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गाय हमारी माता है, हमको सब कुछ आता है…

गाय माता का जो सबसे बड़ा सदुपयोग भाजपा ने किया है वह यह है कि गाय लोगों को विभाजित करने के काम भी आ सकती है।
सांकेतिक तस्वीर
Image Courtesy : BBC.com

गाय हमारी माता है, हमको कुछ नहीं आता है। बैल हमारा बाप है...। यह वह राइम है जिसे हम बचपन में, ऐसे ही मस्ती में गाया करते थे। थोड़ा बड़े हुए तो सम्माननीय हरिशंकर परसाई जी को पढ़ा। उन्होंने बताया कि गाय सभी देशों में दूध देने के काम आती है परन्तु हमारे देश में वोट दिलवाने के काम भी आती है। पर पिछले पचास साठ साल में देश बहुत उन्नति कर चुका है। देश के साथ साथ गाय माता ने भी उन्नति की है और वह अब बहुत सारे काम आती है।

जब परिसाई जी लिखा करते थे तब भाजपा की पूर्ववर्ती जनसंघ गौरक्षा के लिए आंदोलन करती थी। गौरक्षा तो कितनी हुई पर जनसंघ के थोड़े बहुत हिन्दू वोट जरूर बढ़े। भाजपा ने जनसंघ से अधिक गौ भक्ति दिखाई। उसकी एडवांसड पार्टी है न। उसने अनुसंधान किया कि गाय के क्या क्या लाभ हो सकते हैं। गाय दूध देती है यह सारे विश्व को पता है। गाय माता का और गाय के कुल के अन्य जानवरों  का मांस भी लगभग पूरे विश्व में खाया जाता है। गाय तो माता है पर गाय के कुल के अन्य सदस्यों को तो जानवर लिखा ही जा सकता है न। (कोई ऑब्जेक्शन)

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गाय माता का जो सबसे बड़ा सदुपयोग भाजपा ने किया है वह यह है कि गाय लोगों को विभाजित करने के काम भी आ सकती है। मुसलमान गाय को पाल पोस भी रहा हो, उसकी सेवा कर रहा हो, तो भी उस पर शक कर सकते हैं। वह गाय को इधर से उधर ले जा रहा हो तो उस पर हमला कर सकते हैं। मुसलमान का टिफिन चेक कर सकते हैं और उसका फ्रिज भी। उसे घायल तो कर ही सकते हैं, मार भी सकते हैं। और यह सब एक शांतिप्रिय अहिंसा-प्रेमी हिंदू गाय माता के नाम पर कर सकता है। गाय माता उस शांतिप्रिय अहिंसा-प्रेमी हिंदू को हिंसक बना देती है। 

गाय माता सिर्फ मुसलमानों को ही नहीं अलग करती है बल्कि उन हिन्दुओं को भी अलग थलग कर सकती है जो गौमांस खाते हैं। संभव है, अगली जनगणना में या उससे अगली में आपसे यह पूछा जाये कि आप गाय का मांस खाते हैं या नहीं। जिस प्रकार स्त्री और पुरुष, दो कैटेगरी हैं, गौमांस खाने वाले और गौमांस न खाने वाले करके दो कैटेगरी हो सकती हैं। जनगणना अधिकारी अपने आप ही यह मान सकते हैं कि मुसलमान और ईसाई तो गौमांस खाते ही होंगे पर कठिनाई उन हिन्दुओं के सामने आ सकती है जो गौमांस का भक्षण करते हैं। क्योंकि एक तो वे डर के मारे सच बता नहीं सकते और दूसरे झूठ बोलने पर पकड़े जाने का डर है, ध्यान रखें फ्रिज उनका भी चेक हो सकता है।

कुछ मतिभ्रष्ट इतिहासकार बताते हैं कि गौमांस का जिक्र वेद, पुराण, उपनिषद आदि में भी आता है। उनमें कुछ ऐसे अध्याय हैं जिनमें बताया गया है कि ऋषि मुनि विशेष मौकों पर अपने मेहमानों को गौमांस का भोजन कराते थे। अब वेद, पुराण उपनिषद में अपभ्रंश बहुत हैं। या तो उन ऋषि मुनियों के मेहमान मुसलमान और ईसाई रहे होंगे जिन्हें वे गौमांस परोसते होंगे या फिर यह गौमांस भक्षण अपभ्रंश होगा।  इन शास्त्रों में यह एक बहुत अच्छी सुविधा है कि जो सुविधाजनक लगे वह ठीक है और जो असुविधाजनक हो उसे अपभ्रंश बता दो। तो यह गौमांस भक्षण का प्रसंग असुविधाजनक है इसलिए उसे अपभ्रंश ही बता दिया जाता है।

