Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

फ़िल्म : ‘तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया' तकनीक के सदुपयोग और दुरुपयोग में फ़र्क़ समझाती है

फ़िल्म में आम सिनेमा के रोमांस से हटकर एक नया कॉन्सेप्ट दिखाने की कोशिश की गई है। जो आपको मनोरंजन के साथ ही लेसन भी देता है।
movie

अक्सर कहा जाता है कि तकनीक का जितना सही इस्तेमाल हो, उतना ही अच्छा है। क्योंकि इसका दुरुपयोग एक ही पल में सबकुछ बर्बाद कर सकता है। कुछ ऐसी ही सीख देने की कोशिश करती है शाहिद कपूर और कृति सेनन की फिल्म ‘तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया।’ इस फिल्म में लॉजिक की कई जगह भारी कमी नज़र आती है। लेकिन कॉमेडी अंदाज में ही फिल्म ये जरूर समझा देती है कि टेक्नोलॉजी किसी के खेलने की चीज़ नहीं। फिर वो इसका एक्सपर्ट ही क्यों न हो।

फिल्म की कहानी में दो मुख्य किरदार हैं, पहले शाहिद कपूर जो एक रोबोटिक इंजीनियर हैं और उनका नाम आर्यन है। वहीं दूसरी मेन लीड कृति सेनन हैं, जो शिफ्रा यानी एक रोबोट का किरदार कर रही हैं। शिफ्रा आम इंसानों सी लगती हैं। उनका बोलना, चलना यहां तक खाना-पीना स्कीन, टच सब इंसानों जैसा है। और वो इतनी 'शुद्ध इंसान' लगती हैं कि खुद एक रोबोटिक इंजीनियर होकर भी शाहिद कपूर इसे नहीं पहचान पाते। उन्हें शिफ्रा से प्यार हो जाता है। यानी कि एक इंसान को एक रोबोट से प्यार हो जाता है।

एक इंसान और रोबोट की प्रेम कहानी

शाहिद कपूर की  मौसी (डिंपल कपाड़िया) एक रोबोटिक कंपनी चलाती हैं। जो खुद अमेरिका में रहती हैं और फिर शाहिद को भी वहीं बुला लेती हैं। शाहिद अपने घरवालों से शादी की टेंशन से दूर भागकर अमेरिका पहुंच तो जाते हैं, लेकिन यहां उनका दिल रोबोट शिफ्रा पर आ जाता है। शिफ्रा डिंपल की मैनेजर होती है। उसे जो कमांड दिया जाता है, वो सब कर सकती है। सभी भाषाएं बोलने से लेकर, सभी तरह का खाना बनाना और सामने वाले के फेशियल एक्सप्रेशंस को पढ़ना भी।

शाहिद को जब पता लगता है कि उन्हें एक रोबोट से प्यार हो गया है, तो वो अपनी फीलिंग से भागकर इंडिया वापस आ जाते हैं। लेकिन यहां कुछ ऐसा होता है कि वो शिफ्रा को भी बुला लेते हैं और अब इस बात को एक्सेप्ट कर लेते हैं कि शिफ्रा रोबोट ही सही उनके लिए किसी भी लड़की बेस्ट है। बस फिर क्या घरवालों से मिलवाना और चट मंगनी पट ब्याह तय हो जाता है।

अब रोबोट एक मशीन है, तो जाहिर है कि मशीन में डिफैक्ट तो आएगा ही। फिर एक दिन रोबोट की मेमोरी डिलिट हो जाती है। वो विवाद जैसे-तैसे खत्म ही होता है कि शादी वाले दिन रोबोट के मदरबोर्ड में गड़बड़ हो जाती है। और ये गड़बड़ एक भयंकर तबाही ले आती है। ये तबाही क्या है, ये तो आपको सिनेमाघर ही जाकर देखना होगा। लेकिन इतना जरूर है कि ये तबाही आपको 'टेक्नोलॉजी इज द बेस्ट' की सच्चाई जरूर दिखा देती है।

फ़िल्म के आख़िर में संदेश

फिल्म के आखिर में ये संदेश भी देने की कोशिश की गई है कि मशीने लोगों का काम आसान करने के लिए हैं। उनकी मदद करने के लिए हैं, लेकिन इनका जरूरत से ज्यादा औऱ गलत इस्तेमाल आपको बहुत भारी भी पड़ सकता है। ये कहानी कुछ यूं बनी है कि आपको शुरुआत से सब अच्छा लगता है। आप मशीन को इंसानों से बेहतर समझने लगते हैं। उसे परफेक्ट मानने लगते हैं। लेकिन एक समय ऐसा आता है, जब ये मशीन आपके कंट्रोल से बाहर होकर आपका ही सब कुछ बर्बाद कर देती है।

इस फिल्म का स्कीवल भी आना है। ऐसे में अभी और मनोरंजन की गुंजाइश है। फिल्म में आम सिनेमा के रोमांस से हटकर एक नया कॉन्सेप्ट दिखाने की कोशिश की गई है। जो आपको मनोरंजन के साथ ही लेसन भी देता है। ऐसे में ये फिल्म आपको आपके बचपन के उस डिबेट में भी ले जाती है, जब स्कूल टाइम पर हम 'तकनीक नवाचार: वरदान या अभिशाप' जैसे विषयों पर निबंध लिखा करते थे। मौका लगे तो इस फिल्म को एक बार जरूर देख आइए।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest