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गुजरात में मछुआरों की आजीविका बर्बाद करने को लेकर विश्व बैंक क़ानूनी कार्रवाई का कर रहा सामना

गुजरात में कच्छ के मछुआरों ने इंटरनेशनल फाइनेंशियल कॉर्पोरेशन (आईएफसी) से नुकसान की भरपाई के लिए यूएस के कई अदालतों का दरवाज़ा खटखटाया है।
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गुजरात में कच्छ के मछुआरों ने इंटरनेशनल फाइनेंशियल कॉर्पोरेशन (आईएफसी) से नुकसान की भरपाई के लिए यूएस के कई अदालतों का दरवाज़ा खटखटाया है।

ज्ञात हो कि आईएफसी विश्व बैंक समूह की निजी निवेश के लिए क़र्ज़ देने वाली एक शाखा है जो प्रतिरक्षा क़ानून के पीछे क़ानूनी कार्रवाई से बच रही है। प्रतिरक्षा के आधार पर इन दावों को अदालत ने खारिज कर दिया था जहां पहले दाखिल किया गया था साथ ही सर्किट कोर्ट (अपीलीय अदालत) से भी खारिज कर दिया गया था।

अब मामला संयुक्त राज्य अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट के सामने आया है। अदालत 10 मई को अपना फ़ैसला सुनाएगा।

कार्रवाई का कारण तब सामने आया जब आईएफसी ने टाटा की एक सहायक कंपनी कोस्टल गुजरात पावर लिमिटेड को 450 मिलियन डॉलर का ऋण दिया। यह परियोजना मुंद्रा में कच्छ के तट पर 4,150 मेगावाट कोयले आधारित थर्मल पावर प्लांट के लिए थी।

कंप्लायंस एडवाइजऱ ऑम्बुड्समैन (सीएओ) के एक ऑ़डिट रिपोर्ट के मुताबिक इस परियोजना ने आईएफसी के कई परफॉर्मेंस स्टैंडर्ड (पीएस) का उल्लंघन किया। सीएओ केवल विश्व बैंक के अध्यक्ष को रिपोर्ट देते हैं। ये मानवीय नुकसान ने स्थानीय समुदायों को संयुक्त राज्य अमेरिका में अदालत में जाने के लिए प्रेरित किया।

प्रभावित समुदायों के शपथ-पत्र में इस परियोजना को अपनी आजीविका और पर्यावरण के लिए खतरनाक दिखाया है। इस बिजली संयंत्र ने पानी ठंडा करने के लिए एक तंत्र नहीं स्थापित किया है। जहां यह निकलता है वहां यह समुद्र के पानी का तापमान बढ़ाता है जो संयोग से मछली पकड़ने का क्षेत्र है। पानी के बढ़ते तापमान के कारण मछलियां मर रही है।

कम होती मछलियों की तादाद के परिणामस्वरूप अपनी आजीविका के लिए मछली पकड़ने पर निर्भर इस समुदायों को या तो समुद्र में अंदर जाने या ये काम छोड़ कर निर्माण स्थलों पर काम करने जैसे अन्य काम करने को मजबूर हैं।

थर्मल पावर प्लांट के निर्माण के लिए काफी पानी की आवश्यकता होती है। इन प्लांट को पानी के निकलने लिए एक इनलेट और आउटलेट की आवश्यकता होती है। इनलेट संयंत्र में इस्तेमाल किए जाने वाले ठंडे पानी में लाता है और आउटलेट अपशिष्ट गर्म पानी को निकालता है।

अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुसार निकलने वाले गर्म पानी को पहले पर्याप्त ठंडा होना आवश्यक है। यह तट के नजदीक स्थित प्लांट को भूजल न तो बर्बाद करने या न तो प्रदूषित करने की अनुमति देता है। साथ ही यह न तो तट से आंतरिक क्षेत्रों के भूजल को बर्बाद या प्रदूषित करने की अनुमति देता है। एक और पहलू कोयले की धूल और उड़ते हुए राख से संबंधित है। संयंत्र को कोयला पहुंचाने वाला ये कन्वेयर बेल्ट ठीक उस स्थान से गुजरता है जहां ये मछुआरे परंपरागत रूप से मछली पकड़़ते थें। कोयले की धूल उनके मछली पकड़ने के क्षेत्र को गंदा कर देता है। प्लांट से निकलने वाले राख ने उन कुओं को प्रदूषित कर दिया है जहां से ये लोग पानी लेते थें। इस प्रकार, पानी जहरीला हो गया है, भोजन जहरीला हो गया है, और उनके आर्थिक कल्याण को ख़तरे में डाल दिया गया है।

