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बिहार: विधानसभा में सर्वसम्मति से आरक्षण संशोधन बिल पास, अब मिलेगा 75% रिज़र्वेशन!

जातीय आधारित आरक्षण संशोधन बिल को बिहार विधानसभा में सर्वसम्मति से पास कर दिया गया है। अब कोटे में शामिल जातियों को 75 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिल सकेगा। जानिए विस्तार से।
Nitish kumar
फ़ोटो : PTI

जनता के ज़ेहन में किन मुद्दों की पैठ होनी चाहिए, प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने के लिए कौन से पत्ते फेंके जाने चाहिए...राजनीतिक पार्टियों ने लगभग तय कर लिया है।

जैसे भाजपा का हाईकमान महंगाई, बरोज़गारी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों से हटकर मंदिर पॉलिटिक्स की पिच पर बैटिंग कर रहा है तो वहीं ‘इंडिया’ गठबंधन इस बार जनगणना का मुद्दा उठाकर वोट बटोरने का प्लान बना रहा है।

‘इंडिया’ में शामिल सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी अक्सर अपने भाषणों में जातीय जनगणना का ज़िक्र करते रहे हैं, और सरकार से मांग करते रहे हैं कि या तो नए सिरे से जनगणना कराई जाए या फिर 2011 में कराई जनगणना के आंकड़े जारी किए जाएं, ताकि लोगों को पता चले कि वो कितनी संख्या में हैं। पिछले दिनों जब सदन में महिला आरक्षण बिल पास हुआ, तब भी मौजूदा सरकार ने ये दलील दी थी कि 2030 तक जातीय जनगणना कराकर इसे लागू किया जाएगा। लेकिन इसी वक्त राहुल गांधी ने ये सवाल उठाए थे कि पिछले आंकडे क्यों जारी नहीं किए जाते, उन्होंने ये सवाल भी पूछा था कि सरकार में काम करने वाले कितने आईएएस ऑफिसर ओबीसी हैं, तब उन्होंने ख़ुद इसका जवाब 'दो' दिया था।

उधर दूसरी ओर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी अपने राज्य में जातीय आधारित जनगणना करा दी, जिसके आंकड़े भी जारी किए थे। लेकिन पिछले दिनों उन्होंने सदन में जातियों के आधार पर कुछ आर्थिक आंकड़े भी रखे, जो चौंकाने वाले थे।

कहने का मतलब ये है कि लोकसभा में विपक्ष का मुख्य मुद्दा इस बार जाति जनगणना ही होने वाला है।

इसके लिए बिहार के मुख्यमंत्री ने 9 नवंबर को विधानसभा में एक बिल पेश किया, जिसे सर्वसम्मति से पास कर दिया गया। इस बिल में पिछड़ा वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति को 65 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने की मांग की गई है। दरअसल जब नीतीश कुमार ने जातिगत जनगणना की रिपोर्ट पेश की थी, तभी उन्होंने 65 प्रतिशत आरक्षण का ऐलान किया था।

अगर इस बिल को राज्यपाल की मंज़ूरी मिल जाती है तो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण 16 से बढ़कर 20 प्रतिशत हो जाएगा। अनुसूचित जनजातियों के लिए 1 से बढ़कर 2 प्रतिशत आरक्षण किया जाएगा, पिछड़ा, अति पिछड़ा के लिए 30 से बढ़कर 43 प्रतिशत आरक्षण हो जाएगा, आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग का आरक्षण 10 का 10 प्रतिशत ही बना रहेगा। इस तरह से कुल 75 प्रतिशत आरक्षण हो जाएगा। आरक्षण का दायरा बढ़ाने के प्रस्ताव को नीतीश कैबिनेट की मंजूरी मिल चुकी है। जिसमें आरक्षण 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने का प्रस्ताव है, आर्थिक कमज़ोर वर्ग का 10 प्रतिशत जोड़े दें तो 75 प्रतिशत आरक्षण हो जाएगा।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा पटल पर बिल रखने से एक दिन पहले यानी 8 नवंबर को विधानसभा में जातिगत जनगणना के आंकड़े दिए गए, इन आंकड़ों में ये बताया गया कि प्रदेश में किस जाति के लोग कितने ग़रीब हैं..

विधानसभा में पेश किए गए जो सरकारी आंकड़े सामने आए, उसके मुताबिक़ जिन परिवारों की मासिक आय 6000 रुपये से कम हैं, उन्हें ग़रीब की श्रेणी में रखा गया है। कुछ आंकड़ों पर नज़र डालते हैं...

