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गणतंत्र दिवस के सैन्यकरण से मज़बूत लोकतंत्र नहीं बनता

अक्सर यह सवाल उठता है कि गणतंत्र दिवस का जश्न परेड द्वारा मनाया जाना चाहिए या झांकियों के जुलूस द्वारा। यहां हम दोनों की परिभाषाओं पर नज़र डाल रहे हैं।
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फाइल फोटो।

देश आज अपना 73वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। मगर आज जो झाँकियाँ पेश की जाएंगी उन पर हाल ही में मोदी सरकार द्वारा विवादित फेरबदल किए गए थे।

केंद्र और राज्यों के बीच गणतंत्र दिवस के मौके पर झांकियों के प्रदर्शन को लेकर तनातनी एक बार फिर दिखाई दे रही है। इस साल केंद्र द्वारा परेड का मुख्य विषय 'इंडिया@75' रखने की घोषणा हुई थी। इसके बाद तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और केरल ने रक्षा मंत्रालय के पास परेड के लिए अपनी-अपनी झांकियों के विषय की सूची जमा की। बता दें रक्षा मंत्रालय ही 26 जनवरी को होने वाली परेड की मुख्य नियंत्रक संस्था होती है। तमिलनाडु की झांकी में जाने-माने तमिल स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के योगदान को दर्शाने वाले चित्र होने थे, इन सेनानियों में वी ओ चिदमबरनार (वीओसी), सुब्रमण्यम भारती (महाकवि भरथियार), रानी वेलु नाचियार के अलावा अन्य महिला सिपाही शामिल किए जाने थे।

पश्चिम बंगाल की झांकी में नेताजी सुभाष चंद्र बोस (जिनकी 125वीं जयंती है) और भारतीय राष्ट्रीय सेना से जुड़ी चीजें शामिल करने की योजना थी। इस झांकी में विद्यासागर, रबींद्रनाथ टैगोर, विवेकानंद, चितरंजन दास, श्री अरबिंदो, मतंगिनी हजरा, बिरसा मुंडा और नज़रूल इस्लाम शामिल होने थे। केरल की झांकी में सामाज सुधार श्री नारायण गुरू और जयतु उद्यान स्मारक शामिल होगा, जो दुनिया का सबसे बड़ा पक्षी प्रतिमा उद्यान है, यह किलों के पास चार पहाड़ियों पर 65 एकड़ में फैला है।

इन तीनों राज्यों की झांकियों को रक्षा मंत्रालय द्वारा खारिज कर दिया गया। और आज 26 जनवरी की झांकी में इसे शामिल नहीं किया गया। इसके जवाब में मुख्यमंत्रियों ने तीखी प्रतिक्रिया दी। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने कहा कि यह "तमिलनाडु और यहां के लोगों के लिए बड़ी चिंता का विषय" है। उन्होंने झांकी को शामिल करवाने के लिए तुरंत प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप की मांग की। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने प्रतिक्रिया में सीधे-सीधे कहा, "भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बंगाल का योगदान अग्रणी पंक्ति में था। बंगाल ने देश की आज़ादी के लिए विभाजन झेलकर सबसे बड़ी कीमत चुकाई। केंद्र सरकार के इस रवैये से बंगाल के लोगों को बहुत दर्द हुआ है। केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने भी प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप की मांग करते हुए कहा, "हम नहीं जानते कि क्यों केंद्र सरकार समाज सुधारकों के खिलाफ़ है। ऐन मौके पर हमारी झांकियां खारिज कर दी गईं। राज्यों को केंद्र से जवाब चाहिए।" 

केंद्र सरकार ने जवाब में वही रटीरटाई प्रतिक्रिया दी है, जो 2020 में तब दी थी, जब विपक्षी पार्टियों द्वारा शासित महाराष्ट्र, केरल और पश्चिम बंगाल की झांकियों को अलग-अलग वज़हों से खारिज कर दिया गया था। केंद्र सरकार ने कहा कि जैसा प्रक्रिया में बताया गया है कि हर साल रक्षा मंत्रालय सभी राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों के साथ-साथ केंद्र सरकार के विभागों और मंत्रालयों से झांकियों के लिए प्रस्ताव की मांग करता है, जिसमें सुझाए गए विषय पर सुझावों की व्यापक सूची भी मांगी जाती है। इसमें संबंधित राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में हुई अहम ऐतिहासिक घटनाएं, वहां मनाए जाने वाले त्योहार, सांस्कृतिक या स्थापत्य से संबंधित विरासत, अहम सामाजिक या आर्थिक विकास योजना, पर्यावरण आदि विषय हो सकते हैं। प्रस्तावों के मिलने पर विषय, अवधारणा, डिज़ाइन और दृश्यता के आधार पर विशेषज्ञों द्वारा उनका परीक्षण किया जाता है। तब जाकर आखिरी सुझाव दिया जाता है। अंतिम निर्णय इन्हीं सुझावों के आधार पर लिया जाता है। लेकिन इन तीन राज्यों की झांकियों को रद्द करने के लिए कोई विशेष कारण नहीं बताया गया। 

अक्सर यह सवाल उठता है कि गणतंत्र दिवस का जश्न परेड द्वार मनाया जाना चाहिए या झांकियों के जुलूस द्वारा। यहां हम दोनों की परिभाषाएं देखते हैं। झांकियों के जुलूस में संगीत के साथ कई सारी झांकियों का प्रदर्शन किया जाता है, जबकि परेड में एक वरिष्ठ अधिकारी के सामने सैनिकों का एक समूह संरचना बनाकर प्रदर्शन करता है। गणराज्य को एक सरकार के तौर पर माना जाता है, जहां सर्वोच्च शक्तियां नागरिकों के हाथ में रहती हैं और उनका इस्तेमाल इन नागरिकों द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है। इसके बारे में कुछ भी सैन्य संबंधी नहीं है। इसलिए गणतंत्र दिवस का जश्न नागरिकों पर केंद्रित होता है, जहां कई सारे गाने, नृत्य और झांकियां होती हैं, जो जुलूस बनाती हैं।

लेकिन इसके बजाए भारत की गणतंत्र दिवस की परेड में सैन्य/अर्द्ध-सैन्य परेड ज़्यादा हो रही है, जहां झांकियों का जुलूस पीछे कर दिया जाता है। इस बड़े शो को बनाने, प्रबंधित करने की जिम्मेदारी रक्षा मंत्रालय की है, ना कि गृह या संस्कृति मंत्रालय की। इसलिए गणतंत्र दिवस के जश्न में मुख्य केंद्र परेड होती है, जुलूस नहीं। 73वें गणतंत्र दिवस पर पारंपरिक मीडिया शीर्षक कुछ इस तरह चल रहे थे: गणतंत्र दिवस 2021: भारत की विरासत, विविधता, सैन्य शक्ति का राजपथ पर प्रदर्शन किया जा रहा है... भारतीय सेना के हथियारों का प्रदर्शन किया जा रहा है" और "गणतंत्र दिवस परेड 2021 हाइलाइट्स: भारत की सैन्य शक्ति, सांस्कृतिक विविधता का राजपथ पर प्रदर्शन किया जा रहा है"।

मीडिया द्वारा झांकियों द्वारा प्रदृशित सांस्कृतिक प्रस्तुति को थोड़ा बहुत दिखाने के बाद मुख्य ध्यान वहां प्रदर्शित भारत की सैन्य शक्ति पर केंद्रित कर दिया जाता है। कुछ इस तरह इनका बयान किया जाता है: "कैप्टन करणवीर सिंह भंगु, 54वीं आर्मर्ड रेजिमेंट का टी-90 भीष्म टैंक के ऊपर बैठकर नेतृत्व कर रहे हैं। भारत में बनने वाला यह टैंक अवदि की इंजन फैक्ट्री में बनता है... कैप्टन कौमरूल ज़मां ब्राह्मोस मिसाइल और इसके परिवहन योग्य स्वचलित लॉन्चर की टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे हैं। सतह से सतह पर मार करने वाली इस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल का विकास भारत-रूस द्वारा साझा उपक्रम के तौर पर किया गया है। ब्राह्मोस की तैनाती अहम रणनीतिक क्षेत्रों जैसे लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में की गई है...कैप्टन विभोर गुलाटी 841 रॉकेट रेजीमेंट की पिनाका मल्टी लॉन्चर रॉकेट सिस्टम का नेतृत्व कर रहे हैं। 214 mm पिनाका एमबीआरएल दुनिया के सबसे उन्नत रॉकेट तंत्र में से एक है। यह पूरी तरह स्वचालित है, यह कम वक़्त में ही एक बड़े इलाके पर रॉकेट दाग सकता है।"

हवाई शक्ति का वर्णन कुछ इस तरीके से किया जाता है: "रूद्रा संरचना में डकोटा हवाई जहाज़ शामिल हैं, जिनके आसपास 2 एमआई-17 आईवी हेलीकॉप्टर भी मौजूद हैं। "एक राफेल, भीतर तक मार करने में सक्षम 2 जेगुआर स्ट्राइक एयरक्रॉफ्ट और 2 मिग-29 फाइटर्स के साथ एकलव्य संरचना में फ्लाई पास्ट के पास मौजूद है, यह 300 मीटर की ऊंचाई पर 780 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से उड़ान भर रहा है....गणतंत्र दिवस की परेड में अंतिम में एक राफेल का प्रदर्शन हो रहा है, जो 900 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से उड़ान भर रहा है, यह राफेल "वर्टिकल चार्ली" का करतब दिखा रहा है।

गणतंत्र दिवस में सैन्य प्रधानता इससे भी पता चलती है कि परेड की कमांड लेफ्टिनेंट जनरल, एक मेजर जनरल के साथ संभाले रहते हैं। परेड में शामिल होने वाले थल सेना के समूह में कई इंफेंट्री रेजीमेंट, एक आर्मर्ड रेजीमेंट, आर्टिलरी रेजीमेंट और टेरिटोरियल आर्मी शामिल होती है। नेवी और एयर फोर्स में 144 युवा नाविक/हवाई सैनिक शामिल होते हैं। अर्द्धसैनिक बल और दूसरी सुरक्षाबलों में बीएसएफ के साथ-साथ ऊंटों का दस्ता, भारतीय तटरक्षक बल, सहस्त्र सीमा बल, आईटीबीपी, दिल्ली पुलिस और नेशनल कैडेट कॉर्प्स भी शामिल होते हैं। 