वैसे भारत में गाय को मारना बहुत सारे राज्यों में कानूनन अपराध है। फिर भी इन गौभक्तों और गौरक्षकों की सरकार के काल में ही भारत में पिंक रिवोल्यूशन होता है। ग्रीन और व्हाइट रिवोल्यूशन कांग्रेस की सरकारें पहले ही कर चुकी हैं, पिंक रिवोल्यूशन बचा था, वह भाजपा की सरकार ने कर दिया। भारत माता ने गौमाता और गौवंश के मांस के निर्यात में बहुत ऊंचाई हासिल की है। अब भारत गौवंश के मांस के निर्यात में पहले नम्बर पर है। अब क्योंकि मोदी राज में गाय काटी तो जा नहीं सकती है, तो फिर यह तभी संभव है जब मोदी जी की सरकार ने कोई ऐसी मशीन इजा़द कर ली हो जिसमें एक तरफ से किसी भी जानवर का मांस डालने पर दूसरी तरफ से गौवंश का मांस निकलता हो।

गाय के पहले से ही कुछ लाभ और हैं। कुछ लोग गाय के मूत्र का भी सेवन करते हैं। उसके कुछ या बहुत सारे स्वास्थ्य लाभ बताते हैं। गौमूत्र का सेवन वैसे तो प्राचीन काल से ही चला आ रहा होगा पर उसे प्रसिद्धि अब मिली है जब सरकार भी गौमूत्र और गोबर पर अनुसंधान कर रही है। इससे पहले स्व मूत्रपान को पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने प्रसिद्धि दिलाई थी। और अब साध्वी प्रज्ञा ठाकुर कहती हैं कि उसका कैंसर पंच गव्य से ठीक हो गया। अब इस पंच गव्य में एक तो गौमूत्र है, दूसरा गोबर। अन्य गाय का दूध है और उसका घी (घृत)। पांचवां ध्यान नहीं आ रहा, पर गौमांस तो हरगिज ही नहीं है। खैर अब इन साध्वी को न्यायालय में एफिडेविट दे देना चाहिए कि उसका कैंसर ठीक हो गया है और वह अब मेडिकली फिट है। जिससे न्यायालय उसकी बेल कैंसिल कर उन्हें जेल भेज सके। गाय माता का देश पर फिलहाल इससे बडा़ उपकार नहीं हो सकता।

उत्तर प्रदेश में हाल बेहाल है। वैसे तो यह हाल और प्रदेशों का भी है पर उत्तर प्रदेश में यह समस्या अधिक ही है। पूरे देश में मोदी की सरकार और उत्तर प्रदेश में योगी राज। गौ माता को आप अपने खेत से भी बाहर नहीं निकाल सकते। आपकी अपनी मां को लेकर भी कानून इतना सख्त नहीं है जितना गौ माता को लेकर। योगी जी को गौशाला का शौक है सो उन्होंने पूरे प्रदेश को ही ओपन गौशाला बना दिया। गौ माता की मर्जी है जहां चाहे वहां खाये। आज मन है तो मटर के खेत में घुस जाये और कल गेहूं पर जी ललचाये तो गेहूं के खेत में। किसी की मजाल है कि कोई रोक पाये। अब किसान चाहे मोदी को रोये या योगी को, उसकी तो फसल बरबाद है। भूख से लड़ने के लिए लोगों ने गौमाता को स्कूल में बंद करना शुरू कर दिया। अब अन्न तो मिलने लगा पर बच्चों की पढ़ाई बंद हो गई। ठीक बात है, पढ़ लो या भूख से लड़ लो।

पद्य: गाय हमारी माता है, हमको सब कुछ आता है। 

गधा हमारा बाप है, कहने में क्या जाता है।

जब तक वोट मिलें, हम कुछ भी करें क्या जाता है।

गाय हमारी माता है, कहने में क्या जाता है।

 

नोटबंदी की, जीएसटी को हमने लगा दिया।

करोड़ों लोगों का रोजगार, झटके में मिटा दिया।

महंगाई की मार से, भूखा हमने सुला दिया।

गाय हमारी माता है, कहने में क्या जाता है।

(इस व्यंग्यात्मक आलेख के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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