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समकालीन विश्व परिदृश्य में परमाणु युद्ध का बढ़ रहा ख़तरा

"आज पूरी दुनिया पर नाभिकीय (परमाणु) युद्ध का ख़तरा बढ़ता जा रहा है। दुनिया में हर नाभिकीय ख़तरे के पीछे अमेरिकी सरकार है।"
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6 अगस्‍त को पटना में अखिल भारतीय शांति व एकजुटता संगठन (ऐप्सो) द्वारा हिरोशिमा दिवस के मौके पर 'मैत्री शांति भवन' में एक विमर्श  का आयोजन  किया गया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए ऐप्सो के कार्यालय सचिव जयप्रकाश ने  विषय प्रवेश करते हुए बताया  "आज पूरी दुनिया पर नाभिकीय युद्ध का खतरा बढ़ता जा रहा है दुनिया में हर नाभिकीय खतरे के पीछे अमेरिकी सरकार है।"

बिहार ऐप्सो के  महासचिव  ब्रज कुमार पांडे ने जर्मनी के बिस्मार्क सहित उदाहरण देते हुए कहा '' इंग्लैंड, फ्रांस, स्पेन और पुर्तगाल ने एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अधिकांश देशों को अपने कब्जे में लिया हुआ था। अतः जब जर्मनी का एकीकरण हुआ तब उसके पास कोई बाजार नहीं था।  पहला विश्व युद्ध इसी  बाजार के बंटवारे के लिए आयोजित किया गया था। विश्वयुद्ध में जर्मनी के हारने के बाद उसपर कड़ी शर्तें थोपी गई।  इसे वर्साई संधि भी कहा जाता है । जर्मनी को  नंगा,कमजोर करने का प्रयास इंग्लैंड और फ्रांस ने किया। इसके बाद युद्ध रोकने के लिए लीग ऑफ नेशंस बना। लेकिन अमेरिका ने लीग ऑफ नेशंस में रहने से यह कहते हुए इनकार कर दिया की वह तटस्थ है।  ठीक ऐसा ही इटली के साथ हुआ ।अब इटली और जर्मनी ने मिलकर दूसरा विश्वयुद्ध शुरू किया। इस युद्ध में 5 करोड़ लोग मारे गए। युद्ध के अंत में अमेरिका ने एटम बम हिरोशिमा पर गिरा दिया। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद विश्व शांति परिषद का गठन शांति व एकजुटता कायम करने के मकसद से किया गया था।  आज फिर से तीसरे विश्व युद्ध का खतरा मंडराता जा रहा है। वर्तमान शताब्दी विचारहीन शताब्दी है। एक अधिकांश देशों में दक्षिणपंथी  शक्तियां सत्ता में है। यह नाभिकीय युद्ध के लिए  बड़ा खतरा है।"

सर्वोदय शर्मा ने अपने संबोधन में कहा " साम्रज्यवाद दरअसल मानव के भीतर सृजन और विनाश की ताकतों के बीच की लड़ाई है। वैचारिक रूप से रूस समाजवाद के कैंप से बाहर हो गया है  । यूक्रेन को आप नाटो में क्यों ले जाना चाहते हैं ? क्या मकसद है।  यदि अमेरिका की गुलामी भी स्वीकार कर ले फिर भी बात नहीं बनेगी। अमेरिका में सैन्य-औद्योगिक गठजोड़ सबसे खतरा बन चुका है। अमेरिका पूरी दुनिया को अपने तलवे के नीचे लाना चाहता है।  अब चीन, रूस और उत्तर कोरिया नजदीक आ रहे हैं। अमेरिका किसी देश की संप्रुभता को बर्दाश्त नहीं कर सकता।"

अधिवक्ता लक्ष्मीकांत तिवारी ने अपने संबोधन में कहा " जब जापान में एटम बम गिराए गया तो मानव शरीर जीते जी पिघल गया। एटम बम के बाद हाइड्रोजन  बम, नाइट्रोजन बम आदि बनाए जो और अधिक खतरनाक होता चला गया।"

ऐप्सो के अध्यक्ष मंडल सदस्य रामबाबू कुमार ने कहा " रूस- यूक्रेन युद्ध दो देशों के बीच युद्ध नहीं है बल्कि रूस और अमेरिका के मध्य युद्ध है जो अमेरिकी धरती पर लड़ा गया। इसके पीछे कॉरपोरेट पूंजी है।"
 
सभा को पटना विश्विद्यालय में पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के प्रोफेसर  सुधीर कुमार  ने भी संबोधित किया।

कार्यक्रम में शहर के बुद्धिजीवी, समाजिक कार्यकर्ता तथा ऐप्सो के कार्यकर्तागण मौजूद थे। प्रमुख लोगों में थे कुलभूषण गोपाल, कपिलदेव वर्मा, कौशल किशोर झा, चंद्रबिन्द सिंह, राजकुमार शाही, हाजीपुर से के. एन सिंह, कटिहार से देव कुमार झा , बाढ़  से भोला शर्मा,  मोकामा से कमलेश शर्मा, छपरा से सुरेंद्रनाथ त्रिपाठी,  जहानाबाद से दिनेश प्रसाद,  मुजफ्फरपुर से अशोक गुप्ता, श्रमजीवी पत्रकारों के नेता, अमरमोहन,  तंजीम -ए- इंसाफ के  इरफान अहमद फातमी, प्राथमिक शिक्षकों के नेता भोला पासवान, गोपाल शर्मा, कुलभूषण गोपाल, आनंद शर्मा, अच्युतानंद सिंह, आदि मौजूद थे।

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