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बनारस में ऐपवा की "मन की बात", कहा-महिलाओं की तरक्की का पैसा डकार गई नौकरशाही

बनारस में दर्जनों ऐसे गांव हैं जिन्हें बनारस महानगर में शामिल तो कर लिया गया है, लेकिन सुविधाएं नदारत हैं। शहर से सटे गांवों में बड़ी संख्या में महिलाएं हर महीने सक्रियता से नौकरी तलाश करती देखी जा रही हैं। महामारी के बाद महिलाएं न केवल कम तादाद में नौकरी कर रही हैं, बल्कि उससे भी कम संख्या में महिलाएं नौकरी तलाश रही हैं।
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उत्तर प्रदेश के बनारस के कचहरी स्थित शास्त्री घाट पर अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) ने पीएम नरेंद्र मोदी को अपने मन की बात सुनाई और कहा कि महिलाओं की तरक्की के लिए सरकारी योजनाओं का धन नौकरशाही डकार रही है। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से सटी छोटा सीर बस्ती, बैजनाथ कॉलोनी, नासिरपुर, सुसवाही और गणेशपुर की महिलाओं ने अपने सांसद से पूछा कि उनके गांव का विकास सपना क्यों है? इन गांवों में न पीने का साफ पानी है, न स्वास्थ्य सुविधाएं और न ही राशन व आयुष्मान कार्ड। बुनकरी के धंधे से जुड़ी महिलाएं इसलिए बेहाल हैं, क्योंकि बनारसी साड़ी का कारोबार मंदा पड़ गया है। महिलाओं के उत्थान के लिए चलाई जा रही योजनाएं कागजों से बाहर नहीं निकल पा रही हैं।

ऐपवा की राज्य सचिव कुसुम वर्मा ने मन की बात कार्यक्रम में बनारस की ग्रामीण महिलाओं की स्थिति पर रिपोर्ट पेश की। पीएम मोदी को अपने मन कि बात सुनाते हुए कहा, "विश्वव्यापी महामारी के बाद रोज़गार न हासिल कर पाने की दिक़्क़त सबसे ज़्यादा वह महिलाएं झेल रही हैं जो न शहर की हैं, न गांव की। बनारस में दर्जनों ऐसे गांव हैं जिन्हें बनारस महानगर में शामिल तो कर लिया गया है, लेकिन सुविधाएं नदारत हैं। शहर से सटे गांवों में बड़ी संख्या में महिलाएं हर महीने सक्रियता से नौकरी तलाश करती देखी जा रही हैं। महामारी के बाद महिलाएं न केवल कम तादाद में नौकरी कर रही हैं, बल्कि उससे भी कम संख्या में महिलाएं नौकरी तलाश रही हैं। बनारस की महिलाओं को ज्यादातर सरकारी योजनाओं का कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है।"

कुसुम ने कहा, "बीएचयू से सटी छोटा सीर बस्ती, बैजनाथ कॉलोनी, नासिरपुर, सुसवाही और गणेशपुर का अध्ययन किया है। सभी महिलाओं के रोजगार और उनकी आर्थिक स्थिति के आंकड़े भी जुटाएं हैं, जिससे पता चलता है कि शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार सबंधी सरकार के आंकड़े फर्जी व कागजी हैं। करोड़ों रुपये की सरकारी योजनाओं का लाभ महिलाओं को नहीं मिल पा रहा है। बड़ा सवाल यह है कि आखिर सरकारी योजनाओं का लाभ जब महिलाओं को  नहीं मिल रहा है तो धन कहां जा रहा हैं? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगर सचमुच महिला सशक्तीकरण की बात कर रहे हैं तो इस सवाल पर उन्हें जरूर जांच बैठानी जानी चाहिए और योजनाओं के क्रियान्वयन के बाबत कड़े निर्देश जारी करने चाहिए। महिलाओं के मन की बात सुनकर उनकी मांगों को पूरा करना चाहिए।"

वामपंथी महिला संगठन ऐपवा की सदस्य धनशीला और विमला छोटा सीर बस्ती में रहती हैं। वह कहती हैं, "हम शहरी बन गए हैं। हमारे गांव को बनारस महानगर में शामिल कर लिया गया है, लेकिन जल निकासी के लिए न तो नालियां बनी हैं और न कायदे की सड़के हैं। कहने को वह पीएम के संसदीय क्षेत्र की निवासी हैं, लेकिन पीने का न साफ पानी है, न जल जमाव रोकने का को पुख्ता इंतजाम। आखिर यह कैसी तरक्की है जो धरातल पर कहीं नजर ही नहीं आता है।" सुसवाही के बैजनाथ कालोनी की राधिका और सीता ने पेयजल संकट के साथ ही साफ पानी की आपूर्ति का मुद्दा उठाया। कहा, "उनके इलाके में पर्याप्त हैंडपंप तक नहीं हैं। जो हैंडपंप हैं भी उनमें से ज्यादातर पानी छोड़ चुके हैं। बस सफेद हाथी की तरह तहां-तहां पड़े हैं। दूर से पानी ढोने की जिम्मेदारी औरतों और बच्चों को उठानी पड़ती है।" गणेशपुर, कंदवा की सरिता और रेशमा का दर्द बस्ती में रहने वाली उन महिलाओं को लेकर ज्यादा था, जिनके पास न तो आयुष्मान कार्ड है और न ही राशन कार्ड। मुफ्त में मिलने वाला राशन भी गणेशपुर की औरतों के लिए सपना सरीखा है। किसी भी सरकारी योजना का लाभ हमारी चौखट पर पहुंचने से पहले ही लापता हो जाता है।"

