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राजस्थान: किसानों को प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना के तहत राहत नहीं सिर्फ़ धोखा मिला !

राजस्थान के किसान राजनीति की भेंट चढ़ रहे हैं। वे अपने उचित मुआवज़े के लिए दर-बदर भटक रहे हैं। हर जगह उन्हें सिर्फ़ किसान हितैषी होने का दावा मिलता है लेकिन सच्चाई दावों से कोसों दूर है।
Farmers
सांकेतिक तस्वीर ; साभार- नीति आयोग

 

राजस्थान में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत मिलने वाला क्लेम एक बार फिर विवादों में है। राज्य के बाड़मेर जिले में इस योजना के तहत किसानों के खाते में 2 रुपये से लेकर 100 रुपये तक ट्रांसफर किए गए हैं। कई किसान ऐसे भी हैं, जिनके खाते में बीमा राशि ही नहीं आई है। अब मामला सामने आने के बाद राजस्थान की कांग्रेस सरकार और केंद्र की बीजेपी नेतृत्व वाली एनडीए सरकार एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रही है।

बता दें कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसानों को उनकी रबी, खरीफ और बागवानी फसलों में हुए नुकसान के लिए आर्थिक सुरक्षा की गारंटी दी जाती है, लेकिन बीते कुछ सालों में ये योजना लगातार सवालों के घेरे में रही है। किसान अपनी फसल का बीमा करवाने और प्रीमियम भरने के बावजूद नुकसान का सही क्लेम नहीं ले पा रहे हैं। इससे पहले चुरू जिले में इस योजना के क्लेम को लेकर किसानों का भारी असंतोष देखने को मिला था। अब बाड़मेर के किसान भी इस क्लेम के तहत मिलने वाली राशि को लेकर रोष जता रहे हैं। उनका कहना है कि बीमा कंपनियां और सरकारें मिलीभगत कर उनकी मजबूरियों का फायदा उठाकर उनके साथ आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेल रही हैं।

क्या है पूरा मामला?

मीडिया रिपोर्ट्स के अुनसार राजस्थान सरकार ने साल 2021 में बाड़मेर जिले में अकाल घोषित किया था। इस दौरान हुए फसल नुकसान की भरपाई के लिए किसानों को प्रधानमंत्री फसल बीमा के तहत क्लेम दिया गया है। हालांकि ये क्लेम 2, 5 और 10 रुपये का मिला है, जिसे लेकर किसानों में नाराज़गी है। उनका कहना है कि उनके खेतों में फसल का नुकसान कई हज़ारों का हुआ है और भरपाई उन्हें कुछ चिल्लर पैसों से की गई है, जो बिल्कुल ही गलत और हास्यास्पद है।

बाड़मेर में दशकों से खेती कर रहे कुछ किसानों ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में बताया कि अकाल और सूखे से उनके खेतों में जो फसलें बर्बाद हुईं, बीमा कंपनी ने उसका सही आकलन नहीं किया है। पटवारी मंडल ने खेतों का अलग सर्वेक्षण किया था, तब सभी किसानों से जानकारी भी मांगी गई थी, लेकिन बीमा कंपनी ने सिर्फ सैटेलाइट इमेजरी के आधार पर सही-गलत क्लेम दे दिया है, जिसका कोई आधार तक नहीं है।

इस संबंध में निंबलकोट कॉपरेटिव सोसायटी के व्यवस्थापक जसराज चौधरी ने मीडिया को जानकारी दी कि उनकी सोसायटी में किसानों के खाते में 2, 5 और 10 रुपये तक का बीमा क्लेम आया है। एक किसान को सबसे ज्यादा 10 हजार रुपये बीमा क्लेम के रूप में खाते में आए हैं। कई किसान ऐसे भी हैं जिनके खाते में एक भी रुपया नहीं आया है। ऐसे में किसान हताश और निराश हैं।

बीमा क्लेम किसानों के साथ मज़ाक है

अखिल भारतीय किसान सभा के छग्गन लाल ने न्यूूज़क्लिक को पूरा मामला समझाते हुए बताया कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का प्रीमियम राज्य सरकार, केंद्र सरकार और किसान मिलकर देते हैं। इस स्कीम के तहत रबी फसलों के लिए 1.5 प्रतिशत, खरीफ फसलों के लिए 2% और बागवानी फसलों के लिए 5% ब्याज का भुगतान करने पर फसल की आर्थिक सुरक्षा की गारंटी दी जाती है, लेकिन कई बार किसानों को फसल में नुकसान के लिए बेहद कम क्लेम मिलता है। ये बीमा क्लेम किसानों के साथ मज़ाक है, खासकर उन किसानों के साथ जो संगठित नहीं हैं।

