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अमरीका का नया कूटनीतिक दांव: तालिबान के बहाने बढ़ाई उज़्बेकिस्तान से नजदीकियां

तालिबान पर नजरें जमाए अमेरिका, उज्बेक संबंधों को फिर से स्थापित करने की जुगत में है।
Friendship Bridge
उज़्बेकिस्तान से अफगानिस्तान तक मैत्री पुल  

जब उप विदेश मंत्री वेंडी शेर्मन रविवार को ताशकंद पहुचेंगी, तो वे वास्तव में हाथी दांत के एक छोटे से टुकड़े पर नक्काशी करने जा रही होंगी। यह शेर्मन पर कोई दोष मढ़ने के लिए नहीं है जो कि यकीनन बाईडेन प्रशासन के लिए एक रणनीतिक मूल्यवान संपत्ति के तौर पर हैं। ऐसा इसलिये, क्योंकि वे वाशिंगटन में मौजूद विदेशी नीतियों के दल में एक उच्च स्तरीय कूटनीतिक कौशल को लाने का काम करती हैं जो वस्तुतः उन्हें एक अपरिहार्य संकट-मोचक बना देता है– शांतिपूर्ण तरीके से काम करते हुए भी बेहद असरदार।

शेर्मन के सामने एक बेहद चुनौतीपूर्ण कार्यभार हैं। वह है उज्बेकिस्तान में आधार क्षेत्र की व्यवस्थाओं पर बातचीत करने का प्रयास करना जो कि अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप के लिए नए चरण के लिए ढाल मुहैय्या कराने की है। जाहिर तौर पर इसका उद्देश्य आतंकवादी तत्वों को मार गिराने के लिए किया जाना है। लेकिन असल में इसका उद्देश्य रूस और चीन के साथ ‘रणनीतिक प्रतिस्पर्धा’ के भू-राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने का है, जिसमें एक बार फिर से आशावान यूरेशियाई रंगमंच पर क्रमश: उत्तरी काकेशश और शिनजियांग क्षेत्रों की नर्म पेट पर पाँव पसारकर सवारी गांठनी है।

अगस्त में काबुल हवाई अड्डे से ‘निकासी’ में मुद्दे पर मिली नाकामयाबी और अमेरिकी विदेश विभाग और पेंटागन के बीच में जो आरोप-प्रत्यारोप का खेल चला, उसके बाद से अफगानिस्तान में तथाकथित ‘क्षितिज के ऊपर से’ सैन्य अभियान को जारी रखने का सवाल एक बेहद संवेदनशील मुद्दा बन चुका है।

इसके साथ ही साथ बता दें कि तालिबान ने पहले से ही भविष्य में अफगान क्षेत्र में इस तरह के किसी भी अमेरिकी सैन्य अभियान के खिलाफ आगाह कर रखा है। रूस और चीन लगातार मध्य एशियाई क्षेत्र को किसी भी अमेरिकी-तालिबानी टकराव से दूर रखने के साथ-साथ इस क्षेत्र से अमेरिकी विशेष बलों के संचालन को रोकने के लिए समन्वित प्रयास कर रहे हैं।

वाशिंगटन ने हाल के दिनों में मध्य एशियाई क्षेत्रीय श्रृंखला में सबसे कमजोर कड़ी के रूप में उज्बेकिस्तान पर अपनी निगाहें जमा रखी हैं। अमेरिकी आकलन के हिसाब से रुसी रिपोर्टों में हाल के वर्षों में उज्बेकिस्तानी-रुसी रिश्तों में अभूतपूर्व वृद्धि को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता रहा है और इसके साथ ही अफगानिस्तान में वर्तमान हालात ने जिस प्रकार से क्रेमलिन के हाथ में ताशकंद पर अपने सैन्य संरक्षण को मजबूत करने का सुनहरा अवसर प्रदान किया है, वह एक आसाधारण परिस्थिति है। लेकिन इस सबके बावजूद अमेरिकी अनुमान में उज्बेकिस्तान सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन में एक बार फिर से शामिल होने का कोई इरादा नहीं रखता है। या कहें कि रूस को अपने प्रमुख सुरक्षा एवं सैन्य साझीदार के तौर पर स्वीकार करने का इरादा रखना, वो भी एक ऐसे मोड़ पर जब क्षेत्रीय सुरक्षा स्थिति पर खतरा आने वाले महीनों या वर्षों में अनपेक्षित दिशाओं में पतित होने की संभावना बनी हुई है। 