मौजूदा स्थिति में गणतंत्र दिवस की परेड मुख्यत: भारतीय राज्य की सैन्य शक्ति, इसकी शस्त्र तकनीक और रक्षा-आक्रमण के हथियारों पर मुख्यत: केंद्रित है। सवाल उठता है कि यह प्रदर्शन किसके लिए किया जा रहा है? क्या यह हमारे तथाकथित दुश्मनों को चेतावनी देने के लिए है या कुछ और वजह है? या फिर यह हमारे नागरिकों को ही यह संदेश देने के लिए है कि उन्हें राज्य का पालन बिना सवाल उठाए करना है या फिर कुछ और? अगर हम दुश्मनों के लिए यह परेड कर रहे हैं, तो इसका कोई अर्थ नहीं है, क्योंकि हमारे तथाकथित दुश्मन जानते हैं कि हमारे पास मौजूद ज़्यादातर हथियार विदेश से आयातित हैं। अगर वज़ह नागरिक हैं, तो यह लोकतंत्र के बुनियादी मूल्य के खिलाफ़ है जहां नागरिक संप्रभु है, जैसा रूसो ने कहा है, "आज्ञा का पालन करना नागरिक का कर्तव्य नहीं है।" अगर दूसरी तरफ परेड के ज़रिए नागरिकों को सुरक्षा का भाव महसूस कराना है, तो राजपथ पर कुछ सैनिकों को परेड करवाना और सैन्य साजो-सामान का प्रदर्शन पूरी तरह वक़्त और पैसे की बर्बादी है।

दरअसल गणतंत्र दिवस पर सैन्य पारंपरिकता लोगों के दिमाग में एक जुनूनी राष्ट्रवाद को भरने और राष्ट्रवादी उन्माद फैलाकर उनकी सोच के दायरे को सीमित करने का तरीका होता है, जो लोकतंत्र की आत्मा के खिलाफ है: यहां आप सैना द्वारा अनुशासित/गठीले प्रशिक्षित/बहुत हद तक रोबोटिक सैनिकों को झंडे को सलाम करते हुए देखते हैं; आपको अच्छा लगता है, राष्ट्र के आत्मप्रेम का जश्न मनाइये और मानिए कि आप आपके तथाकथित दुश्मनों से ज़्यादा ताकतवर हैं। परेड करती सेना के जूतों की आवाज़ और टैंक व बंदूकों की गड़गड़ाहट एक स्वस्थ्य देश का निर्माण नहीं कर सकती। किसी विखंडित राष्ट्र को सिर्फ़ कट्टरता, अन्याय, नफ़रत और असहिष्णुता की राक्षसी प्रवृत्तियों से निजात दिलवाकर ही स्वस्थ्य किया जा सकता है। मौजूदा सत्ता इसका उल्टा कर रही है।

अब जब हम इस त्योहार के जश्न के करीब़ पहुंच चुके हैं, तो हमें एक हिंसक राष्ट्र दिखाई दे रहा है, जहां सामाजिक तनाव बहुत ज़्यादा है और अथाह आर्थिक असमता चाह है, जहां पहचान के नाम पर हर तरीके की हिंसाएं हो रही हैं। बेहतर यह होगा कि हम राष्ट्रवाद और सैन्यवाद की मसीहता के उन्माद से बाहर निकलें और महात्मा गांधी, रबींद्रनाथ टैगोर, भीमराव आंबेडकर, जयप्रकाश नारायण के विचारों का पालन करें और एक बेहतर समतावादी, दयालु, सभ्य भारत बनाने की प्रेरणा लें।

ऐसा करने के लिए गणतंत्र दिवस को कम सैन्यवादी और ज़्यादा सभ्य बनाना होगा कि यह लोगों का जुलूस और जश्न बन सके। तब झांकियों के रद्द होने की शिकायतें नहीं आएंगी, क्योंकि हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के पास ना केवल विकल्प ज़्यादा होंगे, बल्कि उनके पास गणतंत्र दिवस के जश्न में शामिल होने के लिए ज़्यादा सांस्कृतिक भागीदारी होगी। 

बहुत पहले ग्रीक दार्शनिक अरस्तू ने भविष्यवाणी करने वाले यह शब्द कहे थे, "गणतंत्र, लोकतंत्र में विघटित होते हैं और लोकतंत्र, तानाशाही में पतित होते हैं। भारत के बारे में अब यही सच हो रहा है, जिसे दुनिया में सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है। इसे ठीक करने का तरीका है कि हम गणतंत्र दिवस को नागरिकों का जश्न बनाकर सैन्यवाद को कम करें, ताकि हमारा लोकतंत्र मजबूत हो सके।

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