की असफल कोशिश के बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने दूसरे कार्यकाल में इस प्रक्रिया को तेज़ करने का फैसला किया है। गृह मंत्री अमित शाह की अगुवाई में मंत्रियों के एक समूह (जोओआई) ने इस मामले को आगे बढ़ाने को लेकर एक बैठक की और अगली बैठक में फिर से चर्चा करने को कहा गया है।

नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि सभी विनिवेश तय समय सीमा के भीतर होंगे। एयर इंडिया के लिए इस एजेंडे में एयर इंडिया एसेट्स होल्डिंग्स लिमिटेड (एआईएएचएल) को अपने अतिरिक्त ऋण का हस्तांतरण शामिल है। यानी, पहले तय किए गए 29,464 करोड़ रुपये से अधिक का ऋण। सरकार का मानना है यह सौदा बोली लगाने वाले निजी कंपनियों के लिए और अधिक आकर्षक बना देगा।

एयर इंडिया की बिक्री को लेकर मंत्रियों का पैनल बनाया गया जिसमें पुरी के अलावा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, वाणिज्य और रेल मंत्री पीयूष गोयल व अन्य शामिल हैं जिन्होंने कॉर्पोरेशन के कर्मचारियों की संभावनाओं पर भी चर्चा की। नाम न छापने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा कि सरकार अक्टूबर के अंत तक एक्सप्रेशन ऑफ इंटेरेस्ट (ईओआई-प्रारंभिक लेनदेन दस्तावेज़) जारी करने की योजना बना रही है।

ऐसा लगता है कि सरकार ने पिछले अनुभव से कुछ सीखा है। यह एयर इंडिया में अपने हिस्से बेचने के इस प्रयास में बोली लगाने वालों के लिए पात्रता मानदंड में भारी ढील देगी। पिछली बार इसने एयर इंडिया का 76% हिस्सा बेचने की कोशिश की थी लेकिन किसी भी निजी संस्था ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। इस बार सरकार क़र्ज़ में डूबी राष्ट्रीय विमानन कंपनी में अपनी 100% हिस्सेदारी बेचने पर विचार कर रही है।

सरकार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नियमों में और ढील दे सकती है ताकि विदेशी निवेशकों को इस कंपनी के प्रबंधन में प्रमुख कुर्सी मिल सके।

अधिकारी का कहना है कि प्रमुख लंबित निर्णयों में से एयर इंडिया के लिए उचित मूल्य तय करना और उसके क़र्ज़ का प्रबंधन करना शामिल है। विनिवेश की प्रक्रिया का सटीक ढांचा और इसके कर्मचारियों को शामिल रखने का मामला है। एक निश्चित आयु से ऊपर के कर्मचारियों के लिए सुनहरा मौका मिलना और जो पहले से ही सेवानिवृत्त हो गए हैं या आने वाले वर्ष में सेवानिवृत्त होंगे उन्हें चिकित्सा सुविधा देने की योजना है।

अभी भी एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा एयर इंडिया की सहायक कंपनियों, एआई एक्सप्रेस, एएएसएल, एआईएसएटीएस, एआईईएसएल और होटल कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया का पृथक्करण और निजीकरण है। ऐसे संकेत हैं कि पूरी प्रक्रिया इस वित्तीय वर्ष तक चलेगी।

ग्रेपवाइन का कहना है कि खाड़ी देश की एक प्रमुख विमानन कंपनी और मुंबई की एक प्रमुख भारतीय बहुराष्ट्रीय समूह ने इस राष्ट्रीय विमानन कंपनी में हिस्सा लेने में काफी रुचि दिखाई है। घाटे में चल रही एयर इंडिया पिछले कुछ वर्षों से 30,000 करोड़ रुपये की बेलआउट योजना पर टिकी हुई है जिसे पिछली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने 2012 में अपने दूसरे कार्यकाल में मंज़ूरी दी थी। एयर इंडिया का कुल ऋण लगभग 60,000 करोड़ रुपये है जिसमें दीर्घकालिक और अल्पकालिक कार्यशील पूंजी ऋण शामिल हैं।