वहीँ दूसरी तरफ, ताशकंद किसे चुनें के मामले में बेहद होशियार है। इस प्रकार, अफगानिस्तान से पश्चिमी देशों की वापसी के फ़ौरन बाद की स्थिति में उज्बेकिस्तान ने अपनी भूमि पर अमेरिकी सैन्य सुविधा की मेजबानी करने के लिए वाशिंगटन के अनुरोध को ठुकरा दिया था, जिसे ताशकंद ने अपनी विदेश नीति सिद्धांत द्वारा निषिद्ध पाया गया है।

लेकिन फिर, इस चीज ने ताशकंद को आने वाले कुछ हफ्तों में वाशिंगटन के साथ अफगान सैन्य पायलटों और उनके परिवारों के एक समूह को अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर स्थानांतरित करने के लिए एक समझौते पर बातीचत करने से नहीं रोका। माना जा रहा है कि सैन्य पायलट जो अफगान नागरिकों में से थे, उज्बेकिस्तान की सीमा पार कर गए थे और जिनकी तालिबान मांग कर रहा था, कि ताशकंद उन्हें और उनके उपकरणों को काबुल को वापस कर दे – जिसमें कथित रूप से अमेरिका द्वारा आपूर्ति किये गए ब्लैक हॉक्स, पीसी-12 निगरानी विमान और सोवियत काल के एमआई-17एस सहित कुल 46 विमान पायलटों द्वारा उज्बेकिस्तान के लिए उड़ाए गए थे।

वाल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार, 11-12 सितंबर के सप्ताहांत के दौरान कुल 585 अफगान नागरिकों को  क़तर के दोहा में अमेरिकी सैन्य अड्डे पर प्रसंस्करण के लिए भेजा गया होगा, जहाँ से उन्हें अन्य देशों में स्थायी रूप से रहने के लिए भेजा जाना है।

ताशकंद में कल होने जा रही वार्ता के दौरान शेर्मन की उम्मीदें निकासी सौदे से अर्जित सद्भावना पर टिकी हुई हैं, जिसने उज्बेक सरकार को काबुल के साथ संभावित रूप से कटु विवाद से बचाने में भूमिका अदा की थी। स्पष्ट तौर पर, ताशकंद तालिबान के साथ तनावपूर्ण संबंधों को जारी नहीं रखना चाहता, विशेषकर जब से युद्ध के दौरान आसमान से नरसंहार को अंजाम देने के लिए उज्बेकिस्तान, अफगान सैन्य पायलटों से घृणा करता है। 

शेर्मन वर्तमान में ब्रिटेन के सशस्त्र बलों के मंत्री, जेम्स हेअप्पे द्वारा 23 सितंबर को उज्बेकिस्तान की ‘टोही’ यात्रा का अनुकरण करते हुए हड़बड़ी वाली यात्रा पर हैं। निश्चित ही यह बात बेहद अहम है कि वाशिंगटन में ताशकंद के साथ जैसा समीकरण वर्तमान में गति में बना हुआ है और ‘फील-गुड’ का अहसास बना हुआ है, उसे फ़ौरन भुना लेने की जरूरत है। वरना जल्द ही उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शवकत मिर्ज़ियोयेव के 24 अक्टूबर के राष्ट्रपति चुनाव के बाद किसी भी समय मास्को की यात्रा पर निकल जाने की उम्मीद है।

वरिष्ठ रुसी अधिकारियों द्वारा आधिकारिक तौर पर बताया गया है कि मिर्ज़ियोवेय की मास्को की अपेक्षित यात्रा के दौरान, दोनों देशों के द्वारा द्विपक्षीय समझौतों के विशेष पैकेज पर हस्ताक्षर किये जायेंगे, जिसमें रक्षा सहयोग और हथियारों की खरीद भी शामिल है।

हालाँकि, जैसी परिस्थितियां सामने हैं उसमें इस बात की संभावना बेहद कम है कि ताशकंद अफगानिस्तान में भविष्य में ऐसे किसी भी अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप के साथ जुड़ने जा रहा है, चाहे वह किसी भी शक्ल में हो। एक बात को लेकर ताशकंद पूरी तरह से सचेत है कि रूस के अलावा, चीन भी आने वाले समय में अमेरिकी इरादों को लेकर गहरे संदेहों को पाले बैठा है।

