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EXCLUSIVE: बीएचयू की लड़कियों ने पूछा, "मोदी जी ! हमारे मन की बात क्यों नहीं सुनते?"

शाम के समय लड़कियों को लंका गेट से हॉस्टल आते वक़्त सुनसान रास्ते से होकर गुज़रना पड़ता है। बीएचयू कैंपस में महिला सुरक्षा कर्मचारियों की तैनाती नहीं की गई है। शोहदे अक्सर लड़कियों को छेड़ने की फिराक में रहते हैं। इस वजह से भी छात्राएं खुद को कैंपस में अनसेफ महसूस करती हैं।
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विज्ञान एवं अभियांत्रिकी में शोध के लिए देश भर में विख्यात आईआईटी-बीएचयू में बीटेक की छात्रा के साथ छेड़छाड़ और निर्वस्त्र कर वीडियो बनाए जाने की खौफनाक वारदात ने कैंपस की पुख्ता सुरक्षा इंतजाम की कलई उतार दी है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में पढ़ने वाली छात्राएं और उनके अभिभावक अंदर से बुरी तरह हिल गए हैं। छात्राओं को लगता है कि बीएचयू कैंपस सुरक्षित नहीं है। सुरक्षा के नाम पर छात्राओं पर सिर्फ बंदिशें लादी जा रही हैं। लड़कियों की सुरक्षा के मामले में जो शिकायतें दो-तीन दशक पहले थीं, वही आज भी हैं। छेड़छाड़ और यौन उत्पीड़न के मामले सामने आते हैं तो विश्वविद्यालय प्रशासन लड़कियों के माथे पर मढ़कर खुद किनारे हो जाता है।

बीएचयू कैंपस कितना सुरक्षित है और वहां छात्राओं की सुरक्षा के क्या इंतज़ाम किए गए हैं, यह जानने के लिए ‘न्यूजक्लिक’ ने कैंपस की गहन पड़ताल की। साथ ही सुरक्षा का मुद्दा उठाने वाली बीएचयू की कई छात्राओं से बात भी की। छात्राओं का कहना है कि बीएचयू कैंपस कुछ बिगड़ैल युवाओं के लिए मटरगश्ती का केंद्र बनकर रह गया है। कैंपस में आउट साइडर के घूमने पर कोई पाबंदी नहीं है। तमाम बाइकर्स बीएचयू की सड़कों पर दिन-रात फर्राटे भरते नजर आते हैं, जिसके चलते हादसे होते हैं और छेड़छाड़ की वारदातें भी। विश्वविद्यालय का कैंपस बहुत बड़ा है। सीसीटीवी कैमरों की बात छोड़ दीजिए। सुनसान रास्तों पर रात के समय न तो सुरक्षा गार्ड नजर आते हैं और न ही लाइटें जलती हैं।

साफ-साफ दिखती है कुव्यवस्था

बीएचयू के ज्यादतर गर्ल्स हॉस्टल बहुत अंदर बने हुए हैं। लड़कियों को अक्सर बॉयज हॉस्टल पार कर जाना पड़ता है। इस वजह से कई बार उन्हें छींटाकशी तो कभी-कभी उन्हें छेड़खानी का शिकार होना पड़ता है। कैंपस में सुरक्षाकर्मियों पर हर साल करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन उनकी ड्यूटी सिर्फ प्रशासनिक अफसरों के आवासों और प्रमुख चौराहे पर ही लगाई जाती है। कैंपस में छात्राओं की सुरक्षा के लिए कोई मुकम्मल इंतजाम नहीं है।

छात्राओं का कहना है कि बीएचयू कैंपस में प्रकाश की व्यवस्था नहीं के बराबर है। शाम के समय लड़कियों को लंका गेट से हॉस्टल आते वक्त सुनसान रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है। बीएचयू कैंपस में महिला सुरक्षा कर्मचारियों की तैनाती नहीं की गई है। शोहदे अक्सर लड़कियों को छेड़ने की फिराक में रहते हैं। इस वजह से भी छात्राएं खुद को कैंपस में अनसेफ महसूस करती हैं। इस मुद्दे को लेकर छात्राओं ने कई मर्तबा कुलपति से लगायत सभी आला अफसरों से शिकायत की, लेकिन नतीजा वही-ढाक के तीन पात।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में आने-जाने के लिए मुख्य रूप से तीन गेट हैं। मुख्य गेट सिंघ द्वार लंका, पूरब में छित्तूपुर द्वार, पश्चिम में हैदराबाद गेट है। इन गेटों से आम नागरिक भी आते-जाते हैं। इस वजह से भी छात्राओं के साथ छेड़खानी की वारदातों को बल मिलता है। छात्राओं का आरोप है कि छेड़खानी की वारदातों की जानकारी मिलने पर बीएचयू प्रशासन फौरी तौर पर एक्शन नहीं लेता। वह अक्सर कैंपस की बदनामी होने की बात कहकर मामले को दबाने की कोशिश में जुट जाता है।

