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मोदी-स्टालिन मुलाकात: संघवाद और राज्य की स्वायत्तता अब अहम मसले हो सकते हैं  

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन 13 जून को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक पत्र लिख कर उनसे हाइड्रोकॉर्बन एक्सप्लोरेशन के लिए मांगी गई निविदाओं को राज्य के कानून का ‘उल्लंघन’ बताते हुए उसको निरस्त करने के लिए उनसे हस्तक्षेप की मांग की थी।
स्टालिन और मोदी
स्टालिन और मोदी । फोटो सौजन्य: प्रकाश आर 

तमिलनाडु में द्रवि़ड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक) की हाल में चुनी गई सरकार के बीच संघवाद और राज्य की स्वायत्तता पर खतरे को लेकर जाहिर की जा रहीं चिंताओं के बीच मुख्यमंत्री एमके स्टालिन आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलने वाले हैं।

समझा जाता है कि इस मुलाकात के दौरान राज्य सरकार प्रदेश को कोविड-19 की ज्यादा से ज्यादा वैक्सीन देने और चिकित्सा से संबंधित वस्तुओं से जीएसटी (वस्तुएं एवं सेवाएं कर) हटाने की मांग करेगी। यह बैठक नीतिगत मामलों पर विचार किए जाने की दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण होने वाली है। 

इसी बीच, द्रमुक सरकार ने कावेरी बेसिन में हाइड्रोकॉर्बन के एक्सट्रैक्शन के लिए निविदाएं मंगाने के केंद्रीय पट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के निर्णय का विरोध किया है। कावेरी बेसिन के इस क्षेत्र को तमिलनाडु की पूर्ववर्ती ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कजगम (अन्नाद्रमुक) सरकार ने संरक्षित कृषि क्षेत्र घोषित किया था।

 वहीं प्रधानमंत्री से मुलाकात के दौरान उठने वाले बड़े मसलों में जीएसटी मद से राज्य के कोटे का बकाया-आवंटन और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (नेप) भी शामिल हैं, जिनको लेकर द्रुमक ने अपनी चिंताएं जताई हैं एवं संघीय (यूनियन) सरकार के नजरिये के प्रति आवाज उठाई है। तमिलनाडु विधानसभा का सत्र 21 जून से शुरू हो रहा है। ऐसे में सरकार से उम्मीद की जाती है कि वह नागरिकता संशोधन अधिनियम, राष्ट्रीय आबादी पंजिका और राष्ट्रीय नागरिकता पंजी के विषय में अपनी स्थिति की घोषणा करेगी। 

द्रमुक के नेता और उसके मंत्रीगण तमिल और अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं में ‘केंद्र सरकार’ कहने-लिखने की बजाय ऐहतियातन ‘संघीय सरकार’ लिख-बोल रहे हैं, जिस पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और अन्नाद्रुमक दोनों विपक्षी पार्टियों ने कड़ा ऐतराज जताया है। 

‘हाइड्रोकॉर्बन एक्सट्रैक्शन की अनुमति नहीं देंगे’

किसानों और विरोधी पार्टियों के लगातार विरोध के बाद कावेरी बेसिन को एक संरक्षित कृषि क्षेत्र घोषित किया गया था और इस इलाके में हाइड्रोकॉर्बन एक्सट्रैक्शन के काम को समाप्त कर दिया गया था। केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री ने पुडुक्कोट्टई जिले के वडाथेरू ब्लॉक में हाइड्रोकॉर्बन एक्सट्रैक्शन के लिए 10 जून को निविदाएं मंगाई हैं, जिस पर किसान तुरंत भड़क गए हैं। 

इसके बाद, मुख्यमंत्री स्टालिन ने 13 जून को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक पत्र लिख कर इन निविदाओं को निरस्त करने में उनसे दखल देने की मांग की।

प्रधानमंत्री को भेजे पत्र में कहा गया है,“यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि संबंधित अधिकारियों द्वारा निविदा मंगाए जाने के निर्णय लिए जाने के संदर्भ में इससे जुड़ीं राज्य के लोगों की संवेदनाएं, उसके संभावित पारिस्थितिकीय दुष्प्रभावों और तमिलनाडु सरकार के वैधानिक अधिनियमन को कोई तवज्जो नहीं दी गई है।” इस पत्र में यह भी स्पष्टता से रेखांकित किया गया है कि “संरक्षित कृषि जोन में हाइड्रोकॉर्बन के एक्सट्रैक्शन का ऐसा कोई भी नया प्रस्ताव तमिलनाडु संरक्षित कृषि क्षेत्र विकास अधिनियम, 2020 का उल्लंघन है।” 

