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मणिपुर में शैक्षणिक संकट: UGC ने छात्रों को अन्य विश्वविद्यालयों में शिफ्ट करने का आग्रह किया

चूंकि शिक्षा के लगभग सभी गुणवत्तापूर्ण संस्थान घाटी में केंद्रित हैं इसलिए पहाड़ी इलाक़ों के छात्र हमलों के डर से अपनी कक्षाओं में जाने से डर रहें हैं।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। सौजन्य: मणिपुर विश्वविद्यालय की वेबसाइट

कोलकाता: अशांत और हिंसाग्रस्त मणिपुर में शैक्षणिक व्यवधान, 2020 और 2021 में देश भर में कोविड-19 के कारण हुए व्यवधान से ज़्यादा हानिकारक साबित हो सकता है।

कोविड-19 के दौरान, जो थोड़ी बहुत राहत थी वह ऑनलाइन शिक्षण प्रणाली थी। मणिपुर में, इंटरनेट के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा है, जिसके चलते ऑनलाइन कक्षा और पढ़ाई का विकल्प यहां खारिज हो जाता है। इस समय सभी घबराए हुए अधिकांश छात्रों और शिक्षकों की यही समझ है, क्योंकि गर्मी की छुट्टियों के बाद, शिक्षण संस्थान कुछ ही दिनों में फिर से खुलने वाले हैं।

यह बाधा तब शुरू हुई जब 3 मई को बड़ी जातीय झड़पें शुरू हुई थीं। अब तक, 150 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है, चल और अचल संपत्ति का कितना नुकसान हुआ उसका ज़िक्र अभी नहीं किया जा सकता है। इन हालात के कारण छात्रों समेत हज़ारों लोगों को भारतीय जनता पार्टी की सरकार द्वारा शुरू किए गए राहत शिविरों में शरण लेने पर मजबूर होना पड़ा है।

इस त्रासदी को झेलते छात्र और उनके अनिश्चित भविष्य के बारे में बात करते हुए, कुकी छात्र संगठन (केएसओ) ने 19 जुलाई को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के अध्यक्ष एम जगदीश कुमार को एक पत्र लिखा था। संगठन ने UGC अध्यक्ष से आग्रह किया है कि वे मणिपुर विश्वविद्यालय और धनमंजुरी विश्वविद्यालय के छात्रों और स्कॉलर्स को अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिफ्ट करने पर गंभीरता से विचार करें और उन्हें बिना किसी रुकावट के अपनी शिक्षा जारी रखने में मदद करें।

केएसओ ने यह भी मांग की है कि उन सभी पीड़ितों को मूल प्रमाण पत्र जारी किए जाएं जिनके प्रमाण पत्र 3 मई से चल रही बर्बरता और आगज़नी की घटनाओं के कारण जल गए या नष्ट हो गए थे। पत्र पर केएसओ के शिक्षा सचिव, टी. हाओकिप और महासचिव, सिबोई टौथांग के हस्ताक्षर हैं।

यदि केएसओ का पत्र UGC अध्यक्ष को दी गई एक अपील है, तो फेडरेशन ऑफ सेंट्रल यूनिवर्सिटीज़ टीचर्स एसोसिएशन (FEDCUTA) का बयान एक संवेदनशील सीमावर्ती राज्य में 'स्पष्ट प्रशासनिक और राजनीतिक विफलता के लिए' केंद्र और राज्य सरकार पर आरोप जैसा लगता है।

उन पर जो आरोप लगा है उसका अंदाज़ा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि "भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने खुद हालात का संज्ञान लिया और अधिकारियों को कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।" फ़ेडकुटा (FEDCUTA) के अध्यक्ष डीके लोबियाल और सचिव सुरेंद्र सिंह द्वारा जारी बयान में महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न और हिंसा के 'बेहद परेशान करने वाले' दृश्यों का भी उल्लेख किया गया है, जो घटना 4 मई की थी और उसका खुलासा 19 जुलाई को हुआ।

गर्मी की छुट्टी के बाद शैक्षणिक संस्थान फिर से खुलने वाले हैं, राज्य में सुरक्षित परिवहन के अभाव के कारण इच्छुक छात्रों का वापस लौटना असंभव है। फ़ेडकुटा ने उत्तर-पूर्व राज्यों के इतिहास और राजनीति के विद्वान और हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय की एक फैकल्टी खाम खान सुआन हाउसिंग से एकजुटता निभाने का वादा किया है, "क्योंकि व्यक्तियों को मणिपुर में जटिल स्थिति पर अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार है।"

प्रोफेसर और नॉर्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष, लाखोन कामा का मानना है कि जब तक अधिकारी मानवीय आधार पर हिंसक गतिरोध को दृढ़ता से हल करने के लिए दृढ़ संकल्प नहीं दिखाते, तब तक छात्रों का करियर ख़तरे में रहेगा।

चूंकि शिक्षा के लगभग सभी गुणवत्तापूर्ण संस्थान घाटी में केंद्रित हैं इसलिए पहाड़ी इलाकों के छात्र हमलों के डर से कक्षाओं में आने से डरते हैं। 3 मई से जारी हिंसा और विनाश ने स्कूलों और कॉलेजों सहित कई इमारतों की शैक्षणिक गतिविधियों को अस्त-व्यस्त कर दिया है।

कुछ दिन पहले स्कूलों को फिर से खोलने का आदेश दिया गया था, लेकिन उपस्थिति कम रही। केएमए ने शिलोंग से न्यूज़क्लिक को बताया कि सैकड़ों छात्रों को अपने परिवारों के साथ राहत शिविरों में शिफ्ट होने पर मजबूर किया जा रहा है, जहां रहने की स्थिति सामान्य नहीं है, इन हालात में छात्रों से यह पूछना बेहद कठिन है कि क्या वे मौजूदा असामान्य परिस्थितियों में कक्षाओं में जाना चाहेंगे?

उनका मानना है कि यदि अधिकारियों ने दूरदर्शिता दिखाई होती और तीखी झड़प को रोकने में चतुराई भरे कदम उठाए होते तो स्थिति इतनी बुरी नहीं होती। उन्हें निर्णय निर्माताओं को प्रभावित करने में 'गैर-राज्य' तत्वों की भूमिका पर संदेह है।

गुरुवार, 20 जुलाई को इंफाल और अन्य मणिपुर शहरों में कुकी समुदाय की दो महिलाओं पर कथित तौर पर कट्टरपंथी मैतेई युवाओं द्वारा किए गए बर्बर हमले को लेकर महिला संगठनों सहित बड़ी संख्या में संगठनों ने गंभीर रोष व्यक्त किया है। भीड़ ने दो महिलाओं में से छोटी वाली महिला के पिता और भाई की भी हत्या कर दी थी।

पुलिस ने कुछ गिरफ्तारियां की हैं। मैतेई समुदाय सहित सभी संगठनों ने बर्बरता की निंदा की है और अपराधियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की मांग की है।

मणिपुर इंटीग्रिटी समन्वय समिति (COCOMI) ने कहा है कि समाचार चैनलों पर जो दिखाया जा रहा है, उससे पूरा मैतेई समुदाय 'गहरी शर्म और पीड़ा' में है। संगठन का दृढ़ मत है कि इस बर्बर घटना में शामिल लोगों को समुदाय द्वारा बख्शा नहीं जाएगा।"

इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने गुरुवार को चुराचांदपुर में एक रैली निकाली और मणिपुर राज्य से अलग प्रशासन की मांग की।

उसी दिन, मिजोरम के मुख्यमंत्री और मिज़ो नेशनल फ्रंट के वरिष्ठ नेता ज़ोरमथांगा, जो 18 जुलाई को नई दिल्ली में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए की बैठक में शामिल हुए थे, ने एक ट्वीट में केंद्रीय नेताओं से कहा है कि मणिपुर पर 'चुप्पी कोई विकल्प नहीं है।'

राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने कहा कि ज़ोरमथांगा की नज़र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर थी, जो तब से चुप हैं, और उन्होंने 78वें दिन यानी 20 जुलाई को इस चुप्पी को तोड़ा।

मिजोरम सरकार, मणिपुर से सुरक्षा के लिहाज़ से भागे लगभग 12,000 लोगों की देखभाल कर रही है। इसने हाल ही में राहत शिविरों के लिए 5 करोड़ रुपये मंज़ूर किए हैं। राज्य सरकार ने कथित तौर पर केंद्र सरकार से 10 करोड़ रुपये का अनुदान देने का आग्रह किया है।

उत्तर-पूर्व के अन्य राजनेता जिन्होंने मोदी सरकार से मणिपुर पर अपने विकल्पों पर सावधानीपूर्वक विचार करने का आह्वान किया है, वे हैं मेघालय के मुख्यमंत्री और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) नेता कॉनराड संगमा। संगमा ने कहा कि, "यह एक मानवीय संकट है और केंद्र को इस वास्तविकता को पहचानना चाहिए।"

इस संदर्भ में एक बिंदु यह है कि, "मणिपुर में नागाओं के नेतृत्व ने तटस्थ रहने का निर्णय लिया है, जिसका सीधा सा अर्थ है मैतेई-कुकी हिंसक टकराव में इनका कोई स्टैंड नहीं है।

यूनाइटेड नागा काउंसिल के महासचिव वेरेइयो शतसांग ने न्यूज़क्लिक से इस फैसले की पुष्टि की है। इस स्टैंड के पीछे की समझ के बारे में पूछे जाने पर, शत्सांग ने कहा, "हमें मैतेई या कुकी के एजेंडे के बारे में कोई जानकारी नहीं है, इसलिए हमने सोचा कि तटस्थ रहना बुद्धिमानी होगी"।

नागा आबादी चार-पांच पहाड़ी ज़िलों में फैली हुई है, जिनमें से सेनापति ज़िला काफी प्रसिद्ध है, जिसमें 2011 की जनगणना के अनुसार, मणिपुर की 28.55 लाख आबादी में से कई लाख नागा यहां रहते हैं। हाल के अनुमानों के अनुसार यह आंकड़ा अधिक है, संभवतः म्यांमार के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा के पार से घुसपैठ के कारण, जहां एक सैन्य जुंटा सत्ता में है और प्रतिकूल परिस्थितियां नियमित रूप से माइग्रेशन को गति देती हैं।

इस संदर्भ में, राज्य के एक अनुभवी राजनेता ने कहा कि, "आपने देखा होगा कि ज़मीन और उस पर दावा, इस किस्म की परेशानियों का कारण बनता जा रहा है। मणिपुर में, एक अतिरिक्त फैक्टर प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर है, जिस पर सबके विचार अलग-अलग हैं। यह एक बहुत ही विवादास्पद मुद्दा होने जा रहा है।"

(लेखक कोलकाता स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Manipur: Severe Academic Disruption Feared, UGC Urged to Shift Students to Other Universities

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