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पटना: जनाधिकार, लोकतंत्र व संविधान बचाने के लिए सामाजिक संगठन जुटे

“आइये एक और भारत के निर्माण में शामिल हों जो गरिमा-न्याय और शांति के साथ संविधान व लोकतंत्र को मजबूत करे!”
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“आइये एक और भारत के निर्माण में शामिल हों जो गरिमा-न्याय और शांति के साथ संविधान व लोकतंत्र को मजबूत करे!”- इसी आह्वान के साथ “वर्ल्ड सोशल फोरम” की प्रेरणा से बने ‘इंडिया सोशल फोरम’ का तीनदिवसीय राष्‍ट्रीय समागम पटना में जोशो-खरोश के साथ संपन्न हुआ। जिसमें पड़ोसी राष्ट्र नेपाल समेत देश के विभिन्न राज्यों से आये 100 से भी अधिक सामाजिक जन संगठनों के 5000 से भी अधिक कार्यकर्त्ता शामिल हुए।

जिसमें मौजूदा समय में इस देश के अन्दर जल-जंगल-ज़मीन-जीविका इत्यादि के मुद्दों के साथ साथ जीवन के मौलिक अधिकारों, सबको रोटी-कपड़ा-मकान-शिक्षा-स्वास्थ्य-दवा एवं आवास-रोज़गार जैसी बुनियादी ज़रूरतों के सवालों को लेकर साझा विमर्श हुआ। साथ ही दालित-अदिवासी-अल्पसंख्यक एवं वंचितों-गरीबों, किसान-मजदूर-छात्र-नौजवानों व महिला सुरक्षा-सशक्तिकरण के ज्वलंत सवालों तथा बाढ़-सुखाड़ व नदी तथा कृषि इत्यादि वैकल्पिक विकास जैसे ज़रूरी सवालों पर जन संघर्ष खड़ा करने को लेकर वृहत चर्चाएं हुईं। देश के संविधान व लोकतंत्र पर बढ़ते हमले, न्यायपालिका की स्वायत्ता व जनता के नागरिक अधिकारों के हनन तथा सबसे बढ़कर पूरे देश में बढ़ता सत्ता प्रायोजित सामाजिक विभाजन और सांप्रदायिक नफ़रत-हिंसा-उन्माद और राज्य-दमन की चुनौतियों के मुकाबले के लिए व्यापक एकताबद्ध सामाजिक जन मुहिम का सवाल सर्वाधिक महत्व के मुद्दे रहे।

उक्त सभी अहम् सवालों पर काम करने वाले जन संगठनों द्वारा सामूहिक विमर्श के 120 सत्र आयोजित किये गए। जिसमें देश के कई नामचीन-वरिष्ठ एवं युवा एक्टिविस्‍टों के साथ साथ ज़मीनी धरातल पर सक्रिय कार्यकर्त्ताओं की जबत्दस्त भागीदारी रही।

2 से 4 दिसंबर’ 23 तक बिहार की राजधानी पटना स्थित ‘बिहार विद्यापीठ’ के फैले विशाल परिसर में यह पूरा आयोजन हुआ। जिसमें केरल, तमिलनाडू, महाराष्ट्र, ओड़िसा, छत्तीसगढ़, हरियाणा-पंजाब, दिल्ली, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात, उत्तराखंड व बिहार समेत पड़ोसी राष्ट्र नेपाल के 100 से भी अधिक सामाजिक जन संगठनों व उनके प्रतिनिधि शामिल हुए।

इंडिया सोशल फोरम के इस तीन दिवसीय राष्‍ट्रीय समागम की शुरुआत 2 दिसम्बर को झंडोत्तोलन के साथ साथ सभी शहीदों की याद में बनी वेदी पर माल्यार्पण व जसम के कलाकारों द्वारा ‘गंगा रंग चौपाल’ में प्रस्तुत शहीद-गीत से हुई।

उद्घाटन सत्र को राष्‍ट्रीय स्तर के कई वरिष्ठ सोशल एक्टिविस्‍टों के साथ साथ चर्चित आंदोलनकर्ता मेधा पाटकर, भाकपा माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य, संयुक्त किसान मोर्चा के सुनीलम, शायर गौहर रज़ा इत्यादि समेत बिहार कांग्रेस विधायक दल नेता शकील खान व सीपीआई तथा नेपाल के प्रतिनिधियों ने संबोधित किया।

