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पुराना क़िला उत्खनन : मिथक को इतिहास बनाने की एक और साज़िश

हिन्दी अख़बार और गोदी मीडिया जिस तरह से मिथक को इतिहास बनाने में तुली है,ऐसा लगता है कि यह भाजपा के हिन्दूराष्ट्र के एजेंडे का मार्ग प्रशस्त कर रही है।
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कुछ समय पहले मुग़ल इतिहास को पाठ्यक्रम से हटाने की चर्चा थी और अब दिल्ली के पुराने किले में हो रहे उत्खनन में कथित रूप से पाण्डव काल के इन्द्रप्रस्थ नगर के अवशेषों के मिलने की चर्चा मीडिया में है। निस्संदेह दिल्ली एक प्राचीन स्थल है तथा मेरठ तक प्राचीन हड़प्पा सभ्यता के अवशेष मिले हैं, इसलिए अगर दिल्ली के पुराने किले में हुए कई बार के उत्खनन में कई प्राचीन सभ्यताओं के अवशेष मिले हैं,तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है,लेकिन हिन्दी अख़बार और गोदी मीडिया जिस तरह से मिथक को इतिहास बनाने में तुली है,ऐसा लगता है कि यह भाजपा के हिन्दूराष्ट्र के एजेंडे का मार्ग प्रशस्त कर रही है।

दिल्ली के पुराने किले का पाँच बार उत्खनन किया जा चुका है। 'पहली बार 1954-55' में, 'इसके बाद सन 1969-73' में। दोनों उत्खनन प्रसिद्ध पुरातत्वविद 'डॉ बी बी लाल' के संरक्षण में किए गए थे, जबकि 'साल 2013-14 एवं 2017-18' में हुई खुदाई का कार्य 'डॉ बसन्त कुमार स्वर्णकार' के निर्देशन में हुआ और '2023' में भी उत्खनन कार्य इन्हीं के निर्देशन में किया जा रहा है।

हमें इस तथ्य की ओर ध्यान देना चाहिए,कि डॉ बी बी लाल एक हिन्दुत्ववादी इतिहासकार रहे हैं। उन्होंने इससे पहले अयोध्या का उत्खनन भी करवाया था तथा यह सम्भव कोशिश की कि,यह मान लिया जाए-पौराणिक पुरुष श्रीराम का जन्म यहीं हुआ था,परन्तु उस समय उत्खनन से प्राप्त सामग्री में केवल बौद्धकालीन अवशेष ही मिले,बाद में उन्होंने महाभारतकालीन प्राचीन हस्तिनापुर की खोज़ के लिए दिल्ली के आस-पास कई जगह के उत्खनन करवाए,परन्तु वहाँ ऐसा कुछ नहीं मिला।

पुराने किले का जब सबसे पहले डॉ बी बी लाल ने उत्खनन करवाया था,तब भी वे यह दावा कर रहे थे,कि यहाँ पर पाण्डवकालीन इन्द्रप्रस्थ नगर के अवशेष मिल सकते हैं, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं मिला। वास्तव में महाभारत एक महाकाव्य है तथा यह ऐतिहासिक ग्रन्थ नहीं है। इसके लेखनकाल में भी विवाद है, इसलिए इसे ऐतिहासिक साक्ष्य मानकर ऐतिहासिक खोज़ों के लिए उत्खनन कार्य करवाना हास्यास्पद है। अभी पिछले वर्ष ही 'उत्तर प्रदेश के बागपत' में दिल्ली के निकट 'सिंधौली गाँव के उत्खनन' में भी एक प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिले,कुछ हथियार,एक पुराने रथ के अवशेष और कुछ ताबूत मिले,उस समय भी मीडिया शोर मचाने लगी–महाभारत का युद्ध यहीं हुआ था, लेकिन बाद में पता चला कि यह भ्रान्ति थी।

पिछले दिनों पुराने किले का दौरा करने पर डॉ बसन्त कुमार स्वर्णकार ने बताया, "यहाँ पर मौर्यकाल,पूर्व मौर्यकाल, शुंगकाल, कुषाणकाल तथा राजपूतकाल तक के स्तर मिले हैं तथा इससे सम्बन्धित पुरावशेष- सिक्के-मूर्तियाँ आदि मिले हैं।"

उत्खनन के दौरान 'पेंटेड ग्रे वेयर' यानी चित्रित धूसर मृत्भाण्ड(मिट्टी के बर्तन) मिले हैं, जिन पर काले रंग से डिजाइन बनाए जाते थे, इन्हें ही पुरातत्वविद डॉ बी बी लाल ने महाभारत काल के होने का अनुमान लगाया था,जिसकी कार्बन डेटिंग 1100-1200 ‌ईसा पूर्व यानी करीब 3200 साल पुरानी बताई गई थी। पुराना क़िला उत्खनन में पीडब्ल्यूजी प्राप्त हुआ है, साथ ही ये भी पता चला है कि उस काल में भी पुराने किले में लगातार गतिविधियाँ जारी थीं और पुराना क़िला बिजनेस हब भी रहा है, इसीलिए इसे महाभारत से जोड़ा जा रहा है।

पुरातत्वविद डॉ. स्वर्णकार बताते हैं,"अभी तक कोई ऐसा सिक्का या अवशेष नहीं मिला, जिससे यह सिद्ध हो सके,कि दिल्ली प्राचीन इन्द्रप्रस्थ नगर था।" आधुनिक समय में यह पुराना क़िला शेरशाह सूरी द्वारा बनवाया गया था, बाद में हुमायूँ‌ ने इसकी मरम्मत करवाई। यही कारण है कि हिन्दी अख़बारों और न्यूज़ चैनलों को नफ़रत फैलाने का एक और एजेंडा मिल गया। एक अख़बार ने शीर्षक लिखा,"पुराने किले की खुदाई में मिली मूर्तियाँ'- मानो यहाँ पहले कोई मन्दिर रहा हो, मुग़लों ने जिसे गिराकर क़िला बना दिया।" हिन्दी के अधिकांश अख़बार यह लिख रहे हैं कि "दिल्ली में मिल गई पाण्डव की राजधानी इन्द्रप्रस्थ।" नफ़रत फैलाने के लिए मशहूर एक हिन्दी चैनल और उसका एंकर इस किले पर एक प्रोग्राम पेश करते हुए कहा रहा था- "क्यों न इसे पुराना क़िला की जगह पाण्डव क़िला कहा जाए, क्योंकि यहाँ पर महाभारत काल के अवशेष मिल गए हैं।"

  • इतिहास की सत्यता का प्रमाण उत्खनन से प्राप्त सामग्रियों की 'डाटा कार्बन डेटिंग' से होता है,जिससे उनके काल का निर्धारण होता है, यही एकमात्र वैज्ञानिक पद्धति है,लेकिन आज-कल पुरातत्व सामग्रियों में हेर-फेर करके मनचाहा परिणाम पाने को कोशिश से भी कोई अनजान नहीं है।
  • ध्यान रहे:-1992 में बाबरी मस्ज़िद के विध्वंस के बाद वहाँ पर कुछ मूर्तियाँ आदि रखवा दी गईं और प्रचारित किया गया था कि वे बाबरी मस्ज़िद ढाँचे के अवशेषों से मिली हैं। इस सम्बन्ध में फ्रंट लाइन पत्रिका में एक लेख भी छपा था:- 'द कारसेवक आर्कलॉजी'

वर्तमान में पुराने किले के उत्खनन के बारे में संस्कृति विभाग कह रहा है कि "इस किले को जी 20 के सम्मेलन के दौरान विदेशों से आए प्रतिनिधियों को भी दिखाया जाएगा।" इससे हम सरकार की वास्तविक मंशा और उद्देश्यों को भली-भाँति समझ सकते हैं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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