प्रदेश में सामान्य वर्ग यानी सवर्ण तबके के कुल परिवारों की संख्या 43,28,282 है। इनमें से 25.09 फीसदी यानी 10,85,913 परिवार ग़रीब हैं।

बैकवर्ड यानी पिछड़ा वर्ग के कुल परिवारों की संख्या 74,73,529 है। इनमें से 33.16 फीसदी यानी 24,77,970 परिवार ग़रीब हैं।

अत्यंत पिछड़ा वर्ग के कुल 98,84,904 परिवार हैं। इनमें से 33.58 फीसदी परिवार ग़रीब हैं। इनकी संख्या 33,19,509 है।

अनुसूचित जाति के कुल परिवार 54,72,024 हैं। इनमें से 23,49,111 परिवार ग़रीब हैं, जो कि कुल संख्या का 42.93 फीसदी है।

प्रदेश में अनुसूचित जनजाति के परिवारों की कुल संख्या 4,70,256 है। इनमें से 2,00,809 परिवार ग़रीब हैं। यह कुल संख्या का 42.70 फीसदी है।

अन्य जातियों के परिवारों की कुल संख्या 39,935 है। इसमें से 9,474 परिवार ग़रीब हैं यानी 23.72 फीसदी।

बिहार में सभी जातियों के परिवारों की कुल संख्या 2,76,68,930 है। इनमें से कुल ग़रीब परिवारों की संख्या 94,42,786 है। यह सभी समाज के कुल परिवारों की संख्या का 34.13 फीसदी है।

यानी एक लाइन में बिहार की आर्थिक हालत पर टिप्पणी करनी हो, तो कहा जा सकता है कि प्रदेश के 34 फीसदी से ज़्यादा परिवार महीने के 6000 रुपये भी नहीं कमा पाते हैं। कुछ और आंकड़ों पर नज़र डालते हैं...

6000-10,000 रुपये तक की मासिक आय वालों की संख्या 81,91,390 है। यह कुल संख्या का 29.61 फीसदी है।

10,000-20,000 रुपये मासिक आय वालों की संख्या 49,97,142 है। यह कुल संख्या का 18.06 फीसदी है।

प्रदेश में महीने में 20,000-50,000 रुपये तक कमाने वाले परिवारों की संख्या 27,20,870 है। यह कुल संख्या का 9.83 फीसदी है।

50 हज़ार रुपये से ज़्यादा मासिक आय वाले परिवारों की संख्या 10,79,466 है। यह कुल संख्या का 3.90 फीसदी है।

प्रदेश में कुछ ऐसे भी परिवार हैं, जिन्होंने अपनी आय की जानकारी सार्वजनिक नहीं की है। ऐसे परिवारों की संख्या 12,37,276 है। यह कुल संख्या का 4.47 फीसदी है।

सवर्णों में सबसे ज़्यादा अमीर-ग़रीब

बिहार में सवर्ण परिवारों की कुल संख्या 43,28,828 है। इनमें से 25.09 फीसदी यानी 10,85,913 परिवार ग़रीब हैं।

सवर्णों में भी भूमिहार सबसे ज़्यादा ग़रीब हैं। इनकी परिवारों की कुल संख्या 8,38,447 है। इसमें से 2,31,211 परिवार यानी 27.58 फीसदी ग़रीब हैं।

इनके बाद ग़रीब परिवारों के प्रतिशत के क्रम में देखें तो शेख, ब्राह्मण, राजपूत, पठान (खान), सैयद और फिर कायस्थ हैं।

शेख परिवारों की संख्या 10,38,888 है। इनमें से 25.84 फीसदी यानी 2,68,398 परिवार ग़रीब हैं।

ब्राह्मण परिवारों की कुल संख्या 10,76,563 है। इनमें से 25.32 फीसदी यानी 2,72,576 परिवार ग़रीब हैं।

राजपूत परिवारों की संख्या 9,53,784 है। इनमें से 24.89 फीसदी यानी 2,37,412 परिवार ग़रीब हैं।

पठान (खान) परिवार प्रदेश में 1,89,777 हैं। इनमें से 22.20 फीसदी यानी 42,137 परिवार ग़रीब हैं।

सैयद परिवारों की संख्या 59,838 है। इनमें से 17.61 फीसदी यानी 10,540 परिवार ग़रीब हैं।

कायस्थ परिवार 1,70,985 हैं। इनमें से 13.83 फीसदी 23,639 परिवार ग़रीब हैं।

दूसरे राज्य या विदेश में रहने वाले

बिहार की 13 करोड़ 7 लाख की आबादी में मात्र 3.50 प्रतिशत लोग दूसरे राज्यों में काम कर रहे हैं। विदेश में काम करने वाले 0.17 फीसदी हैं। वहीं दूसरे राज्य में काम करने वालों की संख्या 45,78,669 है। विदेश में काम करने वाले 21,7,499 हैं। इसके अलावा प्रदेश के अंदर अपने मूल निवास स्थान से दूसरे शहर या जगह पर काम करने वालों की संख्या 15,89,000 है। यह कुल आबादी का 1.22 फीसदी है। इसी तरह 13 करोड़ की कुल आबादी में से 5,52000 छात्र पढ़ने के लिए दूसरे राज्यों में गए हैं, विदेश जाने वालों छात्रों की संख्या 23,738 है।

सही मायने में जिन जातियों को साधने के लिए ये सर्वे कराए जा रहे हैं, उनकी (ओबीसी समाज) संख्या बिहार में कितनी हैं, इसके आंकड़े भी देखते हैं...

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