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रेलवे में विकलांग लोगों के लिए अलग आईडी को लेकर एनपीआरडी नाराज़, एससी जाएगा संगठन

"न्यायालय ने हाल ही में दिए अपने आदेश में यह कहा है कि उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा जारी किया गया विकलांगता प्रमाण पत्र 'पूरे भारत में मान्य है'। ऐसे में रेलवे द्वारा एक अलग आईडी कार्ड जारी करने को वैध बताना कोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ है।"
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भारतीय रेलवे द्वारा विकलांग लोगों के लिए अलग आईडी कार्ड को लेकर जारी एक परिपत्र के विरोध में राष्ट्रीय विकलांग अधिकार मंच (एनपीआरडी) ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका {W.P.(C) 2501/2019} दायर की थी। रेलवे के इस परिपत्र के अनुसार विकलांग व्यक्तियों द्वारा रेल यात्रा के दौरान रियायतें प्राप्त करने के लिए रेलवे का जारी किया गया फोटो वाला परिचय पत्र अनिवार्य होगा। एनपीआरडी की तरफ से अदालत में दायर रिट याचिका के तहत उक्त परिपत्र को रद्द करने के लिए राष्ट्रीय विकलांग अधिकार मंच (एनपीआरडी) ने निवेदन किया था। रेलवे के अड़ियल रुख ने एनपीआरडी को कानूनी मदद लेने के लिए मजबूर किया।

एक प्रेस विज्ञप्ति में राष्ट्रीय विकलांग अधिकार मंच (एनपीआरडी) के महासचिव मुरलीधरन ने कहा कि न्यायालय ने हाल ही में दिए अपने आदेश में यह कहा है कि उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा जारी किया गया विकलांगता प्रमाण पत्र "पूरे भारत में मान्य है"। ऐसे में रेलवे द्वारा एक अलग आईडी कार्ड जारी करने को वैध बताना कोर्ट के आदेश के खिलाफ है।

एनपीआरडी ने तर्क दिया था कि एक सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी विकलांगता प्रमाण पत्र की सार्वभौमिक वैधता के अलावा, विकलांग व्यक्तियों के अधिकारिता विभाग (डीईपीडब्ल्यूडी) द्वारा जारी विशिष्ट विकलांगता पहचान पत्र (यूडीआईडी) का मूल उद्देश्य "एकल" होना है। संगठन की ओर से जारी बयान में कहा गया कि विभिन्न योजनाओं का लाभ उठाने के लिए क्या विकलांगों की पहचान, सत्यापन का दस्तावेज विफल हो गया है जो रेलवे अपना अलग आईडी कार्ड जारी करने पर अड़ा हुआ है।

यह फैसला ऐसे समय में आया है जब डीईपीडब्ल्यूडी ने 1 अप्रैल, 2023 से केंद्र सरकार की सभी योजनाओं के तहत लाभ प्राप्त करने के लिए विशिष्ट विकलांगता पहचान पत्र (यूडीआईडी) को अपने पास रखना अनिवार्य कर दिया है, पर उन्हें रेलवे की स्वीकारिता नहीं है।

दुर्भाग्य से, न्यायालय ने याचिकाकर्ता के इस तर्क को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया कि रेलवे विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (आरपीडी अधिनियम) के अधिकार का उल्लंघन कर रहा है।

चौंकाने वाला तथ्य यह है कि भले ही एनपीआरडी ने रियायतों के संबंध में कोई राहत नहीं मांगी थी, ऐसे में पूरे आदेश को इस आधार पर आधार बनाया गया था, जिस पर हम यह कहने को मजबूर हैं कि यह कोर्ट द्वारा याचिका का गलत अध्ययन है। आदेश के कुल नौ पृष्ठों में से साढ़े पांच पृष्ठ केवल रेलवे द्वारा प्रदान किए जा रहे किराए में विभिन्न प्रकार की रियायतों के विवरण हैं। गौरतलब है इन रियायतों को किसी प्रकार की उदारता के रूप में नहीं देखा जा सकता है, बल्कि हाशिए और वंचितों के प्रति राज्य के कर्तव्य के रूप में देखा जाना चाहिए। अब एनपीआरडी अपनी कड़ी नाराजगी जताते हुए इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी।

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