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ग्राउंड रिपोर्ट : लागत न मिलने से परेशान टमाटर के किसान, सड़कों पर फेंका जा रहा टमाटर

"भारत में सिर्फ़ खेती-किसानी ही एक मात्र ऐसा संसाधन है जिसने भीषण मंदी और कोरोना के दौर में देश की अर्थव्यवस्था को बचाए रखा और लोगों को भूखों नहीं मरने दिया। आज वही किसान अपनी उपज सड़कों पर फेंकने को मजबूर हो रहे हैं। जहां टमाटर की खेती रकबा ज़्यादा है, वहां मंडियों में इसका दाम चार-पांच रुपये मिल रहा है।"
tomato farming
टमाटर तोड़ने में जुटी महिलाएँ

"हुजूर! टमाटर की खेती ने हमें बर्बाद कर दिया…। मैं मामूली किसान हूं। पांच बीघा में टमाटर की खेती की है और हमारे चार लाख रुपये खर्च हो गए हैं। टमाटर को कोई पूछने वाला नहीं है। लागत तक नहीं निकल रही है। कुछ टमाटर खेत में फेंक दिया। बाजार में टमाटर का दाम नहीं मिला तो दर्जनों कैरेट टमाटर हमें घर के पिछवाड़े फेंकना पड़ा। लगता है कि हमारे नसीब फूट गए हैं। रातों की नींद गायब हो गई है। घर की हालात ऐसी है जैसे मइयत पड़ी हो। समझ में नहीं आ रहा है कि हमारे जैसे किसान क्या करें?"

रुँधे गले से अपनी बेबसी और मुश्किलों का इजहार करने वाले ये किसान हैं सोनभद्र स्थित घोरावल इलाके के खुटहनिया (बरबसपुर) गांव के बंशनारायण। ये अपने पांच बच्चों के साथ दिन-रात टमाटर की खेती में जुटे रहते हैं। दिन में खेती में और रात में फसलों की रखवाली में दिन कट रहा है। मगर इनके टमाटर का हाल यह है कि पांच रुपये किलो के भाव कोई नहीं पूछ रहा। उन्होंने कुछ टमाटर अपने खेत में तोड़कर फेंक रखा है तो कुछ अपने घर के पिछवाड़े। चिंता में डूबे वंशनारायण कहते हैं, "टमाटर के खेतों में दिन-रात निराई-गुड़ाई करते-करते हमारे बेटे सियाराम बीमार हो गए। इलाज पर हजारों रुपये खर्च हो गए पर तबीयत में ज्यादा सुधार नहीं हुआ है। खेतों से निकल रहा टमाटर गाय-भैंसों को भी नहीं खिला सकते, क्योंकि ऐसा करने पर वो भी बीमार हो जाएंगे।"

वंशनारायण

यह हालात सिर्फ वंशनारायण की ही नहीं,  बल्कि पूर्वांचल के सोनभद्र, मिर्जापुर, भदोही, गाजीपुर, जौनपुर, चंदौली और बनारस समेत ज्यादतर जिलों की है। सबसे बदतर स्थित सोनभद्र के किसानों की है। इस जिले में हजारों किसानों ने करीब 1100 हेक्टेयर मे सिर्फ टमाटर की खेती की है। सोनभद्र के करमा में 4000 एकड़ और राबर्ट्सगंज व घोरावल प्रखंड में प्रखंड में तीन-तीन हजार एकड़ में टमाटर की खेती की गई है। सोनभद्र के चतरा, नागवा, चोपन, बभनी, म्योरपुर, दुद्धी और कोन प्रखंड के कई गांवों में भी सैकड़ों किसानों ने टमाटर उगा रखा है। हालांकि उद्यान महकमे ने शासन को जो रिपोर्ट भेजी है उसमें जिले में सिर्फ 8000 एकड़ में टमाटर की खेती का ब्योरा दिया गया है।

