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सुपवा: फीस को लेकर छात्रों का विरोध, कहा- प्रोजेक्ट्स-प्रैक्टिकल्स के बिना नहीं होती सिनेमा की पढ़ाई

सुपवा रोहतक के फिल्म एंड टेलीविज़न विभाग के छात्र और प्रशासन एक बार फिर आमने- सामने हैं। छात्र जहां एक ओर प्रशासन द्वारा अपने जरूरी प्रोजेक्ट्स के काटे जाने से परेशान हैं तो वहीं कोरोना महामारी के दौर में फीस भरने को लेकर भी अपनी असमर्थता जाहिर कर रहे हैं।
सुपवा
Image Courtesy: shiksha

“फिल्म बनाने की कला कॉपी पेन में लिखकर परीक्षा देने की कला नहीं हैं। फिल्म मेकिंग सीखने के लिए फील्ड पर उतरना पड़ता है। मार्च के बाद यूनिवर्सिटी में न तो कोई पढ़ाई हुई और न ही प्रोजेक्ट्स-प्रैक्टिकल्स हुए हैं। ऐसे में बिना उन विषयों को पढ़े-समझे नई कक्षा में प्रमोट कर, इस महामारी के दौर में छात्रों पर फीस थोपने की कोशिश की जा रही है।”

ये बयान पंडित लक्ष्मीचंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ परफॉर्मिंग एंड विजुअल आर्ट (सुपवा) के फिल्म स्टूडेंट्स यूनियन का है। यूनियन का कहना है कि कोरोना संकट के बीच प्रशासन छात्रों की समस्याओं का समाधान करने के बजाए उन्हें और अधिक परेशान करने की कोशिश कर रहा है। लॉकडाउन के चलते जहां ज्यादातर छात्र फीस भरने तक की स्थिति में नहीं हैं वहीं, प्रशासन द्वारा उन पर लेट फीस थोपी जा रही है, विद्यार्थियों को कॉलेज से टर्मिनेट करने तक की धमकी दी जा रही है।

पूरा मामला क्या है?

सुपवा प्रशासन की ओर से 19 अगस्त को एक नोटिस जारी किया गया। इसके अनुसार सभी छात्रों को 24 अगस्त तक नए सेमेस्टर की फीस जमा करने का निर्देश दिया गया। साथ ही इस बात को भी साफ तौर से कहा गया कि अगर तय तारीख तक फीस नहीं जमा होती तो आपको नए समेस्टर में न तो एडमिशन मिलेगा और न ही कोई क्लास अटेंड करने की अनुमति होगी।

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इस नोटिस के खिलाफ जब छात्रों ने अपनी आपत्ति दर्ज करवाई, महामारी के दौर में फीस न दे पाने की असमर्थता जताई तो प्रशासन की ओर से 26 अगस्त को एक और नोटिस थमा दिया गया। इसके मुताबिक छात्रों को फीस के साथ अब फाइन देने की बात भी सामने रखी गई। स्टूडेंट्स यूनियन ने अब इसी नोटिस के खिलाफ मोर्चा खोला है।

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क्या कहना है यूनियन का?

यूनियन द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि मार्च महीने में क्लासेज बंद होने के बाद से सभी छात्र अपने घरों में बैठे हैं। इस बीच छात्रों ने चल रहे सेमेस्टर की बची क्लासेज और प्रोजेक्ट्स को लेकर प्रशासन से कई बार संपर्क साधने की कोशिश की लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला।

यूनियन का कहना है कि यूजीसी की गाइडलाइन्स को फॉलो करते हुए यूनिवर्सिटी ने छात्रों को प्रमोट तो कर दिया लेकिन इस दौरान कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स काट दिए, जो सिनेमा की आगे की कक्षाओं के लिए बेहद जरूरी हैं। इसमें तीसरे साल के छात्रों के सबसे जरूरी प्रोजेक्ट फिक्शन फिल्म और स्टूडियो फिल्म को काट दिया गया। तो वहीं पहले और दूसरे साल के भी फाइनल सेमेस्टर के प्रोजेक्ट्स कॉन्टिन्यूटी प्रोजेक्ट और DV प्रोजेक्ट को अधूरा छोड़ दिया गया।

छात्रों के अनुसार जब उन्होंने इस संदर्भ में प्रशासन से संपर्क करने की कोशिश की कि आखिर ये अधूरे कटे हुए प्रोजेक्ट्स कब तक पूरे किए जाएंगे तो उन्हें कोई संतुष्टि भरा आश्वासन नहीं मिला और उन्हें यूनिवर्सिटी द्वारा अगले सेमेस्टर में प्रमोट कर दिया गया।

यूनियन के अनुसार, “रिजल्ट आने के बाद प्रशासन की ओर से एक नोटिस आया, जिसमें अगले सेम के फ़ीस देने की बात कही गई। छात्रों ने जब इस बारे में एडमिन से संपर्क साधने की कोशिश की तो फिर जवाब में एक नया नोटिस आया जिसमें फीस के साथ फाइन भरने की धमकी भी दी गई।”


क्या मांगे हैं यूनियन की?