तमिलनाडु साइंस फोरम (टीएनएसएफ) के वी. सेतुरामन ने कहा, “हम इस मसले पर द्रमुक सरकार द्वारा समय पर किए गए हस्तक्षेप का स्वागत करते हैं। यह निविदाएं 463 वर्गकिलोमीटर क्षेत्र के लिए मांगी गई हैं, जिनमें वडाथेरू क्षेत्र और मन्नार की खाड़ी भी शामिल हैं। जब राज्य सरकार ने इस क्षेत्र में आगे किसी भी तरह के एक्सट्रैक्शन को कानूनन प्रतिबंधित कर दिया है तो संघीय सरकार को अवश्य ही इससे अलग रहना चाहिए।”

इसके अतिरिक्त, ओएनजीसी ने अरियालूर जिले के 10 नए कुंओं से एक्सट्रैक्शन के लिए राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण तमिलनाडु से अनुमति मांगी है। 

लोकेशन मैप अरियालूर जिले में ओएनजीसी के प्रस्तावित 10 नए एक्सप्लोरेशनल वेल का लोकेशन दिखा रहा है।

सेतुरामन कहते हैं,“ भाजपा सरकार की नीतियों ने एक्सप्लोरेशन प्रोसेस को श्रेणी ए से बी की प्रक्रिया में बदल दिया है, जिसमें जन सुनवाई की आवश्यकता नहीं होती। अलियालूर जिले में यह क्षेत्र संरक्षित जोन में शामिल नहीं है। इसलिए टीएनएसएफ ने राज्य सरकार से मांग की है कि इसके आगे होने वाले पर्यावरण संबंधी नुकसानों से बचाव के लिए वह इसे भी संरक्षित क्षेत्र में शामिल करे।” 

जीएसटी परिषद और बकाए को लेकर आपत्तियां 

देश के अन्य गैर-भाजपा शासित राज्यों की तरह, तमिलनाडु की नई निर्वाचित द्रमुक सरकार ने भी  जीएसटी व्यवस्था के पुनरावलोकन की मांग की है। जीएसटी परिषद की बैठक में भाग लेने के बाद राज्य के वित्त मंत्री पीटीआर पलानीवेल त्यागराजन ने एक टि्वट कर कहा, “जीएसटी की बुनियादी बनावट दोषपूर्ण है-संभवत: घातक है। इस बैठक ने मुझे सही साबित कर दिया। (उदाहरण के लिए बैठक से पहले के निर्णयों को लेकर 'सूचना के लिए' बनाम अनुसमर्थन बनाम अनुमोदन बनाम मतदान के बारे में स्पष्टता की कमी है)।”

वित्त मंत्री त्यागराजन ने बैठक में अपने भाषण में पेट्रोलियम उत्पादों पर लेवी लगाने के संघीय सरकार के एकतरफा फैसलों का भी जिक्र किया, जिसकी रकम राज्यों के बीच वितरित नहीं की जाती। उन्होंने कहा, “धीरे-धीरे लेकिन अंततः पेट्रोल और डीजल पर लगे सभी करों को उत्पाद शुल्क से उपकर में स्थानांतरित कर देना, इसका एक स्पष्ट उदाहरण है।”

बकाए के निबटारे में असाधारण देरी और क्षतिपूर्ति का भुगतान नहीं किए जाने पर टिप्पणी करते हुए वित्त मंत्री ने आगे कहा कि,“इस पृष्ठभूमि के साथ, यूनियन सरकार नियत समय पर बकाए के निबटान के लेकर उदासीन है और क्षतिपूर्ति के मुद्दे पर कम सहानुभूति दिखा कर अपने विद्वेष का परिचय दिया है।”

द्रमुक राज्यों के अधिकारों का उल्लेख करती हुई जीएसटी व्यवस्था में बदलाव की मांग कर रही है, जिसमें राजस्व में अपना हिस्सेदारी पाने के लिए राज्यों को पूरी तरह संघीय (यूनियन) सरकार पर पराश्रित बना दिया गया है। 