ग्लोबल टाइम्स में एक टिप्पणी में एक प्रमुख चीनी विचारक ने आग्रह किया है कि ‘अफगानिस्तान के मुद्दे पर, चीन और पाकिस्तान को रूस, ईरान और मध्य एशियाई देशों के साथ समन्वय में जाना चाहिए। इन देशों को मिलकर यूरोप को संभावित शरणार्थी संकट के बारे में चेतावनी देनी चाहिए, और अमेरिका, भारत और कुछ यूरोपीय देशों पर जिम्मेदारी के साथ फैसले लेने के लिए दबाव डाला जाना चाहिए।’ भू-राजनीतिक दोष रेखाएं उमड़ रही हैं, यह पूरी तरह से स्पष्ट है।

तालिबान पहले से ही पड़ोसी ताजीकिस्तान के राष्ट्रपति इमोमाली रहमोन पर अफगान युद्ध-सरदारों को पनाह देने और अफगान के आंतरिक मसलों के बारे में भड़काऊ टिप्पणियां करने को लेकर गुस्से में है। 

आज तास न्यूज़ एजेंसी ने ताजिकिस्तान की सीमा से लगे उत्तर पूर्वी अफगानिस्तान में बादाक्शान प्रांत के तालिबान के डिप्टी गवर्नर, मुल्ला निसार अहमद अख्मदी के हवाले से खबर दी है कि देश के उत्तरी हिस्से में चीन और ताजिकिस्तान के साथ की सीमाओं की रक्षा के लिए आत्मघाती बम हमलावरों की एक विशेष बटालियन को तैनात किया जा रहा है।

अख्मदी ने कहा है, “लश्कर-ए मंसूर नामक एक विशेष आत्मघाती बटालियन को अफगानिस्तान की सीमाओं पर तैनात किया जायेगा। इस बटालियन के बिना संयुक्त राज्य अमेरिका को परास्त कर पाना असंभव था। ये बहादुर रणबाँकुरे ख़ास विस्फोटक बेल्ट को पहन कर रखते हैं, और इसका इस्तेमाल उन्होंने अफगानिस्तान में अमेरिकी ठिकानों को उड़ाने में किया था।

इस बात में कोई संदेह नहीं कि यह रहमोन के लिए एक स्पष्ट चेतावनी है लेकिन यह आमतौर पर मध्य एशियाई घास के मैदानी क्षेत्रों के लिए भी प्रतिध्वनित होगी। ताशकंद में शेर्मन की वार्ता की पूर्व संध्या के अवसर पर, तास की यह रिपोर्ट अनजाने में ही सही, क्षेत्रीय देशों को वर्तमान हालात में तालिबान शासन के खिलाफ अपने शत्रुतापूर्ण कार्यवाहियों में अमेरिकियों के साथ पहचान लिए जाने के अन्तर्निहित खतरों के प्रति याद कराने में मददगार साबित हो सकता है।

शेर्मन की ओर से अमेरिकी-उज़बेक संबंधों के इस दौर के बिंदु पर कुछ और न्यायसंगतता की स्थिति को उत्पन्न करने की कोशिश के मामले में बेहतर प्रदर्शन देखने को मिल सकता है। अमेरिका ने इस बीच अफगानिस्तान के लिए ‘मानवीय सहायता और खाद्य सुरक्षा को मुहैय्या कराने को सुनिश्चित करने के संयुक्त समन्वित प्रयासों के लिए मध्य एशिया और इसके घरेलू स्तर पर उत्पादित वस्तुओं की क्षमता का उपयोग करने का कल्पनाशील विचार को जरी किया है। 

अतीत में, ताशकंद ने अफगान स्थिति से उत्पन्न होने वाली आर्थिक एवं व्यावसायिक से अनपेक्षित लाभ को हासिल करने में गहरी दिलचस्पी दिखाई थी, जिसे वाशिंगटन फिर से हवा दे सकता है। किन्तु इसके विपरीत, आज ताशकंद काबुल में तालिबान सरकार के साथ सौहार्द्यपूर्ण संबंधों को कायम रखने के लिए अतिरिक्त मील की दूरी को तय करना कहीं ज्यादा पसंद करेगा।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Reflections on Events in Afghanistan-23

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