यूनियन का कहना है कि फिल्म एंड टेलीविज़न विभाग के छात्र पिछले कुछ दिनों से अपनी मांगों को लेकर एडमिनिस्ट्रेशन से संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन ऐसा एक भी जवाब उन्हें नहीं मिला जिससे छात्र संतुष्ट हो पाएं।

1. फीस को इन्सटॉलमेंट में भरने की सुविधा मिले

यूनियन के एक सर्वे के मुताबिक यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले आधे से ज्यादा छात्र मध्य या निचले वर्ग से आते हैं और लॉकडाउन के चलते छात्रों के परिवार आर्थिक तंगी का शिकार हो गए हैं। ऐसे में सभी के लिए एक बार में 36,500 जैसी बड़ी रकम जुटाना मुश्किल है। ऐसे में छात्रों की मांग हैं कि इन्सटॉलमेंट में फीस के भुगतान की सुविधा मिल पाए।

2. बचे हुए प्रोजेक्ट्स-प्रैक्टिकल्स को आगे पूरा करवाने का आश्वासन  

छात्रों का कहना है कि इस इंस्टिट्यूट से पहले भी फिल्में देश-विदेश के फेस्टिवल्स में नाम कमा चुकी हैं। ऐसे में मौजूदा छात्र भी फिल्म बनाना और उनकी बारीकियों को समझना चाहते हैं लेकिन प्रशासन द्वारा प्रोजेक्ट्स और प्रैक्टिकल्स को अधूरा छोड़ा जा रहा है, जिससे छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया है।

यूनियन के अनुसार उन्हें कोई पक्का आश्वासन नहीं मिल रहा हैं कि कोरोना काल के बाद जब भी सब कुछ पटरी पर लौटने लगेगा, ये बचे हुए प्रोजेक्ट्स कराये जायेंगे और उन्ही नॉर्म्स में कराये जायँगे जो पहले से निर्धारित हैं। ऐसे में छात्रों की मांग है कि जब भी स्थिति ठीक हो उनके प्रोजेक्ट्स हो, भले ही दो साल बाद हों लेकिन हों। उनके मुताबिक बिना प्रोजेक्ट्स के पास होना यानी चार साल बेरोज़गार रहना हैं।  

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3.  ऑनलाइन क्लासेज का प्लान क्लियर हो

छात्रों का कहना है कि उन्हें ऑनलाइन क्लासेज से दिक्कत नहीं है लेकिन ये सुविधा सभी छात्रों तक कैसे पहुंचेगी ये एक बड़ी समस्या है। क्योंकि फिल्म एंड टेलिविजन विभाग में सिलबस का 10 से 20 प्रतिशत हिस्सा ही थ्योरी है, उसमें भी प्रोजेक्टर के माध्यम से फिल्में ही दिखाई जाती हैं। ऐसे में संस्थान के उन छात्रों का क्या होगा जो दूर-दराज के इलाकों में रहते हैं या जिनके यहां तेज़ रफ्तार वाले इंटरनेट की सुविधा नहीं है।

यूनियन का दावा है कि जब फैकल्टी से पूछा गया कि आप किस तरह से ऑनलाइन क्लास को प्लान कर रहे हैं तब उनसे कोई जवाब नहीं मिला।

छात्रों का कहना है कि जब तक प्रशासन इन तीन मुद्दों पर छात्रों को आश्वस्त नहीं कर देता वो फीस नहीं देंगे। महामारी ने सब के घरों की आमदनी को प्रभावित किया है, ऐसे में अचानक फीस थोपना छात्रों के साथ-साथ उनके परिवार के लिए भी एक चुनौती है।

प्रशासन क्या कह रहा है?

न्यूज़क्लिक ने इस संबंध में प्रशासन का पक्ष जानने के लिए यूनिवर्सिटी पब्लिक रिलेशन ऑफिसर बेहुल बेशक से फोन पर बातचीत की।

उन्होंने इस संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि इस महामारी के दौरान यूनिवर्सिटी प्रशासन ने बच्चों के हितों को ही ध्यान में रख कर उन्हें प्रमोट किया है। कैंपस में छात्रों और फैकल्टी के बीच खुला माहौल है। छात्र जब चाहें, जैसे चाहें अपनी फिल्म बना सकते हैं। किसी भी मदद के लिए प्रशासन से संपर्क कर सकते हैं।

जब पीआरओ से फीस के संबंध में सवाल किया गया तो उनका कहना था कि पहले से ही संस्थान में कई कैटेगरी में फीस रियायत मौजूद है। किस्तों में फीस लेने का फैसला अकेले यूनिवर्सिटी नहीं ले सकती। इसके लिए कार्यकारिणी परिषद् की मंजूरी के साथ ही राज्य सरकार की अनुमति की भी आवश्यकता होती है।

बेहुल बेशक के अनुसार छात्रों की फीस या कोर्स के संबंध में कोई भी आपत्ति प्रशासन के संज्ञान में नहीं आई है। बावजूद इसके अगर किसी भी छात्र को कोई भी समस्या है तो वो सीधे प्रशासन से संपर्क कर सकता है।

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हालांकि पीआरओ के इस दावे को यूनियन के सदस्यों ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि सभी शिकायतों और ज्ञापनों को यूनिवर्सिटी के कुलपति से लेकर पीआरओ तक से साझा किया गया है। प्रशासन इसे गंभीरता से ना लेते हुए टाल-मटोल करने की कोशिश कर रहा है।

गौरतलब है कि साल 2011 में जबसे ये संस्थान अस्तित्व में आया है, यहां छात्र अपनी मांगों को लेकर लगातार लड़ाई लड़ते आ रहे हैं। उत्तर भारत में ये फिल्म और टेलीविजन का एकमात्र सरकारी संस्थान है। प्रशासन द्वारा एक सितंबर से नए सत्र की ऑनलाइन कक्षाओं का ऐलान भी कर दिया गया है। लेकिन छात्रों और इस फील्ड के जानकारों का कहना है कि सिनेमा की पढ़ाई ऑनलाइन नहीं हो सकती, ये बिना प्रैक्टिकल के संभव ही नहीं हैं।

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