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किसान-मज़दूर महापड़ाव: "सरकार हमारी मांग नहीं मानती है तो हम इस सरकार को ही बदल देंगे"

देशभर में राजभवनों के पास मज़दूर किसानों के तीन दिन के महापड़ाव की शुरुआत हो चुकी है।
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देशभर में राजभवनों के पास मज़दूर किसानों के तीन दिन के महापड़ाव की शुरुआत हो चुकी है। दिल्ली, हरियाणा , पंजाब, तमिलनाडु, बिहार, झारखंड, हिमाचल, उत्तर प्रदेश, असम साहित देश के लगभग सभी राज्यों की राजधानी में किसान मज़दूर बड़ी संख्या मे जुटे और राजभवन का घेराव किया।

ये महापड़ाव केन्द्र सरकार की मज़दूर विरोधी, किसान विरोधी, जन विरोधी व राष्ट्र विरोधी नीतियों के खिलाफ मजदूरों और किसानों की मांगों की हिफाजत में केन्द्रीय ट्रेड यूनियन संगठनों व संयुक्त किसान मोर्चा ने साझा रूप से किया है । 

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी उप राज्यपाल के निवास के बाहर सैकड़ों मज़दूर किसान जुटे। इस दौरान उन्होंने राज्य और केंद्र सरकार की मज़दूर और किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ़ नारेबाजी की। इस महापड़ाव में इनके समर्थन में वकील, बुद्धिजीवी, छात्र और कलाकार भी जुटे थे। 

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किसान मजदूरों के साझा मंच ने कहा कि देश के मजदूरों, किसानों और देश में संपदा पैदा करने वाले उत्पादक वर्ग के अधिकारों पर हमला बहुत तेजी से बढ़ा है। केन्द्र सरकार पूरी हठधर्मिता के साथ आगे बढ़ रही है। देश में अधिकारों के लिए चल रहे संघर्षों को कुचल रही है। विरोध की आवाज को दबा रही है।

इसके साथ ही उन्होंने निजीकरण को लेकर भी सवाल उठाए और कहा कि लोगों के धन से खड़े सार्वजनिक संस्थानों का निजीकरण किया जा रहा है। स्थायी रोजगार देने वाले क्षेत्र, हवाई अड्डों, राजमार्ग, रेलवे, बैंक, आयुध फैक्ट्रियों, एल.आई.सी., जी.आई.सी. आदि को पूंजीपतियों के हवाले करने की नीति ने नौजवानों के स्थाई रोजगार पाने के सपनों को तोड़ दिया है। नौजवानों द्वारा देश के निर्माण में अपने बौद्धिक और शारीरिक श्रम से योगदान देने की उम्मीदों को खत्म कर दिया है।

संयुक्त ट्रेड यूनियन मंच के नेता अनुराग सक्सेना ने कहा कि ये सरकार मज़दूर किसानों के हकों पर हमला कर रही है। और जो उनके पक्ष में बोलता है उसे केन्द्र सरकार, राज्य के संस्थान ईडी सीबीआई व अन्य जांच एजेंसियों के जरिए परेशान करने का काम कर रही है। यूएपीए जैसे काले कानून लगाकर विरोध की आवाज को कुचल रही है। केन्द्र में सरकार बनाने के जरिए साम्प्रदायिक जहर का इस्तेमाल कर लोगों की एकता को तोड़कर, बंटवारा कर रही है।

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में मजदूरों की हालत लगातार खराब हो रही है। यहां मज़दूर को सरकारी तय न्यूनतम वेतन नहीं मिलता है। सरकार को मजदूरों के हक में कानून मजबूत करना चाहिए इसके विपरीत वो मालिको के पक्ष में कानून बना रही है। 

भारतीय किसान यूनियन टिकैत के नेता दलजीत भी दिल्ली के महापड़ाव में अपने साथियों के साथ शामिल हुए थे। उन्होंने कहा कि दिल्ली के किसान का दुर्भाग्य है उसे कोई भी सरकार किसान नहीं मानती है। इसलिए उसे किसान होने का कोई लाभ नहीं मिलता है। हम अपनी समस्या और मुद्दे तो लाए ही हैं, लेकिन ये महापड़ाव इसलिए भी है क्योंकि मोदी सरकार की किसान विरोधी नीति के कारण देश में कृषि संकट बढ़ता जा रहा है। दिल्ली के बॉर्डरों पर चले ऐतिहासिक किसान आंदोलन के बाद सरकार द्वारा किए गए सब वादों को भी पूरा नहीं किया गया। लंबे समय से लंबित किसानों की मांग सभी फसलों के लिए गारंटीकृत लागत का डेढ़ गुना दाम को भी सरकार द्वारा लगातार अनदेखा किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि सरकार किसानों से वादाखिलाफी कर रही है। पुराने केसों में किसानों को बुलाया जा रहा है और उन्हें चुप कराने का प्रयास हो रहा है। जबकि सरकार ने लिखित में कहा था कि वो सभी मुकदमों को वापस लेगी। 

