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क्या रिलायंस के ‘राइट्स इश्यू’ की कीमत ज़्यादा आंकी गई?

20 मई से 3 जून के बीच रिलायंस इंडस्ट्री लिमिटेड (RIL), जैसा कहा जा रहा है कि भारत का सबसे बड़ा ''राइट इश्यू'' करेगी। इसकी क़ीमत 7 बिलियन डॉलर (52,215 करोड़ रुपये) होगी। कंपनी के हर शेयरधारक को 15 शेयर की ख़रीद पर एक शेयर को ख़रीद पर छूट का अधिकार मिलेगा। यह पैसा इकट्ठा करने वाली कवायद कंपनी द्वारा क़र्ज़ से निजात पाने की कोशिशों में हालिया क़दम है।
 रिलायंस इंडस्ट्री लिमिटेड

20 मई से 3 जून के बीच रिलायंस इंडस्ट्री लिमिटेड (RIL), जैसा कहा जा रहा है कि भारत का सबसे बड़ा ''राइट इश्यू'' जारी करेगी। इसकी कीमत 7 बिलियन डॉलर (52,215 करोड़ रुपये) होगी। कंपनी के हर शेयरधारक को 15 शेयर की ख़रीद पर एक शेयर की ख़रीद पर छूट का अधिकार मिलेगा। यह पैसा इकट्ठा करने वाली कवायद, कंपनी द्वारा कर्ज़ से निजात पाने की कोशिशों में हालिया क़दम है। 

पिछले तीन महीनों से भारत और विश्व कोरोना महामारी, बर्बाद कर देने वाले लॉकडॉउन और गंभीर आर्थिक बाधाओं से जूझ रहे हैं। इस बीच मुकेश अंबानी के मालिकाना हक़ वाली देश की सबसे बड़ी प्राइवेट कॉरपोरेट कंपनी ने ने 67,195 करोड़ रुपये इकट्ठा करने के लिए रिलायंस जियो (RJio) में अपनी हिस्सेदारी बेचने के कई समझौते किए हैं। रिलायंस जियो, RIL की अधीनस्थ कंपनी है।

(अगर ग्राहकों की संख्या के नज़रिए से देखें तो RJio भारत की सबसे बड़ी और दुनिया की तीसरी बड़ी मोबाईल ऑपरेटर कंपनी है। RIL एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी है, जिसका काम तेल शोधन और वितरण, तेल और गैस की खोज, पेट्रोकेमिकल्स, कपड़ा उद्योग, खुदरा और टेलीकॉम जैसे विविध विषयों में है। 'मार्केट कैपिटलाइज़ेशन' के हिसाब से सार्वजनिक तौर पर जिन कंपनियों के शेयर्स ख़रीदे-बेचे जाते हैं, उनमें यह देश की सबसे बड़ी कंपनी है। इसका सालाना राजस्व क़रीब 90 बिलियन डॉलर या 6.75 लाख करोड़ रुपये है।)

इसी पृष्ठभूमि में अगर एक बड़ी मात्रा के पैसे को इकट्ठा करने के लिए रिलायंस के हालिया समझौतों पर नज़र डालें, जिसके तहत जियो की दम पर RIL ने जिस हिसाब से बड़ा पैसा इकट्ठा करने में कामयाबी पाई है, जिसके लिए निजी हिस्सेदारी और शेयर्स के 'राइट इश्यू' दोनों का ही उपयोग किया गया है, तो पता चलता है कि इनकी कीमत ‘ज़्यादा आंकी (ओवर वैल्यूड)’ गई भी हो सकती है। अगर ऐसा है तो कंपनी के शेयरधारक ''छूट'' वाले जिन शेयर्स के लिए पैसा दे रहे होंगे, दरअसल वो उन शेयरों की ज़्यादा कीमत चुका रहे होंगे।

हम इसके लिए अपने लेख में तर्क पेश करते हैं।

क़र्ज़ से छुटकारे के लिए मुकेश अंबानी की योजना

रिलायंस इंडस्ट्री लिमिटेड की 42 वीं वार्षिक बैठक 12 अगस्त, 2019 को हुई थी। इसमें मुकेश अंबानी ने अपनी घोषणा में कहा कि कंपनी के पास अगले 18 महीनों मतलब 31 मार्च, 2021 तक पूरी तरह कर्ज़ से मुक्त होने की योजना है। बता दें पिछले वित्त वर्ष में रिलायंस पर 1.54 लाख करोड़ का कर्ज़ था। 

एक हफ़्ते पहले, 5 अगस्त को ग्लोबल ब्रोकरेज हाउस- क्रेडिट सुसे (Suisse) ने RIL के स्टॉक को 'अंडर परफॉर्म' वाले निचले दर्जे में डाल दिया था। इसके स्टॉक की लक्षित कीमत भी 1,350 रुपये से कम कर 995 रुपये कर दी गई थी। इसका मतलब है कि फर्म के विश्लेषकों ने अंदाजा लगाया था कि आने वाले महीनों में रिलायंस कंपनी का प्रदर्शन कमज़ोर रहेगा और इसके स्टॉक की कीमतों में कमी आएगी। ऐसी रिपोर्ट्स का निवेशकों के नज़रिये पर खूब प्रभाव पड़ता है। नतीज़तन इसका असर बाज़ार में स्टॉक पर भी पड़ता है।

क्रेडिट सुसे ने अपने विश्लेषण का आधार पिछले चार सालों में RIL के बढ़ते कर्ज़ और ब्याज़ कीमत, तेल की गिरती कीमतों के चलते कम मुनाफ़े और इसके मुख्य राजस्व देने स्त्रोत- तेल व्यापार में गिरती आय बनाया था। सुसे ने अंदाजा लगाया था कि RIL को अपने दो बड़े उद्यमों- रिलायंस जियो और ईस्ट-वेस्ट गैस पाइपलाइन में पैसा लगाने में दबाव महसूस होगा। दोनों उद्यमों को फिलहाल ‘लागत कीमत पर फ़ायदे की स्थिति-(ब्रेक-ईवन प्वाइंट)’ में पहुंचने के लिए वक़्त है। ईस्ट-वेस्ट गैस पाइपलाइन, RIL के नियंत्रण वाले कृष्णा-गोदावरी (KG-D6) प्राकृतिक गैस खंड से आंध्रप्रदेश और पश्चिम में गुजरात को जोड़ेगी।

क्रेडिट सुसे ने अगस्त में अपनी रिपोर्ट में RIL के स्टॉक को गिराने की वजह गिनाई थीं।

1) कच्चे तेल की 10 बिलियन डॉलर की बड़ी देनदारियां, जियोफोन को वित्तहस्तांतरण और ईस्ट-वेस्ट गैस पाइपलाइन।

2) तेल शोधन से कम आय और इसमें की गई कई कटौतियां।

3) वित्तवर्ष 2020 की पहली तिमाही में ‘एंटरप्राइज़ रोलऑउट’ की धीमी दर और जियो के प्रति ग्राहक राजस्व औसत (ARPU) में कमी।

रिपोर्ट में आगे कहा गया: ''6 साल से RIL में 'मुफ़्त पूंजी संचार (FCF)' नकारात्मक है। तेल शोधन और पेट्रोकैमिकल्स पर दबाब को देखते हुए वित्तवर्ष 2020-21 के लिए भी FCF नकारात्मक रहेगा। कंपनी की कुल देनदारियां 2015 में 15 बिलियन डॉलर से बढ़कर, वित्तवर्ष 2019 में 65 बिलियन डॉलर पहुंच चुकी हैं। (उधार, कच्चे तेल की ऊंची देनदारियां, ग्राहकों का अग्रिम, कैपेक्स क्रेडिटर्स, स्पैक्ट्रम देनदारियां, जियोफोन में वित्त हस्तांतरण और ईस्ट-वेस्ट पाइपलाइन, पूरे रिलायंस उद्यम की कीमत का 40 फ़ीसदी हिस्सा हैं।''

12 अगस्त को अंबानी के भाषण के एक हफ़्ते बाद, क्रेडिट सुसे ने पलटी मारते हुए RIL के स्टॉक को ''अंडर परफॉर्म'' से ''न्यूट्रल'' में डाल दिया। हर शेयर की लक्षित कीमत भी 1,210 रुपये कर दी गई। 19 अगस्त को क्रेडिट सुसे ने इसका आधार ''मुकेश अंबानी के भाषण में मजबूत नज़रिए'' को बताया।

अपने भाषण में अंबानी ने भविष्य में आने वाले दो बड़े समझौतों की घोषणा की, जिनपर काम चालू है। पहली घोषणा सऊदी अरब की तेल कंपनी- सऊदी अरॉमको द्वारा रिलायंस के तेल व्यापार में 75 बिलियन डॉलर का भारी भरकम निवेश का था। अरॉमको दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे ज़्यादा फ़ायदे में रहने वाली कंपनी है। अपने निवेश के तहत अरॉमको रिलायंस समूह के तेल और पेट्रोकैमिकल्स हितों में 20 फ़ीसदी हिस्सेदारी खरीदेगी। साथ में RIL के प्राकृतिक गैस डिवीज़न में ब्रिटिश पेट्रोलियम से निवेश भी करवाएगी। ब्रिटिश पेट्रोलियम के साथ कंपनी पहले ही साझेदार है।

उन्होंने कहा था: ''हमें उम्मीद है कि इन लेन-देन पर इस वित्तवर्ष में काम पूरा हो जाएगा, जो कुछ स्पष्ट समझौतों, यथोचित परिश्रम, नियामक और दूसरे पारंपरिक सहमतियों पर निर्भर करता है। इन दो लेन-देन से 1.1 लाख करोड़ रुपये आने का वायदा है।''

योजना में आया रोड़ा

फ़रवरी, 2020 तक RIL की कर्ज़ मुक्ति की योजना में कई रोड़े आने शुरू हो गए। दिसंबर, 2019 में एक असामान्य क़दम के तहत केंद्र सरकार (पेट्रोकैमिकल्स और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के ज़रिए) ने दिल्ली उच्च न्यायालय से सऊदी अरॉमको निवेश समझौते को आगे बढ़ने से रोकने की अपील की। ऐसा इसलिए था क्योंकि सरकार का RIL और अंतरराष्ट्रीय औद्योगिक समूह ''रॉयल डच शेल'' की एक सहायक भारतीय कंपनी के साथ विवाद था। यह विवाद मुंबई तट पर पन्ना मुक्ता और ताप्ती तेल भंडार से प्राकृतिक गैस निकालने के बाद बकाया पैसे को लेकर था। सरकार का दावा था कि तेलभंडार में ठेकेदार दोनों कंपनियों पर सरकारी उधार बकाया है।

