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बिहार में सुशासन नहीं, गड़बड़ियों की है बहार!

कैग की ताज़ा जारी रिपोर्ट में बिहार के मेडिकल शिक्षा समेत कई विभागों की खामियां उजागर हुई हैं, जो निश्चित ही नीतीश कुमार के सुशासन के दावों से कोसों दूर हैं।
Bihar
फ़ोटो साभार: स्क्रॉल

‘क्यों करें विचार, ठीके तो है नीतीश कुमार’ ये स्लोगन बीते बिहार विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड ने दिया था। हालांकि इस नारे के जवाब में विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल ने ‘क्यों न करें विचार, बिहार जो है बीमार’ का नारा दिया था। अब बिहार के बीमार होने की बात कैग की रिपोर्ट में साबित भी हो गई है। देश के नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक यानी कैग की ताजा रिपोर्ट में बिहार की मेडिकल शिक्षा व्यवस्था को अन्य राज्यों की तुलना में पिछड़ा बताया गया है। रिपोर्ट में मेडिकल शिक्षा समेत कई विभागों की खामियां उजागर की गई हैं, जो निश्चित ही नीतीश कुमार के सुशासन के दावों से कोसों दूर हैं।

बता दें कि कैग की ये रिपोर्ट मंगलवार, 23 मार्च को विधानसभा के पटल पर रखी गई। इसमें 31 मार्च 2018 तक का प्रतिवेदन है। इस रिपोर्ट में बिल के लंबित होने से लेकर इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी से होने वाले नुकसान को सामने रखा गया है। साथ ही बिहार में मेडिकल शिक्षा, पंचायत व्यवस्था और अफसरशाही को लेकर कई गड़बड़ियां पाई गईं।

क्या है इस रिपोर्ट में?

रिपोर्ट के मुताबिक बिहार देश की कुल आबादी का 8.6 फीसदी के साथ तीसरा सबसे आबादी वाला राज्य है। एक लाख की आबादी पर सरकारी डॉक्टर-नर्स-प्रसाविका के अनुपात का राष्ट्रीय औसत 221 है, वहीं बिहार में यह अनुपात 19.74 था। इसे आबादी के हिसाब से बेहद कम माना गया है।

स्वास्थ्य व्यवस्था का बुरा हाल

सीएजी ने अपने रिपोर्ट में पाया है कि वर्ष 2006-07 से 2016-17 के बीच 12 मेडिकल कॉलेजों का निर्माण कार्य शुरु किया गया था, लेकिन वर्ष 2018 तक केवल दो मेडिकल कॉलेज कार्यरत हो सके हैं। बिहार में लक्ष्य के हिसाब से संस्थानों का निर्माण करने में पीछे है।

- रिपोर्ट के अनुसार बिहार में 2018 तक 61 नर्सिंग संस्थानों का निर्माण करने का लक्ष्य था लेकिन महज दो नर्सिंग संस्थानों का ही निर्माण हुआ। मेडिकल कॉलेज की सीटों को बढ़ाने के लिए सरकार ने कोई प्रभावी प्रयास नहीं किए।

-बिहार में एक लाख की आबादी पर फीजिशियन, आयुष चिकित्सक, दंत चिकित्सक और नर्सों की 92 फीसदी तक सीटें खाली हैं। मेडिकल शिक्षा की सभी शाखाओं में टीचिंग स्टाफ की कमी 6-56 फीसदी और नॉन टीचिंग स्टाफ की कमी 8-70 फीसदी के बीच रही। 5 मेडिकल कॉलेजों में टीचिंग घंटों में एमसीआई की शर्तों के खिलाफ 14 से 52 के बीच कमी पाई गई है। टीचिंग ऑवर में कमी का कारण फैकल्टी का न होना है।

-राज्य के मेडिकल कॉलेजों में शिक्षण में 56 प्रतिशत और गैर-शिक्षण क्षेत्र में 70 प्रतिशत सीटें खाली हैं। पांच मेडिकल कॉलेजों बेतिया मेडिकल कॉलेज, दरभंगा मेडिकल कॉलेज, आइजीआइएमएस, पीएमसीएच और एनएमसीएच में नमूना जांच किया गया है। फैकल्टी की कमी के कारण इनकी पढ़ाई में 14 से 52 प्रतिशत की कमी आयी है।

-कक्षा, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, छात्रावास समेत अन्य सभी आधारभूत संरचनाओं में कमी है। इन कॉलेजों में उपकरणों में 38 से 92 फीसदी की कमी है। मशीनों को चलाने वाले मानव बल उपलब्ध नहीं हैं। खराब पड़ी मशीनों की मरम्मती के लिए ठोस पहल नहीं की जा रही है।