बीएचयू कैंपस में हाल के कुछ सालों में छेड़खानी और छींटाकशी की घटनाएं बढ़ी हैं। छात्राएं आंदोलन-प्रदर्शन करती हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन को पुख्ता सुरक्षा के बाबत पत्रक देती हैं, अफसर वादा भी करते हैं, लेकिन स्थिति जस की तस रहती है। साल 2023 में छेड़खानी की कई संगीन वारदातें हुईं, लेकिन शि‍कायत के बाद आरोपितों पर कोई एक्शन नहीं हुआ।

क्या कहती हैं छात्राएं

बीएचयू की कुछ छात्राओं ने कैंपस और छात्रावासों के अपने कुछ अनुभव ‘न्यूजक्लिक’ से साझा किया। छात्राओं का कहना है कि उनकी बात पीएम नरेंद्र मोदी तक जरूर पहुंचनी चाहिए ताकि वह भी उनके 'मन की बात' जान सकें। भगत सिंह छात्र मोर्चा की अध्यक्ष आकांक्षा आजाद बीएचयू की छात्रा हैं। वह कहती हैं, "सुरक्षा के अपर्याप्त इंतज़ाम का बीएचयू अकेला नमूना नहीं है। बनारस में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ और संस्कृत विश्वविद्यालय में भी तो स्थिति और भी ज्यादा बदतर है। पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था का न होना, पूर्वांचल के सभी शिक्षण संस्थाओं की सच्चाई है। वहां न तो पर्याप्त सुरक्षाकर्मी हैं और न ही कोई सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद करने के लिए एक-दोर बार नहीं, अनेक मर्तबा लिखा गया है, पर कोई सुने तब ना।"

"बीएचयू प्रशासन निजी सुरक्षाकर्मियों की भर्ती को प्रोत्साहित करता है, जिसका फायदा निजी कंपनियां उठाती हैं। यहां जितने सुरक्षाकर्मी चाहिए, उसके आधे की नियुक्ति नहीं हैं। बीएचयू में जो भर्तियां होती हैं, वे लोग भी प्रशिक्षित नहीं होते और कम पैसे पर भर्ती किए जाते हैं। हम सिर्फ व्यवस्था को कोसते हैं और बीएचयू का कोई अफसर यह जिम्मेदारी ईमानदारी से उठाना नहीं चाहता। असुरक्षा के चलते बनारस में शिक्षा के बेहतर माहौल का विकास नहीं हो पा रहा है।"

बीएचयू में बेटियां अनसेफ

समाजशास्त्र परास्नातक की पढ़ाई कर रहीं सिद्धि कहती हैं, "आईआईटी छात्रा के साथ छेड़छाड़ व बदसलूकी को लेकर बीएचयू के स्टूडेंट्स यदि आंदोलन और प्रदर्शन के लिए मजबूर हो रहे हैं तो वो सिर्फ़ एक दिन की अकेली घटना नहीं थी। सच्चाई यह है कि कैंपस में छेड़छाड़ की घटनाएं आए दिन होती रहती हैं। बीएचयू की छात्राएं अक़्सर ये महसूस करती हैं कि वह यहां सुरक्षित नहीं (अनसेफ) हैं। सीसीटीवी कैमरे भले ही नहीं लगे हैं, लेकिन सुरक्षा गार्डों का असहयोगात्मक रवैया तो और भी हैरान करने वाला होता है। कुछ साल पहले एक छात्रा के साथ छेड़छाड़ के विरोध में छात्राएं सड़क पर उतरीं तो पुलिस ने लाठीचार्ज किया। ऐसा लगा, मानो छात्राएं कोई जघन्य अपराधी हों।"

बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ के नारे पर सवाल उठाते हुए सिद्धि कहती हैं, "बेटियों की सुरक्षा के विज्ञापनों पर सरकार जितना धन खर्च कर ही है उतना सुरक्षा इंतजाम पर किया जाता तो शायद बीएचयू में आईआईटी छात्रा की तरह शर्मनाक वारदात नहीं होती। आईआईटी छात्रा के साथ हुई घटना से कैंपस की हर छात्रा दुखी है और उनके अभिभावक भी। छात्राओं के मन की बात सुनने की बात तो दूर, मोदी जी ने छात्रा के साथ हुई घिनौनी वारदात के बाद सांत्वना देने के लिए दो शब्द तक नहीं बोल सके। यह स्थिति तब है जब बनारस उनका संसदीय क्षेत्र है।"

मोदी जी हमारे मन की बात भी सुनें

फ्रेंच ऑनर्स की स्टूडेंट भूमि कहती हैं, "मोदी जी मन की बात अक़्सर करते हैं, लेकिन हमारा आग्रह है कि कम से कम हमारे मन की बात तो सुन लीजिए। यह सिर्फ़ यह चाहते हैं कि बीएचयू कैंपस और छात्रावासों में ऐसी व्यवस्था हो जिससे कि छात्राओं को आंदोलन और प्रदर्शन का रास्ता न अपनाना पड़े। आमतौर पर लड़कियां सड़क पर उतरकर अपनी सुरक्षा की आवाज तभी उठाती हैं जब हैवानियत की सीमाएं टूटने लगती हैं। हमारा सवाल यह भी है कि वो जिस बनारस को क्योटो बनाने चले थे, उस बनारस में बेटियां खुद को कब महफूज महसूस करेंगी? हमारी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी आखिर घर से बाहर किसकी है? अगर सरकार और बीएचयू प्रशासन के बस में कुछ भी नहीं है तो बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का जुमला नहीं उछाला जाना चाहिए।"