कौड़ियों के भाव बिक रहा टमाटर

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सिर्फ यूपी के पूर्वांचल, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार से ही नहीं, बंगलूरू और महाराष्ट्र का टमाटर भी देश की मंडियों में पहुंच रहा है। इसके चलते यहां इसके दाम धड़ाम हो गए हैं। कम दाम मिलने से टमाटर की खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है। सब्जी मंडियों में टमाटर कौडियों के भाव बिक रहा है और इसकी खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है। सोनभद्र के खुटहनिया गांव के किसानों का हाल बहुत ज्यादा खराब है। समूचे गांव ने सिर्फ टमाटर और मिर्च की खेती कर रखी है। यहां मिले सूर्यमणि यादव ने ‘न्यूजक्लिक’ से कहा, "सोनभद्र के जिस भी गांव में जाएंगे, टमाटर की खेती करने वाले किसानों की बदहाली की दास्तां एक जैसी ही मिलेगी। पिछले साल टमाटर का रेट ठीक था तो अबकी रकबा बढ़ा लिया। एक लाख रुपये खर्च कर खेती के लिए किराये पर जमीन ली। फसल अच्छी हुई। बेचने की बारी आई तो भाव इतना ज्यादा नीचे चला गया कि हमारी नींद ही उड़ गई। अब सिर पर हाथ रखकर बैठने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है। चिंता हमें खाए जा रही है कि आखिर फसल की लागत कैसे निकलेगी? जिस दुकान से हमने कीटनाशक दवा खरीदी थी, वो सारा पैसा उधार पड़ा है। दवा और खाद इस शर्त पर उधार लिया था कि टमाटर बिकते ही चुका देंगे। अब समझ में नहीं आ रहा है कि उसकी भरपाई कैसे करें?"

किसान सूर्यमणि यादव

घोरावल इलाके के खुटहनिया गांव के किसान सुरेश बियार और चिंतामणि का हाल भी कुछ ऐसा ही है। चिंतामणि बताते हैं, "टमाटर तोड़ने का खर्च तक नहीं निकल पा रहा है। टमाटर की लाली हमें बर्बाद कर रही है। हमारे जैसे तमाम किसानों ने अब टमाटर की तोड़ाई बंद करा दी है। सोनभद्र की सीमा पर सटे अंबिकापुर (छत्तीसगढ़) और मध्य प्रदेश के किसानों की स्थिति भी हमारे जैसी ही है। वहां किसानों ने सड़कों पर टमाटर फेंक कर सरकार की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ अपने गुस्से का इजहार किया है।"

टमाटर तोड़तीं महिला श्रमिक

सोनभद्र के तिलौली गांव में अपने खेतों में टमाटर की तोड़ाई करा रहीं मनोरमा पटेल से ‘न्यूजक्लिक’ ने बात की तो उनकी आंखों में आंसू डबडबाने लगे। इनके पति भूसे के कारोबारी हैं और मनोरमा खेतों की देखभाल करती हैं। इनके तीन बच्चे हैं जो छोटी कक्षाओं में पढ़ते हैं। इनके पास खुद की पांच बीघा जमीन है। टमाटर की खेती के लिए और छह बीघा जमीन किराये पर लिया है। वह कहती हैं, "पिछले साल चार बीघे में टमाटर की खेती की थी और कुछ ही महीनों में करीब साल पांच लाख रुपये कमा लिए थे। अबकी खरीफ सीजन में सूखा पड़ा तो सोचा की धान की बजाए टमाटर और मिर्च ही लगा दें। छह बीघे में टमाटर और दो बीघे में मिर्च लगाया। ताजा स्थिति यह है कि टमाटर के 25 किलो का कैरेट सिर्फ 150 से 200 रुपये तक में बिक पा रहा है, यानी  चार से पांच रुपये किलो। ढुलाई के एवज में तीन किलो टमाटर अधिक देना पड़ता है। टमाटर तोड़ने वाली महिलाएं रोजाना दो सौ रुपये मजूरी लेती हैं। आमतौर पर एक श्रमिक एक दिन में एक कुंतल से ज्यादा टमाटर नहीं तोड़ पाता है। छह बीघा टमाटर की खेती में फसल आने से पहले 85 हजार का पेस्टिसाइट (दवा), 20 हजार का उर्वरक और इतने का खर्च बीज की नर्सरी तैयार करने पर लगा है। एक साल तक खेती के लिए 01 लाख 8 हजार रुपये जमीन के किराये पर खर्च करना पड़ा है। खाद, निराई, गुड़ाई और सिंचाई का खर्च मिला दें तो सब कुछ घर से जा रहा है।"

