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IISER पुणे: एक होनहार स्कॉलर का करियर शुरू होने से पहले ही ख़त्म?

गाइड पर यौन शोषण का आरोप लगाने वाली छात्रा की बीते क़रीब एक साल से फेलोशिप बंद है, वे अभी भी मेडिकेशन पर हैं।
IISER Pune

क्या आप सोच सकते हैं कि एक ब्रिलियंट गोल्ड मेडलिस्ट छात्रा जिसे देश के प्रतिष्ठित भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (IISER), पुणे में दाखिला मिला हो, वो एक रोज़ अपनी ज़िंदगी खत्म करने की ठान लेगी और आत्महत्या की कोशिश करेगी। यही नहीं इस छात्रा ने देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से भी एक पत्र के ज़रिए इच्छा मृत्यु (मर्सी किलिंग) की मांग की है। ये छात्रा IISER पुणे की पीएचडी स्कॉलर है और इस वक्त 'सिस्टम से लाचार' एक मरीज़ की तरह अपने घर के बिस्तर पर गुमसुम पड़ी हुई है। चूंकि इस स्कॉलर ने अपने गाइड पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं, इसलिए हम छात्रा की निजता के लिए उनके असली नाम की जगह इस खबर में उन्हें महिमा के नाम से जानेंगे।

महिमा भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले IISER पुणे से इंटीग्रेटेड पीएचडी कर रही हैं। उन्होंने 2016 में इस संस्थान में दाखिला लिया था और अब जब उन्हें संस्थान से डिग्री लेकर अपने करियर में आगे बढ़ना था, तभी संस्थान ने उन्हें डिग्री देने से मना कर दिया। महिमा का आरोप है कि "उनके गाइड ने उनसे यौन फेवर की डिमांड की, जिसे पूरा न करने पर उनकी थीसिस किसी और के नाम पब्लिश करवा दी। और अब जब मामला दिल्ली हाई कोर्ट में है, तो उन्हें लगातार इस केस को वापस लेने के लिए प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से धमकाया जा रहा है।"

पुलिस, मंत्रालय और राष्ट्रपति को लिखा पत्र

महिमा न्यूज़क्लिक को बताती हैं कि महिमा और उनके परिवार ने IISER पुणे के पदाधिकारियों के साथ ही शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, मंत्रालय से जुड़े अन्य अधिकारियों और राष्ट्रपति को भी इस संबंध में कई पत्र लिखे हैं। यौन उत्पीड़न की शिकायतों को लेकर उन्होंने राष्ट्रीय महिला आयोग और दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) का भी दरवाज़ा खटखटाया, जहां उन्हें सिर्फ डीसीडब्लू से सहायता मिली। हालांकि परिवार का कहना है कि ये मदद भी पुलिस स्टेशन में लगभग नाकाफी सी साबित हुई और मामला जस का तस वहीं लटका रह गया है।

महिमा के परिजनों का कहना है कि "वे महिमा की ज़िंदगी को लेकर परेशान और हताश हैं क्योंकि ना तो उसे अदालत से त्वरित न्याय मिल पा रहा है और न ही IISER पुणे से पीएचडी की डिग्री। बीते करीब एक साल से उनकी फेलोशिप भी बंद है, साथ ही उनके आगे के करियर का रास्ता भी।" महिमा अभी भी मेडिकेशन पर हैं और उनके परिवार का कहना है कि वे अपने सपनों को रोज़ मरता हुआ देख रही हैं।

महिमा आरोप लगाते हुए कहती हैं कि "उनके गाइड उन्हें असहज करने वाले कथित अश्लील वीडियो और मैसेज भेजते थे। वो महिमा को लगातार परेशान भी कर रहे थे और जब महिमा ने उनकी इन बातों की अनदेखी की, तो महिमा का थीसिस किसी अन्य छात्रा के नाम से उन्होंने पब्लिश करवा दी। महिमा ने इस पर आपत्ति जताई, लेकिन कोई खास असर नहीं हुआ। महिमा ने दोबारा थीसिस लिखी, इस बार फिर से उसी पुरानी छात्रा को को-ऑथर बना दिया गया। जिससे एक बार फिर महिमा की थीसिस उसकी अकेले की नहीं रही, जिस पर डिग्री अवार्ड की जा सके। इन दोनों मामलों की शिकायत संस्थान की हाई लेवल कमेटी तक भी पहुंची लेकिन एक्शन के नाम पर गाइड को सिर्फ एक साल किसी छात्र को गाइड के तौर पर नहीं नियुक्त करने का फैसला किया गया। लेकिन महिमा का गाइड नहीं बदला गया। जबकि महिमा ने अपने डायरेक्टर को साफ-साफ यौन शोषण की भी शिकायत की थी।"

संस्थानों में आईसीसी की सक्रियता पर सवाल?

