व्यक्ति विशेष की पार्टी बनकर रह गई भाजपा? आपस में लड़ रहे हैं मंत्री!

आठ साल पहले भारत की जनता ने सरकार चुनी थी, उन्हें लगा था कि चलो इस बार तो बोलने वाले प्रधानमंत्री आएंगे। हुआ भी यही... हमारे नए प्रधानमंत्री बोले और इतना बोले कि अपने मन की बात तक कह डाली। लेकिन जिन्होंने वोट दिया था वो आज तक बोलने को तरस रहे हैं। और कह रहे हैं कि हमारी भी सुन लो सरकार...
हमारे प्रधानमंत्री सिर्फ बोले ही नहीं बल्कि अपनी पार्टी के साथ मिलकर तानाशाही की वो मिनार गढ़ी, जिसने देश की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ गरीबों, छोटे-छोटे दुकानदारों की रोज़ी रोटी, रोज़गार, शिक्षा व्यवस्था और स्वास्थ्य व्यवस्था समेत तमाम ज़रूरतों की कमर तोड़ कर रख दी।
बग़ैर किसी से चर्चा के ऐसे-ऐसे कानून बना दिए ऐसे फैसले सुना दिया, जिसके दंश से देश आज भी उभर नहीं सका है। जैसे—बिना किसी ख़बर किए अचानक 500 रुपये और 1000 रुपये की नोट बंद कर देना। जीएसटी लागू कर देना। पहले किसानों को खालिस्तानी कहना फिर अचानक तीनों कृषि कानून वापस ले लेना। कोरोना काल में बिना किसी से चर्चा लॉकडाउन लगा देना और प्रवासियों को दर-दर भटकने पर मजबूर कर देना।
ऐसे तमाम उदाहरण है, जो इनकी तानाशाही को पेश करने के लिए काफी है। यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी को संपन्न करने के लिए अपनी जान तक लगा देने वाले नेता आज हाशिए पर हैं। जिसका उदाहरण पिछले दिनों भाजपा के नए संसदीय बोर्ड में देखने को मिला। जिसमें सड़क एंव परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है।
इसके कई कारण हो सकते हैं... जिसमें एक यूं कह सकते हैं कि जब कोई नेता या मंत्री भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी को आईना दिखाना शुरु कर देता है तब उसे साइडलाइन कर दिया जाता है। आपको याद होगा पिछले दिनों जब नितिन गडकरी ने कहा था कि कभी-कभी राजनीति छोड़ने का मन करता है, क्योंकि जीवन के लिए और भी बहुत कुछ है। उन्होंने इस बात पर भी अफसोस जताया था कि आजकल की राजनीति सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बनने से ज्यादा सत्ता में बने रहने के बारे में है।
गडकरी का ऐसा बयान साफ तौर पर भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी के लिए ही था, क्योंकि भाजपा और मोदी पर अकसर ये आरोप लगते रहते है कि ये सत्ता में बने रहने के लिए कुछ भी कर सकते हैं।
दूसरी ओर जब भाजपा की ओर से नरेंद्र मोदी के विकल्प को लेकर बात होती है तब नितिन गडकरी के नाम को पहले लिया जाता है। हालांकि मोदी के ज्यादा क़रीबी तो अमित शाह ही माने जाते हैं, ऐसे में नितिन गडकरी की पावर को कम करना भी भाजपा बहुत ज़रूरी समझने लगी है। कहने का मतलब ये है कि अमित शाह को पार्टी में नंबर दो बनाने के लिए प्रधानमंत्री पुरज़ोर कोशिश में लगे हैं। अमित शाह को नंबर दो बनाने वाली बात इस वजह से और ज्यादा पुख्ता हो जाती है कि क्योंकि संसदीय बोर्ड में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी जगह नहीं दी गई है। जबकि योगी आदित्यनाथ भाजपा और आरएसएस की विचारधारा के लिए सबसे सही शख्स माने जाते हैं, जिसका असर साल 2017 उत्तर प्रदेश चुनावों में देखने को भी मिला था, इसके अलावा नितिन गडकरी के बाद योगी का नाम भी मोदी के विकल्प के तौर पर लिया जाता रहा है।
वहीं पार्टी महाराष्ट्र से ही आने वाले पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को पार्टी आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही है।
वहीं बात मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बाहर किए जाने की करें तो वे पार्टी के लिए बड़ा ओबीसी चेहरा हैं। लेकिन शायद भाजपा को ये लगता है कि साल 2018 में मिली हार के बाद उनका वर्चस्व थोड़ा कम ज़रूर हुआ है।
नितिन गडकरी को संसदीय बोर्ड से बाहर रखने के बाद भाजपा चौतरफा घिर भी गई, उनकी ही पार्टी के सुब्रमण्यम स्वामी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाने पर ले लिया और खुलकर नाराज़गी ज़ाहिर की। स्वामी के ट्वीट में साफ है कि अब भाजपा में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का पालन नहीं होता। हर फैसले एक ही व्यक्ति द्वारा लिया जाता है और उसी का फैसला अंतिम माना जाता है।
In early days of Janata Party and then BJP, we had party and parliamentary party elections to fill office bearers posts. Party Constitution requires it. Today in BJP there are no elections whatsoever ever. To every post is nominated a member with the approval of Modi.
— Subramanian Swamy (@Swamy39) August 18, 2022
स्वामी ने कहा कि पहले जनता पार्टी और फिर भाजपा के शुरुआती दिनों में हमारे पास पदाधिकारियों के पदों को भरने के लिए पार्टी और संसदीय दल के चुनाव होते थे। आज भी पार्टी संविधान पर अमल की आवश्यकता है। आज भाजपा में कोई चुनाव नहीं होता है। हर पद के लिए की मंजूरी से एक सदस्य मनोनीत किया जाता है। स्वामी के इस ट्विट से साफ है कि भाजपा को अब केवल एक व्यक्ति लीड करता है और उसी के द्वारा सभी फैसले लिए जाते हैं। पार्टी के नेता चुपचाप उसी को फॉलो करते हैं।
इससे पहले फरवरी 2021 में भाजपा ने अपनी 307 सदस्यों वाली नई कार्यकारिणी गठित की थी। उस समय भी पार्टी शीर्ष नेतृत्व ने भाजपा के कई दिग्गज नेताओं को तरजीह नहीं दी थी। वरुण गांधी और मेनका गांधी से लेकर भाजपा के फायर ब्रांड नेता सुब्रमण्यम स्वामी को भी राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। डेढ़ साल पहले गठित राष्ट्रीय कार्यकारिणी में नए चेहरों के रूप में दिनेश त्रिवेदी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, विजय बहुगुणा, सतपाल महाराज और मिथुन चक्रवर्ती जैसे नाम शामिल हैं। इनके अलावा विजय बहुगुणा और सतपाल महाराज को भी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल किया गया था। भाजपा की ओर से की गई इस कार्रवाई के बाद सुब्रमण्यम स्वामी ने भले ही सीधे तौर पर प्रतिक्रिया न दी हो लेकिन उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल का बायो बदल कर अपनी खीझ उसी समय जाहिर कर दी थी।
सिर्फ सुब्रमण्यम स्वामी ही नहीं विपक्षियों ने भी भाजपा को इसे लेकर खूब तंज कसे। भारतीय यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीनिवास बीवी ने नितिन गडकरी के सामने हाथ जोड़कर खड़े शिवराज सिंह चौहान की एक फोटो शेयर की है। इस फोटो के साथ उन्होंने लिखा है कि 'पहली बैच के अग्निवीर।'
First batch of Agniveer. pic.twitter.com/CKaD7i4Jsq
— Srinivas BV (@srinivasiyc) August 17, 2022
समाजवादी पार्टी के नेता आईपी सिंह ने भी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और नितिन गडकरी की एक तस्वीर शेयर करें कमेंट किया कि तोड़ा कुछ इस अदा से रिश्ता उसने कि, सारी उम्र हम अपना कसूर ढूंढते रहे।
तोडा कुछ इस अदा से रिश्ता उसने की,
सारी उम्र हम अपना कसूर ढूंढते रहे। pic.twitter.com/HRSbUhwISd— I.P. Singh (@IPSinghSp) August 17, 2022
वैसे भाजपा की ये पुरानी आदत रही है कि बढ़ते कद का नेता उसे पसंद नहीं आता, उदाहरण के तौर पर आप लाल कृष्ण आडवाणी का हश्र देख सकते हैं। जिन्हें पार्टी में कभी कोई जगह तो नहीं मिली, संसदीय बोर्ड में थे वहां से भी 2014 में बाहर कर दिया गया था।
लेकिन बात सिर्फ नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान तक सीमित नहीं है, पिछले काफी वक्त से भाजपा में सबकुछ ठीक भी नहीं चल रहा है, चाहे राज्य या फिर केंद्र...
