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ट्रांसजेंडर के लिए अलग पब्लिक जॉब वेकैंसी के लिए कोर्ट में लड़ाई लड़ रहीं जैन कौशिक

ट्रांसजेंडर महिला याचिकाकर्ता जैन कौशिक का कहना है कि वह सरकारी स्कूल में पढ़ाने के योग्य हैं लेकिन उन्हें कई बार रिजेक्शन का सामना करना पड़ा है।
 Jane Kaushik

ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के लागू होने के तीन साल बाद भी ज़मीनी हक़ीक़त में कुछ खास बदलाव नहीं आया है। ट्रांसजेंडर व्यक्ति आज भी बहिष्कृत रहते हैं और अक्सर उन्हें सार्वजनिक रूप से अपनी जेंडर आइडेंटिटी छिपाने के लिए मजबूर किया जाता है।

साल 2014 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय के नेशनल लीगल सर्विसेस अथॉरिटी ( NALSA) के फैसले ने भारत में थर्ड जेंडर को कानूनी मान्यता दी। अदालत के NALSA दिशानिर्देशों ने केंद्र और राज्य सरकारों को आदेश दिया कि वे ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के नागरिक और सामाजिक-आर्थिक अधिकारों की प्राप्ति सुनिश्चित करें। इन दिशानिर्देशों के निर्धारित किए जाने के पांच साल बाद, ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 (ट्रांसजेंडर प्रोटेक्शन एक्ट) लागू हुआ। हालांकि, बार-बार, यह सामने आया है कि राज्यों द्वारा इस कानून का पालन न के बराबर है।

20 जनवरी, 2023 को, दिल्ली हाई कोर्ट की जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह ने जैन कौशिक बनाम लेफ्टिनेंट गवर्नर (एनसीटी दिल्ली) के मामले में केंद्र सरकार को एक याचिका में पक्षकार बनाने के लिए एक नोटिस जारी किया, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) दिल्ली के स्कूलों में शिक्षण पदों पर भर्ती के लिए ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए अलग रिक्तियों के विज्ञापन की मांग की गई थी।

दिल्ली में रहने वाली एक ट्रांसजेंडर महिला याचिकाकर्ता जैन कौशिक का कहना है कि वह सरकारी स्कूल में पढ़ाने के लिए क्वालिफाइड हैं। 2019 से वह दिल्ली के सरकारी स्कूलों में रोज़गार की तलाश कर रही है, लेकिन अपनी जेंडर आइडेंटिटी के कारण उन्हें कई बार रिजेक्शन का सामना करना पड़ा। अंत में, लगातार रिजेक्शंस से निराश, वह इस शर्त पर एक निजी स्कूल में पढ़ाने के लिए तैयार हो गई कि वह अपनी जेंडर आइडेंटिटी को उजागर नहीं करेगी। हालांकि उन्हें पिछले महीने मजबूरन स्कूल से इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि कुछ छात्रों को उनके जेंडर का पता लग गया। उन्हें एक कठिन साक्षात्कार के बाद नियुक्त किया गया था।

याचिका के अनुसार, सरकारी स्कूलों में टीचिंग स्टाफ के लिए सभी विज्ञापित रिक्तियां केवल पुरुष और महिला जेंडर तक ही सीमित हैं, जिससे ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को एक अलग कैटेगरी के रूप में बाहर कर दिया गया।

ट्रांसजेंडर संरक्षण अधिनियम की धारा 3(बी) और (सी) (भेदभाव के खिलाफ निषेध) और 9 (रोज़गार में गैर-भेदभाव) और इसके साथ ही ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) नियम, 2020 के नियम 10 (4), 11 और 12 के तहत जेंडर आइडेंटिटी के आधार पर रोज़गार में भेदभाव प्रतिबंधित है।

याचिका की हाल की सुनवाई के दौरान, दिल्ली हाई कोर्ट ने माना कि "ये याचिका, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की पहचान, मान्यता और उनके रोज़गार और राज्य के विभागों, स्कूलों आदि में भर्ती के अधिकारों के संबंध में एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाती है..."