मेधा पाटेकर ने अपने संबोधन में कहा कि - देश के मौजूदा संकटपूर्ण हालातों में यह आयोजन बिहार में होना, एक विशेष महत्व रखता है कि हमेशा से देश के राष्ट्र नवनिर्माण की कोई भी मुहिम बिहार से ही शुरू होती रही है। आज जबकि आज़ादी का “अमृत काल” महोत्सव मनाया जा रहा है और सच बोलने की भी आज़ादी नहीं रहने दी जा रही है। पूरे देश में धार्मिक हिंसा के जरिये वोट की राजनीति से व्यापक पैमाने पर “भय और सामाजिक विभाजन” को फैलाया जा रहा है। “वैश्वीकरण-विनिमेश” के नाम पर अडानी-अंबानियों को यहां के जल-जंगल-ज़मीन और सभी प्राकृतिक संपदा-संसाधनों की खुली छूट दी हुई है और खुली लूट मची हुई है। प्रधानमंत्री के जन्मदिन का राजशाही उत्सव मनाने के लिए नर्मदा विस्थापितों के सैकड़ों गावों को पानी में डुबा दिया गया। ऐसे में हमें राष्ट्र के विकास-नवनिर्माण को लेकर “मोदी राज’ के ख़िलाफ़ गांधी के विचारों को लेकर संघर्ष में खड़ा होना होगा।

भाकपा माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने शायर गौहर रज़ा द्वारा इस देश का संविधान बचाने के आह्वान को रेखांकित करते हुए कहा कि आज वास्तव में लोकतंत्र-समानता व सामाजिक एकता सिर्फ़ हमलोगों की ही बात नहीं रह गयी है। उत्तराखंड में अडानी की कंपनी द्वारा सुरक्षा के तमाम मानकों को धता बताकर बनाये जा रहे सुरंग में फंसे मजदूरों को दूसरे मजदूरों ने सही सलामत निकालकर “डबल इंजन की सरकार” की असलियत उजागर कर दी। अम्बेडकर के लिखे संविधान को “अंग्रेजों का संविधान” बताने की कुटिल चाल से लोगों को भरमाकर मोदी के विश्वस्त सलाहकार के नाम सरकार प्रायोजित लेख प्रकाशित कर “मनुवादी संविधान” से देश चलाने की साजिश की जा रही है। सत्ता निर्देशित उग्र सांप्रदायिक उन्माद-हिंसा की आड़ में पूरे देश में कॉर्पोरेट लूट का कारोबार चलाया जा रहा है। इसलिए आज देश को ज़रूरत है कि हम सारे लोग एक होकर एकसाथ आवाज़ उठायें। आज़ादी के सपनों की लगातार की जा रही हत्या के ख़िलाफ़ सामूहिक संकल्प के संघर्ष को खड़ा करना हम सबों का फ़ौरी कार्यभार है। हमारे साझा संघर्ष से ही इस देश का संविधान जिंदा रहेगा।

आंदोलनकारी किसान नेता सुनीलम ने भी बिहार में हो रहे इस आयोजन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बिहार को संघर्षों की प्रेरणा भूमि बताया। एम्एसपी को लेकर किसानों के जारी आंदोलन का ज़िक्र करते हुए कहा कि यह सिर्फ़ किसानों का नहीं बल्कि देश की संप्रभु अर्थवयवस्था को बचाने का सवाल है।

दिल्ली से आये चर्चित शायर गौहर रज़ा ने कहा कि वर्षों पूर्व जिन वर्चस्वशाली जमात ने यह सोचकर इस देश के जिस संविधान पर अपनी सहमति दी थी कि - मनमर्जी तो हमारी ही चलेगी, आज वह पूरी ताक़त के साथ देश की जनता के अधिकारों की आवाज़ को बुलंद कर रहा है। इसीलिए इसकी रक्षा करना हम सबों का सबसे बड़ा दायित्व बन गया है।