डॉ मुनीज़ा रफीक खान ने मन की बात में बुनकर महिलाओं की बदहाल स्थिति को रेखांकित किया और कहा, "बनारसी साड़ी का कारोबार आर्थिक मंदी की मार झेल रहा है। सरकार और अफसरों की ज्यादातर बातें हवा-हवाई हैं। बुनकर महिलाओं के उत्थान और तरक्की की योजनाएं फाइलों में सिमटकर रह गई हैं। पता नहीं कब बाहर आएंगी और न जाने कब बनारस की औरतों के हालात सुधरेंगे? " बनारस में ऐपवा की जिला सचिव स्मिता बागड़े ने आसमान छू रही महंगाई और घटते रोजगार के चलते औरतों की मुश्किलों का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा, "पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में गरीब परिवारों की महिलाओं स्थिति बहुत ज्यादा खराब है। सरकार को चाहिए की वह इस दिशा में कारगर कदम उठाए। सरकार को चाहिए की हर बस्ती में कुटीर उद्योग स्थापित कराए जहां महिलाएं सम्मानजनक ढंग से काम करें और आत्मनिर्भर बनकर बेहतर जिंदगी गुजार सकें।"

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए लेखक एवं नारीवादी चिंतक वीके सिंह ने महिलाओं के संघर्ष को अपना समर्थन दिया और कहा, "आज के दौर में अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना साहस का काम है। इसी साहस के साथ चुनौतीपूर्ण ढंग से ही महिलाएं जीत हासिल कर सकती हैं।" मन की बात में ग्राम्या संस्था की बिंदू सिंह व सुरेंद्र ने औरतों के बुनियादी मुद्दों को उठाया और कहा, "मुश्किल भरी जिंदगी जीने वाली ज्यादातर औरतों को न तो वृद्धा पेंशन मिल रही है और न ही विधवा पेंशन। आयुष्मान कार्ड भी सपना है। आत्मनिर्भर योजना के तहत मिलने वाली फ्री सिलाई मशीनें बनारस की बदहाल बस्तियों तक नहीं पहुंच सकी हैं। महामारी का खतरा मंडराता रहता है, लेकिन न दवाओं का इंतजाम है, न ही दूसरी सुविधाएं।"

"हैंडपंपों से निलकलने वाले खारे पानी की समस्या ने औरतों की जिंदगी को पहाड़ सरीखा बना दिया है। कीटनाशक दवाओँ का छिड़काव न होने से बीमारियां फैलती हैं और महिलाओं की जमा-पूंजी इलाज की भेंट चढ़ जाया करती है। गणेशपुर, कंदवा इलाके में जलजमाव और आवास की समस्या है। इन इलाकों में हर पांच किलोमीटर पर स्वास्थ्य केंद्र तो है, लेकिन वहां महिला डॉक्टर नहीं हैं। महिलाओं को मुफ्त मिलने वाली आयरन व कैल्शियम की दवा तक नहीं मिल पाती है। गरीब औरतों को महावारी के पैड्स भी नहीं दिए जाते। घरेलू कामगार औरतों के सामने स्थितियां बहुत ज्यादा विषम हैं। कम मजदूरी और हाड़तोड़ मेहनत के बावजूद दो वक्त की रोटी जुटा पाना औरतों के लिए मुश्किल हो रहा है।"

मन की बात कार्यक्रम में सरैंया की बुनकर बस्ती से कैसर जहां, बिलकिस, जलेश्वर, प्रवाल सिंह,  अधिवक्ता प्रेमप्रकाश, विभा प्रभाकर, विभा वाही, अमरनाथ राजभर, कमलेश यादव, आलम, फिल्मेकर प्रो. निहार भट्टाचार्य, बीएचयू की छात्रा चंदा यादव, आदि ने बनारस के गांवों की महिलाओं की बदहाली का मुद्दा उठाया और पीएम नरेंद्र मोदी को अपने मन की बात सुनाते हुए कहा कि उनकी बातों पर गौर करें।

कार्यक्रम के आखिर में कुसुम वर्मा, डॉ मुनीज़ा, रफीक़ खान और स्मिता बागड़े ने राजस्थान के नौनिहाल इंद्र कुमार मेघवाल की मौत का मुद्दा भी उठाया और कहा, "यह घटना भारतीय समाज के लिए कलंक है।" मेघवाल को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए दलित समुदाय के बच्चे के कातिल को कड़ी सजा देने की मांग उठाई। समूचा कार्यक्रम दलित बच्चे को समर्पित किया गया।  इससे पहले ऐपवा से जुड़ी महिलाओं ने जनगीत "गुलमिया अब हम न सहिब" पेश किया, जिसे श्रोताओं ने खूब सराहा।

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