मध्य प्रदेशः हर तीसरे दिन एक किसान आत्महत्या करता है
मध्य प्रदेश में मंदसौर का किसान आंदोलन शायद आपको याद होगा। जून 2017 की बात है जब किसानों ने अरहर और प्याज की फसल के उचित दाम ना मिलने की वजह से आंदोलन शुरू कर दिया था। शिवराज सिंह चौहान सरकार ने प्याज का 8 रुपये किलो दाम तय किया था जबकि किसानों से मात्र 2-3 रुपये पर खरीदा गया।
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार यह प्याज की बंपर फसल का दूसरा साल था लेकिन कोई भी खरीददार नहीं था। शिवराज सिंह सरकार ने प्याज की खरीद मूल्य निर्धारित करने में देरी की और किसानों को 2-3 रुपये किलो के दाम पर प्याज बेचना पड़ा। दूसरा, सरकार के पास पर्याप्त भंडारण की सुविधाएं भी मौजूद नहीं थी जिसके कारण 33% प्याज सड़ गया। गांव कनेक्शन की एक रिपोर्ट के अनुसार प्याज का दाम 50 पैसे प्रति किलो तक पहुंच गया था। सिर्फ प्याज के किसानों की ही ऐसी स्थिति नहीं है बल्कि मध्य प्रदेश में कभी प्याज के किसान परेशान होते हैं तो कभी टमाटर और लहसुन के किसान।
उचित दाम ना मिलने पर तंग आए किसानों ने आंदोलन का रास्ता अपनाया। आंदोलनरत किसानों पर फायरिंग की गई जिसमें छह किसानों की मौत हो गई। किसान आंदोलन के दौरान फायरिंग में मारे गए किसानों की मौत की जांच के लिए जेके जैन आयोग बनाया गया। द वायर की एक रिपोर्ट के अनुसारआयोग निश्चित समय सीमा में अपनी रिपोर्ट पूरी ना कर सका। इस दौरान समयसीमा को तीन बार बढ़ाया गया। इस एक सदस्यीय जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि दो किसानों की मौत सीआरपीएफ की गोली से हुई है और तीन किसानों की मौत पुलिस की गोली से हुई है।
रिपोर्ट में ये भी बताया गया था कि पुलिस ने गोली चलाने में नियमों का पालन नहीं किया। पहले पांव पर गोली चलानी चाहिये थी। इसके बावजूद अंततः जांच आयोग ने सीआरपीएफ और पुलिस को अपनी रिपोर्ट में क्लीनचिट दे दी थी।
ये भूमिका इसलिए है ताकि आप समझ सकें कि मध्य प्रदेश में किसानों की स्थिति क्या है। 2017 में देश को झकझोर देने वाले इस किसान आंदोलन को मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले याद करना ज़रूरी है।
साथ ही ये समझना भी ज़रूरी है कि आखिर मध्य प्रदेश में किसानों की स्थिति क्या है? आखिर किसान परिवार अपने खेत में जी-तोड़ मेहनत करके प्रति माह कितना कमा पाता है? ऐसे किसानों की संख्या की क्या है जो घाटे का सौदा बना दी गई खेती के मकड़जाल में फंसकर अपनी जीवन लीला ही समाप्त कर लेते हैं।
आइये, पड़ताल करते हैं।
हर तीसरे दिन एक किसान करता है आत्महत्या
किसानों की स्थिति का जायजा लेने के लिए ये देखना जरूरी है कि आखिर मध्य प्रदेश में कितने किसान हैं जो आत्महत्या करने को मजबूर हैं। राज्यसभा में देश में किसानों की स्थिति के बारे में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से सवाल पूछा गया।
कृषि मंत्री ने 3 फरवरी 2023 को इस बारे में अपना लिखित जवाब दिया था। जिसमें साल दर साल राज्यवार किसानों की आत्महत्या के आंकड़े भी कृषि मंत्री ने प्रस्तुत किए थे।
इसके अनुसार मध्य प्रदेश में वर्ष 2017 में 429 किसानों ने आत्महत्या की। मध्य प्रदेश इस साल किसानों की आत्महत्या के मामले में देश में चौथे स्थान पर था।
वर्ष 2018 में 303 किसानों ने आत्महत्या की। मध्य प्रदेश इस साल किसानों की आत्महत्या के मामले में देश में पांचवें स्थान पर था।
वर्ष 2019 में 142 किसानों ने आत्महत्या की। मध्य प्रदेश इस साल देश में सातवें स्थान पर था।
वर्ष 2020 में 235 किसानों ने आत्महत्या की। मध्य प्रदेश इस साल देश में पांचवें नंबर पर था।
वर्ष 2021 में मध्य प्रदेश में 117 किसानों ने आत्महत्या की। इस साल मध्य प्रदेश देश में सातवें नंबर पर था।
हालांकि इन पांच सालों में मध्य प्रदेश में किसानों की आत्महत्या के आंकड़ों में कमी दर्ज की गई है लेकिन अभी भी मध्य प्रदेश किसानों की आत्महत्या के मामले में पहले दस राज्यों में शुमार है।
अगर हम साल दर साल बात करें तो मध्य प्रदेश किसानों की आत्महत्या के मामले में इन पांच सालों में चौथे से सातवें स्थान के बीच रहा है। इन पांच सालों में मध्य प्रदेश में 1226 किसानों ने आत्महत्या की है।
मध्य प्रदेश में हर तीसरे दिन एक किसान आत्महत्या कर रहा है। किसानों की आत्महत्या के ये आंकड़े बता रहे हैं कि मध्य प्रदेश में किसानों की स्थिति चिंताजनक है।
मध्य प्रदेश में किसानों की औसत आय राष्ट्रीय औसत से भी कम
किसानों की आत्महत्या के आंकड़े की असली वजह आप किसानों की मासिक औसत आय के आंकड़े में देख सकते हैं। मध्य प्रदेश में किसानों की औसत आय राष्ट्रीय औसत आय से भी काफी कम है।
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में 16 दिसंबर 2022 को किसानों की मासिक औसत आय के आंकड़े सदन के सामने प्रस्तुत किए थे। जिसके अनुसार किसानों की राष्ट्रीय मासिक औसत आय 10,218 रुपये है। जबकि मध्य प्रदेश में किसानों की मासिक औसत आय राष्ट्रीय औसत आय से काफी कम मात्र 8,339 रुपये मासिक है।
आंकड़े स्पष्ट कर रहे हैं कि किसान खेती से गुजारे लायक आमदनी भी नहीं कर पा रहे हैं और परिणास्वरूप आत्महत्या करने को विवश हैं।
आंकड़े बता रहे हैं कि मध्य प्रदेश में किसान किस दुर्दशा से गुजर रहे हैं लेकिन अब देखना ये होगा कि क्या इस बार विधानसभा चुनाव में किसानों की इस दुर्दशा को कोई तवज्जो मिलेगी? क्या ये चुनावी मुद्दा बन पाएगा या फिर किसान हाशिये पर ही पड़े रहेंगे और फिजूल के हिंदू-मुसलमान के नफरती एजेंडा चुनाव को घेरे रहेंगे।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं।)
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