सरकार ने अपने आरोप में कहा कि दोनों कंपनियों ने तेल और प्राकृतिक गैस स्थल में गलत कीमत और फ़ायदा दिखाया, इससे सरकारी हिस्सेदारी वाली आय को घाटा हुआ, साथ में यह मामला मध्यस्थता के लिए इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल भी पहुंच गया। वहां जारी कार्रवाई के चलते सरकार ने उच्च न्यायालय में सऊदी अरॉमको समझौते पर रोक लगाने की अपील की, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आर्बिट्रेशन खत्म होने के बाद सरकार के कथित उधार को चुकाने के लिए RIL के पास जरूरी पैसा हो।

ऑर्बिट्रेशन में हुई कार्रवाई में RIL और शेल को जीता घोषित कर दिया गया। सरकारी कार्रवाई की वजह से अरॉमको से होने वाला निवेश भले ही रद्द न हो पाया हो, लेकिन आगे ज़रूर बढ़ गया। रिपोर्टों के मुताबिक़, समझौता अब भी ''रास्ते'' पर है, इस पर बातचीत जारी है, वहीं कुछ दूसरी रिपोर्ट्स का कहना है कि कोरोना महामारी और तेल की कम कीमतों की वज़ह से समझौते में और देरी हो सकती है।

RIL के सामने कंपनी के प्रोत्साहक अंबानी परिवार के खिलाफ़ जारी ‘कर जांच’ भी एक बड़ी बाधा है। इस लेख के लेखकों ने जांच के बारे में पिछले कई लेखों में बताया है। यह जांच HSBC बैंक से एक व्हिसल ब्लोअर द्वारा लीक किए गए दस्तावेज़ों और विेदेशी एजेंसियों से प्राप्त जानकारी के आधार पर शुरू की गई है। सरकार का दावा है कि विदेश में जमा पैसे पर अंबानी परिवार ने कर बचाया है। एक दूसरा आरोप यह भी है कि इस पैसे को सरकार की नज़र से छुपाने के लिए बनाए गए चैनल/रास्तों से भारत और रिलायंस कंपनी के भीतर लाया गया। इस पर भी जांच जारी है।

निर्मला सीतारमण द्वारा एक फरवरी को पेश किए गए केंद्रीय बजट से भी RIL के लिए एक और बाधा खड़ी हो गई। सीतारमण ने अपनी घोषणा में कहा कि सरकार शुद्ध ‘टेरेफथॉ़लिक एसिड’ या PTA पर आयात शुल्क में कमी कर रही है। पॉलिस्टर यार्न बनाने में इस्तेमाल होने वाले इस कैमिकल की भारत में सबसे बड़ी उत्पादक रिलायंस कंपनी है। आयात शुल्क में कमी होने से कंपनी को अपने प्रभाव वाले इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा। सीतारमण ने कहा कि सरकार की मंशा है कि PTA एक प्रतिस्पर्धी कीमत पर बाज़ार में उपलब्ध हो सके, इसके लिए ''सुरक्षा देने वाली'' शुल्क हटाई जा रही है। 

इन झटकों के चलते RIL के स्टॉक की कीमत 20 दिसंबर, 2019 को 1,602 रुपये की ऊंची कीमत से गिरकर 23 मार्च, 2020 को 867 रुपये पर आ गई। ठीक इसी मौके पर कोरोना महामारी से पैदा हुई वैश्विक स्वास्थ्य और आर्थिक आपदाओं से निपटने के लिए सरकार ने जो क़दम उठाए, उनसे RIL की योजनाओं को अनदेखा उछाल मिला।

कोरोना महामारी से निपटने के लिए राहत योजना?

23 मार्च को मीडिया में रिपोर्ट्स आईं कि आरबीआई लॉकडॉउन से निश्चित तौर पर पैदा होने वाली आर्थिक मंदी में अर्थव्यवस्था के भीतर पूंजी की तरलता बनाए रखने के लिए कुछ क़दम उठाने की योजना बना रहा है। अब भारत इस लॉ़कडॉउन के चौथे चरण में पहुंच चुका है। 

मीडिया रिपोर्ट्स में गुमनाम सूत्रों के हवाले से बताया गया, RBI एक्ट, 1934 द्वारा प्रतिबंधित होने के बावजूद आरबीआई कॉरपोरेट बॉन्ड्स को खरीदने के विकल्प पर विचार कर रहा है। लाइवमिंट को दो गुमनाम सूत्रों ने बताया,''हमें इस पर काम करना होगा। RBI एक्ट के मुताबिक़, हम सरकारी सिक्योरिटीज़ के अलावा किसी भी कोलेटरल को नहीं खरीद सकते। लेकिन हम इसे बाधा की तरह नहीं देख रहे हैं। हम उन तरीकों को खोज रहे हैं, जिनके ज़रिए हम कॉरपोरेट तक सीधे पहुंच पाएं। हम बस इतना कह रहे हैं कि इन नियमों के बीच हमें काम करने का वक़्त चाहिए, यहां हम उन्हें सीधे मदद करने की गुंजाइश रख रहे हैं।''

रेपो रेट में बदलाव कर ''रिपर्चेंज ऑपरेशन'' एक मौद्रिक तंत्र है, जिसके ज़रिए आरबीआई बैंकों में मौजूद पैसे की मात्रा को नियंत्रित करता है। इस तरह आरबीआई यह सुनिश्चित करता है कि कितना पैसा बाज़ार में उपलब्ध होगा, बैंको के पास कंपनियों और निवेशकों को उधार देने के लिए कितनी तरलता होगी। बैंक आरबीआई को अपने बॉन्ड और सिक्योरिटीज़ (प्रतिभूतियां) बेचकर पैसे उधार लेते हैं। इस उधारी में इन प्रतिभूतियों और बॉन्ड को बाद में खरीदने का वायदा होता है। जिस दर पर आरबीआई यहां बैंकों को उधार देता है, उसे रेपो रेट कहते हैं।

