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महंगाई: आसमान छू रहा आटे-दाल का भाव, बिगड़ा रसोई का बजट!

गरीबी के हालात में भी व्यक्ति संतोष के साथ दाल रोटी खाकर गुजारा कर लेता था लेकिन अब महंगाई के चलते आम आदमी को दाल-रोटी (आटा) के भी लाले पड़ते दिख रहे हैं।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। PTI

जनमानस में परंपराओं से प्रचलित मशहूर उक्ति है कि "दाल रोटी खाओ प्रभु के गुण गाओ"। गरीबी के हालात में भी व्यक्ति संतोष के साथ दाल रोटी खाकर गुजारा कर लेता था लेकिन अब महंगाई के चलते आम आदमी को दाल-रोटी (आटा) के भी लाले पड़ते दिख रहे हैं। 81 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन और सरकारी आउटलेट से सस्ते आटे की बिक्री जैसे कदम उठाने के बावजूद आटे दाल की महंगाई का ये आलम है कि अब आप "दाल-रोटी खाकर आसानी से प्रभु के गुण नहीं गा पायेंगे!" जी हां, आटे-दाल का भाव आसमां पर जा पहुंचे हैं। वर्तमान में मौसम की मार आदि कारणों से गेहूं और दलहन के क्षेत्र और उत्पादन में भारी कमी के चलते रेट आसमां पर जा पहुंचे हैं।

आंकड़े देखें तो पिछले कुछ सालों से महंगाई की गाड़ी तेजी से दौड़ रही है। आलम यह है कि महंगाई ने आम आदमी का बजट इस कदर बिगाड़ा है कि उसकी कमाई और खर्चे का फासला लगातार चौड़ा होता जा रहा है। सरकारी आंकड़ों में भले ही महंगाई नीचे आई हो, लेकिन आम आदमी को राहत नहीं मिली है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 5 सालों में आटा, दाल से लेकर तेल, नमक तक के दामों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। इनके भाव में 50 से 123 प्रतिशत तक का इजाफा हुआ है। निश्चित तौर पर इस दौरान प्रति व्यक्ति आय में भी इजाफा हुआ होगा, लेकिन महंगाई की रफ्तार जितना नहीं।

उपभोक्ता मंत्रालय के पिछले माह के आंकड़ों के हवाले से बताया गया है कि पिछले 5 सालों में चावल का औसत दाम 29.68 रुपए प्रति किलो से बढ़कर 43.49 रुपए हो गया है, यानी इसमें 46.53% का इजाफा हुआ है। इसी तरह, गेहूं के भाव में करीब 38% और आटे के दाम 43% की उछाल दर्ज कर चुके हैं। दाल की कीमतों में भी इस दौरान काफी उछाल आया है। उदाहरण के तौर पर, अरहर की दाल 70.54 रुपए से 157.80 रुपए पर पहुंच गई है। पिछले 5 सालों में इसमें 123.67 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। जबकि अरहर की दाल 70.54 रुपए बढ़कर से 157.80 रुपए प्रति किलो पर आ गई है। वर्तमान में अरहर दाल 165 रुपए तक तो खुला आटा 37 रुपए व ब्रांडेड आटा 50 रुपए किलो तक बिक रहा है।

मध्यम वर्ग को आटे की बढ़ती कीमतें परेशान करती हैं

बाजार में आटे की कीमतें बढ़ने से मध्यम वर्ग के रसोई घरों का बजट खराब हो गया है। राजधानी में 15 दिन पहले पचास किलो आटा 1,400 रुपये में खरीदा जाता था, लेकिन अब 1,550 रुपये प्रति किलो खरीदा जाता है। वहीं, छोटी दुकानें पहले 1500 रुपये प्रति किलो आटा बेचती थीं, लेकिन अब 1700 रुपये प्रति किलो बेचती हैं। यही नहीं, वर्तमान में भी आटे के भाव में लगातार वृद्धि हो रही है। पिछले हफ्ते ही आटे के दाम 2 रुपये प्रति किलोग्राम तक बढ़ गए हैं। ब्रांडेड आटा तो 46.8 प्रति किलोग्राम में बिक रहा है, जबकि खुले आटे के दाम 35 से 37 रुपये किलो तक पहुंच गए हैं। ये भाव पिछले चार पांच दिन में ही बढ़े हैं। अब एक क्विंटल आटा खरीदने के लिए लोगों को 200 रुपए तक ज्यादा चुकाने पड़ रहे हैं। थोक किराना व्यापारियों के अनुसार रविवार को आटा करीब 35 रुपए प्रति किग्रा तक बिका। जबकि चार दिन पहले इसे 30-32 रुपए प्रति किग्रा था।

यही नहीं, तीन महीने पहले अरहर दाल 90 से 100 रुपये प्रति किलो बेचा जाता था, लेकिन अब 160 से 165 रुपये प्रति किलो बेचा जाता है। मसूर दाल 70 से 75 रुपये प्रति किलो है। यही नहीं, चना दाल 27.40%, उड़द दाल 76.66%, मूंग दाल के दाम में 56.04% की बढ़ोत्तरी हुई है। दालों के अलावा, खाद्य तेल ने भी आम आदमी को खूब रुलाया है। भले ही पिछले साल के मुकाबले खाद्य तेलों के दाम कुछ कम है, लेकिन पांच साल पहले के दाम से तुलना करें तो काफी ज्यादा है। इस दौरान, सरसों तेल (पैक) 105.55 रुपए से बढ़कर 138.47 रुपए प्रति लीटर के भाव पर मिल रहा है। इसी तरह, वनस्पति तेल की कीमतों में 53.57 प्रतिशत, सूरजमुखी के तेल में करीब 31 प्रतिशत, सोया ऑयल में 35.29 और पाम ऑयल में 32.27 प्रतिशत का उछाल देखने को मिला है। इस अवधि में दूध के दाम में 34.61%, खुली के चाय के दाम में 30.44% की वृद्धि हुई है। नमक की बात करें, तो यह 15.36 रुपए से बढ़कर 22.98 रुपए पर पहुंच गया है। इसके अलावा, सब्जियों के भाव में भी काफी वृद्धि देखने को मिली है।

दाल पतली और रोटी छोटी

कुल मिलाकर महंगाई की मार भोजन की थाली पर ऐसी पड़ी कि दाल पतली और रोटी छोटी हो गई है। दाल में तड़का लगना भी कम हो गया है। एक पखवाड़े में आटा, दाल और चावल पर 20 से फीसदी तक दाम बढ़ गए हैं। मसाले कुछ ज्यादा ही जेब ढीली कर रहे हैं। खाद्य सामग्रियों की कीमतों में इजाफे ने रसोईघर का बजट बिगाड़ दिया है। महंगाई की सबसे ज्यादा मार दाल, चावल और आटे पर पड़ी है। खाने में सबसे अधिक उपयोग भी आटा व दाल-चावल का होता है। इनकी कीमतों में प्रति किलो 5 से 20 रुपये तक वृद्धि हुई है। रही सही कसर छोला, चीनी, हल्दी, काली मिर्च और जीरा ने पूरी कर दी है। विक्रेता संजय बताते हैं, कि छोले के दाम 10 रुपये प्रति किलो जबकि काली मिर्च व जीरा के 200 रुपये, हल्दी के 20 और चीनी के दाम में 3 से 4 रुपये तक की बढ़ोतरी हुई है।

राजधानी के थोक बाजार में काबुली चने की कीमतें तेजी से बढ़ी हैं। काबुली चना 130 रुपये प्रति किलो थोक बाजार में बिक रहा है। महंगाई ने साधारण लोगों को मोटे अनाज से दूर कर दिया है। जबकि सरकार का लक्ष्य सुनिश्चित करना है कि अधिक से अधिक लोग मोटा अनाज प्राप्त करें। दो महीने पहले, काबुली चना 100-110 रुपये प्रति किलो में खरीदा जाता था, लेकिन अब 130-140 रुपये प्रति किलो में खरीदा जाता है। कुल मिलाकर खान-पान की चीजों पर महंगाई से हरेक वर्ग की कमाई का एक बड़ा हिस्सा रसोई में खर्च हो जा रहा है। निम्न और मध्यम आय वाले परिवार का गुजारा करना मुश्किल हो गया है।

रसोई में कम हो गई तड़के की खुशबू

एक महीने के भीतर गरम मसाले में उपयोग होने वाली कई सामग्रियों के दाम दो सौ रुपये तक बढ़ गए हैं। इससे दाल व सब्जी का तड़का महंगा पड़ रहा है। गृहणियां बताती हैं, कि कीमतों में ज्यादा उछाल आने से मजबूरन तड़का लगाना कम कर दिया है। खाने का स्वाद कुछ फीका जरूर हुआ है, पर बिगड़ रहे रसोई के बजट को देखते हुए ऐसा करना पड़ रहा है।

रसोई का बजट बिगड़ा

रोटी-दाल व चावल थाली का मुख्य व्यंजन है। यह सामग्रियां महंगी होने से रसोई का बजट बिगड़ने लगा है। दाल पतली तो छोटी को छाेटी कर बजट संभालने का प्रयास किया जा रहा है। हालांकि इससे खाने का स्वाद फीका हो गया है। यह सब भी तब जब भारत सरकार ने आम उपभोक्ताओं को मोबाइल वैन द्वारा प्रति किलो आटा 27.50 रुपये यानी सस्ता आटा बेचने का निर्णय लिया है। मोबाइल वैन आटा को शहर के सड़कों पर बेचेंगे।

आटा का बाजार भाव प्रति 10 किलोग्राम
ब्रांड              मूल्य
भजन            350
साईं              340
पतंजलि         441
पंक्षी               36 प्रति किलो
उत्‍सव            34 प्रति किलो
चक्‍की आटा   35.50 प्रति किलो
फार्च्यून चक्की फ्रेश आटा  39.80 (प्रति किलो)    
गुड लाइफ एमपी व्हीट (प्रति किलोग्राम)     43.00
पिल्सबरी चक्की फ्रेश आटा (प्रति किलोग्राम)    52.00
नॉन ब्रांड आटा (प्रति किलोग्राम)    32-35
_________

खाद्य सामग्री अगस्त     दिसंबर (प्रति किलो)
अरहर दाल 150          165
चना दाल 70                80
उरद दाल 100             120
चावल 30                     35
छोला 120                   160
चीनी 40                       44

मसाले अगस्त            दिसंबर
जीरा 600                830 रुपए तक
काली मिर्च 500        750 रुपए तक
हल्दी 140               180 रुपए तक 

अभी और बढ़ सकता है आटा-दाल का भाव

आने वाले दिनों में आटे का मूल्य और बढ़ सकता है। जी हां, गेहूं की बुवाई में 5 फीसदी से ज्यादा कमी देखने को मिली है। वहीं दूसरी ओर दालों की बुवाई में 8 फीसदी तक की कमी देखने को मिली है। वैसे सरकार को उम्मीद है कि बारिश होने के बाद इस कमी को पूरा किया जा सकता है. अगर ऐसा नहीं हुआ जततो देश में आटा और दाल की कीमतों में इजाफा होगा।

जहां एक ओर इंटरनेशनल मार्केट में चावल की कीमतें 15 साल के हाई पर पहुंच गई हैं। वहीं दूसरी ओर लोकल लेवल पर आम लोगों को आटा और दाल पर महंगाई की मार पड़ सकती है। इसका प्रमुख कारण गेहूं और दालों का प्रोडक्शन कम होना है। जी हां, गेहूं और दालों की बुवाई एक बार फिर पिछड़ गई है। सूत्रों के मुताबिक अब तक गेहूं की बुवाई में 5 फीसदी से ज्यादा कमी देखने को मिली है। वहीं दूसरी ओर दालों की बुवाई में 8 फीसदी तक की कमी देखने को मिली है। वैसे सरकार को उम्मीद है कि बारिश होने के बाद इस कमी को पूरा किया जा सकता है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो देश में आटा और दाल की कीमतों में इजाफा होगा। जिससे देश में महंगाई के घाव और ज्यादा गहरे होते चले जाएंगे।

कम हुई गेहूं की बुवाई

सूत्रों के अनुसार देश में गेहूं और दाल की बुवाई में बड़ी गिरावट देखने को मिली है। वास्तव में बारिश में कमी की वजह से बुवाई पर असर पड़ा है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार देश में गेहूं की बुवाई में 5 फीसदी की कमी आई है। इस साल अब तक गेहूं की बुवाई 141 लाख हेक्टेयर में हुई है। जबकि पिछले साज पिछले साल समान अवधि में गेहूं की बुवाई 149 लाख हेक्टेयर हो चुकी थी।

दालों की बुवाई कितनी कम

वहीं दूसरी ओर दालों पर भी महंगाई का संकट मंडरा रहा है। आंकड़ों के अनुसार इस साल दालों की बुवाई में 8 फीसदी की कमी देखने को मिल रही है। अब देश में 940 लाख हेक्टेयर में दालों की बुवाई हो चुकी है। जबकि पिछले साल समान अवधि में ये बुवाई 103 लाख हेक्टेयर में हुई थी। इसका मतलब है कि इस साल दालों के प्रोडक्शन में काफी गिरावट देखने को मिल सकती है। जिससे पहले देश में महंगाई बढ़ने की संभावना है।

सरकार को बारिश से उम्मीदें

अभी तक दोनों फसलों के लिए पर्याप्त बारिश नहीं हुई है। सरकार को उम्मीद है कि बारिश होते ही कमी की पूर्ति हो जाएगी। लेकिन जानकारों की मानें तो इसकी उम्मीदें कम ही है। अगर बुवाई नहीं बढ़ी तो दाल और गेहूं या यूं कहें तो देश में आटा और दाल का भाव बढ़ सकता है। जिससे देश में महंगाई दर में इजाफा देखने को मिल सकता है। हाल के महीनों में देश के लोगों को पहले टमाटर और उसके बाद प्याज की महंगाई से जूझना पड़ा था। अगर समय पर बारिश नहीं हुई और दोनों फसलों की बुवाई नहीं बढ़ी तो आम लोगों की किचन का बजट बढ़ जाएगा।

खाने में दाल कितनी जरूरी

रोटी की महत्ता तो हर कोई जानता है लेकिन अगर बात दालों की करें तो भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के अनुसार एक सामान्य व्यक्ति को स्वस्थ रहने के लिए प्रतिदिन 47 ग्राम दाल (दलहन) का सेवन करना चाहिए, परंतु वर्तमान कुल दलहन उत्पादन के हिसाब से देश में प्रतिव्यक्ति औसतन सिर्फ 33.2 ग्राम दलहन ही उपलब्ध है। लेकिन इस वर्ष दालों के भाव उत्पादन में कमी के कारण आसमान को छूने लगे हैं। ऐसे में आम आदमी के लिए 33 ग्राम दाल जुटाना भी मुश्किल हो रहा है। ऐसे में अबकी बार आम आदमी दाल रोटी खाकर आसानी से प्रभु के गुण गा सकेगा, को लेकर संशय होना ही है।

साभार : सबरंग 

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