ध्यान रहे कि हमारे देश के सभी संस्थानों में फिर वो शिक्षा के हों या खेल के या फिर दफ्तर, आईसीसी यानी इंटरनल कंप्लेंट कमेटी की सक्रियता में कमी देखी गई है। अक्सर इसे लेकर छात्रों के बीच जागरूकता की भी कमी देखी जाती है। महिमा के केस में भी यही हुआ। महिमा सीधे आईसीसी के पास नहीं पहुंचीं लेकिन उनका दावा है कि उन्होंने जो शिकायत डायरेक्टर और अन्य पदाधिकारियों को दी थी, उसमें यौन उत्पीड़न का ज़िक्र किया था। उनका कहना है कि "संस्थान ने जान-बूझ कर इस मामले को केवल एकेडमिक तक ही सीमित रखा और यौन शोषण के मुद्दे को दबा दिया।"

आपको बता दें कि महिमा दुनिया की सबसे पुरानी हाई-आईक्यू सोसायटी, मेन्सा इंटरनेशनल की सदस्य रही हैं, उनका आई-क्यू दुनिया के 1 प्रतिशत जीनियस लोगों में शामिल है। वो अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए IISER, पुणे से एकेडमिक एक्सीलेंस प्राइज भी प्राप्त कर चुकी हैं। इसके अलावा महिमा ने 2016 के आईआईटी-जेम की परीक्षा में पूरे देश में 38वां स्थान प्राप्त किया था। उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय से भी कई एकेडमिक एक्सीलेंस के अवार्ड मिल चुके हैं। हालांकि ये महिमा का दुर्भाग्य कहेंं या सिस्टम का जो इस होनहार स्कॉलर को बीते साल दिसंबर में आत्महत्या की कोशिश के लिए मजबूर होना पड़ा। समय पर इलाज मिलने के कारण वो आत्महत्या से तो बच गईं, लेकिन दिल्ली पुलिस ने पांच महीने बाद इस मामले में दिल्ली महिला आयोग के हस्तक्षेप के बाद गाइड के ख़िलाफ़ एफआईआर में यौन उत्पीड़न और आत्महत्या के लिए उकसाने की धाराएं जोड़ीं।

पुलिस पर ढीले रवैये का आरोप!

महिमा गंभीर आरोप लगाते हुए कहती हैं कि "पुलिस का इस मामले में शुरू से ही बहुत ढीला रवैया रहा है। आरोपी बहुत बड़ा आदमी है, इसलिए पुलिस ने अब तक गाइड से एक बार भी इंटेरोगेशन नहीं किया है ना ही मामले में जांच की कार्रवाई में क्या हो रहा है, इसकी उन्हेंं कोई जानकारी है।" इस संबंध में महिमा दिल्ली पुलिस कमिश्नर और अन्य कई लॉ एंड ऑर्डर संबंधित अधिकारियों को पत्र भी लिख चुकी हैं। महिमा का पत्र इस बात की तस्दीक करता है कि आरोपी गाइड अभी भी उन्हें लागातार स्टॉक कर रहा है और वहीं महिमा सीआरपीसी 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने यौन शोषण से संबंधित बयान दर्ज करवाने के बावजूद लगातार "प्रताड़ना झेल रही हैं।"

कमिश्नर को लिखे अपने पत्र में महिमा, पुलिस के इन एक्शन के बारे में लिखते हुए कहती हैं कि “6 महीने से अधिक का वक्त बीत गया और इस मामले में अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।" वो खुद को मिलने वाली धमकियों का ज़िक्र भी पुलिस के सामने कर चुकी हैं लेकिन उनका कहना है कि पुलिस ने इस पर भी कोई कार्रवाई नहीं की है। उनके मुताबिक उन दोषी पुलिस कर्मियों पर भी कोई एक्शन नहीं लिया गया है, जिन्होंने कई बार शिकायत और सबूत मुहैया कराने के बाद भी मेन मुद्दों को छोड़कर बड़ी हल्की धाराओं में एफआईआर दर्ज की। महिमा ने इस केस में स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम के गठन के लिए भी अपील की है। फिलहाल ये मामला अदालत के समक्ष है और इसमें अगली सुनवाई 31 अगस्त को होनी है।

