OMG-2 : समाज की हिपोक्रेसी को आईना दिखाती ये फ़िल्म सेक्स एजुकेशन की गंभीरता को समझाती है !
हमारे समाज में सेक्स एजुकेशन की बात आज भी किसी 'हौव्वे' से कम नहीं है। ये एक ऐसा जरूरी विषय है जिसकी जरूरत तो हर इंसान को है, लेकिन इसके बारे में कोई बात नहीं करना चाहता। इसे नैतिकता और अनैतिकता के कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है। अक्सर सेक्स शब्द का जिक्र होते ही लोग नज़रें चुराने लगते हैं। लेकिन वास्तव में ये विषय कितना गंभीर है और इसकी गलत जानकारी किस हद तक खतरनाक हो सकती है, इसे ही हालिया रिलीज हुई फिल्म Oh My God 2 में दिखाने की कोशिश की गई है।
बीते शुक्रवार 11, अगस्त को सिनेमाघरों में दस्तक देने वाली फिल्म Oh My God 2 एक socio-religious ड्रामा है, जिसमें हमारे धर्म, सेक्स एजुकेशन, लीगल सिस्टम, सोसाइटल हिपोक्रेसी, सेक्सुअल एक्सपलाइटेशन और किशोरावस्था की चिंता पर खुलकर बात की गई है। ये फिल्म एक कोशिश है समाज के सामने उसी के 'दोहरे चेहरे' को पेश करने की। जाहिर है आज का दौर, जहां फिल्में रिलीज होने से पहले ही बैन, बॉयकाट होने लगती हैं, उन्हें धर्म और राजनीति की भेंट चढ़ा दिया, तो इन सबसे Oh My God 2 कैसे बच सकती थी। फिल्म पर सेंसर बोर्ड पहले ही 27 कट लगा चुका है, तो वहीं अब कुछ तथाकथित हिंदूवादी संगठन और पुजारी इसके विरोध में जमकर बवाल करते दिखाई दे रहे हैं।
सेक्स एजुकेशन की गंभीरता
खैर, बढ़ते हैं फिल्म की कहानी पर, तो इसकी शुरुआत होती है महाकाल की नगरी उज्जैन से, जहां शिव भक्त कांति शरण मुद्गल यानी पंकज त्रिपाठी अपने परिवार के साथ एक खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे होते हैं। लेकिन जल्द ही इस खुशहाली में तब भूचाल आ जाता है, जब कांति शरण के बेटे विवेक (आरुष वर्मा) को अश्लील हरकतें करने के चलते प्रतिष्ठा पर आंच आने के कारणों का हवाला देकर स्कूल से निकाल दिया जाता है।
यहां फिल्म में सेक्स से जुड़े कई सामाजिक मिथकों से पर्दा उठाया गया है। जैसे कि ये करोगे तो ऐसा हो जाएगा, ऐसा नहीं करोगे तो वैसा हो जाएगा टाइप बातें। जो किसी के अंदर भी इनसिक्योरिटी और इनफिरिअरिटी कम्पेल्क्स पैदा करने के लिए काफी हैं और विवेक इन्हीं उलझनों में उलझ कर अस्पताल पहुंच जाता है। उसकी टॉयलेट में मास्टरबेशन करते हुए वीडियो लीक हो जाती है और फिर पूरा परिवार सामाजिक बॉयकॉट का शिकार बन जाता है। यही नहीं इस बीच विवेक दो बार सुसाइड करने की कोशिश भी करता है।
कांति शरण को कुछ समझ नहीं आता और वो परिस्थितियों से भागने का मन बना ही रहे होते हैं कि उनके सामने शिव के दूत यानी अक्षय कुमार प्रकट हो जाते हैं, जो उन्हें समझाते हैं कि उनके बेटे ने कोई गलत काम नहीं किया और उन्हें इस सोसाइटी को जवाब देने की भी कोई जरूरत नहीं है। उल्टा सोसाइटी को उनसे और खासकर उनके लड़के विवेक से माफी मांगनी चाहिए क्योंकि उसे सही इंफॉर्मेशन और सही एजुकेशन नहीं दी गई थी। बस फिर क्या, सीधे-साधे कांति शरण लड़ने की सोचते हैं और सभी झोलाछाप डॉक्टरों, केमिस्ट और स्कूल को अदालत में घसीट लेते हैं और उनके खिलाफ 101 रुपए का मानहानि का मुकदमा कर देता है।
कुल मिलाकर देखें, तो मामला शुरू तो स्कूल में विवेक के बुली होने, मास्टरबेशन करने और उसे बिना काउंसलिंग के मिसगाइडेंस से शुरू होता है, लेकिन जैसे ही ये कोर्ट की चौखट पर पहुंचता है, इसमें व्यापक तौर पर सेक्स एजुकेशन की आइना दिखाने वाली सच्चाई समाज के सामने आ जाती है। मसलन हम सेक्स करने और पोर्न देखने में तो दुनिया की टॉप रैंकिंग पर आते हैं, लेकिन जब बात इसके डिस्कशन और एजुकेशन की हो तो हमारे लिए ये 'गंदी बात' हो जाती है। हम कहने के लिए अपने धर्म पर गर्व करते हैं लेकिन उसी के शास्त्रों में लिखी कामसूत्र की बातों को 'गंदगी' के नजरिए से देखते हैं।
सेक्स को गंदा कहने पर सवाल
फिल्म में कांति शरण सवाल उठाते हैं कि हमारे शास्त्र जिसमें धर्म, काम, क्रोध और मोक्ष को चार जरूरी स्तंभ बताया गया है, वहां सेक्स इतना गंदा शब्द कब बन गया? हम इसे इस तरीके से छुपाने कब लगे? वो संस्कृति जो दुनिया में कोसो मिल आगे थी जो कामसूत्र को दुनिया के सामने ले आई, जहां वूमेन प्लेज़र और डिजायर की बात होती थी, खजुराहो जैसे मंदिर बना करते थे, शिवलिंग की पूजा होती थी। उसी सभ्यता ने ये सब छुपाना जरूरी क्यों समझा जाने लगा?
ये कहानी आपको कोर्ट रुम ड्रामा और हक़ीकत दोनों से रूबरू करवाती है। कामिनी माहेश्वरी (यामी गौतम), जो उस पॉवरफुल स्कूल की वकील हैं, वो जैसे ही अदालत में एंट्री लेती हैं, हर कोई रुक कर उन्हें देखने लगता है। कामिनी वो सारे तर्क देती है जो हमारे मन में धंसे हुए हैं, बस जज किए जाने के डर से हम में से अधिकांश लोग इसे बोलते नहीं हैं। वो विक्टिम शेमिंग करती हैं, कांति शरण को पैसे खिलाकर केस वापस लेने की कोशिश होती है और फिर 'धार्मिक भावनाओं को आहत' करने के नाम पर कई केस फाइल करके पूरे मामले को एक अलग एंगल देने की कोशिश भी होती है।
वैसे ये हमारे समाज की विडंबना ही है कि यहां रेप, हिंसा और सेक्सुअल एब्यूज की बातें तो आम हो गई हैं, लेकिन सेक्स एजुकेशन और डिस्कशन जैसे टॉपिक को आज भी सिर्फ परदे में ढके रहने देना चाहते हैं। ये फिल्म बार-बार हमें अपना नज़रिया बदलने की ओर ध्यान आकर्षित करती है। फिल्म का संदेश साफ कहता है कि सेक्स एजुकेशन, मास्टरबेशन, पीरियड्स ये सब जितने संवेदनशील विषय हैं, उतने ही जरूरी भी और इनका जवाब चुप्पी तो कतई नहीं है।
गौरतलब है कि ये फिल्म लगभग एक दशक पहले आई फिल्म Oh My God का सिक्व्ल है। लेकिन इसकी कहानी पहले की तरह पाखंडी बाबाओं और मौलवीयों की खबर लेती दिखाई नहीं देती। शायद आपको याद हो कि उस फिल्म में ये फोकस करने की कोशिश की गई थी कि कैसे ये तथाकथित धर्म के ठेकेदार लोग अपने निजी स्वार्थ, पैसे और पावर के लिए लोगों की भावनाओं से खेलते हैं। हालांकि यहां आपको ऐसा कुछ खास देखने को नहीं मिलता लेकिन ये फिल्म एक बेहद संवेदनशील और पेचीदा मामले को जरूर उठाती है, जिस पर आज के समय में चर्चा बहुत जरूरी है। और हां ये फिल्म अक्षय कुमार की नहीं है, ये फिल्म है पंकज त्रिपाठी की। जो अपने कंधों पर एक शिव भक्त होने के साथ ही पिता की जिम्मेदारी निभाने और समाज को आईना दिखाने का काम भी बखूबी करते हैं। वैसे इस फिल्म को सिर्फ एडल्ट देख सकते हैं, लेकिन ये फिल्म बनी वास्तव में टीनएजर्स और उनके परिवार के लिए है।
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