महिला किसान मनोरमा

मनोरमा कहती हैं, "कीटनाशक विक्रेता का 85 हजार रुपये बकाया है। उधारी चुकाने के लिए हमारे पास पैसा नहीं है। सिर्फ एक उम्मीद भर बची है कि टमाटर का भाव चढ़ेगा तो मुनाफा होगा। तब शायद टमाटर फेंकने की नौबत नहीं आएगी, मगर नहीं लगता कि इस बार हम दुकानदारों का कर्ज चुका पाएंगे। शायद अगले साल ही घाटे की भरपाई कर पाएंगे। हमारे खेत और हालात को देखिए और बताइए कि क्या हमें टमाटर का वाजिब दाम मिल पा रहा है? सरकार किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात करती है। जब टमाटर सड़कों पर फेंका जाएगा तो किसानों का भला कैसे होगा और कैसे सुधरेगी देश की जीडीपी?"

सोनभद्र में करमा, मद्धूपुर और घोरावल ऐसे इलाके हैं जो ‘लाल सोना’ के नाम से मशहूर हैं। कुछ साल पहले तक टमाटर की खेती सचमुच इस इलाके में सोना की बरसा रही थी। भाजपा सरकार ने जब से कारपोरेट घराने के लिए मंडी कानून बदला है और अनाज व सब्जियों को कहीं भी खरीदने-बेचने का नियम बनाया है तब से किसानों की बदहाली का नया दौर शुरू हो गया है। यूपी में लागू नए मंडी कानून की मार खासतौर पर सब्जियों की खेती करने वाले किसानों पर पड़ रही है और मुनाफा कूट रहे हैं आढ़ती व बिचौलिया।

बेख़बर है योगी सरकार 

सोनभद्र के किसी भी गांव में जाएंगे तो मीलों दूर तक सिर्फ टमाटर के खेत और उन खेतों में काम करते किसान-मजदूर ही देखने को मिलेंगे। जायद के सीजन में राबर्ट्सगंज की मंडी टमाटरों से पट जाया करती है। इस यहां टमाटर की बंपर पैदावार हुई है। पत्रकार शशिकांत चौबे कहते हैं, "सोनभद्र का टमाटर सिर्फ पूर्वांचल ही नहीं, गल्फ कंट्री के अलावा बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल के काठमांडू तक भेजा जाता रहा है। बाजार अच्छा होने के कारण अब छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर और मध्य प्रदेश के किसान अपना टमाटर लेकर यहीं बेचने चले आ रहे हैं। जब सोनभद्र के किसानों का टमाटर ही नहीं बिक रहा है तो अंबिकापुर का हाल क्या होगा? यहां उम्दा किस्म का टमाटर फुटकर बाजार में छह-सात रुपये के भाव में मिल रहा है। ऐसे में समझा जा सकता है कि थोक में टमाटर बेचने वालों का हाल क्या होगा? सरकार को चाहिए को वह यह सुनिश्चित करे कि 15 से 20 रुपये से कम दाम पर टमाटर न बिके, लेकिन शासन-तंत्र में किसानों की बदहाली को लेकर तनिक भी चिंता नजर नहीं आ रही है।"

तिवारीपुर के प्रगतिशील किसान मनीष तिवारी की बातों पर यकीन करें तो सोनभद्र के किसान प्रायः हर साल टमाटर की लाली पर इलाके के किसान लुट जाया करते हैं। शायद ही कोई ऐसा साल गुजरा होगा जब टमाटर का भाव दो रुपये प्रति किलो के रेट से न बिका हो। जब भी खेतों में एक साथ टमाटर निकलने लगता है तो आढ़तिये औने-पौने दाम पर टमाटर खरीदने लग जाते हैं और लिखी जाने लगती है किसानों की तबाही की पटकथा। साल 2021 को छोड़ दें पिछले सात-आठ सालों से हालात ऐसे ही हैं।

किसान मनीष तिवारी

घोरावल इलाके में अपने खेत में अपने परिवार से साथ टमाटर तोड़ रहे किसान संतोष तिवारी से ‘न्यूजक्लिक’ ने बात की तो उनका दर्द जुबां पर उभर आया। बोले, "हमारे दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। समझ में नहीं आ रहा है कि उनकी फीस कैसे जमा करें? बारिश के दगा देने से धान की खेती चौपट हो गई। चार बीघा जमीन पर टमाटर उगाया। इसकी खेती से एक बड़ी उम्मीद जगी थी, मगर इन दिनों तोड़ाई तक का पैसा नहीं निकल पा रहा है। पिछले साल भी मैंने टमाटर लगाया था तब एक कैरेट (25 किग्रा) दो हजार रुपये में बिका जाया करता था। अबकी 150-200 में ही बिक पा रहा है। टमाटर चाहे जितना भी उम्दा क्यों न हो, राबर्ट्सगंज की मंडी में उसे कोई नहीं पूछ रहा है। टमाटर से हमें लाखों का घाटा उठाना पड़ा है। उम्मीद थी कि यह भाव खेती पूरी होने तक और भी बढ़ जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हमें तो यही लगता है कि महंगाई कम करने के लिए सरकार किसानों की बलि ले रही है।"

किसान संतोष तिवारी

हालात से मजबूर किसान

सोनभद्र में संतोष तिवारी सरीखे न जाने किताने किसानों को अपनी समूची लागत गंवानी पड़ रही है। टमाटर उगाने में खासी मेहनत लगती है और ज्यादा खर्च भी करना पड़ता है। मंडियों में कौड़ियों के भाव बिक रही उपज के चलते बहुत से किसानों ने खेतों से अब टमाटर तोड़ना ही बंद कर दिया है। लाचारी का आलम यह कि इस इलाके के ज्यादातर किसान बेहद हताश और निराश हैं। तीन हफ्ते पहले तक राबर्ट्सगंज मंडी में 12 से 15 रुपये किलो में टमाटर बिक रहा था। दक्षिण भारत का टमाटर देश की विभिन्न मंडियों में आने से कीमतों में गिरावट आ गई। सोनभद्र के खैरपुर के प्रगतिशील किसान संजय पटेल, सेवथा के केशनाथ, रामलाल कहते हैं, "दाम कम मिलने से टमाटर की खेती का खर्च पूरा नहीं निकल पा रहा है। अगर टमाटर 20 रुपये किलो से कम कीमत पर बिकता है तो मुनाफे की उम्मीद नहीं की जा सकती है। दरअसल, टमाटर की फसल उगाने में जोखिम ज्यादा है। योगी सरकार चाहिए कि वह टमाटर उत्पादकों को कीटनाशक दवाओं के अलावा खाद पर अनुदान दे। साथ ही टमाटर का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करे, तभी मंडियों में दाम स्थिर रहेंगे।"