केंद्र की ही बात करें तो पिछले दिनों गृह मंत्री अमित शाह और केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्री हरदीप पुरी आपस में भिड़ गए। जहां एक तरफ केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि रोहिंग्या मुसलमानों को आवास दिए जाएंगे तो वहीं गृह मंत्री अमित शाह के गृह मंत्रालय का ट्वीट सामने आया है। जिसमें उन्होंने इस खबर पर रोक लगा दी है और यह साफ कर दिया है कि यह खबर सच नहीं है। रोहिंग्या मुसलमानों को कोई आवास नहीं दिया जाएगा।
इस मामले पर कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने ट्वीट करते हुए लिखा है कि पूरी जी की बात तो गलत निकली और यह हम नहीं अमित शाह कह रहे हैं। साथ ही सुप्रिया श्रीनेत ने कहा है कि हरदीप सिंह पुरी अपने ही गृह मंत्री अमित शाह के द्वारा ट्रोल हो गए हैं। इसी की तकरार को क्या नाम दें।
पुरी जी की बात तो पूरी ग़लत निकली और यह हम नहीं अमित शाह कह रहे हैं!
Poor Mr @HardeepSPuri you have been trolled by your own Home Minsiter @AmitShah
इस तीखी तकरार को क्या नाम दें? https://t.co/bPpQGHxVto pic.twitter.com/Vshzzru0RA
— Supriya Shrinate (@SupriyaShrinate) August 17, 2022
दरअसल केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने अपने ट्वीट में कहा था कि 'भारत वैसे सभी शरणार्थियों का स्वागत करता है जो देश से शरण मांगते हैं।एक बड़े फैसले में सभी रोहिंग्या शरणार्थियों को दिल्ली के बक्करवाला इलाके में EWS फ्लैट में शिफ्ट किया जाएगा। उन्हें हर जरूरी चीजें मुहैया कराई जाएंगी। उन्हें UNHCR आईडी और चौबीसों घंटे दिल्ली पुलिस की सुरक्षा दी जाएगी।'
India has always welcomed those who have sought refuge in the country. In a landmark decision all #Rohingya #Refugees will be shifted to EWS flats in Bakkarwala area of Delhi. They will be provided basic amenities, UNHCR IDs & round-the-clock @DelhiPolice protection. @PMOIndia pic.twitter.com/E5ShkHOxqE
— Hardeep Singh Puri (@HardeepSPuri) August 17, 2022
अमित शाह और हरदीप पुरी का टकराव सुब्रमण्यम स्वामी के आरोप पर पुख्ता मुहर लगाता है, साथ ही ये बताने के लिए भी काफी है, कि विभाग महज़ दिखावे के लिए बांटे गए हैं, जबकि कोई भी मंत्री अपनी समझ के हिसाब से फैसले नहीं कर सकता।
इसके अलावा पार्टी के भीतर क्या चल रहा है? इसका उदाहरण कुछ दिनों पर उत्तर प्रदेश में भी देखने को मिला। जब जल शक्ति और बाढ़ नियंत्रण मंत्रालय संभाल रहे दिनेश खटीक ने इस्तीफा दे दिया था। खटीक के इस्तीफे में दो चौंकाने वाली बात सामने आई। एक तो उन्होंने इस्तीफा राज्यपाल की जगह सीधा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को भेजा, दूसरा ये कि खटीक ने राज्य सरकार पर और सरकारी अफसरों पर बेहद गंभीर आरोप मढ़ दिए। उन्होंने कहा था कि दलित होने के कारण उनके साथ कोई ठीक से बात नहीं करता है। मंत्री के नाम पर गाड़ी तो दे दी गई है, लेकिन मीटिंग की जानकारी नहीं दी जाती है।
ये बात वैसे तो देशभर के दलित समाज के लिए बहुत अपमानजनक थी, लेकिन सरकार ने गोदी मीडिया के साथ मिलकर इस बात को बखूबी संभाल लिया।
केंद्र सरकार की तानाशाही और दबाव से काम करवाने का सबसे बड़ा सबूत तो बिहार में दिखा। हालांकि यहां उसे मुंह की खानी पड़ी। नीतीश कुमार ने एनडीए का साथ छोड़कर आरजेडी का दामन थाम लिया और भाजपा से अलग सरकार बना ली। इस दौरान नीतीश ने आरोप भी लगाए कि उन्हें काम नहीं करने दिया जाता था, केंद्र की ओर से दबाव बनाया जाता था।
कुल मिलाकर ये कहना ग़लत नहीं होगा कि पिछले आठ सालों में भारतीय जनता पार्टी के अपरिपक्व कानून, ग़लत नीतियां, तानाशाह रवैये से जारी किए गए आदेशों ने देश को बहुत पीछे धकेल दिया है।
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