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तिरछी नजर: चलो बुलावा आया है...

राजस्थान‌ के चुनाव परिणाम तो यही दिखा रहे हैं कि मीराबाई का बुलावा भी फल ही गया। सरकार जी को राजस्थान में बहुमत मिलता दिख रहा है।
PM
Photo :PTI

सरकार जी तेईस नवम्बर को मथुरा गए और वहां बताया कि मीराबाई ने उनको बुलाया है। सरकार जी को एक और बुलावा आ गया। सरकार जी हैं ही ऐसे कि उनको बुलावा आता ही रहता है। बात भी ठीक है बड़े लोगों को बुलावा आता ही रहता है। अब मीराबाई जी का पांच सौ पच्चीसवां जन्म दिन था तो मीरा बाई ने सरकार जी को बुलावा भेज दिया।

सरकार जी खुद कहीं नहीं जाते हैं। तभी जाते हैं जब बुलावा आता है। मीराबाई की पांच सौवीं जयंती भी मनाई होगी, पच्चीस वर्ष पहले। परन्तु सरकार जी नहीं गए क्योंकि बुलावा नहीं आया था। बुलावा गया भी नहीं होगा क्योंकि सरकार जी तब देश के सरकार जी नहीं थे। देश तो छोड़ो, गुजरात के सरकार जी भी नहीं थे। और जैसा कि मैंने पहले ही कहा, बुलावा बड़े लोगों को ही आता है।

आम जनता को तो माता का ही बुलावा आता है। 'चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है' कहते कहते लोग दशकों से ऊंचे ऊंचे पहाड़ लांघ लेती है। आम जनता को कहीं और से बुलावा नहीं आता है। पर सरकार जी को आता है और हर ओर से आता है, हर समय आता है। और सरकार जी जहां कहीं भी जाते हैं, बुलावे पर ही जाते हैं।

सरकार जी को बुलावा विदेशों से भी आता है। पहले अधिक आता था। पर बुरा हो इस कोरोना का, इसने सरकार जी की विदेशी बुलावों पर ऐसी रोक लगाई है कि अभी तक ढंग से नहीं खुली है। आमने सामने की मीटिंग की बजाय वर्चुअल मीटिंग से काम चला लिया जाता है। वरना तो पहले सरकार जी को देश से बुलावा भेजना पड़ता था। आ जाओ सैंया, कसम तुम्हारी, तुम्हें चुनाव बुला रहे हैं।

सरकार जी, जब तक बुलावा नहीं आता है, अपने आप कहीं भी नहीं जाते हैं। वाराणसी जाते हैं तो बताते हैं कि इसलिए आए हैं कि उन्हें तो गंगा मैया ने बुलाया है। सरकार जी को कभी केदारनाथ की गुफा ध्यान लगाने के लिए बुलाती है तो कभी उज्जैन में महाकाल का मंदिर पूजा के लिए बुलाता है। और वह बुलावा सबसे अधिक तभी फलता फूलता है जब उस दिन बुलाया जाए जिस दिन वोट पड़ रहे हों। और बुलावे में सरकार जी के साथ कैमरा, फोटोग्राफर, रील, वीडियो, सीधा प्रसारण सभी कुछ जाता है। वैसे भी सरकार जी तो इन सबके बिना कभी भी कहीं भी जाते ही नहीं हैं। अपनी मम्मी जी से मिलने जाते थे तब भी इन्हें साथ ही लेकर जाते थे।

मीराबाई ने जब बुलावे के लिए सोचा तो पता चला जन्म की तारिख तो पता ही नहीं है। बस साल पता है। पुराने जमाने में ऐसा ही होता था। तारीख का ध्यान कौन रखता था लोग तो साल भी भूल जाते थे। पर मीराबाई के जन्म का साल पता था तो तारीख निकाल ली गई। तेईस नवम्बर। बड़ी ही माकूल तारीख थी। राजस्थान में वोट पड़ रहे थे और मीराबाई राजस्थान‌ से ही हैं। राजस्थान में वोट पड़ रहे हों टीवी पर मीराबाई के जन्मोत्सव का सीधा प्रसारण हो रहा हो तो कुछ न कुछ फर्क पड़ेगा ही।

और मीराबाई ने बुलाया तो ना तो मेवाड़ में बुलाया जहां‌ उनका जन्म हुआ था और न ही आमेर, जयपुर में‌ जहां उनका प्राचीन, चार सौ वर्ष से अधिक पुराना मंदिर है। वहां बुलातीं तो तेईस नवम्बर को कैसे बुलातीं। उस दिन तो राजस्थान में वोट पड़ रहे थे। और बुलाना भी तेईस नवम्बर को ही था क्योंकि उसी दिन तो राजस्थान में लोग वोट डाल रहे थे। तो मथुरा में बुला लिया। जब वोट पड़ रहे हों तो सरकार जी को कहीं ना कहीं से बुलावा आ ही जाता है। तो इस बार मीराबाई ने ही बुला लिया। मथुरा में ही बुला लिया। ठीक वोटिंग के दिन ही बुला लिया।

और यह बुलावा भी फल ही गया। राजस्थान‌ के चुनाव के परिणाम तो यही दिखा रहे हैं कि मीराबाई का बुलावा भी फल ही गया। सरकार जी को राजस्थान में बहुमत मिलता दिख रहा है। अब सरकार जी को जोड़ तोड़ के लिए समय ही निकालना पड़ेगा और अपना पूरा समय देश के विकास में लगा सकेंगे।

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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