दसियों साल से टमाटर की खेती कर रहे सोनभद्र के तेनू गांव के रमेश यादव कहते हैं कि टमाटर की खेती आसान नहीं है। लागत बहुत लगानी पड़ती है। उनके जब यह पूछा गया कि आखिर इलाके के किसान टमाटर ही क्यों उगा रहे हैं और दूसरी सब्जियों की खेती क्यों नहीं करते? वह कहते हैं, "कम लगाओ तो मंडी ले जाने में खर्च चले जाते हैं। दूसरी बात, कारोबारी तभी खेत में आते हैं जब ज्यादा माल मिलता है। घोरावल इलाके के ज्यादातर किसान तीन से पांच एकड़ टमाटर अथवा मिर्च की खेती करते हैं। सोनभद्र में महीनों खेत में कड़ी मेहनत के बाद भी अपनी उपज पर घाटा उठा रहे किसानों के सामने यह स्थिति पहली बार नहीं है, इससे पहले भी किसानों को सड़कों पर अपनी उपज फेंकने के लिए मजबूर होना पड़ा है। सोनभद्र के करमा और घोरावल प्रखंड में तो कई बार ऐसे हालात पैदा हुए हैं जब किसान अपना टमाटर लेकर राबर्ट्सगंज की मंडी में गए तो व्यापारी उन्हें मुश्किल से एक-दो रुपये किलो के हिसाब से उपज खरीदने के लिए तैयार थे। वाजिब दाम न मिलने पर अक्सर किसानों को मंडी परिसर के अंदर अथवा खेतों में टमाटर फेंकने पड़ते हैं।"

टमाटर के खेत

तिलौली गांव में टमाटर की खेती करने वाले किसान नरेंद्र सिंह पटेल बताते हैं, "हमारे पास अपनी पिकअप गाड़ी है, जिससे टमाटरों की ढुलाई करते हैं। हमारी गाड़ी अक्सर टमाटर लाने के लिए बिहार, छत्तीसगढ़ में भी जाती है और मध्यप्रदेश में भी। छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर, बालोद, धमतर, राजनांदगांव समेत कई जिले टमाटर की खेती के लिए मशहूर हैं। वहां भी व्यापारी किसानों से एक-दो रुपये प्रति किलो के भाव पर टमाटर खरीद रहे हैं। कुछ किसानों ने बेचने से इनकार करते हुए टमाटरों को फेंक देने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं। आखिर किसान करें भी तो क्या करें? "

उम्मीदों की मौत

सोनभद्र के प्रगतिशील किसान एवं पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह हैं, "भारत में सिर्फ खेती-किसानी ही एक मात्र ऐसा संसाधन है जिसने भीषण मंदी और कोरोना के दौर में देश की अर्थव्यवस्था को बचाए रखा और लोगों को भूखों नहीं मरने दिया। आज वही किसान अपनी उपज सड़कों पर फेंकने को मजबूर हो रहे हैं। जहां टमाटर की खेती रकबा ज्यादा है, वहां मंडियों में इसका दाम चार-पांच रुपये मिल रहा है। सोनभद्र में टमाटर के उत्पादकों की तोड़ाई का खर्च भी नहीं निकल रहा है, फिर भी योगी सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी हुई है !" सरकार की नीति और नीयत पर सवाल उठाते हुए वह कहते हैं, "क्या योगी सरकार के सभी अस्त्र चुक गए हैं अथवा बर्बाद हो रहे किसानों को राहत देने के लिए उसके पाकेट में सिर्फ थोथे वादे और हवा-हवाई घोषणाएं हैं? टमाटर उत्पादक किसानों का मटियामेट हो रहा भविष्य बचाने के लिए क्या योगी सरकार के पास कोई पुख्ता कोई योजना नहीं है?"