दिल्ली विश्‍व विद्यालय के प्रो. अपूर्वानंद ने कश्मीर में जारी राज्य-हिंसा और लोकतंत्र का गला घोंटे जाने की चर्चा करते हुए कहा कि- लोकतंत्र और संविधान को लेकर देश की बहुसंख्य जनता का बड़ा जन दबाव खड़ा करना, वक़्त का तकाज़ा बन गया है।

वरिष्ठ समाजवादी नेता विजय प्रताप ने “वर्ल्ड सोशल फोरम” से प्रेरित इंडिया सोशल फोरम की स्थापना और इसके द्वारा अब तक चलाये गये सभी अभियानों की जानकारी साझा करते हुए कहा कि- ऐसे सामूहिक मंच की आवश्यकता पहले से भी ज़्यादा हो गयी है।

कांग्रेस नेता शकील अहमद, सीपीआइ के रामबाबू, आदिवासी सवालों पर सक्रिय निकोलस बारला, दलित अधिकार मंच के कपिलेश्वर राम, सोशल फोरम के वरिष्ठ एक्टिविस्‍ट कुमार प्रशांत, किन्नर अधिकारों के प्रणेता संतोष किन्नर एवं बिहार विद्यापीठ के विजय प्रकाश समेत कई अन्य एक्टिविस्‍ट वक्ताओं ने भी अपने विचार रखे। अध्यक्षता करते हुए फोरम के राष्‍ट्रीय नेता अनिल मिश्रा ने देश की जनता के जन मुद्दों व अधिकारों के लिए सामूहिक व सशक्त एकता की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए विश्व और देश के पूंजीवाद के ख़िलाफ़ साझा संघर्ष खड़ा करने का आह्वान किया।

देश के विविध सामाजिक जन मुद्दों को लेकर आयोजित हुए इस राष्‍ट्रीय समागम का बेहद आकर्षक हिस्सा था, बहुभाषी सांस्कृतिक कार्यक्रमों की बहुरंगी प्रभावपूर्ण प्रस्तुतियां। जो दिन के 10 बजे से लेकर रात 8 बजे तक आयोजन परिसर में बने मुख्य मंच- ‘अब्दुल गफ्फार खां मंच’, ‘गंगा रंग चौपाल’, ‘कोशी सांस्कृतिक मंच’ व ‘फल्गु रंग भूमि’ में मंचित हुईं। जिसमें महाराष्ट्र, केरल, झारखंड, दिल्ली, उत्तर प्रदेश व बिहार की कई जन सांस्कृतिक मंडलियों के साथ साथ इप्टा, जन संस्कृति मंच, प्रेरणा (पटना), खेल-तमाशा, साझा क़दम, मैकडोर, रेला(ओड़िसा), जन जागरण शक्ति संगठन व प्रेरणा कला मंच(बनारस) के कलाकारों ने प्रस्तुतियां कीं। जिनके माध्यम से सामूहिक जनगीत, सामूहिक नृत्य, नुक्कड़ नाटक व एकल नाट्य-गायन इत्यादि के प्रभावपूर्ण कार्यक्रम हुए। वर्तमान सामाजिक स्थितियों को लेकर वरिष्ठ एक्टिविस्‍ट ग़ालिब निर्देशित चित्रकार सीताराम द्वारा बनाये गए कविता पोस्टरों से लेकर विविध जनमुद्दों पर कई नामचीन चित्रकारों की कृतियां व स्कल्पचर्स समागम स्थल पर आये प्रतिभागियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहे।

कुल मिलकर, बिहार में पहली बार आयोजित हुए इंडिया सोशल फोरम द्वारा आयोजित देश भर के सामाजिक जन सगठनों के तीन दिवसीय राष्‍ट्रीय समागम, देश की मौजूदा राजनितिक-सामाजिक चुनौतियों के बरक्श काफ़ी महत्वपूर्ण कहा जायेगा। जिसका समापन भी सामूहिक संकल्पना के साथ ही हुआ कि- एक नयी दुनिया निर्माण की कल्पना को साकार बनाने की राह पर ‘अनदर इंडिया इज़ पॉसिबल” के लिए साझा संकल्प और एकताबद्ध होकर चलना है। जिसकी मौजूदा प्राथमिक ज़रूरत है कि देश के संविधान और लोकतंत्र को बचाने के लिए जनविरोधी मोदी शासन को उखाड़ फेंका जाय!

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