RBI एक्ट के ज़रिए यह सुनिश्चित किया गया है कि सिर्फ़ सरकारी बॉन्ड और प्रतिभूतियों को ही रेपो लेन-देन में खरीदा और बेचा जा सकता है। इन्हें सबसे ज़्यादा सुरक्षित संपत्ति माना जाता है, क्योंकि इनकी गारंटी राज्य देता है। इन मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, देश में जारी आर्थिक मंदी के बीच आरबीआई अब वित्तीय संस्थानों और बैंकों को कॉ़रपोरेट बॉन्ड और प्रतिभूतियों (RIL जैसी कंपनियों के स्टॉक) के उपयोग की अनुमति दे सकता है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक़, ऐसी कार्रवाई जो RBI एक्ट के बिलकुल उलट है, उसे अंजाम देने की गुहार म्यूचुअल फंड्स कंपनियों ने लगाई थी, जो कॉरपोरेट बॉन्ड की सबसे बड़ी हिस्सेदार हैं। इन कंपनियों ने 22 मार्च को गिरते स्टॉक कीमतों की वजह से आरबीआई के हस्तक्षेप की मांग की थी।

जैसे ही मीडिया में इस अनुमानित 'ख़बर' का प्रसारण किया गया, RIL समेत तमाम कंपनियों की स्टॉक कीमतों में उछाल आया था।

अंबानी परिवार की हिस्सेदारी में फेरबदल और फ़ेसबुक समझौता

जैसा लेख के लेखकों ने मार्च के आखिरी हफ़्तों में बताया था, 24 मार्च को लॉकडॉउन की घोषणा के बाद RIL के प्रोत्साहक समूह के सदस्यों ने कंपनी में अपनी हिस्सेदारियों में ''फेरबदल'' की थी। प्रोत्साहक समूह की कुल हिस्सेदारी में कुछ बदलाव नहीं आया था, लेकिन LLP (लिमिटेड लॉयबिलिटी पार्टनरशिप) कंपनियों से हिस्सेदारी निकालकर मुकेश अंबानी के परिवार के सदस्यों के पास आ गई थी। हिस्सेदारी के इस बदलाव और बैंको द्वारा स्टॉक खरीदे जाने की अफ़वाहों से रिलायंस के शेयर की कीमतों में पांच फ़ीसदी का उछाल आया था। अगला उछाल आरबीआई द्वारा रेपो लेन-देन में कॉरपोरेट सिक्योरिटीज़ के इस्तेमाल देने की अनुमति वाली ख़बरों से आया। 25 मार्च को दो दिनों में RIL के स्टॉक की कीमत 23 फ़ीसदी बढ़कर 1072 रुपये पहुंच गई।

RIL के शेयरों में एक और उछाल फ़ेसबुक और रिलायंस जियो के समझौते से आया। 22 अप्रैल को फेसबुक और RIL ने घोषणा में कहा कि फ़ेसबुक जियो प्लेटफॉ़र्म में 5.7 बिलियन डॉलर (43,574 करोड़ रुपये) का निवेश करेगी। इसके ज़रिए रिलायंस समूह के टेलीकम्यूनिकेशन बिज़नेस में फ़ेसबुक 9.9 फ़ीसदी हिस्सेदारी ख़रीदेगी।

जियो प्लेटफॉर्म, RIL के अलग-अलग डिजिटल और टेलीकम्यूनिकेशन कंपनियों की पेरेंट कंपनी है। इसमें ‘रिलायंस जियो इंफोकॉम लिमिटेड’ भी शामिल है, जो जियो के इंटरनेट, मोबाइल, डेटा, टेलीविज़न सेवा, जियो सावन, जियो सिनेमा, हापतिक और दूसरी चीजों का आधार है। 2014 में 22 बिलियन डॉलर से व्हॉट्सएप खरीदने के बाद से अब तक यह फ़ेसबुक की सबसे बड़ी डील है। उस दिन RIL के शेयर्स में 10.3 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी हुई और यह 1,363.35 रुपये पर बंद हुआ।

जियो में सिल्वर लेक, विस्टा इक्विटी पार्टनर्स और जनरल अटलांटिक द्वारा अतिरिक्त निवेश

जब फ़ेसबुक-जियो का समझौता हुआ, तो बताया गया कि जियो प्लेटफॉर्म (जिसमें फ़ेसबुक ने हिस्सेदारी खरीदी है) की क़ीमत 65.95 बिलियन डॉलर या 4.62 लाख करोड़ आंकी गई है। तबसे कंपनी तीन और अमेरिकी निजी इक्विटी कंपनियों को हिस्सेदारियां बेचकर अतिरिक्त 23,621 करोड़ रुपये इकट्ठा करने की कोशिश में लग चुकी थी। हर निवेश के बाद जियो प्लेटफॉर्म के मूल्यांकन में उछाल आया, इससे जियो प्लेटफॉर्म की पेरेंट कंपनी RIL के स्टॉक की कीमतों में भी बढ़ोत्तरी हुई। 

इन तीन नई बिक्रियों में पहली की घोषणा 5 मई को हुई। जियो प्लेटफॉर्म में अमेरिकी प्राइवेट इक्विटी फर्म सिल्वर लेक ने 1.15 फ़ीसदी हिस्सेदारी खरीदी। इसके लिए फर्म ने 5,655.75 करोड़ रुपये (747 मिलियन डॉलर) चुकाए। RIL के साथ एक साझा वक्तव्य में कहा गया कि ''समझौते में जियो प्लेटफॉर्म की इक्विटी वैल्यू 4.9 लाख करोड़ रुपये और ‘एंटरप्राइज़ वैल्यू’ 5.15 लाख करोड़ रुपये आंकी गई।'' यह फेसबुक समझौते के वक़्त लगाई गई कीमत से 12.5 फ़ीसदी ज़्यादा थी।