राजेंद्र यह भी कहते हैं, "अनाज की तरह सब्जियों पर भी एमएसपी लागू होना चाहिए, ताकि भाव का सही फायदा उत्पादकों को मिले और उपभोक्ताओं का हित भी न मारा जाए। यह तभी संभव है जब सरकार धरातल में उतर काम करेगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोनभद्र में टमाटर और मिर्च का प्रोसेसिंग प्लांट लगाने की योजना तैयार की थी, मगर वह नौकरशाही की लापरवाही की भेंट चढ़ गई। सरकार को चाहिए कि वह यहां सूप बनाने वाली फैक्ट्री लगवाए। अफसोस यह है कि भाजपा सरकार बातें तो बड़ी-बड़ी करती है, लेकिन करती कुछ भी नहीं है।"

वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कुमार कहते हैं, "टमाटर का पौधा दक्षिण अमरीका से दक्षिणी यूरोप होता हुआ इंग्लैंड पहुंचा था। 16वीं शताब्दी से इसे अंग्रेज भारत लाए थे। दुनिया में चीन के बाद सर्वाधिक टमाटर का उत्पादन भारत में होता है। सिर्फ एशिया ही नहीं, समूची दुनिया ने अपने व्यंजनों में टमाटर को शामिल कर लिया है। इसके बावजूद कौड़ियों के भाव टमाटर का बिकना चिंता की बड़ी वजह है। थोक कारोबारियों के अलावा रिलायंस फ्रैश जैसी बड़ी कंपनियां भी टमाटर खरीदने-बेचने का धंधा करने लगी हैं। ये कंपनियां जब चाहती हैं, टमाटर का रेट गिरा देती हैं और जब चाहती हैं चढ़ा देती हैं। कोरा सच यह है कि मोदी सरकार सिर्फ दो पूंजीपतियों के हाथों में खेल रही है। इनको लाभ पहुंचाने के लिए कानून बनाए जा रहे हैं अथवा संशोधन किए जा रहे हैं। असली चांदी तो बिचौलिए काट रहे हैं। एक तरफ किसानों के घर का चूल्हा बुझ रहा है और दूसरी तरफ उपभोक्ताओं की थाली से सब्जियां लापता हो रही हैं। बड़े औद्योगिक घरानों की तिजोरियां भरती जा रही हैं। मेरा सीधा मानना है कि सरकार ने ठीके से ध्यान नहीं दिया और चुनिंदा औद्योगिक घरानों से मोह नहीं तोड़ा तो आने वाले दिनों में देश को भयावह स्थिति का सामना करना पड़ेगा।"

प्रदीप कहते हैं, "सरकार कहती तो है हम कृषि और किसानों के हित में काम कर रहे हैं, लेकिन उसके मन तो असल बात यह छुपी हुई है कि सारी खेती और खेत कारपोरेट घरानों के हाथ में चला जाए। बाकी सारे उत्पादक और छोटे व्यवसाइयों पर इन घरानों का कब्जा पहले से ही हो चुका है। बाकी बचे दो महत्वपूर्ण क्षेत्र खेती-किसानी और धर्म ये भी इनके निशाने पर हैं, जिसे किसी तरह से कारपोरेट घराने हथिया लेना चाहते हैं। इसका ताजा-तरीन उदाहरण वाराणसी का काशी विश्वनाथ कारिडोर है जहां धीरे-धीरे सारा चढ़ावा औद्योगिक घरानों की तिजोरी में पहुंचने लगा है। धर्म के जरिये कमाई के कुछ रास्ते बन चुके हैं और कुछ बनाए जा रहे हैं। अच्छी बात यह है कि देश के किसानों ने सरकार की तुगलकी नीतियों का डटकर विरोध किया, जिसके चलते घुटनों पर आना पड़ा। इनकी मंशा अभी भी साफ नजर नहीं आ रही है। आज पीएम गाहे-बगाहे सीना ठोंककर दावा करते हैं कि भारत दुनिया को खिला सकता है, मगर हाल ऐसा ही रहा तो उनके इस दावे की हवा निकल जाएगी। सबसे बड़ी आशंका तो इस बात की है सरकार की इस तुगलकी नीति से कहीं भारत का हाल भी श्रीलंका जैसा न हो जाए।"

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