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गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक़ एक साल से भी कम समय में मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में तक़रीबन 37 फ़ीसदी की बढ़ोतरी

"यह उल्लंघनों की संख्या में आयी एक बड़ी उछाल है, और यह उछाल मानवाधिकारों की रक्षा कर पाने में राज्य की विफलता को दर्शाती है। हालांकि, हमें अब भी दर्ज किये गये मामलों के राज्य-वार विवरण के साथ-साथ इन उल्लंघनों की प्रकृति के उन ब्योरे पर नज़र डालने की ज़रूरत है, जो कि सिर्फ़ एनएचआरसी की वार्षिक रिपोर्ट में ही उपलब्ध हैं।"
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प्रतिकात्मक फ़ोटो। साभार:एएनआई

एक महीने के आंकड़ों की गणना का किया जाना अभी बाक़ी ही है,इसके बावजूद 2020-2021 और 2021-2022 के बीच देश भर में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की ओर से दर्ज किये गये मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले में पहले ही तक़रीबन 37% की बढ़ोतरी हो चुकी है।

2020-2021 में एनएचआरसी ने मानवाधिकार उल्लंघन के 74,968 मामले दर्ज किये थे, जबकि 2021-2022 (28 फ़रवरी, 2022 तक) में आयोग ने 1,02,539 ऐसे मामले दर्ज किये थे। ग़ौरतलब है कि एनएचआरसी के वार्षिक आंकड़ों की गणना एक वित्तीय वर्ष के लिए 1 अप्रैल से 31 मार्च तक की जाती है।

जहां एनएचआरसी की वार्षिक रिपोर्ट में विवरण के साथ एक वर्ष में दर्ज जिन मामलों की कुल संख्या को सूचीबद्ध किया गया है,उन्हें संसद के सामने पेश नहीं किया गया है या फिर 2019 से प्रकाशित ही नहीं किया गया है, वहीं गृह मंत्रालय की ओर से पिछले बजट सत्र के दौरान पिछले तीन सालों के वर्ष-वार आंकड़े राज्यसभा में पेश किये गये थे।

एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के पूर्व कार्यकारी निदेशक अविनाश कुमार ने कहा, "यह उल्लंघनों की संख्या में आयी एक बड़ी उछाल है, और यह उछाल मानवाधिकारों की रक्षा कर पाने में राज्य की विफलता को दर्शाती है। हालांकि, हमें अब भी दर्ज किये गये मामलों के राज्य-वार विवरण के साथ-साथ इन उल्लंघनों की प्रकृति के उन ब्योरे पर नज़र डालने की ज़रूरत है, जो कि सिर्फ़ एनएचआरसी की वार्षिक रिपोर्ट में ही उपलब्ध हैं।"

पिछले तीन सालों से एनएचआरसी की वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित नहीं होने के सवाल पर गृह मंत्रालय के राज्य मंत्री, नित्यानंद राय ने मार्च में राज्यसभा को बताया था कि अब भी आयोग की ओर से की गयी सिफ़ारिशों पर सम्बंधित केंद्रीय मंत्रालयों से टिप्पणी मांगने की प्रक्रिया जारी है। चूंकि साल 2019-20 के लिए एनएचआरसी की वार्षिक रिपोर्ट में दी गयी सिफ़ारिशें भारत सरकार के विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों से सम्बन्धित हैं, इसलिए की गयी कार्रवाई का ज्ञापन तैयार करने के लिए इन सिफ़ारिशों पर सम्बंधित केंद्रीय मंत्रालयों की टिप्पणियां मांगी गयी हैं। संसद के सामने पेश किये जाने के बाद एनएचआरसी की वार्षिक रिपोर्ट इसकी वेबसाइट पर प्रकाशित की जाती है।"

मानवाधिकार के मामलों की बढ़ती संख्या के अलावा,एनएचआरसी की ओर से अनुशंसित मौद्रिक मुआवज़े की कुल रक़म में आयी कमी भी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए चिंता की एक और वजह है। कुमार ने कहा, "राष्ट्रीय आयोग से अनुशंसित मुआवज़े में 2018-2019 और 2019-2020 के बीच 30% से ज़्यादा की तेज़ कमी देखी गयी है और तबसे इसमें गिरावट ही आ रही है।" राज्यसभा में दिसंबर, 2021 में पेश किये गये एक दूसरे जवाब में गृह मंत्रालय ने कहा था कि 2018-2019 में एनएचआरसी की ओर से 713 मामलों में बतौर मौद्रिक राहत 27,67,54,996 रुपये देने की सिफ़ारिश की गयी थी। 2019-2020 में 488 मामलों में यह आंकड़ा 15,06,85,840 रुपये था।

स्रोत: राज्य सभा

अपने उसी जवाब में गृह मंत्रालय ने कहा था कि मंत्रालय की ओर से 2021-2022 में 31 अक्टूबर, 2021 तक मानवाधिकार उल्लंघन के 64,170 मामले दर्ज किये गये थे। "एनएचआरसी की ओर से उपलब्ध कराये गये आंकड़ों के मुताबिक़, तब गृह मंत्रालय ने कहा था कि “मानवाधिकारों उल्लंघन मामलों में ऐसी कोई बढ़ोतरी नहीं देखी गयी है।” 31 अक्टूबर तक 64,170 मामलों में से मानवाधिकार उल्लंघन के 24,242 मामले (37.7%) उत्तर प्रदेश से थे।

कुमार ने बताया, "जैसे-जैसे मानवाधिकारों का उल्लंघन बढ़ता है,एनएचआरसी की संस्थागत निष्ठा कमज़ोर होती दिख रही है। एनएचआरसी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के प्रताड़ना, और जेल में राजनीतिक क़ैदियों के साथ होते दुर्व्यवहार का संज्ञान नहीं ले रहा है। संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूतों की ओर से की गयी टिप्पणियों को भी नज़रअंदाज़ किया जा रहा है।"

मानवाधिकार रक्षकों पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत मैरी लॉलर ने हाल ही में 25 जून को गुजरात पुलिस की ओर से कार्यकर्ता तीस्ता सेतलवाड़ की गिरफ़्तारी पर "गहरी चिंता" जतायी थी। सेतलवाड़ की रिहाई का आह्वान करते हुए संयुक्त राष्ट्र की इस अधिकारी ने कहा था, "गुजरात पुलिस के आतंकवाद विरोधी दस्ते की ओर से तीस्ता सेतलवाड़ को हिरासत में लिए जाने की ख़बरों से गहरी चिंता में हूं। तीस्ता नफ़रत और भेदभाव के ख़िलाफ़ एक मज़बूत आवाज़ हैं। मानवाधिकारों की हिफ़ाज़त करना कोई अपराध नहीं है। मैं उनकी रिहाई और भारतीय सरकार की ओर से किये जाने वाले इस उत्पीड़न को ख़त्म किये जाने का आह्वान करती हूं।"

भारत में मानवाधिकारों और मानवाधिकार संस्थानों के कामकाज के मुद्दे पर काम करने वाले मानवाधिकार संगठनों का एक समूह- भारत और संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकारों पर कार्यरत समूह (WGHR) ने कहा था, "भारत में मानवाधिकार की स्थिति चुनौतीपूर्ण बनी हुई है और मानवाधिकार संस्थायें ठीक से काम नहीं कर पा रही हैं।  इन संस्थाओं ने यातना, घृणा अपराधों को रोकने और मृत्युदंड के ख़ात्मे को लेकर किसी राष्ट्रीय क़ानून पर ज़ोर नहीं दिया है।" ये बयान संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के लिए डब्ल्यूजीएचआर की ओर से तैयार ज्वाइंट स्टेकहोल्डर्स रिपोर्ट के हिस्से के रूप में दिये गये थे।

भारत नवंबर, 2022 में संयुक्त राष्ट्र की यूनिवर्सल पीरियॉडिक रिवीऊ (UPR) के तहत अपनी चौथी समीक्षा के लिए इस परिषद के सामने पेश होगा। भारत को मानवाधिकारों के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र के दूसरे सदस्य देशों की टिप्पणियों का जवाब देना होगा।

इस ज्वाइंट रिपोर्ट में आगे कहा गया है, "अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जामिया मिल्लिया इस्लामिया में नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध के दौरान एनएचआरसी ने छात्रों को हिंसा के लिए दोषी ठहराया था, और पुलिस की ओर से किये गये अत्यधिक बल के इस्तेमाल को उचित ठहराया था... स्वतंत्रता की कमी के लिहाज़ से एनएचआरसी के ख़िलाफ़ नागरिक समाज में निराशा बढ़ी है। एनएचआरसी ने कोविड-19 महामारी के दौरान मानवाधिकारों की रक्षा के सिलसिले में कई दिशा-निर्देश जारी किये थे, लेकिन जेलों में गंभीर मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोक पाने में असमर्थ रहा था। ऐसे ही उल्लंघनों में लापरवाही के चलते होने वाली फ़ादर स्टेन स्वामी की दुखद मौत भी शामिल है। इस ज्वाइंट रिपोर्ट का 400 से ज़्यादा संगठनों और लोगों की ओर से पुष्टि की गयी है।

पिछले साल भी एनएचआरसी की स्वतंत्रता की कमी को लेकर उस समय चिंता जतायी गयी थी, जब सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अरुण कुमार मिश्रा को इस आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। वह नियुक्ति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली चयन समिति ने की थी। जहां राज्यसभा में विपक्ष के नेता, मल्लिकार्जुन खड़गे इस आधार पर उस नियुक्ति से असहमत थे कि "मानवाधिकार को लेकर चिंता का एक सिद्ध ट्रैक रिकॉर्ड वाले" हाशिए पर रह रहे समुदायों या भारत के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीशों या सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की उम्मीदवारों में से किसी उम्मीदवार की नियुक्ति नहीं की गयी थी,वहीं विभिन्न मानवाधिकार संगठनों से जुड़े लोगों ने उस नियुक्ति को "संविधान, क़ानून के शासन और मानवाधिकारों के लिहाज़ से केंद्र सरकार का एक और बेशर्म और जानबूझकर दिया जाने वाला झटका" क़रार दिया था।

कुमार ने कहा था, "सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अरुण कुमार मिश्रा का ट्रैक रिकॉर्ड बेहद संदिग्ध रहा है। उन्होंने अतीत में मानवाधिकार रक्षकों के ख़िलाफ़ भी सार्वजनिक रूप से बात की है।" एनएचआरसी के 28 वें स्थापना दिवस पर बोलते हुए न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा था, "भारत आज सबसे मज़बूत लोकतांत्रिक ताक़तों में से एक है और इसका श्रेय नागरिकों और नेतृत्व को जाता है...अब अंतर्राष्ट्रीय ताक़तों के इशारे पर भारत पर मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाना एक मानक सिद्धांत बन गया है।"

लेखक दिल्ली स्थित स्वतंत्र शोधकर्ता हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Human Rights Violations Increased by nearly 37% in Less Than a Year: Home Ministry Data 

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