द लीफलेट ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के खिलाफ भेदभाव के मुद्दे और इसके खिलाफ उनकी लड़ाई के बारे में और अधिक जानने के लिए जैन कौशिक का साक्षात्कार लिया।

सवाल : क्या आप हमें अपने नई नौकरी के बारे में बता सकती हैं और आपको इस्तीफा देने के लिए क्यों मजबूर किया गया?

जवाब : मुझे 25 नवंबर, 2022 को लखीमपुर-खीरी जिले के एक प्राइवेट बोर्डिंग स्कूल उमा देवी चिल्ड्रेंस एकेडमी में सामाजिक विज्ञान और अंग्रेजी में प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था। मुझे मेरी जेंडर आइडेंटिटी के बावजूद 'नियुक्त' किया गया था लेकिन इस शर्त पर कि मैं इसे किसी के सामने उजागर नहीं करुंगी।

हालांकि, 3 दिसंबर को, स्कूल के प्रिंसिपल ने मुझे इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया क्योंकि कुछ छात्रों को मेरे जेंडर के बारे में पता चल गया था।

जब राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस मनमानी बर्खास्तगी का संज्ञान लिया, तो स्कूल ने मुझे 1 करोड़ रुपये का मानहानि का नोटिस दे दिया जिसमें ये आरोप लगाया गया कि मैं उनकी प्रतिष्ठा को बर्बाद कर रही हूं। स्कूल ने दावा किया कि जो विषय मुझे सौंपे गए थे, उसे पढ़ाने के लिए मैं सक्षम नहीं थी। जांच के लिए चार सदस्यीय जिला स्तरीय पैनल का गठन किया गया था। उन्होंने स्कूल को क्लीन चिट दे दी। उनकी रिपोर्ट के मुताबिक स्कूल ने मेरे साथ कोई भेदभाव नहीं किया क्योंकि उन्होंने मेरी जेंडर आइडेंटिटी के बावजूद मुझे नौकरी पर रखा था।

हालांकि जब वकीलों की मदद से मैंने उन्हें जवाब भेजा तो इसके बाद स्कूल ने मानहानि का नोटिस तो वापस ले लिया, लेकिन मैं उस अपमानजनक व्यवहार को नहीं भूल सकती।

सवाल : क्या पहले भी ऐसी घटनाएं हुई हैं जहां आपकी जेंडर आइडेंटिटी के कारण आपके साथ भेदभाव किया गया हो?

जवाब : हां, हर बार ऐसा होता है। मैं हाइली क्वालिफाइड हूं। मेरे पास आर्ट्स में स्नातक और मास्टर डिग्री, एजुकेशन में स्नातक डिग्री, साथ ही नर्सरी टीचर ट्रेनिंग में दो साल का डिप्लोमा भी है। इन सभी योग्यताओं के बावजूद, मैं जेंडर आइडेंटिटी उजागर करने पर तुरंत अपनी नौकरी खो देती हूं।

ऐसे भी कई मामले सामने आए जहां मुझे उसी समान काम (जो दूसरे जेंडर के लोग करते हैं) के लिए कम भुगतान किया गया। मुझे कभी भी सामान्य भर्ती प्रक्रिया का अनुभव करने का मौका नहीं मिला।

सवाल : क्या आप याचिका के बारे में हमें बता सकती हैं?

जवाब : दिल्ली हाई कोर्ट में मेरी शिकायत यह है कि DSSSB द्वारा जारी नोटिस में टीचिंग स्टाफ की भर्ती विशेष तौर पर TGT और PGT भर्ती के आवेदन से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को बाहर कर दिया जाता है।

DSSSB द्वारा जारी नोटिसों में केवल पुरुष और महिला उम्मीदवारों से आवेदन मांगे जाते रहे हैं। 2 जनवरी, 2020 और 12 मई, 2021 को दो नोटिस जारी किए गए थे। दोनों में ही ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को शामिल नहीं किया गया था।

DSSSB के ऑनलाइन पोर्टल, यानी ऑनलाइन आवेदन पंजीकरण प्रणाली (OARS) पर मुझे ट्रांसजेंडर व्यक्ति की कैटेगरी के तहत आवेदन करने की अनुमति नहीं मिली। इसलिए, मुझे खुद को महिला के रूप में आवदेन करना पड़ा।

इसके अलावा, OARS ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) द्वारा जारी दसवीं कक्षा के प्रमाणपत्रों में दर्ज नाम से पंजीकरण अनिवार्य कर दिया है। मुझे अपना डेड नेम दर्ज करने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि CBSE ने अभी तक ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अपना नाम बदलने की अनुमति देने के लिए कोई सिस्टम नहीं बनाया है। सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी कराने के बाद, मैंने अपनी पहचान के अनुरूप कानूनी तौर पर अपना नाम और जेंडर बदल लिया था। हालांकि OARS ने अब ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए आवदेन पत्र में एक विकल्प शामिल कर दिया है, यह केवल नए आवेदकों के लिए उपलब्ध है।

मेरी याचिका के जवाब में, रेस्पोंडेंट ने एक जवाब दायर किया था जिसमें कहा गया : "ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता 'ट्रांसजेंडर-महिला' के रूप में पहचान करती हैं क्योंकि याचिकाकर्ता की स्वयं की पहचान केवल महिला है..." यह ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत स्पष्ट रूप से मेरे अधिकारों का उल्लंघन है। इसके अलावा यह अनुच्छेद 14, 15, 16, 19(1)(ए) और (जी), और 21 के तहत गारंटीकृत मेरे मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन है।

सवाल : क्या आपने दिल्ली के अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की?

जवाब : मैंने 2021 में दिल्ली के मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री सहित विभिन्न राज्य अथोरिटीज़ को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के मुद्दे पर पत्र लिखे। मैंने समाज कल्याण विभाग, एनसीटी दिल्ली सरकार और DSSSB को भी रिप्रेजेंटेशन दिया है।

अपने वकीलों के माध्यम से, मैंने अगस्त 2021 में समाज कल्याण विभाग और DSSSB से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए अलग-अलग रिक्तियां जारी करने का आह्वान करते हुए एक कानूनी नोटिस भी भेजा था लेकिन मुझे इसपर कोई जवाब नही मिला है।

सवाल : क्या याचिका में कुछ और अनुरोध भी हैं?

जवाब : हां, मैंने अदालत से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को जारी होने वाली रिक्तियों के लिए न्यूनतम योग्यता और आयु में आवश्यक छूट देने के लिए उचित निर्देश जारी करने और दिल्ली में सभी सार्वजनिक नियुक्तियों में उनकी भर्ती के लिए नीति बनाने का अनुरोध किया है।

इसके अलावा मैंने अदालत से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में सभी सार्वजनिक नियुक्तियों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए आरक्षण बढ़ाने के लिए निर्देश देने का भी अनुरोध किया है। लेकिन इस अनुरोध के जवाब में रेस्पोंडेंट ने उत्तर दिया, "लगभग सभी राज्यों और केंद्र सरकार द्वारा केवल पुरुषों और महिलाओं को मान्यता प्राप्त है, आरक्षण बनाने के उद्देश्य से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की पहचान नहीं की जाती है। भारत का संविधान भी तीसरे जेंडर को आरक्षण प्रदान करने के मामले में मौन है, क्योंकि यह केवल पुरुषों और महिलाओं तक ही सीमित है।”

मामला न्यायालय के विचाराधीन है, और फ़िलहाल मैं बेरोज़गार हूं।

इस मामले पर दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई जारी है और अगली सुनवाई 28 मार्च को होनी है।

(Courtesy : The Leaflet)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

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