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पाकिस्तान में विनाशकारी बाढ़ की इकलौती वजह जलवायु परिवर्तन नहीं : अध्ययन

अध्ययन की वरिष्ठ लेखक एवं इम्पीरियल कॉलेज ऑफ लंदन में जलवायु वैज्ञानिक फ्रेडरिक ओट्टो ने कहा कि पाकिस्तान में कुछ मौसम विज्ञान संबंधी, कुछ आर्थिक, सामाजिक, ऐतिहासिक और निर्माण कार्य संबंधी तत्व इस आपदा की मुख्य वजह है लेकिन मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन ने भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
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Image courtesy : DW

इस्लामाबाद: पाकिस्तान में पिछले महीने आयी विनाशकारी बाढ़ की इकलौती वजह केवल जलवायु परिवर्तन नहीं है बल्कि कई वर्षों में जो मानवीय हस्तक्षेप बढ़ा है उसका भी इस तबाही में पूरा हाथ है। एक नए वैज्ञानिक अध्ययन में यह जानकारी सामने आयी है।
    
अध्ययन की वरिष्ठ लेखक एवं इम्पीरियल कॉलेज ऑफ लंदन में जलवायु वैज्ञानिक फ्रेडरिक ओट्टो ने कहा कि पाकिस्तान में कुछ मौसम विज्ञान संबंधी, कुछ आर्थिक, सामाजिक, ऐतिहासिक और निर्माण कार्य संबंधी तत्व इस आपदा की मुख्य वजह है लेकिन मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन ने भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
     
दरअसल, पाकिस्तान के दो दक्षिणी प्रांतों सिंध और बलूचिस्तान में पिछले महीने हुई 50 प्रतिशत अधिक बारिश की वजह जलवायु परिवर्तन होने की आशंका जतायी गयी है।
     
एक वक्त तो इस बाढ़ के कारण देश का एक तिहाई हिस्सा जलमग्न हो गया था। इन दोनों प्रांतों.. सिंध और बलूचिस्तान का आकार स्पेन के बराबर है।
     
ओट्टो ने कहा कि जो हुआ वह अत्यधिक बारिश की घटना थी लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण हालात और बदतर हो गए। उन्होंने कहा, ‘‘और खासतौर से इस अत्यधिक संवदेनशील क्षेत्र में छोटे-छोटे बदलाव भी काफी मायने रखते हैं।’’
     
उन्होंने कहा कि लेकिन अन्य मानवीय वजहें भी हैं जिन्होंने लोगों की जान खतरे में डाली। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की अध्ययन की सदस्य आएशा सिद्दीकी ने कहा, ‘‘यह आपदा मानवीय हस्ताक्षेप का नतीजा है जो पिछले कई वर्षों में किया गया।’’
     
वैज्ञानिकों ने न केवल 1961 के बाद की बारिशों के रिकॉर्डों का अध्ययन किया बल्कि उन्होंने कम्प्यूटर सिमुलेशन का इस्तेमाल भी किया।
     
इस्लामाबाद में जलवायु परिवर्तन एवं सतत विकास केंद्र के जलवायु वैज्ञानिक फहाद सईद ने कहा कि इस मानसून में सामान्य से अधिक बारिश में कई तत्वों ने योगदान दिया, जिसमें ला नीना भी शामिल है।
     
ला नीना उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र, कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच प्रशांत महासागर के क्षेत्र में सामान्य से अधिक ठंडे पानी की गतिविधियों के कारण होता है। 

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