पंचायती राज संस्थानों और नगरपालिकाओं में कई स्तर पर गड़बड़ी

-सीएजी की रिपोर्ट में राज्य के स्वास्थ्य क्षेत्र और नगर निकायों के साथ पंचायत क्षेत्रों कई स्तर पर गड़बड़ी की बात कही गई है। स्वास्थ्य के योजना मद में 2013 से 18 के बीच 75 प्रतिशत राशि ही खर्च हो पायी है, जो राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत शुरू किये गये निर्माण कार्यों की खराब प्रगति के कारण हुआ है।

-रिपोर्ट में कहा गया कि पंचायती राज संस्थानों और नगरपालिकाओं के सभी स्तरों पर मैन पॉवर का काफी अभाव था। पंचायत सचिव, ग्राम पंचायत स्तर पर सभी मामलों को देखने के लिए केवल एक व्यक्ति था, लेकिन राज्य स्तर पर 56 फीसदी पद खाली थे।-एलईडी लाईट की खरीद के लिए टेंडर के मूल्यांकन के दौरान न्यूनतम दर वाले टेंडर डालने वाले को नगर परिषद् के जान-बूझकर नहीं लिए जाने पर 50 लाख 33 हजार रुपये की राशि का अधिक भुगतान किया गया। लापरवाही से कूड़ेदान की खरीद पर दो शहरी निकायों को 6 करोड़ 98 लाख रुपये का नुकसान हुआ।

-2015 से 2017 के दौरान स्थानीय निकायों को जारी अनुदानों में चार हजार 621 करोड़ रुपये का उपयोगिता प्रमाणपत्र प्राप्त नहीं हुआ है। पंचायती राज विभाग ने 2015-16 में अनुदान देने में देरी करने के कारण ग्राम पंचायतों को आठ करोड़ 12 लाख रुपये ब्याज के तौर पर देना पड़ा। स्थानीय निकायों में 14वीं वित्त आयोग ने 19 अनुशंसाएं की हैं, जिसमें सिर्फ दो ही लागू हुई हैं। स्थानीय निकायों ने अपने संसाधनों से राजस्व संग्रह के लिए जरूरी कदम नहीं उठाये।

-सीवान नगर परिषद में भूमि अर्जन के लिए तीन करोड़ 15 लाख का अनियमित भुगतान किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक सरकार के 44 विभाग 46.4 हजार करोड़ रुपए खर्च नहीं कर पाए, तो वहीं 2 विभागों में 6.36 करोड़ का घोटाला भी मिला है।

मुख्यमंत्री निश्चय योजना के तहत कार्य की प्रगति संतोषजनक नहीं थी। नमूना जांच में ग्राम पंचायत में 15 प्रतिशत और नगर पालिकाओं में 24 प्रतिशत ही काम पूरा पाया गया है। राज्य स्तर पर 41 प्रतिशत कार्य पूरे हुए हैं।

कुछ अन्य क्षेत्रों की गड़बड़ी आयी सामने

राज्य सरकार ने 31 मार्च 2019 तक 188 करोड़ रुपये कर्मियों से लेने के बाद भी राष्ट्रीय पेंशन स्कीम में जमा नहीं किया है। इसके अलावा बिहार राज्य सड़क विकास निगम लिमिटेड ने 10 करोड़ रुपये मुख्यमंत्री राहत फंड ट्रस्ट में दिया है, जो कंपनी एक्ट के नियमों का उल्लंघन है।

-इस निगम ने हुडको से 193 करोड़ रुपये का गैर-जरूरी ऋण ले लिया था, जिसकी वजह से 37 करोड़ 75 लाख रुपये का ब्याज देना पड़ा। दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना में बिना वास्तविक सर्वेक्षण के विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन तैयार करने में देरी होने की वजह से परियोजना लागत में 60 फीसदी की बढ़ोतरी हो गयी, जिससे 979 करोड़ रुपये की हानि हुई है। ब्रेडा ने बिना परफॉरमेंस गारंटी नहीं वसूलने के कारण पांच करोड़ 93 लाख का अतिरिक्त बोझ पड़ा है।

-इस रिपोर्ट के मुताबिक सरकार के विभागों द्वारा खर्च नहीं कर पाने के कारण 46 हजार करोड़ की राशि पड़ी रह गई। इसमें पंचायतों को अनुदान मिलने में हुई देरी से हुए नुकसान से लेकर बिजली वितरण में गड़बड़ी के कारण सरकार को हुए नुकसान का भी ब्यौरा है।

सरकारी अफसरों और कर्मचारियों ने किया गबन

-पिछड़ा वर्ग एवं अति पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के जिला कल्याण पदाधिकारी की लापरवाही की वजह से आरा, बेगूसराय और बांका में जिन छात्रावासों के जीर्णोद्धार पर 3.47 करोड़ रुपये खर्च किया गया, उनकी जांच करने पर भवन क्षतिग्रस्त ही पाया गया। कार्यपालक अभियंताओं ने छात्रावासों के जीर्णोद्धार कार्य पूरा होने की रिपोर्ट विभाग को दी थी पर विभाग के स्तर से कार्रवाई नहीं की गई। जब CAG ने इस ओर ध्यान दिलाया तब विभागीय स्तर पर जांच में अफसरों को चिन्हित कर कार्रवाई की गई है।

-अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति कल्याण विभाग में 2.89 करोड़ रुपए गबन का मामला सामने आया है। रिपोर्ट के मुताबिक रोकड़पाल ने बच्चों के वजीफे की राशि 1.43 करोड़ रुपए अपने निजी बैंक खाते में ट्रांसफर कर लिया और इसकी भनक तक जिला कल्याण पदाधिकारी, बांका को नहीं लगी। इसी तरह विभाग की वित्तीय व्यवस्था में नियमों की अनदेखी कर 1.46 करोड़ रुपये की गड़बड़ी का मामला भी उजागर हुआ है।

बिहार राज्य पथ परिवहन निगम ने 32 वर्षों से नहीं दिया हिसाब-किताब

-कैग ने अपनी रिपोर्ट में बिहार के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के काम-काज के तरीके पर सवाल उठाया है। कैग के मुताबिक बिहार में कुल 32 सरकारी कंपनी और 3 सांविधिक निगम हैं जो कार्यशील हैं। इसमें से बिहार राज्य वित्तीय निगम और बिहार राज्य भंडारण निगम ने एक वर्ष से लेखापरीक्षा नहीं दिया। वहीं बिहार राज्य पथ परिवहन निगम ने 32 वर्षों से लेखा परीक्षा नहीं दिया है। लेखा परीक्षा प्रतिवेदन का सामान्य शब्दों में अर्थ निकालें तो इन उपक्रमों ने अपने खर्च और आमदनी का ऑडिट रिपोर्ट विधानमंडल के सामने नहीं रखा।

-बिहार में कुल सात लाभ अर्जित करनेवाले उपक्रम हैं लेकिन राज्य सरकार के पास कोई लाभांश नीति नहीं होने के कारण ये उपक्रम अपना लाभ सरकार को नहीं दे रहे हैं। साल 2015-16 में बिहार स्टेट रोड डेवलमेंट कॉपोरेशन लिमिटेड ने अपने लाभ 93.86 करोड़ में से 5 करोड़ और बिहार राज्य पुल निगम ने अपने लाभ 70 करोड़ 26 लाख में से केवल 1.05 करोड़ लाभांश सरकार को दिया था। केन्द्रीय विद्युत विनियामक आयोग विनियमन 2014 के अनुसार बिजली वितरण का सही प्रबंधन नहीं कर पाने के कारण दोनों बिजली डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों को कुल 115.23 करोड़ के बिजली बिल का नुकसान उठाना पड़ा।

-इसी तरह विभाग की वित्तीय व्यवस्था में नियमों की अनदेखी कर 1.46 करोड़ रुपये की गड़बड़ी का मामला भी उजागर हुआ है। वजीफे के विभिन्न चेक को अन्य रोकड़पाल द्वारा निजी खाते में कैश करा लिया गया। इस मामले में सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्तीय नियमों की अनदेखी पर विभाग से कार्रवाई रिपोर्ट अपेक्षित है।

-सीएजी की रिपोर्ट में यह कहा गया है कि गंगा पथ निर्माण कार्य की धीमी प्रगति के कारण ऋण की कोई आवश्यकता नहीं थी। कंपनी ने हुडको को ऋण राशि के रूप में लिए 150 करोड़ को दिसंबर 2015 में और दिसंबर 2017 में 43 करोड़ रुपए वापस कर दिए। ऋण से निकली राशि का उपयोग भी नहीं हुआ फिर भी 2013-18 के दौरान हुडको को 37.75 करोड़ रुपए ब्याज के रूप में भुगतान करना पड़ा। 

सुशासन बाबू के राज में ‘कुशासन’

गौरतलब है कि बिहार विधानसभा का हंगामा सुर्खियों में है। विपक्ष का आरोप है कि बिहार ही नहीं, देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि सदन के अंदर पुलिस बुलाई गई, एसपी और डीएम ख़ुद विधायकों को पीटने और घसीटकर बाहर करने का काम कर रहे थे। हालांकि इन सबके बीच सुशासन बाबू के नाम से फेमस नीतीश कुमार के हाथों से नीतीश कुमार की सुशासन वाली छवि जरूर फिसलती दिख रही है। खुद बिहार सरकार के आंकड़े ही इस पर सवाल उठाते हैं।

बिहार पुलिस के रिकॉर्ड के मुताबिक, 2001 में बिहार में संज्ञेय अपराधों की संख्या 95,942 थी, जो 2018 में बढ़कर 2,62,802 हो गई। अपराधों में कुछ श्रेणियां तो ऐसी हैं जिनमें दोगुनी से भी ज़्यादा बढ़ोतरी दर्ज की गई है। 2001 में रेप के 746 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि 2018 में रेप के 1,475 मामले हुए।

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