Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

हम खेलेंगे : CAA-NRC और सरकार की बर्बरता के ख़िलाफ़ प्रदर्शन का ज़रिया बना फ़ुटबॉल 

खेल जारी रहना चाहिए। और हमारे देश के विचार को बचाने के लिए विरोध प्रदर्शन भी। केरल में कोच्चि के महाराजा मैदान में फ़ुटबॉल मैदान पर पहुंची फ़ासीवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई।
football

लड़के हों या लड़कियां, जवान हों या बूढ़े, महिलाएं हों या पुरूष, सभी बारी-बारी से ''फ़ासीवादी डिफेंडर्स'' के बीच से गेंद छकाते हुए ले जा रहे थे। इन फ़ासीवादी डिफेंडर्स को ख़ाकी रंग की हाफ़ पैंट और सफ़ेद शर्ट पहनाई गई थीं। यह खेल लोगों के जज़्बे और उनकी एकता का प्रतीक था। यह नागरिकता संशोधन क़ानून (2019) और एनआरसी के ख़िलाफ़ लोगों का सम्मिलित विरोध प्रदर्शन था। स्वाभाविक तौर पर यह प्रतीकात्मक था।

प्रदर्शनकारी फ़ुटबॉलर्स में पांच साल से लेकर उम्र के आठवें दशक में पहुंच चुके लोग शामिल थे। विरोध करने के लिए उन्होंने फ़ुटबॉल का तरीका चुना। सभी ने एक स्वर में केंद्र की बीजेपी सरकार और इसकी विभाजनकारी राजनीति की निंदा की।

''हम खेलेंगे : फ़ासीवाद के ख़िलाफ़ फ़ुटबॉल प्रदर्शन'' नाम का यह कार्यक्रम कोझीकोड स्थित सांस्कृतिक सामुदायिक संगठन ''स्ट्रीट्स ऑफ़ कालीकट'', फ़िल्म बनाने वालों के संगठन ''कलेक्टिव फ़ेस वन'' और महाराजा कॉलेज यूनियन ने केरल के कोच्ची में आयोजित करवाया था। अपनी टीम के लिए तय ड्रेस में वहां पहुंचे प्रदर्शनकारियों ने इस शाम को ''पंथुकोंदोरू नेरचा'' का नाम दिया।

भारत की कई जगहों पर बीजेपी सरकार और नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध हो रहा है। विरोध करने वालों में युवा, छात्र और सामुदायिक नेता शामिल हैं, जिनका समर्थन कुछ राजनीतिक पार्टियां भी कर रही हैं। जैसे-जैसे आंदोलन तेज़ होता गया, सरकार ने प्रदर्शनकारियों और नागरिक समूहों से बात करने की जगह असहमति और लोकतांत्रिक आवाज़ों को दबाने की रणनीति अपनाई। ख़ासकर उन आवाज़ों को ताक़त और प्रोपगेंडा से दबाने की कोशिश की गई, जो समाज के वंचित तबकों से उठ रही थीं।

''फ़ासीवाद के ख़िलाफ़ फ़ुटबॉल विरोध प्रदर्शन'' टूर्नामेंट में चार कॉलेज टीम शामिल थीं। कई क्लब के बीच ऐसे मैच हुए जिनमें एक तरफ सात खिलाड़ी तो दूसरी तरफ़ पांच खिलाड़ी खेल रहे थे। इस महिला टीम और फ़ुटबॉल प्रशंसकों के दस्ते भी बनाए गए थे। इस तरह के अनूठे प्रदर्शन की शुरुआत राष्ट्रीय ब्लाइंड फ़ुटबॉल टीम के कप्तान सीवी सीना, केरल के कप्तान फल्हान सीएस और अनीस एमके ने बारी बारी से पेनल्टी किक मारकर की। इसे उन्होंने ''शॉट अगेंस्ट फ़ासिज़्म'' नाम दिया। यह पेनल्टी उन ताक़तों से कहीं ज़्यादा ताक़तवर थी, जो भारतीय संविधान के मूल्यों को दबाने की कोशिश कर रही हैं।

लेखक और निर्देशक मुहसिन परारी के मुताबिक़, ''यह शाम एक कड़ा संदेश भेजने में कामयाब रही। यह इस वक्त की मांग है कि सभी लोग फासिज़्म के ख़िलाफ़ एक साथ आएं। हमने फ़ुटबॉल चुना, क्योंकि इसे दुनिया भर में लाखों लोग पसंद करते हैं और इसमें लोगों को जोड़ने की ताक़त है।'' परारी इस आठ घंटे चले प्रदर्शन के आयोजकों में से एक हैं।

फ़ुटबॉल मैच के अलावा जो लोग मैदान पर जुटे, उनके लिए दो खास कार्यक्रम भी मौजूद थे। इसमें पहला था- ''शूटऑउट फॉर डेमोक्रेसी'' और दूसरा ''ड्रिबल अ नाज़ी''। जो भी लोग मैदान पर पहुंचे, उन्होंने ख़ाकी हाफ़पैंट में मौजूद पुतलों के आसपास फ़ुटबॉल के साथ अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन किया। जैसे ही कोई गोल होता, वहां आज़ादी के नारे लगाए जाते। शुरुआती लक्ष्य फासिज़्म के ख़िलाफ़ दस हज़ार गोल करने का था। कहने की ज़रूरत नहीं है कि इस लक्ष्य को हासिल कर लिया गया।

प्रतीकात्मक तौर पर खिलाड़ियों ने आपस में अपनी जर्सी भी बदली, ताकि फ़ुटबॉल के ज़रिए लोगों को एक साथ लाने संदेश दिया जा सके। शर्ट आपस में बदलकर खिलाड़ी अपनी आपसी प्रतिस्पर्धा से ऊपर उठे और संदेश दिया कि किसी बड़े मुद्दे पर आपसी मतभेदों को भुलाकर एकसाथ आया जा सकता है। उन्होंने इसे हमारे देश का ताना-बाना क़रार दिया।

आधी रात तक चले इस कार्यक्रम में गीतकार-संगीतकार शहबाज अमन और शांका ट्राइब बैंड ने भी अपनी प्रस्तुति दी। इस दौरान नागरिकता संशोधन अधिनियम, नरेंद्र मोदी और अमित शाह के ख़िलाफ़ लगातार नारे लगते रहे।

football against fascism

यह कार्यक्रम केरल में फ़ुटबॉल और राजनीति के जुड़ाव की परंपरा का एक पड़ाव था। 22 दिसंबर को मल्लापुरम में एक टूर्नामेंट विरोध प्रदर्शन का मैदान बन गया था। वहां मौजूद दर्शकों ने खूब CAA विरोधी नारे लगाए थे। पूरा मैदान आज़ादी के नारों से गूंज उठा था।

महाराजा स्टेडियम में भी माहौल बेहद प्रेरणादायक था। चाहे कोई भी स्थित हो, ''द गेम मस्ट गो ऑन (खेल जारी रहना चाहिए)'' फ़ुटबॉल का शाश्वत नियम है। लोगों की आवाज़ ही वो चीज है, जो फ़ुटबॉल को मैदान और हमारी स्मृतियों में मौजूदा ओहदा दिलवाती है।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest