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पूर्वी राजस्थान के ज़िलों में पानी की कमी से ईआरसीपी बना चुनावी मुद्दा

भाषा |
पूर्वी राजस्थान के जिले घरेलू और सिंचाई, दोनों तरह की जरूरतों के लिए पानी की कमी से जूझ रहे हैं।
ERCP
प्रतीकात्मक तस्वीर। विकिमीडिया कॉमन्स

‘‘हमें हर दूसरे दिन केवल 5-10 मिनट पानी मिलता है, गर्मी हो या सर्दी, यह दुश्वारी कभी खत्म नहीं होती है।’’ यह कहना है अलवर जिले में कबीर कॉलोनी की निवासी ऊषा का, जहां पानी की कमी इस बार एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बन गया है।

पूर्वी राजस्थान के जिले घरेलू और सिंचाई, दोनों तरह की जरूरतों के लिए पानी की कमी से जूझ रहे हैं। इसके चलते मॉनसून के दौरान चंबल नदी के अतिरिक्त पानी को मोड़ने के लिए पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) एक राजनीतिक मुद्दा बन गई है। यह परियोजना वर्षों से राजनीतिक खींचतान में फंसी हुई है।

कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया है कि वह जानबूझकर ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा नहीं दे रही है, जबकि भारती जनता पार्टी (भाजपा) का आरोप है कि राजस्थान की सत्ताधारी पार्टी योजना पर अमल करने के लिए सकारात्मक कदम उठाने के बजाय केवल राजनीति कर रही है।

पूर्व की भाजपा सरकार ने इस क्षेत्र के 13 जिलों के निवासियों की सिंचाई और पेयजल समस्या के स्थायी समाधान के लिए ईआरसीपी का प्रस्ताव किया था।

कांग्रेस ने क्षेत्र की 83 विधानसभा सीट पर मतदाताओं को लुभाने के लिए ईआरसीपी को राष्ट्रीय दर्जा देने की मांग उठाई है। इस मुद्दे को हवा देते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ‘ईआरसीपी पर केंद्र के विश्वासघात के खिलाफ यात्रा’ अक्टूबर में बारां से शुरू की और उन्होंने अन्य पूर्वी जिलों का भी दौरा किया।

वर्ष 2018 में राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से गहलोत ईआरसीपी को राष्ट्रीय दर्जा देने की मांग करके भाजपा नीत केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं।

वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र के 13 जिलों की 83 विधानसभा सीट में से कांग्रेस ने 49 सीट पर जीत दर्ज की जबकि भाजपा को केवल 25 सीट पर जीत मिली। निर्दलीय उम्मीदवार आठ सीट पर विजयी रहे जबकि राष्ट्रीय लोक दल को एक सीट पर जीत मिली।

अपने माता-पिता के साथ रह रहीं और घरेलू सहायिका के रूप में काम करने वाली ऊषा ने कहा, ‘‘ मैं उस व्यक्ति को वोट दूंगी जो हमारी पानी की समस्या का समाधान कर सकता हो, लेकिन एक बार जीतने के बाद वे कुछ नहीं करते।’’

पॉश इलाके के निवासी भी पानी की किल्लत की शिकायत कर रहे हैं और कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि उन्हें तीन दिन में एक बार पानी की आपूर्ति होती है।

मनु मार्ग के एक निवासी गीत ने कहा, ‘‘हम टैंकरों पर निर्भर हैं। स्कीम 8 में मेरे दोस्त हैं जो शाम को कहीं बाहर नहीं जा पाते क्योंकि उन्हें हर दो दिन में सिर्फ 15 मिनट के लिए पानी की आपूर्ति होती है। हर क्षेत्र में हालात खराब हैं।’’

अशोक गहलोत सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके और अलवर (ग्रामीण) से कांग्रेस उम्मीदवार टीकाराम जूली ने कहा कि क्षेत्र में जल संकट एक प्रमुख मुद्दा है और उन्होंने नागरिकों से वादा किया है कि वह ईआरसीपी के जरिये अलवर में पानी लाएंगे।

जूली ने कहा, ‘‘मैं मुख्य रूप से पानी की समस्या पर ध्यान दे रहा हूं। यह समस्या सभी गांवों में है।’’

जूली ने ‘पीटीआई-’ से कहा, ‘‘एक विधायक के रूप में मैंने कई गांवों में ट्यूबवेल लगवाया था और लोगों को राहत देने के लिए कई योजनाओं को मंजूरी दी थी। लेकिन भूजल के अभाव में योजनाएं ठीक से काम नहीं कर रही हैं। हम कुछ साल पहले भी एक योजना लाए थे जिसके जरिए हमने यहां चंबल का पानी लाने को मंजूरी दी थी, लेकिन इस बीच महामारी आ गई। ’’

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