कैलीफ़ोर्निया स्थित सिल्वर लेक एक प्राइवेट इक्विटी कंपनी है, जिसने एयर बीएनबी, अलीबाबा और अल्फाबेट (गूगल, यू ट्यूब और एंड्रॉयड की पेरेंट कंपनी) जैसी बड़ी सूचना कंपनियों में पैसा लगाया है। इसके कार्यकारी साझेदार इगॉन डरबन ने कहा कि जियो प्लेटफॉर्म ने ''बेहतरीन इंजीनियरिंग क्षमताओं का इस्तेमाल करते हुए कम कीमत वाली डिजिटल सर्विस एक बड़े वर्ग और छोटे व्यापारिक आब़ादी में उपलब्ध कराईं हैं।''

अगले समझौते की घोषणा 8 मई को हुई। यह समझौता अमेरिकी कंपनी विस्टा इक्विटी पार्टनर्स के साथ हुआ। विस्टा इक्विटी ने जियो प्लेटफॉर्म में 11,367 करोड़ रुपये से 2.32 फ़ीसदी हिस्सेदारी खरीदी। इस समझौते में जियो प्लेटफॉर्म की इक्विटी वैल्यू 4.91 लाख करोड़ और एंटरप्राइज़ वैल्यू 5.16 लाख करोड़ आंकी गई। यह भी फ़ेसबुक समझौते से कहीं ज़्यादा थी।

समझौते की घोषणा करते हुए मुकेश अंबानी ने कहा,''हमारे दूसरे साझीदारों की तरह, विस्टा भी हमारे साथ बढ़ने और भारतीयों के लिए देश का डिजिटल इकोसिस्टम बदलने का सपना रखती है। वे लोग सबके बेहतर भविष्य के लिए तकनीक द्वारा बदलाव की ताकत में यकीन रखते हैं।'' उन्होंने विस्टा इक्विटी के अरबपति निर्माता रॉबर्ट स्मिथ और ब्रॉयन शेठ के बारे में जिक्र करते हुए कहा, ''रॉबर्ट और ब्रॉयन, जिनका परिवार गुजरात से ताल्लुक रखता है, मुझे दो ऐसे शानदार तकनीकी नेता मिले, जिन्हें भारत और बदलाव की गुंजाइश में यकीन है।''

विस्टा इक्विटी दुनिया का सबसे बड़ा ‘’तकनीक आधारित निजी इक्विटी’’ फंड है।

तीसरे समझौते की घोषणा 18 मई को हुई, यह समझौता भी एक अमेरिकन कंपनी जनरल अटलांटिक के साथ हुई। इसके लिए जनरल अटलांटिक ने 6,598.38 करोड़ की रकम लगाने की घोषणा की, जिसके तहत रिलायंस जियो प्लेटफॉर्म में 1.34 फ़ीसदी हिस्सेदारी खरीदी गई। एक बार फिर कंपनी का मूल्य फ़ेसबुक समझौते की तुलना में 12.5 फ़ीसदी ज़्यादा माना गया।

सिर्फ़ एक महीने के भीतर ही RJio में यह चौथा निवेश है। अब तक रिलायंस समूह में कुल 67,194 करोड़ रुपये का निवेश हो चुका है। कंपनी का ''कर्ज़ मुक्ति'' का सफ़र सरकार द्वारा सऊदी अरॉ़मको समझौते पर अडंगा लगाने के चलते कुछ वक़्त के लिए थम गया था, लेकिन यह अब वापस रास्ते पर है।

आख़िर RIL की क़ीमत कितनी है?

नाम न छापने की शर्त पर दो बाज़ार विश्लेषकों ने हमसे बात करते हुए RJio के कीमत मूल्यांकन के आधार पर सवाल उठाए। उनमें से एक ने हा कि जियो प्लेटफॉर्म की 2019 में ‘’कर और ब्याज़ देने के पहले आय (EBIT)’’ 2,665 करोड़ रुपये थी और इसके 30 करोड़ 70 लाख ग्राहक थे। 2020 में EBIT का अनुमान 3,000 करोड़ रुपये रहने का है। तब तक 34 करोड़ ग्राहक हो चुके होंगे। प्रति ग्राहक औसत राजस्व (ARPU) करीब़ 130 रुपये है। यह दुनिया में सबसे कम आंकड़ों में से एक है।

यहीं से जियो प्लेटफॉर्म की कीमत का 65 बिलियन वाला मूल्यांकन अचरज करने वाला लगता है। आखिर यह 2020 में कंपनी के EBIT से 165 गुना ज़्यादा है। विश्लेषक का मानना है कि 2020-21 में कंपनी में कोई विकास न होने का अनुमान है। बल्कि मौजूदा वित्तवर्ष जो 31 मार्च, 2021 को खत्म होगा, उसमें ''नकारात्मक विकास'' होने का अंदाजा है। ऐसा कोरोना महामारी के चलते लगाए गए लॉकडॉउन के चलते है।