आईएफसी के ख़िलाफ़ मांगी गई राहत टॉर्ट क़ानून पर आधारित थी (टॉर्ट क़ानून सिविल कानून के उन पहलुओं से संबंधित है जिनके लिए कोई विधान नहीं है)। मछिमार अधिकार संघ संगठन (एमएएसएस) ने लापरवाही, उपेक्षा और क्षेत्र में प्रवेश से होने वाले नुकसान का दावा किया है।

दूसरी तरफ आईएफसी ने प्रतिरक्षा का बचाव किया है। यह प्रतिरक्षा जिसका वे दावा करते हैं संयुक्त राज्य अमेरिका के दो कानूनों पर आधारित है। ये दो क़ानून हैं फॉरेन सॉवरेन इम्यूनिटिज एक्ट (एफएसआईए) और इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन इम्यूनिटिज एक्ट (आईओआईए)।

एफएसआईए को 1976 में अधिनियमित किया गया था और उनके सरकारी कार्यों के लिए विदेशी संप्रभुओं पर प्रतिरक्षा प्रदान करता है न कि उनके वाणिज्यिक लेनदेन के लिए। जबकि आईओआईए विदेशी राज्यों के स्तर पर अंतरराष्ट्रीय संस्थानों पर प्रतिरक्षा प्रदान करता है। आईओआईए को 1945 में लागू किया गया था यह एक ऐसा समय था जब संप्रभुओं ने अभी से ज्यादा प्रतिरक्षा का लाभ उठाया था। एटकिंसन बनाम इंटर-अमेरिकन डेवलपमेंट बैंक में संयुक्त राज्य अमेरिका में एक उदाहरण में कहा गया है कि आईओआईए के तहत प्रतिरक्षा 1945 के स्तर की होगी जिसका अर्थ है कि आईएफसी देश की सरकार की तुलना में अधिक प्रतिरक्षा का आनंद लेती है।

इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने आईएफसी के प्रतिरक्षा को छोड़ने के सवाल पर तर्क दिया। मेन्डारो बनाम विश्व बैंक में सर्किट कोर्ट ने कहा था कि बाहरी वाणिज्यिक अनुबंधों और गतिविधियों से उत्पन्न होने वाली कार्रवाइयों के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठन की प्रतिरक्षा को माफ कर दिया जाना चाहिए।

याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि इस आधार पर आईएफसी की प्रतिरक्षा को माफ कर दिया गया है क्योंकि आईएफसी की बाहरी 'गतिविधियों' से कार्रवाई की मांग बढ़ी है।

सर्किट कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया और कहा कि दावे केवल उन पार्टियों की तरफ से हो सकते हैं जिनके पास अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ संविदात्मक संबंध है।

यहां ध्यान देने योग्य यह है कि लगता है कि आईएफसी ने अपनी आंतरिक जवाबदेही तंत्र (सीएओ रिपोर्ट के मुताबिक) की उपेक्षा की है, और इस तरह मुंद्रा में मछुआरों पर आफत आ गया है।

एक कानूनी दृष्टिकोण से यह अकल्पनीय है कि एक अंतरराष्ट्रीय संस्थान जो विशेष रूप से वित्तीय लेन देन में शामिल है उसके पास एक राष्ट्र की तुलना में अधिक प्रतिरक्षा होना चाहिए।

ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है कि आईएफसी हानिकारक विकास परियोजनाओं को वित्त पोषित करने में शामिल है। ये प्रवृत्ति सामने आई है कि आईएफसी अप्रत्यक्ष रूप से बैंकों को ऋण के माध्यम से ऐसी परियोजनाओं को वित्त पोषित करके संचालित करता है। इस प्रकार, आईएफसी अविवेकी विकास के पर्यावरणीय और सामाजिक विवाद के लिए प्रत्यक्ष ज़िम्मेदारी से बचने में सक्षम है।

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