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बहुसंख्यकवाद की दिशा में बढ़ना देश के लिए ख़तरनाक : एनएपीएम

जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) की भोपाल में आयोजित राष्ट्रीय बैठक में देश की साझी विरासत और संस्कृति बचाने के लिए यात्रा निकालने का लिए निर्णय लिया गया।
NAPM

देश की साझी विरासत पर हो रहे हमले के खिलाफ आवाज बुलंद करते हुए जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) की दो दिवसीय राष्ट्रीय बैठक भोपाल के गांधी भवन में हुई। बैठक में इस बात पर चिंता जाहिर की गई कि जल, जंगल और जमीन पर आम लोगों के अधिकार छीने जा रहे हैं और हाशिये पर खड़े समुदायों की आवाजें अनसुनी की जा रही हैं। यह देश के लिए कठिन चुनौती का समय है, जब देश को बहुसंख्यकवाद की ओर धकेला जा रहा है। इन परिस्थतियों में जन संगठनों की यह जिम्मेदारी है कि किसान, मछुआरे, मजदूर, अल्पसंख्यकों और हाशिए पर खड़े सभी समुदायों को एकजुट कर उनके संघर्षों को तेज किया जाए।

कोरोना की वजह से पिछले ढाई साल से एनएपीएम से जुड़े संगठनों की बैठकें आयोजित नहीं हो पाई थी। लंबे समय बाद 15 राज्यों के विभिन्न जन संगठनों से जुड़े वरिष्ठ प्रतिनिधियों ने एक साथ बैठकर अपने राज्यों में चल रहे संघर्षों एवं देश की दशा और दिशा पर चिंतन किया। सांप्रदायिकता, बहुसंख्यकवाद, देश का हिंसक माहौल और विकास के नाम पर संसाधनों का कार्पोरेट को देने एवं पर्यावरण का विनाश आदि बैठक में चर्चा के अहम मुद्दे रहे।

बैठक में यह बात उभर कर आई कि जब से मोदी सरकार आई है वह बिना लोगों से बातचीत कर, “पीएमओ“ द्वारा नीति निर्धारण कर रही है जिसके चलते समाज में टकराव की स्थिति बनी हुई है। “अग्निवीर” के खिलाफ़ चल रहे आंदोलन सरकार की उसी नीति का नतीजा है। एनएपीएम ने कहा कि वे आंदोलन में किसी भी प्रकार के हिंसा का समर्थन नहीं करते और नौजवानों से अपील करते हैं कि वे आंदोलन को शांतिपूर्वक बढ़ाएं। उन्होंने कहा कि बेरोजगारी भी एक प्रकार की हिंसा है जिस पर सरकार गंभीर नहीं है। उन्होंने चिंता जाहिर की कि पिछले ढाई साल में देश में कई ऐसी समस्याएं बढ़ गई हैं, जो पर्यावरण विरोधी, गरीब विरोधी और समाज विरोधी है और जिसकी वजह से समुदायों के बीच नफरतें बढ़ गई है।

वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने कहा कि आज हम पर बहुसंख्यकवाद थोपा जा रहा है, जो देश के हित में नहीं है। सरकार समुदाय और लोगों को एक-दूसरे से लड़ाकर “फूट डालो राज करो नीति” पर चल रही है। इस बहुसंख्यकवाद में द्वेष है, धर्मांधता है और यह हमारी संस्कृति, समाज के मूल्यों के विरुद्ध है। न्याय की धज्जियां उड़ाते हुए भाजपा सरकारों द्वारा बुलडोजेर राज चलाया जा रहा है और उसके द्वारा मुस्लिम समुदाय पर हमला किया जा रहा है। एनएपीएम इसकी भर्त्सना करता है। सरकार जिस तरह से समाज में सांप्रदायिकता का जहर घोल रही है वह समाज को तोड़ डालेगा।

उत्तर प्रदेश की सामाजिक कार्यकर्ता ऋचा सिंह ने कहा कि कानून की धज्जियां उड़ाते हुए उत्तर प्रदेश में बुलडोजर राज को बढ़ावा दिया जा रहा है। प्रदेश में सामाजिक एवं धार्मिक वातावरण को खराब किया जा रहा है। जनता के विरोध करने के तरीके को कठिन बनाया जा रहा है। अन्याय के विरोध को कुचला जा रहा है। वाराणासी के फादर आनंद ने बताया कि समाज में शत्रुता को बढ़ावा दिया जा रहा है। हेट स्पीच के कारण नफरती दीवारें खड़ी की जा रही है। विद्वेष के कारण दंगे बढ़े हैं। धर्म परिवर्तन के नाम पर अल्पसंख्यकों के प्रार्थना स्थल को निशाना बनाया जा रहा है। बहुत सारे ऐसे मामले देखने को मिल रहे हैं, जिसमें पुलिस भी उत्पीड़कों के साथ खड़ी नजर आती है। ऐसे कठिन समय में जन संगठनों को सौहार्द बढ़ाने की दिशा में काम करने की जरूरत है।