अब तक ऐसा कोई संकेत नहीं है कि एयर इंडिया के कर्मचारी जो निजीकरण का विरोध कर रहे हैं इनमें से किसी भी घटनाक्रम से ज्ञात हैं। हाल ही में कंपनी के 13 कर्मचारी यूनियनों के प्रतिनिधियों ने अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक (सीएमडी) अश्वनी लोहानी से मुलाक़ात की। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि वे इस विनिवेश का विरोध करते हैं।

इस बैठक में शामिल होने वाले एक यूनियन नेता का कहना है, 'हम इस मुद्दे (निजीकरण) पर हार मानने के लिए तैयार नहीं हैं, हम सरकार की मूल योजना का विरोध करते हैं। निजीकरण समाधान नहीं है। जेट एयरवेज के साथ क्या हुआ है, इस पर एक नज़र डालिए।'

सरकार को ध्यान देना चाहिए कि भारत में असफल निजी एयरलाइंस की सूची काफी लंबी है। दमनिया, ईस्ट-वेस्ट, एनईपीसी, एयर डेक्कन, पैरामाउंट, किंगफिशर और अब जेट एयरवेज सहित प्रमुख एयरलाइनें बंद हो गई हैं। जब सरकार ने एयर इंडिया में अपनी हिस्सेदारी बेचने का फैसला किया और घाटे में चल रहे उपक्रम के लिए रामबाण के रूप में प्रस्तुत किया तो यह बिल्कुल साफ है कि सरकार यह विचार करने में विफल रही है कि निजी एयरलाइन कंपनियों की भारी असफलताओं के कारण आख़िर क्या था।

अंतरराष्ट्रीय अनुभव

निजीकरण का व्यापक उद्देश्य निजी क्षेत्र की पूंजी, निजी प्रबंधन या दोनों का इस्तेमाल करने में सक्षम होना है। कई सरकारों ने क्रुशियल क्नेक्टिविटी को सक्षम करने के लिए और इसके वाहकों में राष्ट्रीय गौरव के लिए भी आर्थिक नीति के सिद्धांत के रूप में स्वामित्व बनाए रखा है। इसके कई सूत्र हैं, खासकर विदेशी स्वामित्व के संबंध में जो आमतौर पर छाया हुआ है। एक विकल्प एकमुश्त बिक्री है और दूसरी तरफ शेयरों की सार्वजनिक सूची है और बीच का विकल्प सभी या राज्य के हिस्से का हिस्सा बेचने का विकल्प है।

राज्य का स्वामित्व दुनिया भर में कई राष्ट्रीय एयरलाइनों के लिए डिफ़ॉल्ट संरचना है। अधिकांश प्रमुख एयरलाइनों का आज आंशिक निजीकरण हो गया है और जो विशिष्ट मार्ग अपनाया गया है वह इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग या आईपीओ है लेकिन सभी फॉर्मूला में एक आकार फिट नहीं बैठता है। बहुसंख्यक एयरलाइनों में आम विशेषता यह है कि कर्मचारी और उनकी यूनियनें इस प्रक्रिया में शामिल थीं भले ही उनके सभी सुझावों को स्वीकार न किया गया हो।

राज्य स्वामित्व (आंशिक या संपूर्ण) राष्ट्रीय एयरलाइंस के लिए डिफ़ॉल्ट मॉडल बना हुआ है हालांकि यह क्षेत्र और उप-क्षेत्र के अनुसार अलग अलग होता है। उत्तरी अमेरिका में निजी स्वामित्व एक प्रमुख मॉडल है। संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) की एयरलाइन कंपनियां कभी भी राज्य के स्वामित्व में नहीं थीं हालांकि एयर कनाडा कभी था।

कर्मचारियों का संगठन

यूएस में यूनाइटेड एयरलाइंस के पास स्वामित्व का एक दिलचस्प मॉडल है। इसकी मूल कंपनी यूनाइटेड एयरलाइंस होल्डिंग्स एनवाईएसए में सूचीबद्ध है। 1994 में यूनाइटेड के पायलट, इंजीनियर, बैग-हैंडलर और गैर-अनुबंध कर्मचारियों ने 15 से 25% वेतन रियायतों के बदले में कंपनी के 55% शेयर हासिल करने पर सहमति व्यक्त की थी। परिणामस्वरूप एम्प्लाई स्टॉक ओनरशिप प्लान (ईएसओपी) ने यूनाइटेड एयरलाइंस को दुनिया का सबसे बड़ा कर्मचारी-स्वामित्व वाला निगम बना दिया।

"यूनाइटेड के कर्मचारी-मालिक आपको अनुकूल आसमान में उड़ान भरने के लिए आमंत्रित करते हैं" और "हम सिर्फ यहां काम ही नहीं करते" और "यूनाइटेड एयरलाइंस का इस्तेमाल करने के लिए धन्यवाद; कृपया संयम रखें और हमारे स्वामी-प्रतिनिधियों में से एक शीघ्र ही आपके बीच होंगे” जैसे नारों को लॉन्च करते हुए यूनाइटेड ने अपने मार्केटिंग-संचार में अपने कर्मचारी-स्वामित्व का इस्तेमाल किया।

इस तरह के स्वामित्व पैटर्न ने भारतीय मूल के एक अमेरिकी रोनोजॉय दत्ता को साधारण पद से ऊपर उठने मदद की और 1999 से 2002 तक वे यूनाइटेड के अध्यक्ष रहे। सेवानिवृत्त होने के बाद दत्ता इंडिगो एयरलाइंस के सीईओ बन गए।

पश्चिम एशिया और खाड़ी देशों में प्रमुख विमानन कंपनी अमीरात, कतर एयरवेज और एतिहाद अपनी पूंजी को निजी क्षेत्र के लिए खोले बिना तेज़ी से बढ़े हालांकि इन्होंने बड़े पैमाने पर प्रबंधन प्रतिभा को आमंत्रित किया।

यूरोप ने सबसे अधिक एयरलाइंस का निजीकरण किया, लेकिन काफी एयरलाइनों में सरकारों ने अपना हिस्सा भी बरकरार रखा। उदाहरण के लिए, फिनलैंड की सरकार का फिनएयर में 55.8%, टीएपी पुर्तगाल (50%), एसएएस (42.8% स्वीडन, डेनमार्क और नॉर्वे द्वारा संयुक्त रूप से) और एयर फ्रांस-केएलएम (17.6%) है। 2013 में एयर सर्बिया का आंशिक निजीकरण कर दिया गया और सरकार ने एतिहाद को 49% हिस्सेदारी बेच दी।

निजीकरण का प्रभावी पैटर्न आईपीओ या शेयर बाजार के अस्थायी शेयर हैं। टीएपी पुर्तगाल को अटलांटिक गेटवे कंसोर्टियम में एक रणनीतिक साझेदार मिला और वर्तमान में पुर्तगाल सरकार के पास इसके 50% शेयर हैं (और कर्मचारी भी 5% के मालिक हैं)। इस तरह के उपायों से सरकार को एयरलाइन में निवेश के लिए निजी क्षेत्र के फंड तक पहुंच का रास्ता साफ हुआ और साथ ही शेयरहोल्डिंग के बदले में इसे नक़द मिला है।

इन सभी मामलों में रणनीतिक साझेदार आम तौर पर अन्य एयरलाइन थी जिसे अक्सर एक वाणिज्यिक साझेदारी में लाया जाता था। 1987 में ब्रिटिश एयरवेज (बीए) का आईपीओ ब्रिटिश सरकार द्वारा निजीकरण का एक प्रमुख उदाहरण था। उस समय प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर थीं।

हालांकि बीए के शेयर बाजार का प्रवाह 11 गुना अधिक था। इस निजीकरण की सफलता की बुनियाद 1983 में इसके मुख्य कार्यकारी अधिकारी या सीईओ कॉलिन मार्शल की नियुक्ति थी। उस समय एक एयरलाइन उद्योग के बाहरी व्यक्ति ने अपने निजीकरण से पहले बीए में नौकरशाही संस्कृति को बदलने में मदद की।