यहां आपको ये भी बता दें कि आरोपी गाइड ने भी दिल्ली हाईकोर्ट में अपने ऊपर लगे आरोपों को खारिज करने के लिए अदालत में एक याचिका दाखिल की है, जिसका पिछली सुनवाई में पुलिस ने ये कहते हुए विरोध किया था कि महिमा के लगाए गए आरोप गंभीर और जघन्य हैं और इसलिए वो अदालत से इसे खारिज नहीं करने की अपील करते हैं।

"प्रोफेशनल से ज़्यादा पर्सनल ज़िंदगी में दिलचस्पी"

गौरतलब है कि महिमा संस्थान के कहने पर कोरोना काल 2020 के दौरान पुणे से दिल्ली शिफ्ट हो गई थीं और इसी दौरान उनका गाइड नियुक्त किया गया। महिमा अपने काम की प्रेजेंटेशन घर से ऑनलाइन मीटिंग्स के ज़रिए अपने गाइड और अन्य लोगों के समक्ष रखती थीं। लेकिन महिमा का आरोप है कि "गाइड के तौर पर उनकी रुचि उनके विषय में कम और महिमा के पर्सनल जीवन में ज़्यादा रहती थी। मसलन, वो अक्सर महिमा के बॉयफ्रेंड और निजी ज़िंदगी को लेकर सवाल करते रहते थे। आरोप ये भी है कि वो महिमा पर कैंपस लौटने का भी दबाव बना रहे थे।"

महिमा संस्थान, मंत्रालय और पुलिस इन सब के बीच "नेक्सेस और दबाव" की बात कहती हैं। उनके मुताबिक "सब मिलकर गाइड को बचाने में लगे हैं।" महिमा ने कहा कि जब वो इस संबंध में शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से मिलने गईं, तो उनके सचिव ने उन्हें बाहर से ही लौटा दिया। उनके मुताबिक़ "वो बीते एक साल से कई मंत्रालयों और विभागों के चक्कर लगाकर थक चुकी हैं, लेकिन महिमा को न्याय का अभी भी इंतज़ार है।"

नोट : न्यूज़क्लिक ने इस संबंध में आईआईएसईआर-पुणे के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स, दिल्ली पुलिस कमिश्नर, शाहदरा डीसीपी और शिक्षा मंत्रालय से संपर्क किया है। जवाब मिलने पर ख़बर अपडेट कर दी जाएगी।

ध्यान रहे कि बीते दिनों ऑल इंडिया रिसर्च स्कॉलर्स एसोसिएशन (AIRSA) की ओर से गाइड द्वारा शोधार्थियों के शोषण के मुद्दे को भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग यानी डीएसटी और उच्च शिक्षा विभाग के सामने भी रखा गया था। जिस पर डीएसटी का कहना था कि संस्थानों में पहले से इससे संबंधित कमेटी हैं, लेकिन उत्पीड़न या शोषण से जुड़ी ऐसी कौन सी कमेटी है, इसके बारे में खुद उन्हें जानकारी नहीं पता थी, ऐसे में शोधार्थियों को राहत कैसे मिलेगी, ये समझना मुश्किल नहीं है।

ऑल इंडिया रिसर्च स्कॉलर्स एसोसिएशन इस मुद्दे को लेकर कई बार अपने ज्ञापनों और मुलाकातों के ज़रिए आवाज़ उठाता रहा है। हालांकि इस सब के बावजूद शिक्षा मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि साल 2014-21 में आईआईटी, एनआईटी, केंद्रीय विश्वविद्यालयों और अन्य केंद्रीय संस्थानों के 122 छात्रों ने आत्महत्या की। ये आंकड़े ख़तरनाक इसलिए भी हैं क्योंकि इन संस्थानों तक पहुंचने के लिए छात्र दिन-रात कड़ी मेहनत करते हैं, ऐसेे में इनकी मानसिक स्थिति को संस्थान का वातावरण किस तरह प्रभावित करता है, इस पर सरकार को ध्यान देना होगा। इसके अलावा शिक्षा पर सरकार को अपना बजट भी बढ़ाने की ज़रूरत है, जिससे ज़्यादा से ज़्यादा छात्र शोध कर सकें। 

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