एनएपीएम ने यह कहा कि देश के सभी तबकों को हम साथ लाने और “अनेकता में एकता” की बात करने की जरूरत है। इस पर पहल करते हुए ऐलान किया गया कि एनएपीएम द्वारा साझी विरासत और समुदाय के बीच प्रेम का संदेश फैलाने के लिए कश्मीर से कन्याकुमारी तक ‘‘साझी विरासत यात्रा’’ निकाली जाएगी। वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता अनुराधा भार्गव ने कहा कि बुलडोजर संस्कृति के खिलाफ 19 जुलाई को भोपाल में एक जन सुनवाई का भी आयोजन किया जाएगा।

मेधा पाटकर ने कहा कि ऐतिहासिक किसान आंदोलन से ऊर्जा लेते हुए एक लंबी रणनीति बनाने की जरूरत है, जिसमें किसान की परिभाषा को विस्तार देते हुए उन सभी समुदायों को इसमें शामिल किया जाए, जो प्राकृतिक संसाधन पर आश्रित हैं। उन्होंने किसानी बचाने पर जोर दिया। बैठक में किसानी पर एक कार्य समिति बनाने की घोषणा हुई जो इन मुद्दों पर सघन काम करेगी। मजदूरों की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। कोरोना में हम सभी ने मजदूरों की हालत देखी है। ऐसे में सभी श्रम कानून को “लेबर कोड” से बदल देने से उनकी असुरक्षा और बढ़ी है। श्रम कार्ड बनाने से काम नहीं चलेगा, बल्कि मजदूरों को शोषण से कानूनी संरक्षण, गरिमापूर्ण मजदूरी, सुरक्षित रोजगार एवं सामाजिक सुरक्षा चाहिए। बैठक में यह तय हुआ कि एनएपीएम असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को गोलबंद करने का काम करेगी और उन सभी संगठनों का साथ लेगी जो इस काम में लगे हैं।

बैठक में ओडिशा से आए नियामगिरि आंदोलन से जुड़े वरिष्ठ पर्यावरण कार्यकर्ता प्रफुल्ल सामंतरा ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों की लूट में बढ़ोतरी हुई है। इसे कार्पोरेट को बेचा जा रहा है, जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ गैर बराबरी को बढ़ावा दे रहा है। केरला से आए सी.आर. निलेकन्दन ने बताया कि पूरे देश में जलवायु संकट बढ़ा है। केरल में पिछले कुछ सालों से भू-स्खलन और भारी बाढ़ का संकट बढ़ गया है। पश्चिमी घाट के समुद्र में करंट बढ़ा है और एयर पैटर्न भी बदल गया है। ऐसे में बड़ी विकास योजनाएं पर्यावरणीय आपदा में तब्दील हो सकती हैं।

एनएपीएम ने कहा कि इन सभी परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण कानून की भी अवहेलना हुई है। देश में पर्यावरणीय आपदा लाने वाले, समुदायों के प्राकृतिक संसाधनों पर हक को छिनने वाले और लोगों को विस्थापित करने वाले बड़ी विकास परियोजनाओं का पुनः मूल्यांकन होना चाहिए और सरकार को लोगों से बातचीत करनी चाहिए। इस संदर्भ में यह भी निर्णय लिया गया कि 26 सितंबर को विश्व नदी दिवस के उपलक्ष्य में नर्मदा घाटी की यात्रा की जाएगी और अन्य राज्यों में भी ऐसी यात्रा निकाली जाएगी।

बैठक में मेधा पाटकर, डॉ. सुनीलम, गेब्रियल डाइट्रिच, संजय मंगलागोपाल, प्रफुल्ल सामंतरा, अरुंधती धुरु, मीरा संघमित्रा, लिंगराज आजाद, लिंगराज प्रधान, आशीष रंजन, सुनीति, युवराज, अमूल्य निधि, राजकुमार सिन्हा, सिस्टर डोरोथी, कैलाश मीणा, ऋचा सिंह, सुरेश राठौर, सी.आर. निलेकन्दन, सौम्या दत्ता, प्रदीप, सुहास ताई, फैसल खान, किरण बिस्सा, कमलू दीदी, राजीव यादव सहित कई वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता बैठक में शामिल हुए।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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