वर्ष 2011 में बीए और इबेरिया इंटरनेशनल एयरलाइंस ग्रुप (आईएजी) के रूप में विलय हो गया। अब कतर एयरवेज का आईएजी में 20% स्वामित्व है। लुफ्थांसा और केएलएम जैसे अन्य विमानन ने ऐसा ही किया। फिर, विलय का एक दौर हुआ, 2004 में केएलएम के साथ एयर फ्रांस के विलय और 2006 में लुफ्थांसा द्वारा एसडब्ल्यूआईएसएस की खरीद, 2009 में ऑस्ट्रियाई और 2017 में ब्रसेल्स एयरलाइंस को खरीदा। तुर्की एयरलाइंस और रूस की एअरोफ़्लोट को अपनी सरकारों के क्रमशः 49% और 51 % आंशिक रूप से हिस्से हैं।

पूर्व में एयर इंडिया के विनिवेश में असफल प्रयास की तरह इटली की राष्ट्रीय विमानन कंपनी अलिटालिया में सरकारी हिस्सेदारी की प्रस्तावित बिक्री में गिरावट आई है। वर्तमान में, अलिटालिया के मालिक फेरोवी डेलो स्टेटो इटालियन (इटली की सरकारी रेलवे कंपनी है, जो 35% हिस्सेदारी रखती है), इटली की मिनिस्ट्री ऑफ इकोनॉमी (15%) और यूएस की डेल्टा एयर लाइन्स की 10% हिस्सेदारी है। फेरोवी डेलो स्टेटो कथित तौर पर 40% हिस्सेदारी मुहैया कराने के लिए निवेशकों को तलाश रहा है।

एयरलाइन निजीकरण का एशिया में मिश्रित परिणाम रहा है। हालांकि इस क्षेत्र में कई सूचीबद्ध एयरलाइन हैं, लेकिन अपने संबंधित स्वामित्व संरचनाओं के बावजूद इसमें सरकारी हितों के साथ राष्ट्रीय एयरलाइन रणनीति का एक मजबूत गठबंधन भी है।

चीन की तीन प्रमुख विमानन कंपनियां एयर चाइना, चाइन ईस्टर्न और चाइना साउदर्न शेयर बाजार में सूचीबद्ध हैं लेकिन सरकार द्वारा नियंत्रित हैं। जापान एयरलाइंस (जेएएल) का 1987 में निजीकरण कर दिया गया था लेकिन इसके हालिया इतिहास में सरकार की एहतियाती नज़र इस पर रही है। (सरकार ने 2010 के दिवालियापन के बाद एयरलाइन को बेलआउट दिया।)

बीए द्वारा 25% हिस्सेदारी खरीदने के साथ ऑस्ट्रेलिया के क़ंटास का निजीकरण हुआ जिसे इसने बाद में बेच दिया। 1969 में कोरियाई एयर का निजीकरण हुआ जब हंजिन ट्रांसपोर्ट ग्रुप ने इसे अपने नियंत्रण में ले लिया। 1985 में मलेशिया सरकार ने मलेशिया एयरलाइंस की 40% हिस्सेदारी बेची लेकिन गोल्डेन शेयर और वीटो पावर को अपनी मामूली हिस्सेदारी के साथ बरकरार रखा। बेहद असाधारण परिस्थितियों में इन दो विमानों के नुकसान के बाद 2014 में मलेशियाई सरकार ने पूर्ण नियंत्रण वापस ले लिया (MH370 के लापता होने और MH-17 की यूक्रेन में गिरने)।

एयरलाइन निजीकरण के लिए कोई एक आदर्श समाधान नहीं है, लेकिन आईपीओ ने बड़ी एयरलाइनों के लिए अच्छा काम किया है। मौजूदा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार की एयर इंडिया को 100% तक बेचने की योजना के विपरीत दुनिया भर में ज्यादातर मामलों में सरकारों ने हिस्सेदारी रखा है भले ही निजीकरण वाली एयरलाइनों में मामूली हिस्सेदारी हो।

इसके अलावा अधिकांश निजीकरण या एयरलाइंस के विलय में कर्मचारी और उनकी यूनियनें औपचारिक निर्णय लेने की प्रक्रिया का हिस्सा रही हैं या सरकारों के साथ पूर्व विमर्श में भी शामिल रही हैं। एनडीए सरकार को कोई भी कड़ा फैसला करने से पहले विश्व भर की घटनाओं पर विचार करना चाहिए।

(अमिताभ रॉयचौधरी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के उप कार्यकारी संपादक थे और उन्होंने नागरिक उड्डयन व रक्षा को बड़े पैमाने पर कवर किया था। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।)

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