उन्होंने कहा कि सरकार हमारी मांग नहीं मांगती हैं तो हम इस सरकार को ही बदल देंगे। 

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दिल्ली में धरने में इंटक, एटक, एच.एम.एस., सीटू, ए.आई.यू.टी.यू.सी., टीयूसीसी, सेवा, ऐक्टू, एलपीएफ, यू.टी.यू.सी., एम.इ.सी., आई.सी.टी.यू, ए.आई.के.एस, ए.आई.के.एम, भा.कि.यू. (टिकैत) व एस.के.एम. के कई संगठन शामिल हुए। 

मज़दूर संगठन एक्टू की नेता सुचेता डे ने कहा कि दिल्ली के मजदूरों का दोहरा शोषण हो रहा है, जहां एक तरफ उसे उसके काम का दाम नहीं मिलता है, दूसरी तरफ जी20 के नाम पर सरकार हजारों मजदूरों के घरों पर बुलडोजर चलवा देती है।

मज़दूर अधिकारों के लिए काम करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने कहा कि दिल्ली एनसीआर देश के विकास, जीडीपी में योगदान करने वाला महत्वपूर्ण केन्द्र है। परंतु देश की चकाचौंध बनाने वाले उत्पादक वर्ग मज़दूर किसान की खुद की हालत पूरे देश की ही तरह यहां भी दयनीय बना दी गई है। हम दिल्ली एनसीआर के मेहनतकशों को अपने मौजूदा हालत बदलने के लिए आगे आना होगा।

उन्होंने कहा कि अब लोग भी जागरूक हो रहें हैं और अपने हक के लिए संघर्ष कर रहे हैं। महापड़ाव में उत्पादक वर्ग की एकता यही दिखाती है। 

मज़दूर संगठन सेवा की नेता लता ने कहा कि ये महापड़ाव दो दिन यहां रहेगा। इसके बाद 28 को संसद भवन के पास विशाल धरना होगा। ये सिर्फ दिल्ली नहीं बल्कि पूरे देश में मज़दूर किसान सड़कों पर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। 

महापड़ाव की मुख्य मांगें 

• चार लेबर कोड रद्द करो।

• सभी को समाजिक सुरक्षा (इलाज, बुढ़ापा पेंशन, दुर्घटना बीमा, मृत्यु बीमा इत्यादि) दो।

• बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 वापस लो।

• ठेकाकरण बंद करो! स्थायी और सम्मानजनक जीवन जीने लायक रोजगार दो।

• सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का निजीकरण बंद करो।

• शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मौलिक सेवाओं का निजीकरण बंद करो।

• फसल की लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करो। सभी फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद सुनिश्चित करो।

• घोषित न्यूनतम वेतन 17,494/- रु. अकुशल, 19,279/-रु. अद्धकुशल, 21,215/- रु. कुशल श्रमिक को सख्ती से लागू करो।

• ईएसआई, पीएफ और बोनस कानून में संशोधन कर वेतन की सीमा को 31,000/- करो।

• 26,000 रुपये मासिक न्यूनतम वेतन लागू करो। 10,000 रुपये मासिक पेंशन लागू करो।

• ई-श्रम कार्ड में पंजीकृत सभी 32 लाख असंगठित क्षेत्र के मेहनतकशों को समाजिक सुरक्षा योजना बना कर लागू करो।

• अंसगठित क्षेत्र के महिलाओं और पुरुषों को कामगार की मान्यता दी जाये।

• घरेलू कामगार, रेहड़ी-पटरी कामगार, घर खाता कामगार, कचरा प्रबंधक कामगार, निर्माण श्रमिक, आशा-आंगनवाड़ी-मिड डे मिल वर्कर, ई-रिक्शा, ऑटो चालक तथा परिहवन क्षेत्र के अन्य चालक-परिचालक, पल्लेदार आदि तमाम कामगारों के वेतन तथा सामाजिक सुरक्षा के लिए कानून बनाओ।

• कारखानों/संस्थानों में सुरक्षा सुनिश्चित करो। महिला श्रमिक के लिए समान वेतन की नीति लागू करो, उत्पीड़न व भेदभाव बंद करो।

• 13 महीने चले किसान आंदोलन को दबाने के लिए बनाए गए फर्जी मुकदमें वापस लो।

• सरकारी विभागों को बेचने वाली 'नेशनल मोनिटाईजेशन पाइपलाइन' योजना रद्द करो।

• 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून को लागू करते हुए अधिग्रहित ज़मीन के बदले 4 गुना मुआवजा, परिवार के सदस्य को रोज़गार, भूमिहीनों को ज़मीन तथा 10 फीसदी अधिग्रहित विकसित भूमि को वापस करो।

• लखीमपुर खीरी में किसानों व पत्रकार की हत्या के मुख्य साजिशकर्ता अजय मिश्रा टेनी को केन्द्रीय गृह राज्य मंत्रीमंडल से हटाओ व उन पर मुकदमा दर्ज करो। किसानों से किए गए वादे पूरे करा।

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