छग्गन लाल के अनुसार बीमा कंपनियां फसल नुकसान का आंकलन करने में पूरी मनमानी कर रही हैं। फसलों के नुकसान का आंकलन करने के लिए फसल काटने की विधि का उपयोग किया जाना चाहिए लेकिन यहां सैटेलाइट इमेजरी का इस्तेमाल किया जा रहा है, जो नुकसान की वास्तविक तस्वीर नहीं प्रस्तुत करता है। कायदे से फसल काटने के समय में कृषि पर्यवेक्षक, पटवारी और बीमा कंपनी के अन्य अधिकारियों को साथ मिलकर फसल के नमूने लेने होते हैं और फिर देखना होता है कि यह उत्पादन तय मापदंड से कम है या नहीं, इसकी एक-एक खेत की गिरदावरी रिपोर्ट तैयार होती है। इसके बाद किसे कितना नुकसान हुआ उसके अनुसार एक आनुपातिक राहत जारी की जानी चाहिए। लेकिन यहां इंश्योरेंस कंपनी सैटेलाइट इमेज के जरिए सभी को एक जैसा ही मानकर क्लेम से बचना चाहती है।

बाड़मेर के एक किसान रामभाई बताते हैं कि बीते साल सूखे की वजह से उनके दस बीघा जमीन की फसल खराब हो गई। उन्होंने फसल की बुवाई के समय करीब 20 से 25 हजार रुपये खर्च किए थे। और फसल खराब होने पर भी उन्हें मुआवज़ा मिल जाए इसलिए उन्होंने खेत का बीमा करवा रखा था और उनका प्रीमियम भी कटा था लेकिन उन्हें क्लेम में सिर्फ 100 रुपये मिले हैं। इसे लेकर वो अपने आपको ठगा सा महसूस कर रहे हैं। उनका मानना है कि उनके गांव के कई ऐसे किसान हैं, जिन्होंने अपने खेत के साथ ही पट्टे पर खेत लेकर भी बुवाई की थी। उन पर तो दोहरी मार पड़ी है।

इंश्योरेंस कंपनी किसानों को कम देना चाहती है क्लेम

इस मामले में बाड़मेर के जिला कलेक्टर लोक बंधु ने मीडिया को बताया, "फसल बीमा क्लेम को लेकर इंश्योरेंस कंपनी किसानों को क्लेम कम देना चाहती थी। मगर, हमने पटवारियों से एक-एक खेत का सर्वे करवाकर, फोटो उपलब्ध करवाया है। साल 2021 में बाड़मेर जिले की सभी तहसीलों को सरकार ने अकालग्रस्त घोषित कर दिया था। मगर, इंश्योरेंस कंपनी 25 फीसदी फसल को खराब मान रही थी।"

उन्होंने आगे बताया, "इसके बाद हमने अपने पटवारियों से एक-एक खेत की गिरदावरी रिपोर्ट करवाई। इसके आधार पर नए तरीके से इंश्योरेंस कंपनी ने क्लेम तैयार किया। अब कुछ किसानों के खाते में बहुत कम पैसा आया है। हमने कंपनी के बड़े अधिकारियों को तलब किया है। कुल 600 करोड़ रुपए के आसपास का क्लेम आना था। मगर, अभी तक 311 करोड़ रुपये का ही क्लेम आया है।"

पक्ष-विपक्ष का आरोप-प्रत्यारोप

मीडिया में इस मामले के तूल पकड़ते ही सत्ता पक्ष कांग्रेस और विपक्षी दल बीजेपी ने एक-दूसरे पर हमला बोलना शुरू कर दिया है। कांग्रेस के विधायक हरीश चौधरी जहां इस मामले को केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी की नाकामी बता रहे हैं, तो वहीं दूसरी तरफ केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी सारा ठीकरा राजस्थान की गहलोत सरकार पर फोड़ रहे हैं। उनका कहना है की किसानों को कितना क्लेम मिलना चाहिए इसकी जिम्मेदारी राज्य सरकार की होती है। जबकि हरीश चौधरी ने कहा है कि बीमा कंपनी का टेंडर केंद्र सरकार की अधिसूचना के आधार पर तय किया जाता है। वहीं नीलामी के समय प्रीमियम दर तय होती है और नुकसान कितना हुआ यह क्रॉप कटिंग के आंकड़े तय करते हैं।

गौरतलब है कि राजस्थान में इस साल चुनाव है, ऐसे में राज्य के किसानों में बढ़ता आक्रोश कांग्रेस की गहलोत सरकार के लिए एक नई चुनौती पेश कर रहा है, तो वहीं विपक्ष में बैठी बीजेपी को हावी होने का एक मुद्दा दे रहा है। ऐसे में इस पूरी राजनीति की पशोपेश में आम किसान पिस रहा है, जो अपने सही मुआवज़े की तलाश में दर-बदर भटक रहा है। हर जगह उन्हें सिर्फ किसान हितैषी होने का दावा मिलता है, लेकिन सच्चाई दावों से कोसों दूर है।

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