विश्लेषक ने बताया, ''बाज़ार पूरे RIL समूह की कीमत को ज़्यादा आंक रहा है। वैश्विक तेल कीमतों में आई गिरावट से कंपनी की जामनगर स्थित कच्चे तेल की रिफ़ाइनरी में हर बैरल पर बचने वाला पैसा कम होकर दो डॉलर पर आ गया है। यह RIL की मुख्य संपत्ति है। इसमें ''रिफाइनिंग कॉम्प्लेक्सिटी इंडेक्स'' भी काफ़ी ज़्यादा है। लेकिन अब यह घाटे का व्यापार बन चुका है।''

विश्लेषक ने आगे कहा,''तेल शोधन मौजूदा साल में बहुत बड़ा झटका खाने वाला है। इसमें बचने वाला पैसा काफ़ी गिर गया है। RIL के लिए मौजूदा साल में रिफाइनिंग और पेट्रोकैमिकल बिज़नेस का EBIT 25,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा नहीं हो सकता। यह 2019 के स्तर का पचास फ़ीसदी हिस्सा है।''

ठीक इसी वक़्त RIL ने हॉयड्रोकॉर्बन डिवीज़न में अपने कर्मचारियों के वेतन और उन्हें मिलने वाली सुविधाओं में कटौती की घोषणा की है।

विश्लेषक ने बताया कि रिलायंस रिटेल में EBIT बचत 3 से 4 फ़ीसदी होती है। कुल मिलाकर 10-11 हजार स्टोर/आउटलेट से 1.25 लाख करोड़ रुपये आते हैं। आखिर इन स्थितियों में रिलायंस (इंडस्ट्री लिमिटेड) की कीमत 10 लाख करोड़ कैसे मापी जा सकती है?

विश्लेषक ने यह भी बताया कि देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई और इसकी ‘’संपत्ति प्रबंधक कंपनियों’’ ने RIL में बड़ी संख्या में शेयर्स की खरीददारी की है, ताकि कंपनी अपना ''स्थायी भारी-भरकम दर्जा'' बरकरार रख सके। विश्लेषक ने SBI की पूर्व चेयरमैन और कार्यकारी निदेशक अरूंधति भट्टाचार्य के RIL बोर्ड में शामिल होने पर सवाल उठाए। भट्टाचार्य एसबीआई से रिटायर होने के एक साल बाद अक्टूबर, 2018 में रिलायंस बोर्ड में स्वतंत्र निदेशक की हैसियत से शामिल हुई थीं।

एक दूसरे विश्लेषक ने लेख के लेखकों को बताया कि फ़ेसबुक जैसे समझौते के लिए कम से कम 6 महीने की मेहनत लगती। जियो प्लेटफॉर्म की कीमत के मूल्यांकन पर बात करते हुए विश्लेषक ने कहा, ''प्लेटफॉ़र्म में कुछ डिजिटल संपत्तियां हैं। लेकिन मुझे नहीं पता कि RIL ने किसी बाहरी निवेशक को बुलाया हो या यूनिकॉर्न कंपनियों (जिन कंपनियों की कीमत एक बिलियन अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा होती है) वाले पैमाने अपनाए हों। मुझे प्लेटफॉर्म में कोई भी यूनिकॉर्न कंपनी दिखाई नहीं देती। पिछला निवेश एक पैमाना हो सकता है।''

RIL के 'राइट्स इश्यू' और एक वायरल सोशल मीडिया अपील

20 मई से 3 जून के बीच RIL में होने वाले राइट इश्यू पिछले तीन दशकों में कंपनी में पहली बार हो जारी हो रहे हैं। 1,257 रुपये की कीमत (जो 30 अप्रैल को RIL शेयर की कीमत पर 14 फ़ीसदी छूट के साथ है) के 15 शेयर्स पर एक शेयर मिलेगा।

कंपनी द्वारा एक नियामक पूर्ति में बताया गया कि राइट्स इश्यू खरीदने वालों को शुरूआत में 25 फ़ीसदी पैसा देना होगा। इसके बाद अगली 25 फ़ीसदी पेमेंट मई, 2021 और बची हुआ 50 फ़ीसदी पैसा नवंबर 2021 में देना होगा। RIL 53,125 करोड़ रुपये के 42.26 करोड़ शेयर जारी कर रही है, जो भारत में अब तक का सबूसे बड़ा राइट इश्यू है। 

प्रोत्साहक समूह ने राइट्स इश्यू में बचे हुए शेयर्स को खरीदने का भी वायदा किया है। इसे एक पूंजी संग्रहण कार्यक्रम का हिस्सा बताया गया है, जिसमें जियो प्लेटफॉ़र्म की चार निजी दावेदारियां भी शामिल हैं, ताकि कंपनी के कर्ज़ को कम किया जा सके। यह कर्ज़ रिटेल बिज़नेस के लगातार फैलाव और टेलीकॉम कंपनी की वजह से खड़ा हुआ है।

पिछले कुछ दिनों से, जबसे राइट इश्यू घोषित हुए हैं, तबसे सोशल मीडिया प्लेटफॉ़र्म पर एक गुमनाम संदेश फैल रहा है। इस संदेश में राइट इश्यू न खरीदने की बात कही जा रही है। इस संदेश में कहा जा रहा है कि जिन लोगों को 14 फ़ीसदी की छूट लुभा रही है, वह यह न भूलें कि 23 मार्च 2020 को RIL स्टॉक 867 रुपये पर चल रहा था। 

RIL और इसके निवेशकों की प्रतिक्रिया

 इस लेख के एक लेखक ने रिलायंस इंडस्ट्री लिमिटेड, फ़ेसबुक, सिल्वर लेक, विस्टा इक्विटी पार्टनर्स और जनरल अटलांटिक को प्रश्नावलियां भेजीं, जिनमें जियो प्लेटफॉर्म के मूल्यांकन पर जानकारी, प्रतिक्रियाएं, जवाब और टिप्पणियां मांगी गई थीं। पूछा गया कि किस आधार पर कंपनी की कीमत उसके EBIT से 150 गुना ज़्यादा आंकी गई। यह प्रश्नावलियां 19 मई को रात 8 से 9 बजे के बीच मंगलवार को भेज दी गई थीं। इन्हें नीचे पेश किया जा रहा है। 20 मई, बुधवार शाम को 5 बजे तक किसी भी तरह का जवाब नहीं आया है।

19 मई की रात को RIL के एक प्रवक्ता ने ई-मेल पर सवालों की सूची पाए जाने की पुष्टि करते हुए कहा कि जल्द से जल्द वह जवाब देंगे।

जैसे ही उनकी प्रतिक्रिया आएगी, इस लेख में जोड़ दी जाएगी। 

1. यह प्रश्नावली 19 मई को रात 8 बजकर 2 मिनट पर भेजी गई।

सेवा में,

तुषार पूनिया

वाइस प्रेसिडेंट (कॉरपोरेट कम्यूनिकेशन्स) और स्पोक्सपर्सन,

रिलायंस इंडस्ट्री, लिमिटेड, मुंबई

प्रेषिक: परांजॉय गुहार ठाकुरता

विषय: रिलायंस समूह की कंपनियों के बारे में परांजॉय गुहा ठाकुरता की प्रश्नावली

तारीख़: 19 मई, 2020

प्रिय तुषार,

आप मुझे एक स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर जानते हैं। मेरे पास 43 सालों का पत्रकारीय अनुभव है, जिसे प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो, भारत सरकार द्वारा प्रमाणित किया गया है।

हालिया घोषणाओं के मुताबिक़, तीन अमेरिकी कंपनियों ने रिलायंस जियो प्लेटफॉर्म में निवेश किया है। सिल्वर लेक ने 5,655.75 करोड़ रुपये, जनरल अटलांटिक ने 6598.38 करोड़ और विस्टा इक्विटी ने 11,367 करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा की है। इनसे पहले फ़ेसबुक ने 5.7 बिलियन डॉलर के निवेश की घोषणा की थी, जिसके तहत रिलायंस जियो में फेसबुक 9.9 फ़ीसदी हिस्सेदारी खरीद रही है। स्टॉक एक्सचेंज में भरी गई सूचना के मुताबिक़,16 मई को रिलायंस इंडस्ट्री लिमिटेड ने कहा कि 20 मई को 53,215 करोड़ रुपये के राइट् इश्यू खरीद के लिए खोले जाएंगे।

मेरे एक लेख में इन विषयों के संबंध में मेरे कुछ सवालों पर आपके जवाब, प्रतिक्रियाओं या टिप्पणियों का इंतज़ार है। 

जियो जेन-नेक्सट द्वारा स्टार्ट-अप कंपनियों का मार्गदर्शन करने से उनमें किन मूल्यों की वृद्धि होती है? जियो जेन-नेक्स्ट प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कंपनियों का क्या कुछ हासिल है?

क्या सिल्वर लेक, जनरल अटलांटिक और विस्टा इक्टिवीट द्वारा जो घोषणाएं की गई हैं, उन्हें पूरा कर लिया गया है?

क्या फ़ेसबुक, सिल्वर लेक, जनरल अटलांटिक और विस्टा इक्विटी के रिलायंस समूह या इस समूह की कंपनियों से जुड़े लोगों से पहले भी कोई व्यापारिक संबंध रहे हैं?

जामनगर स्थित रिलायंस इंडस्ट्री के स्वामित्व वाली रिफाइनरी में प्रति बैरल कच्चे तेल पर नुकसान रहित उत्पादन की कीमत स्तर कितनी है? क्या वैश्विक तेल कीमतों के लुढ़कने से मौजूदा और आने वाले वित्तीय वर्ष में रिफाइनरी को नुकसान होगा? 

आखिर क्या वज़ह है कि पिछली वार्षिक बैठक में जिस अरॉमको और रिलायंस इंडस्ट्री लिमिटेड के समझौते की घोषणा हुई थी, वह अब तक पूरा नहीं हो पाया है?

क्या इंसॉल्वेंसी और बैंकरप्टसी कोड के तहत रिलायंस समूह की कोई सहयोगी या अधीन कंपनी कार्रवाई का सामना कर रही है?

यह अनुमान लगाया जा रहा है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और उसकी संपत्ति प्रबंधक कंपनियां रिलायंस समूह में बड़ी संख्या में शेयर खरीद रही हैं, ताकि कंपनी का ''चिरस्थायी वजनदारी का दर्ज़ा'' बनाया रखा जा सके। मैं इस पर आपकी टिप्पणियां जानना चाहता हूं कि क्या इन अफवाहों का कोई आधार है या नहीं?”

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की पूर्व चेयरमैन और मैनेजिंग डॉयरेक्टर रहीं अरूंधति भट्टाचार्य के रिलायंस बोर्ड में स्वतंत्र निदेशिका बनने से कंपनी को क्या लाभ मिला? उनकी बोर्ड में क्या भूमिका है? 

