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पंजाब में कपास, मक्का की पैदावार में 2050 तक 11 और 13 प्रतिशत की कमी का अनुमान

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) की मौसम पत्रिका में इस महीने की शुरुआत में प्रकाशित अध्ययन में पांच प्रमुख फसलों-धान, मक्का, कपास, गेहूं और आलू पर जलवायु परिवर्तन के असर को दिखाने के लिए 1986 से 2020 के बीच बारिश तथा तापमान के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है।
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फ़ोटो साभार: PTI

नयी दिल्ली: जलवायु परिवर्तन के कारण पंजाब में 2050 तक मक्का की पैदावार में 13 प्रतिशत और कपास की पैदावार में 11 प्रतिशत तक कमी आने का अनुमान है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के कृषि अर्थशास्त्रियों और वैज्ञानिकों के एक नए अध्ययन में यह बात कही गई है।

देश में कुल अनाज की करीब 12 प्रतिशत खेती पंजाब में होती है।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) की मौसम पत्रिका में इस महीने की शुरुआत में प्रकाशित अध्ययन में पांच प्रमुख फसलों-धान, मक्का, कपास, गेहूं और आलू पर जलवायु परिवर्तन के असर को दिखाने के लिए 1986 से 2020 के बीच बारिश तथा तापमान के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है।

अनुसंधानकर्ताओं ने पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की पांच वेधशालाओं-लुधियाना, पटियाला, फरीदकोट, बठिंडा और एसबीएस नगर से आंकड़े एकत्रित किए।

कृषि अर्थशास्त्री सन्नी कुमार, वैज्ञानिक बलजिंदर कौर सिडाना और पीएचडी शोधार्थी स्मिली ठाकुर ने कहा कि जलवायु से जुड़े परिवर्ती कारकों में दीर्घकालिक बदलाव दिखाते हैं कि अधिकांश परिवर्तन तापमान में वृद्धि के कारण होते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘सबसे पेचीदा निष्कर्षों में से एक यह है कि न्यूनतम तापमान में बदलव से सभी मौसमों में औसत तापमान में परिवर्तन आया। इसका मतलब है कि न्यूनतम तापमान में वृद्धि का दौर दिखा है।’’

इसमें कहा गया है कि न्यूनतम तापमान में वृद्धि धान, मक्का और कपास की पैदावार के लिए हानिकारक है। इसके विपरीत, न्यूनतम तापमान बेहद ज्यादा होना आलू और गेहूं की खेती के लिए फायदेमंद है।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘खरीफ और रबी के मौसम में फसलों पर जलवायु का असर अलग-अलग होगा। खरीफ फसलों में धान और कपास के मुकाबले मक्का की खेती तापमान तथा बारिश पर अधिक निर्भर करती है। 2050 तक मक्का की पैदावार में 13 फीसदी तक की कमी आने का अनुमान है। वहीं, कपास की पैदावार करीब 11 प्रतिशत और धान की पैदावार लगभग एक फीसदी तक घट सकती है।’’

अनुसंधानकताओं ने कहा कि हमारे निष्कर्ष उस दावे को पुख्ता करते हैं कि भविष्य का जलवायु परिदृश्य बहुत अच्छा नहीं होगा। 

अध्ययन से यह पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के लिहाज से उन्नत तकनीक और तौर-तरीके अपनाने की किसानों की क्षमता बढ़ाने के लिए उन्हें वित्तीय संस्थानों से जोड़ने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।

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