राज्य की पूर्ववर्ती अन्नाद्रमुक सरकार ने बकाए और क्षतिपूर्ति को लेकर अपेक्षतया चुप्पी साधे रही थी। नई द्रमुक सरकार ने अपने वित्त मंत्री के जरिए जीएसटी परिषद को महज औपचारिक और रबड़ स्टाम्प अथॉरिटी बताते हुए इसके विरोध में अपनी आवाज बुलंद की है।

पीटीआर पलानीवेल त्यागराजन द्वारा जीएसटी परिषद की बैठक में दिए गए भाषण का अंश। 

‘संघीय सरकार या केंद्र सरकार?’

द्रमुक सरकार के साथ विमर्श का अन्य मुद्दा राज्यों की स्वायत्तता और संघवाद भी होगा, जिसकी वह पैरोकारी करती है। इसके लिए वह बातचीत या लिखा-पढ़ी में अक्सर इस्तेमाल किए जाने वाले ‘मधिया अरासु’ (केंद्र सरकार) की बजाए ‘ओन्द्रिया अरासु’ (संघीय सरकार) के उपयोग पर जोर देती है। 

ऐसे समय में जब संघीय/यूनियन सरकार की नीतियां राज्यों का गला दबा रही हैं, द्रमुक के संस्थापक नेता सीएन अन्नादुरई द्वारा प्रयुक्त ‘संघीय सरकार’ की शब्दावली के पुनर्प्रयोग पर बल दिए जाने से संघवाद पर नई बहस छिड़ गई है।

भाजपा और अन्नाद्रमुक ने इसके प्रयोग पर अपनी त्योरियां चढ़ा ली हैं। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री ईडाप्पडी के पलानीसामी (ईपीएस) दावा कर रहे हैं कि ‘मधिया अरासु’ (केंद्र सरकार) शब्द सही है। भाजपा के नेता इस शब्द के पुनर्प्रयोग के समय को लेकर परेशान हैं और उनका दावा है कि केवल प्रशासनिक उद्देश्य को लेकर ही राज्यों का गठन किया गया था। 

भाजपा के नेतृत्व ने पाया है कि द्रुमुक के नेता गलत मंशा से इस शब्दावली को फिर से चलन में लाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसकी पूरे समाज में कड़ी प्रतिक्रिया हुई है। 

इन सब पर अपनी असहमति जताते हुए राज्य के वित्तमंत्री त्यागराजन ने कहा,“यूनियन शब्द का प्रयोग किसी झगड़े की वजह क्यों बनना चाहिए?  मैं इस शब्द को प्रयोग इसलिए करता हूं क्योंकि इसका संविधान में उल्लेख किया गया है और माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों में भी इसका उल्लेख किया जाता रहा है। जब इस शब्द का उल्लेख संविधान में किया गया है, फिर मैं इसको दोहरा कर किसी व्यक्ति का अपमान कैसे कर सकता हूं? भारत सरकार स्वयं ही अपने सभी दस्तावेजों में संघीय/यूनियन शब्द का इस्तेमाल करती है। फिर इस शब्द का प्रयोग किए जाने से कैसे कोई व्यक्ति खिन्न हो सकता है?” डेक्कन हेराल्ड ने यह खबर प्रकाशित की है।

तमिलनाडु मीडिया, प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक दोनों ने ही अन्नाद्रमुक एवं भाजपा के प्रति बहुत कम वफादारी दिखाते हुए व्यापक रूप से ‘ओन्द्रिया अरासु’ शब्द का ही इस्तेमाल किया है। 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति और राष्ट्रीय प्रवेश सह पात्रता परीक्षा (नीट) को लेकर द्रमुक का विरोध जगजाहिर है। यूनियन गवर्नमेंट जो पिछले पांच साल तक एआईएडीएमके सरकार के प्रति बेहद विनम्र और मौन रही थी उसके लिए अब राज्य में अपनी नीतियां लागू करने में डीएमके नेतृत्व को संभालना आसान नहीं हो सकता है। 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

Modi-Stalin Meet: Federalism and State Autonomy May Become Key Issues

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