आपसे जल्द प्रतक्रिया का इंतज़ार रहेगा।

परंजोय गुहा ठाकुरता

एक दूसरी प्रश्नावली पूनिया को उसी दिन रात 8 बजकर 48 मिनट पर भेजी गई। इसमें लेख में उल्लेखित सोशल मीडिया संदेश पर उनसे प्रतिक्रिया मांगी गई थी। उन्होंने 9 बजकर 11 मिनट पर एक टेक्स्ट मैसेज किया, जिसमें उन्होंने मेरे ईमेल पहुंचने के बारें में उल्लेख किया और कहा कि वे जल्द लौटेंगे।

2. नीचे उल्लेखित प्रश्नावली 19 मई को रात 8 बजकर 2 मिनट पर भेजी गई:

सेवा में,

बिपाशा चक्रबर्ती

कम्यूनिकेशन डॉयरेक्टर, फेसबुक इंडिया

प्रेषक: परांजॉय गुहा ठाकुरता 

विषय: परांजॉय गुहा ठाकुरता द्वारा फ़ेसबुक के लिए प्रश्नवाली

तारीख़: 19 मई, 2020

प्रिय,

बिपाशा चक्रबर्ती

मैं एक स्वतंत्र पत्रकार हूं, जिसका 42 साल का पत्रकारीय अनुभव है, जिसे प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो, भारत सरकार ने प्रमाणित किया है।

मैं एक लेख लिख रहा हूं, जो फ़ेसबुक द्वारा 5.7 बिलियन डॉलर के निवेश और रिलायंस जियो प्लेटफॉर्म में 9.9 फ़ीसदी हिस्सेदारी खरीदे जाने, जिसकी घोषणा 22 अप्रैल, 2020 को की गई, उससे संबंधित हैं। इससे संबंधित कुछ सवालों के जवाब में आपकी प्रतिक्रिया, टिप्पणियों का आकांक्षी हूं।

22 अप्रैल, 2020 को फेसबुक ने कोरोना महामारी के दौर में जियो प्लेटफॉर्म में 5.7 बिलियन डॉलर (43,574 करोड़ रुपये) के निवेश की घोषणा की। इस निवेश के लिए जरूरी जांच-परख के लिए मेहनत कब की गई?

क्या फेसबुक द्वारा किया गया निवेश पूरी तरह से वित्तीय निवेश है? अगर नहीं है, तो जियो और फेसबुक के बीच समझौते के तहत हुए सहयोग क्षेत्र कौन-कौन से हैं?

रिलायंस जियो प्लेटफॉर्म का मूल्यांकन 66 बिलियन डॉलर कैसे आया? क्या मूल्यांकन DCF (डिस्काउंटेड कैश फ्लो) मॉडल के तहत किया गया था, जिसमें CAPM (कैपिटल एसेट प्राइसिंग मॉडल) का इस्तेमाल किया गया था या फिर जियो के सभी हिस्सों को जो़ड़ दिया गया (SOTP मॉडल)? वैकल्पिक तौर पर, क्या मूल्यांकन जियो की संपत्तियों के आंकलन के आधार पर था? क्या मूल्यांकन में जियो जेन-नेक्सट द्वारा मदद प्राप्त कोई यूनिकॉर्न (कम से कम एक लाख बिलियन अमेरिकी डॉलर कीमत वाली) कंपनी है।

आपकी प्रतिक्रिया के जल्द इंतज़ार में

परंजोय गुहा ठाकुरता

3, 4 और 5: तीन प्रश्नावलियां 8 बजकर 7 मिनट से 8 बजकर 14 के बीच 19 मई को निम्न लिखित लोगों को भेजी गईं। 

(1) इगॉन डरबन, मैनेजिंग पार्टनर, सिल्वर लेक

(2) रॉबर्ट एफ स्मिथ, फाउंडर, चेयरमैन और सीईओ, विस्टा इक्विटी पार्टनर्स

(3) बिल फोर्ड, सीईओ, जनरल अटलांटिक

प्रिय महानुभाव,

मैं एक स्वतंत्र पत्रकार हूं, जिसका 42 साल का पत्रकारीय अनुभव है, जिसे प्रेस इंफॉ़र्मेशन ब्यूरो, भारत सरकार ने प्रमाणित किया है।

मैं, रिलायंस जियो प्लेटफॉर्म में सिल्वर लेक द्वारा 750 मिलियन डॉलर के निवेश की घोषणा से संबधित एक लेख लिख रहा हूं। इससे संबंधित सवालों पर आपके जवाब का आकांक्षी हूं।

बाज़ार विश्लेषकों के अनुमानों और गणित के मुताबिक़, यह निवेश 2021 में रिलायंस जियो प्लेटफॉर्म के EBIT अनुमान से 150 गुना ज्यादा मूल्यांकन पर हुआ है। एक विचार ऐसा है कि भविष्य में जियो प्लेटफॉर्म में कम कीमत पर निवेश के मौके उपलब्ध हो जाते। क्या मूल्यांकन की गणना और अनुमान यथार्थवादी और न्यायोचित हैं?

क्या सिल्वर लेक और रिलायंस समूह, या इन समूहों की कंपनियों, या इससे जुड़े लोगों के बीच पहले से व्यापारिक रिश्ते रहे हैं?

एक विदेशी कंपनी में निवेश की घोषणा के पहले सिल्वर लेक ने किन अमेरिकी नियामक कानूनों का पालन किया है?

क्या रिलायंस जियो प्लेटफॉर्म में होने वाले निवेश, सिल्वर लेक द्वारा प्रबंधित एक ही फंड से हो रहा है या इसमें कई फंड से पैसे निवेश किए जा रहे हैं?

आपकी त्वरित प्रतिक्रिया के इंतज़ार में

परंजोय गुहा ठाकुरता

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

अंग्रेज़ी में यह लेख पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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