भगत सिंह छात्र मोर्चा से जुड़ी काजल इस बात से आहत नजर आती हैं कि छेड़छाड़ की वारदात होने पर बीएचयू के अफसर छात्राओं को ही कोसते हैं। हर वारदात के बाद लड़कियों से यही सवाल किया जाता है कि रात में वो क्यों निकलती हैं? काजल कहती हैं, "पिछले दिनों नेत्रहीन छात्रा के साथ छेड़छाड़ की वारदात हुई तो बीएचयू प्रशासन सख्त एक्शन लेने के बजाय लीपापोती करता रहा। हम सालों से मांग उठा रहे हैं कि बीएचयू में महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2012 और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (महिला कर्मचारियों के यौन उत्पीड़न की रोकथाम, निषेध और निवारण) की संस्तुतियों को लागू करने के लिए GSCASH का गठन किया जाए। छात्राओं की मांग यहां सालों-साल से खारिज की जा रही है।"

सारे नियम सिर्फ छात्राओं के लिए

स्नातक द्वीतीय वर्ष की छात्रा नीतू को लगता है कि बीएचयू में मर्दवादी समाज का वर्चस्व है। यही वजह है कि छात्राओं के साथ छोड़छाड़ की जघन्य वारदात के बाद भी यहां का प्रशासन खामोशी की चादर ओढ़कर बैठ जाता है। वह कहती हैं, "बीएचयू में सारे नियम-कानून सिर्फ लड़कियों के लिए हैं, लड़कों के लिए नहीं। हमें हॉस्टल पहुंचने पर तनिक भी देर होती है तो वार्डन की तल्खी सुनने को मिलती है-तुम समय से हॉस्टल आया-जाया करो। बाहर क्यों घूमती हो? वार्डन से यह भी सुनना पड़ता है कि ज्यादा दिक्कत है तो हॉस्टल से निकल जाओ और लंका पर कमरे ले लो। तब मेरी आत्मा रोने लगती है और यह साफ-साफ पता चल जाता है कि अपने देश में बेटे-बेटियों के लिए अलग-अलग नियम और अलग-अलग कानून हैं। लड़के कभी भी बाहर जाते और हम ठंड में शाम 6:30 बजे और गर्मियों में 7 बजे जेल (हॉस्टल में) में बंद कर दिए जाते हैं। हमें आजादी का यहां रंचमात्र भी एहसास नहीं होता है।"

एक खास विचारधारा का बोलबाला

बीए आनर्स की छात्रा आवंतिका सिंह से बीएचयू में लड़कियों की आजादी और सुरक्षा पर बात हुई तो वह भावुक हो उठीं। कहा, "कितनी अजीब बात है कि महामना ने लाइब्रेरी बनाई तो सिर्फ लड़कों के लिए। हम रात में लाइब्रेरी भी नहीं जा सकते। बीएचयू में शुरू से ही एक ख़ास विचारधारा का बोलबाला रहा है। लड़कियां भले ही यहां बाहर से पढ़ने आती हों, लेकिन उन्हें लेकर बीएचयू के प्रशासनिक अफसरों की सोच में कोई फ़र्क नहीं है। वो हमारे खुलापन और आज़ादी को बर्दाश्त नहीं कर सकते। चाहे प्राध्यापक हों, कर्मचारी हों या फिर ख़ुद महिला छात्रावासों की वॉर्डन। बीएचयू में गर्ल्स स्टूडेंट्स की स्वच्छंदता किसी को पसंद नहीं है। यही वजह है कि लड़कियों को कोसने के बजाय उनकी सुरक्षा का इंतजाम करने की जरूरत नहीं समझी जाती है।"

बीएचयू के महिला महाविद्यालय में सांख्यिकी ऑनर्स की स्टूडेंट अंजली आईआईटी छात्रा के साथ हुई वारदात से काफी भयभीत नजर आईं। वह कहती हैं, "बचपन से ही बीएचयू में पढ़ने का सपना जब साकार हुआ तो मैं बहुत खुश थी। रैंक अच्छी होने की वजह से मुझे हॉस्टल भी मिल गया। महामना जी की बगिया का वैभव सोच के अनुरूप ही था। बेटियों के हक़ के लिए लड़ने की प्रेरणा मुझमें चरम पर थी, लेकिन धीरे-धीरे हालात बदलते चले गए। कुछ ही दिनों में हमें पता चल गया कि महामना की बेटियां असुरक्षित हैं। कुछ ही दिनों में लड़ाई, झगड़ा, छेड़छाड़ सब देखने को मिल गया। छेड़खानी की समस्या तो यहां बहुत आम है और इसके ख़िलाफ़ यदि आवाज़ उठी है तो अच्छा है, लेकिन कुछ लोग इसकी आड़ में रोटियां सेंकने की कोशिश कर रहे हैं, जो हम नहीं होने देंगे।"

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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